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गहरे समुद्र में खनन

Lokesh Pal April 01, 2025 03:15 11 0

संदर्भ

“गहरे समुद्री खनन मार्ग में दीर्घकालिक प्रभाव और जैविक पुनर्प्राप्ति” नामक शीर्षक से प्रकाशित एक हालिया अध्ययन ने गहरे समुद्र में खनन के दीर्घकालिक प्रभाव पर प्रकाश डाला है।

अध्ययन से संबंधित मुख्य बिंदु

  • शीर्षक: गहरे समुद्र में खनन ट्रैक में दीर्घकालिक प्रभाव और जैविक पुनर्प्राप्ति
  • प्रकाशित: यह अध्ययन नेचर जर्नल में प्रकाशित हुआ था।
  • द्वारा संचालित: यह अध्ययन ब्रिटेन के राष्ट्रीय समुद्र विज्ञान केंद्र के नेतृत्व में वैज्ञानिकों की एक टीम द्वारा किया गया था।
    • भाग: यह अध्ययन NOC के नेतृत्व वाली ‘सीबेड माइनिंग एंड रेसिलिएंस टू एक्सपेरीमेंटल इम्पैक्ट’ (Seabed mining and resilience to experimental impact- SMARTEX) परियोजना का हिस्सा है, जिसे ‘नेचुरल एनवायरनमेंट रिसर्च काउंसिल’ (Natural Environment Research Council-NERC) द्वारा वित्तपोषित किया गया है।
  • विश्लेषण: अध्ययन में प्रशांत महासागर के समुद्र तल पर 8 मीटर स्थान की जाँच की गई, ताकि वर्ष 1979 में समुद्र तल से ‘पॉलीमेटेलिक नोड्यूल’ को हटाने के लिए किए गए एक लघु खनन प्रयोग के प्रभाव का पता लगाया जा सके।
    • इस स्थल को, पुनर्प्राप्ति के लिए संभावित समय सीमा और खनन कार्य के 44 वर्ष बाद क्या निशान बचे हैं, की जाँच करने के लिए चुना गया था।
  • निष्कर्ष
    • भौतिक भू-वैज्ञानिक परिवर्तन: खनन ने अपने प्रणोदन डिजाइन के कारण तलछट में दीर्घकालिक परिवर्तन किए हैं और वे अभी तक पुनर्प्राप्त नहीं हुए हैं, जिससे वहाँ रहने वाले कई बड़े जीवों की आबादी कम हो गई है।
    • जैविक पुनर्प्राप्ति के पहले संकेत: तलछट की सतह पर रहने वाले कुछ छोटे और गतिशील पशु समूह पुनः उपनिवेशीकरण और पुनः आबादी के पहले संकेत दिखा रहे थे।
      • एक प्रकार का विशाल, अमीबा जैसा जेनोफियोफोर, जो सामान्यतः CCZ क्षेत्र में प्रत्येक स्थान पर पाया जाता है, इन मार्ग क्षेत्रों पर पुनः आबाद हो गया था।
    • बड़े जीवों की रिकवरी: समुद्र तल पर स्थिर बड़े आकार के जानवर अभी भी इस स्थल पर बहुत दुर्लभ हैं, रिकवरी के बहुत कम या कोई संकेत नहीं दिखा रहे हैं।
    • तलछट समूहों का प्रभाव: तलछट समूहों को पहले समुद्र तल समुदाय पर बड़ा प्रभाव डालने की संभावना थी, लेकिन इनका दीर्घकालिक भौतिक प्रभाव सीमित था और जानवरों की संख्या पर कोई नकारात्मक प्रभाव नहीं देखा जा सकता था।

गहरे समुद्र में खनन के बारे में

  • गहरे समुद्र में खनन, समुद्र के तल अर्थात् 200 मीटर से नीचे के समुद्र से खनिज जमा और धातुओं को निकालने और उत्खनन करने की प्रक्रिया है।
  • लक्षित खनिज निक्षेप
    • बहुधात्विक पिंड: ये चट्टान जैसी संरचनाएँ हैं, जो मैंगनीज, निकल, ताँबा और कोबाल्ट जैसी धातुओं से समृद्ध होती हैं, जो विस्तृत मैदानों में पाई जाती हैं।
    • कोबाल्ट-समृद्ध क्रस्ट: ये कोबाल्ट, मैंगनीज और निकल के अवसाद होते हैं, जो समुद्री समुद्रीय पर्वतों (जल के नीचे के पहाड़ों) पर चट्टानों की सतह पर पाए जाते हैं।
    • सीफ्लोर मैसिव सल्फाइड्स (Seafloor Massive Sulfides-SMS): ये हाइड्रोथर्मल वेंट के आसपास बने जमा होते हैं, जिनमें ताँबा, सोना, चाँदी और जस्ता जैसी धातुओं की उच्च सांद्रता होती है।
  • प्राधिकरण: अंतरराष्ट्रीय समुद्र तल प्राधिकरण (International Seabed Authority-ISA) राष्ट्रीय अधिकार क्षेत्र से परे समुद्र तल में गतिविधियों को नियंत्रित करता है और गहरे समुद्र में खनन की अनुमति देने तथा किन शर्तों के तहत अनुमति देने के सवाल पर निर्णय लेता है।
    • ISA दोहन के लिए संक्रमण को नियंत्रित करने के लिए नियम विकसित कर रहा है और वर्तमान में कंपनियों तथा देशों से खनन परमिट के आवेदन स्वीकार कर रहा है।
  • गहरे समुद्र में खनन की वर्तमान स्थिति: गहरे समुद्र में खनन अभी तक व्यावसायिक रूप से नहीं किया गया है, लेकिन उपकरणों के परीक्षण के लिए अन्वेषणात्मक खनन लघु पैमाने पर हुआ है।
    • खनिज अन्वेषण: ISA ने वर्ष 2022 तक अंतरराष्ट्रीय  समुद्र तल के 1.5 मिलियन वर्ग किलोमीटर से अधिक गहरे समुद्र में खनिज भंडारों की खोज के लिए 31 अनुबंध जारी किए हैं।
    • भारत के साथ अन्वेषण अनुबंध: भारत के पास हिंद महासागर में दो अन्वेषण अनुबंध हैं और उसने वर्ष 2024 में दो और अनुबंध के लिए आवेदन किया है।
      • मध्य महासागर रिज: यह अंतरराष्ट्रीय जल क्षेत्र में एक ‘ट्रिपल जंक्शन’ क्षेत्र है। यहाँ, हाइड्रोथर्मल सल्फाइड अवसाद की खोज की जाती है, जिसमें सोना, प्लैटिनम और अन्य खनिज जैसे बहु-धातुएँ होती हैं।
      • मध्य हिंद महासागर: यहाँ, बहु-धात्विक पिंडों की खोज की जाती है।

  • गहरे समुद्र में खनन के संभावित लाभ
    • डीकार्बोनाइजेशन प्रयास: गहरे समुद्र के संसाधन डीकार्बोनाइजेशन प्रयासों को बढ़ाने के लिए आवश्यक महत्त्वपूर्ण खनिजों की भविष्य की महत्त्वपूर्ण आवश्यकता को पूरा करने में मदद कर सकते हैं।
    • वैश्विक माँग में वृद्धि: आने वाले दशकों में कुछ ऐसे खनिजों के लिए 400%-600% तक की वृद्धि होने का अनुमान है क्योंकि विश्व पवन और सौर ऊर्जा, इलेक्ट्रिक वाहनों, बैटरी और अन्य शून्य-कार्बन प्रौद्योगिकियों पर अपनी निर्भरता बढ़ा रहा है।
    • भूमि आधारित स्रोत का पूरक: भूमि पर खनिज संसाधनों की कमी और व्यवहार्य भंडार का पता लगाने तथा खनन एवं प्रसंस्करण कार्यों को तेजी से बढ़ाने में आने वाली बाधाओं को आपूर्ति शृंखला में निरंतर प्रवाह बनाए रखने के लिए गहरे समुद्र के संसाधनों द्वारा पूरक किया जाएगा।
  • गहरे समुद्र में खनन से संबंधित चिंताएँ
    • प्रदूषण में वृद्धि: व्हेल, टूना और शार्क जैसी समुद्री प्रजातियाँ खनन उपकरणों और सतही जहाजों के कारण होने वाले शोर, कंपन और प्रकाश प्रदूषण से प्रभावित हो सकती हैं। साथ ही ईंधन और विषाक्त उत्पादों के संभावित रिसाव और फैलाव से भी।
    • तलछट समूह: सतही खनन से समुद्र तल पर महीन तलछट निर्मित होता हैं, जिससे निलंबित कणों के समूह का निर्माण होता है, जो जीवों के लिए अत्यधिक हानिकारक हो सकते हैं, फिल्टर-फीडिंग प्रजातियों को नुकसान पहुँचा सकते हैं और उनके दृश्य संचार को अवरुद्ध कर सकते हैं।
    • सतह पर अपशिष्ट जल छोड़ने वाले खनन जहाजों से समस्या में वृद्धि हो जाएगी।
    • आवास विनाश: समुद्र तल की खुदाई और मापन से गहरे समुद्र के आवासों में परिवर्तन या विनाश हो सकता है, जिसके परिणामस्वरूप स्थानिक प्रकृति की कई प्रजातियाँ विलुप्त हो जाएँगी और पारिस्थितिकी तंत्र की संरचना तथा कार्य की हानि होगी।
    • जलवायु परिवर्तन को बढ़ावा देना: गहरे समुद्र में खनन जलवायु परिवर्तन की प्रक्रिया को बढ़ा सकता है क्योंकि यह गहरे समुद्र के कार्बन सिंक (बड़ी मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित और संगृहीत करना) गुणों को बाधित करेगा।
    • कोई शासन संरचना नहीं: गहरे समुद्र में खनन को जिम्मेदारी और इसे सतत् तरीके से संचालित करने के लिए प्रभावी अंतरराष्ट्रीय विनियमन और शासन की कमी के बारे में चिंताएँ हैं।
    • आर्थिक और सामाजिक जोखिम: गहरे समुद्र में खनन उद्योग को भूमि अधिग्रहण और विकास की आवश्यकता वाली सामग्री के प्रसंस्करण या ट्रांसशिपमेंट के लिए तटरेखा सुविधाओं की आवश्यकता होगी, जिससे समुद्री संसाधनों पर निर्भर तटीय समुदायों पर सबसे अधिक प्रभाव पड़ेगा।

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