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भारत में डेटा आधारित नीति निर्माण: चुनौतियाँ तथा सिफारिशें

Lokesh Pal November 04, 2024 03:17 108 0

संदर्भ

जनगणना तथा राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण (NSS) जारी होने में देरी के कारण ‘डेटा के बिना एक दशक’ की चिंता के साथ, भारत की सांख्यिकीय प्रणालियों की विश्वसनीयता जाँच के दायरे में आ गई है।

‘डेटा आधारित नीति निर्माण’ के बारे में

  • परिभाषा: डेटा आधारित नीति निर्माण, सरकारी नीतियों तथा निर्णयों को सूचित करने और मार्गदर्शन करने के लिए अनुभवजन्य डेटा एवं सांख्यिकीय विश्लेषण का उपयोग करने की प्रक्रिया को संदर्भित करता है।
    • इस दृष्टिकोण का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि नीतियाँ अंतर्ज्ञान या वास्तविक अनुभवों के बजाय वस्तुनिष्ठ साक्ष्य पर आधारित हों।

डेटा आधारित नीति निर्माण का महत्त्व

  • बेहतर परिणाम: डेटा द्वारा सूचित नीतियों से वांछित परिणाम प्राप्त होने की अधिक संभावना है, क्योंकि वे धारणाओं के बजाय साक्ष्य पर आधारित हैं।
  • संसाधनों का आवंटन: डेटा संबंधी आवश्यकताओं की पहचान करने और संसाधन आवंटन को प्रभावी ढंग से प्राथमिकता देने में मदद करता है।
  • सूचित नागरिक: नागरिकों को डेटा के साथ जोड़ने से नीतियों के लिए सार्वजनिक समझ और समर्थन बढ़ता है, स्वामित्व एवं भागीदारी की भावना को बढ़ावा मिलता है।
  • अनुकूलता: डेटा संचालित दृष्टिकोण बदलती परिस्थितियों और उभरती चुनौतियों के प्रति अधिक सक्रिय प्रतिक्रिया की अनुमति देते हैं।

डेटा आधारित नीति निर्माण की चुनौतियाँ

  • डेटा की राजनीतिक प्रकृति: अर्थशास्त्रियों तथा नीति निर्माताओं ने डेटा संग्रह, व्याख्या और जारी करने में अधिक स्वतंत्रता और तटस्थता की वकालत की है। 
    • हालाँकि, सार्वजनिक आँकड़ों का निर्माण राजनीतिक विकल्पों से प्रभावित होता है।
    • डेटा के पीछे के राजनीतिक प्रभावों और प्रेरणाओं को समझे बिना, आँकड़े भ्रामक हो सकते हैं या निर्णयों तथा नीतियों को सूचित करने में कम प्रभावी हो सकते हैं। उदाहरण: जिस तरह से जनगणना में प्रश्न तैयार किए जाते है, वह राजनीतिक प्राथमिकताओं को प्रतिबिंबित कर सकता है।
  • डेटा विरोधाभास (Data Paradox): डेटा विरोधाभास उस परस्पर विरोधी संबंध को संदर्भित करता है, जहाँ पहले से कहीं अधिक डेटा उपलब्ध होने के बावजूद, संगठन और निर्णय-निर्माता सूचना अधिभार, डेटा की गुणवत्ता के मुद्दों आदि के कारण सूचित निर्णय लेने के लिए उस डेटा का प्रभावी ढंग से उपयोग करने हेतु संघर्ष करते हैं।
  • सांख्यिकीय आख्यानों और वास्तविक दुनिया के अनुभवों के बीच असमानता
    • उदाहरण: जनधन योजना के कारण भारत ने वर्ष 2014 में एक सप्ताह में सबसे अधिक बैंक खाते खोलने का गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड तोड़ दिया। 
      • हालाँकि, बैंकों ने शीघ्र खाते खोलने के लिए शिविर तो लगाए लेकिन निवासियों को कोई जानकारी या पासबुक उपलब्ध नहीं कराई।
      • परिणामस्वरूप, हालाँकि प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण का भुगतान किया गया, कई गरीब व्यक्तियों को अशिक्षा, दस्तावेजीकरण चुनौतियों और उत्पीड़न के कारण अपने खातों तथा वेलफेयर सब्सिडी तक पहुँचने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ा।
    • हालाँकि प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना खाद्यान्न वितरण पर प्रकाश डालती है, ‘ग्लोबल हंगर रिपोर्ट’ में भारत की रैंक वर्ष 2014 में 55वें से गिरकर वर्ष 2023 में 111वें स्थान पर आ गई है।
  • विकास बनाम मेट्रिक्स (Development vs Metrics): सांख्यिकीय उद्देश्यों को पूरा करने को विकास उद्देश्यों की प्राप्ति के साथ भ्रमित नहीं किया जाना चाहिए।
    • उदाहरण: केंद्रीय श्रम और रोजगार मंत्रालय द्वारा COVID-19 के बाद प्रवासी श्रमिकों पर डेटा एकत्र करने के लिए बनाया गया ई-श्रम डेटाबेस, स्व-घोषणा पर निर्भर करता है।
      • कई अपात्र व्यक्तियों, जैसे गृहिणियों और किसानों, ने संभावित लाभों के लिए साइन अप किया।
  • डिजिटल युग में डेटा तक पहुँच कठिन है: पहले, राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन (NSSO) जैसे सार्वजनिक संस्थान विस्तृत सामाजिक-आर्थिक डेटा एकत्र करते थे।
    • आधार के साथ, राज्य के पास नागरिकों का पहले से कहीं अधिक डेटा है।
    • अधिकांश ई-गवर्नेंस डेटा सरकारी प्रभागों तथा उनके निजी भागीदारों द्वारा एक्सेस किए गए राज्य डेटा केंद्रों में संगृहीत किया जाता है तथा डेटा अनियमित रूप से ऑनलाइन प्रकाशित किया जाता है।
    • संस्थानों को जवाबदेह ठहराने के लिए नागरिकों पर एकत्र किया गया डेटा नागरिकों या पत्रकारों के लिए उपलब्ध नहीं है; केवल सरकारी एवं निजी अभिकर्ताओं के पास ही पहुँच है।
    • हालाँकि, Google Pay तथा PhonePe जैसे भुगतान ऐप्स के माध्यम से एकत्र किए गए डेटा का उपयोग फिनटेक स्टार्ट-अप द्वारा नागरिकों को बेचने के लिए वित्तीय उत्पाद बनाने हेतु किया जाता है।

भारत के सांख्यिकीय संगठन

  • सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (MoSPI): भारत में सांख्यिकीय प्रणाली के विकास के लिए नीतियाँ तथा कार्यक्रम तैयार करने के लिए जिम्मेदार प्राथमिक सरकारी निकाय।
    • यह आधिकारिक आँकड़ों के संग्रह तथा प्रसार की देखरेख करता है।
    • मंत्रालय के दो विंग हैं, एक सांख्यिकी से संबंधित और दूसरा कार्यक्रम कार्यान्वयन से संबंधित।
      • सांख्यिकी विंग जिसे राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (National Statistical Office- NSO) कहा जाता है, में केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय (Central Statistical Office- CSO), कंप्यूटर केंद्र तथा राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय (National Sample Survey Office- NSSO) शामिल हैं।
  • केंद्रीय सांख्यिकी संगठन (Central Statistical Organisation- CSO) देश में सांख्यिकीय प्रणाली के नियोजित विकास और भारत सरकार तथा राज्य अर्थशास्त्र एवं सांख्यिकी निदेशालयों में सांख्यिकीय एजेंसियों के बीच सांख्यिकीय गतिविधियों में समन्वय लाने के लिए नोडल एजेंसी है।
  • राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग (National Statistical Commission): यह भारत सरकार के एक संकल्प के माध्यम से बनाया गया था।
  • भारतीय सांख्यिकी संस्थान (Indian Statistical Institute): यह एक स्वायत्त संस्थान है, जिसे संसद के एक अधिनियम द्वारा राष्ट्रीय महत्त्व का संस्थान घोषित किया गया है।
  • किसी भी विषय पर संग्रहण प्राधिकारी: किसी भी विषय पर आँकड़ों का संग्रहण आम तौर पर उस प्राधिकारी (केंद्रीय मंत्रालय या विभाग या राज्य सरकार विभाग) में निहित होता है, जो संघ, राज्य या समवर्ती सूची में उसकी स्थिति के अनुसार उस विषय के लिए जिम्मेदार होता है।

डेटा प्रणाली को मजबूत करने के लिए आगे की राह 

  • नागरिक सेवा डेटा पर ध्यान केंद्रित करना: केवल ‘सही’ डेटा या तकनीकी तरीकों को प्राप्त करने से ध्यान हटाकर यह निर्धारित करना कि कौन-सा डेटा नागरिकों के कल्याण में सबसे अच्छा समर्थन करता है।
    • उदाहरण के लिए, हालाँकि नए खोले गए बैंक खातों पर आँकड़े सटीक हो सकते हैं, इन खातों तक पहुँचने वाले गरीबों के अनुपात को मापने से अधिक सार्थक जानकारी मिलती है।
  • डेटा डिजाइन समावेशन: यह सुनिश्चित करना कि डिजिटल रूप से एकत्र किया गया डेटा केवल सरकार और स्टार्ट-अप उपयोग के लिए डिजाइन नहीं किया गया है।
    • खुली संस्थागत संरचनाएँ स्थापित करने की आवश्यकता है, जो नागरिक समाज को डेटा बुनियादी ढाँचे को डिजाइन करने में भाग लेने की अनुमति दे, यह सुनिश्चित करते हुए कि विविध दृष्टिकोण शामिल हैं।
    • डेटा संग्रह को केवल एक तकनीकी कार्य के बजाय एक सामाजिक तथा राजनीतिक प्रक्रिया के रूप में देखा जाना चाहिए।
  • डेटा का सामाजिक तथा राजनीतिक आयाम: अंततः सांख्यिकी को नागरिकों की जरूरतें पूरी करनी चाहिए, न कि नागरिकों को केवल सांख्यिकीय उद्देश्यों को प्राप्त करने के साधन के रूप में देखा जाना चाहिए।
    • परिप्रेक्ष्य में यह बदलाव अधिक प्रभावी और प्रतिक्रियाशील डेटा सिस्टम बनाने में मदद करेगा।
  • नागरिकों तक डेटा की पहुँच में सुधार: ‘डेटा पोर्टल ऑफ इंडिया’ को मजबूत करना है।
    • डेटा पोर्टल इंडिया भारत सरकार की ओपन डेटा पहल का समर्थन करने के लिए एक मंच है।
    • इस पोर्टल का उपयोग भारत सरकार के मंत्रालयों/विभाग/संगठनों द्वारा सार्वजनिक उपयोग के लिए डेटासेट और एप्लिकेशन प्रकाशित करने के लिए किया जाना है।
  • डेटा के संसाधन आधार का विस्तार: राष्ट्रीय सांख्यिकी प्रणाली को अपने डेटा के संसाधन आधार का विस्तार और विविधता लाने की आवश्यकता है।
    • इसमे मशीन लर्निंग तथा कृत्रिम बुद्धिमत्ता के माध्यम से बिग डेटा लीवरेज प्रोसेसिंग जैसे नए एवं उभरते स्रोत शामिल होने चाहिए।
  • राज्य सांख्यिकी प्रणालियों को मजबूत करना: उप-राष्ट्रीय खातों पर ढोलकिया समिति की रिपोर्ट, 2020 राज्य सरकारों की डेटा संग्रह क्षमताओं को मजबूत करते हुए, नीचे से ऊपर के दृष्टिकोण की वकालत करती है।
    • यह महत्त्वपूर्ण है क्योंकि राष्ट्रीय सांख्यिकीय प्रणाली की क्षमता राज्य सांख्यिकीय प्रणाली की क्षमता पर निर्भर है।

निष्कर्ष

प्रभावी डेटा आधारित नीति निर्धारण सूचित निर्णय लेने तथा बेहतर शासन के लिए आवश्यक है, लेकिन इसके लिए डेटा पहुँच, राजनीतिक प्रभाव और सूचना की गुणवत्ता जैसी चुनौतियों का समाधान करना आवश्यक है।

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