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नीलगिरी में घास के मैदानों में रहने वाले पक्षियों की संख्या में कमी

Lokesh Pal September 04, 2025 03:39 12 0

संदर्भ

ग्लोबल चेंज बायोलॉजी में प्रकाशित एक अध्ययन में पक्षी विविधता पर इसके प्रभाव को समझने के लिए पश्चिमी घाट के नीलगिरी पर्वतों में 170 वर्षों के भूमि-उपयोग परिवर्तन की जाँच की गई।

संबंधित तथ्य

  • शोधकर्ताओं ने जैव विविधता के रुझानों पर नजर रखने के लिए ऐतिहासिक संग्रहालय के नमूना रिकॉर्ड को आधुनिक क्षेत्र सर्वेक्षणों के साथ जोड़ा।

अध्ययन के प्रमुख निष्कर्ष

  • चरागाहों के पक्षियों में गिरावट
    • लगभग 90% चरागाहों के पक्षियों की सापेक्षिक संख्या में कमी आई है।
    • नीलगिरी पिपिट (Nilgiri Pipit) और मालाबार लार्क (Malabar Lark) (ग्रासलैंड स्पेशलिस्ट) की संख्या में सबसे अधिक गिरावट आई है।
    • चरागाह का क्षेत्रफल 993 वर्ग किमी. (वर्ष 1848) से 80% घटकर 201 वर्ग किमी. (वर्ष 2018) रह गया है।
  • वन पक्षी स्थिरता (Forest bird Stability)
    • पिछली शताब्दी में लगभग 53% वन पक्षियों की संख्या अपेक्षाकृत स्थिर रही है।
    • घास के मैदानों की जगह विदेशी वृक्षारोपण या आक्रामक पादप प्रजातियों की संख्या में वृद्धि हुई है, जिससे वन-आधारित पक्षियों के लिए वैकल्पिक आवास निर्मित हुए हैं।
  • मुख्य चिंता: घास के मैदानों के संरक्षण को अभी भी अपर्याप्त मान्यता प्राप्त है, जबकि प्रायः वनों और वृक्षारोपण पर ध्यान केंद्रित किया जाता है।

नीलगिरी पिपिट (Nilgiri Pipit) के बारे में

  • वैज्ञानिक नाम: एंथस नीलगिरीएंसिस  (Anthus Nilghiriensis) 
  • वितरण: नीलगिरी पिपिट पश्चिमी घाटों का स्थानिक पक्षी है और केरल, तमिलनाडु तथा  कर्नाटक में पाया जाता है।
  • आवास: मुख्यतः 1,500 मीटर से ऊपर, बिखरी हुई झाड़ियों एवं कम ऊँचाई वाले वृक्षों के घास वाले ऊँचे ढलानों में रहना पसंद करता है; 2,000 मीटर से ऊपर सबसे अधिक प्रचुर मात्रा में पाया जाता है।
  • संरक्षण स्थिति: IUCN की रेड लिस्ट में ‘सुभेद्य’ के रूप में सूचीबद्ध।
  • आहार आदतें: मुख्य रूप से घाटियों में घासों को खाता है और जड़ी-बूटियों के बीज खाता है।
  • घोंसला बनाना: लंबी घास और सेज वाले दलदली घास के मैदानों में, विशेष रूप से नदियों के पास, घोंसले बनाता है।
  • खतरे: देशज घास के मैदानों के चाय, नीलगिरी और सिल्वर वेटल [(अकेशिया डीलबाटा (Acacia Dealbata)] के बागानों में परिवर्तित होने के कारण आवास के नुकसान का सामना करना पड़ रहा है।

मालाबार लार्क (Malabar Lark) के बारे में

  • आकार एवं रंग: यह भूरे रंग का पक्षी है, जिसके ऊपरी भाग पर गहरी धारियाँ होती हैं, छोटी कलगी, नीचे का भाग हल्का होता है, तथा छाती पर गहरी धारियाँ होती हैं।
  • आवास: घास के मैदानों, पथरीले इलाकों और खुले भू-भागों में पाया जाता है।
  • स्वर: परिवर्तनशील ध्वनियाँ उत्पन्न करता है।
  • आहार: मुख्य रूप से बीजों पर निर्भर करता है, प्रजनन काल के दौरान कीड़े आहार का एक प्रमुख हिस्सा होते हैं।
  • संरक्षण स्थिति: IUCN की रेड लिस्ट में ‘कम चिंताग्रस्त’ के रूप में वर्गीकृत।

शोला वनों के बारे में

  • परिभाषा: पर्वतीय सदाबहार वनों और घास के मैदानों का एक अनूठा मिश्रण।
  • स्थान: दक्षिणी पश्चिमी घाट में उष्णकटिबंधीय उच्च-ऊँचाई वाले क्षेत्रों (>1500 मीटर) तक सीमित है।
  • विशेषताएँ: छोटे सदाबहार वृक्षों के समूहों से युक्त घास के मैदान।
  • जैव विविधता: कई स्थानिक और संकटग्रस्त पादप एवं जीवों का आवास है।
  • पारिस्थितिकी महत्त्व: जल चक्र को बनाए रखने और जल विज्ञान संतुलन बनाए रखने के लिए महत्त्वपूर्ण है।

नीलगिरी पर्वत के बारे में

  • स्थान: नीलगिरी पर्वत दक्षिणी पश्चिमी घाट में तमिलनाडु, केरल और कर्नाटक के त्रि-संधि पर अवस्थित हैं।
  • सबसे ऊँची चोटी: डोड्डाबेट्टा (2,637 मीटर) इस पर्वतमाला का सबसे ऊँचा बिंदु है।
  • भूगोल: इसकी विशेषताएँ हैं: घुमावदार पहाड़ियाँ, गहरी घाटियाँ और ऊँचे पठार, जिनमें अद्वितीय शोला-घास के मैदानी पारिस्थितिकी तंत्र हैं।
  • पारिस्थितिकी: एक जैव विविधता हॉटस्पॉट के रूप में मान्यता प्राप्त, नीलगिरी तहर, लायन-टेल मकॉक और नीलगिरी पिपिट जैसी स्थानिक प्रजातियाँ यहाँ पाई जाती हैं।
  • जलविज्ञान संबंधी भूमिका: एक महत्त्वपूर्ण जलसंभर/जलविभाजक के रूप में कार्य करता है, जो भवानी, काबिनी आदि नदियों को जल प्रदान करता है।

प्राकृतिक इतिहास संग्रहालयों की भूमिका

  • जैव विविधता भंडार: जैव विविधता डेटा के महत्त्वपूर्ण भंडार के रूप में कार्य करते हैं, विशेष रूप से भारत जैसे प्रजाति-समृद्ध क्षेत्रों में।
  • ऐतिहासिक अभिलेख: प्रजातियों के वितरण, वर्गीकरण, प्रवास, जलवायु प्रतिक्रियाओं और जैव विविधता ह्रास के बारे में जानकारी प्रदान करते हैं।
  • प्रमुख चुनौतियाँ: डिजिटलीकरण की कमी, सीमित धन, पुराना बुनियादी ढाँचा, नौकरशाही बाधाएँ, उच्च यात्रा लागत, वीजा प्रतिबंध और नमूना स्वामित्व/प्रत्यावर्तन पर विवाद जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है।

संरक्षण के लिए अंतर्दृष्टि

  • अभिलेखीय मूल्य: ऐतिहासिक अभिलेख (नमूने, पत्रिकाएँ, मानचित्र) दीर्घकालिक जैव विविधता आधार रेखाएँ प्रदान करके क्षेत्रीय अध्ययनों को पूरक बनाते हैं।
  • चरागाह पुनर्स्थापन: चरागाहों को महत्त्वपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्रों के रूप में मान्यता और पुनर्स्थापन पर जोर देना।
  • प्रकृति-आधारित समाधान: जैव विविधता के नुकसान को रोकने के लिए गैर-वनीय आवासों के उचित मूल्यांकन और प्रकृति-आधारित समाधानों को अपनाने की आवश्यकता पर बल देना।

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