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Lokesh Pal
July 02, 2025 02:25
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हाल ही में उपराष्ट्रपति ने आपातकाल के दौरान संविधान की प्रस्तावना में ‘समाजवादी’ और ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्दों को जोड़ने को ‘सनातन की भावना का अपमान’ बताया।
भारत की धर्मनिरपेक्षता और समाजवाद, जैसा कि प्रस्तावना में परिलक्षित होता है, इसकी संवैधानिक पहचान के लिए केंद्रीय बने हुए हैं। हालाँकि इनके क्रियान्वयन में चुनौतियाँ हैं, लेकिन ये सिद्धांत विविधतापूर्ण और गतिशील समाज में न्याय, समानता तथा धार्मिक स्वतंत्रता सुनिश्चित करने के लिए महत्त्वपूर्ण बने हुए हैं।
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