भारतीय रिजर्व बैंक के हालिया आँकड़ों के मुताबिक, भारत की शुद्ध घरेलू बचत 47 वर्षों में अपने सबसे निचले स्तर पर पहुँच गई है।
सकल घरेलू उत्पाद (GDP)
यह एक निर्दिष्ट समय अवधि, आमतौर पर एक वर्ष के दौरान किसी देश के घरेलू क्षेत्र के भीतर उत्पादित सभी वस्तुओं एवं सेवाओं का बाजार मूल्य है।
संबंधित तथ्य
बचत में कमी: वित्तीय वर्ष 2023 में बचत घटकर सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का 5.3% हो गई, जो वर्ष 2022 में 7.3% थी।
घरेलू ऋण में वृद्धि: इसी अवधि में घरेलू ऋण में भी तेज वृद्धि हुई है।
वार्षिक उधार सकल घरेलू उत्पाद का 5.8% था अर्थात 1970 के दशक के बाद दूसरा उच्चतम स्तर।
भारत के बढ़ते घरेलू ऋण का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा गैर-बंधक ऋणों से निर्मित है। इनमें से आधे से अधिक ऋण कृषि एवं व्यावसायिक ऋण शामिल हैं।
ऋण सेवा अनुपात: भारतीय परिवारों का ऋण सेवा अनुपात नॉर्डिक देशों के समान लगभग 12% है।
यह अनुपात चीन, फ्राँस, UK एवं अमेरिका से अधिक है, इन सभी में घरेलू ऋण का स्तर अधिक है।
यह अंतर भारत में उच्च ब्याज दरों एवं कम ऋण अवधि के कारण है, जिसके परिणामस्वरूप कम ऋण-से-आय अनुपात के बावजूद अपेक्षाकृत उच्च DSR होता है।
DSR आय का वह हिस्सा है, जिसका उपयोग ऋण चुकाने में किया जाता है।
घरेलू शुद्ध बचत (Household Net Savings) क्या है?
घरेलू शुद्ध बचत: घरेलू शुद्ध बचत वह कुल धन और निवेश है जो परिवारों के पास है, जैसे जमा, स्टॉक एवं बोनस, ऋण तथा ऋण जैसे उनके द्वारा दिए गए किसी भी पैसे को घटाकर।
बचत में कमी के पीछे कारण: चूँकि परिवार उपभोग को बनाए रखने के लिए उधार पर अधिक निर्भर होते हैं, इसलिए उनकी बचत स्वाभाविक रूप से कम हो जाती है।
बढ़ती उधारी के साथ, उनकी आय का एक बड़ा हिस्सा ऋण चुकौती के लिए आवंटित किया जाता है, जिसके परिणामस्वरूप बचत में कमी आती है।
हालाँकि क्रेडिट कार्ड, उपभोक्ता आधारित वस्तुएँ, शादियों एवं स्वास्थ्य आपात स्थितियों जैसे उपभोग उद्देश्यों के लिए उधार लेना कुल घरेलू ऋण का 20% से कम है, यह सबसे तेजी से बढ़ते खंड का प्रतिनिधित्व करता है।
‘क्रेडिट वाइडनिंग’ से ‘क्रेडिट डीपनिंग’ में बदलाव: पिछले दशक में घरेलू ऋण वृद्धि का प्राथमिक कारक ‘क्रेडिट डीपनिंग’ के बजाय ‘क्रेडिट वाइडनिंग’ रहा है।
‘क्रेडिट विस्तार’ क्रेडिट गहनता के विपरीत उधारकर्ताओं की संख्या में विस्तार की विशेषता है, जिसमें प्रत्येक उधारकर्ता को बड़े ऋण लेना शामिल है।
व्यक्तिगत उधारकर्ताओं द्वारा बड़ी ऋण राशि लेने की तुलना में उधारकर्ताओं की संख्या बढ़ाना अधिक अनुकूल माना जाता है।
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