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डीपफेक: व्यंग्य और मानहानि से संबंधित मुद्दे

Lokesh Pal June 29, 2024 03:55 177 0

संदर्भ

जनरेटिव आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (Artificial intelligence- AI) टूल का उपयोग करके बनाए गए डीपफेक के प्रतिरूप के साथ, डीपफेक व्यंग्य और मानहानि (Deepfake Satire & Defamation) के बीच अंतर करना मुश्किल हो गया है।

  • अब, यह केवल विषय-वस्तु के बारे में नहीं है, बल्कि यह भी है कि क्या दर्शक उचित रूप से पहचान सकते हैं कि कौन बोल रहा है?

डीपफेक व्यंग्य और मानहानि के हालिया मामले

हाल ही में भारत में कई लोकप्रिय हस्तियाँ डीपफेक के कारण चर्चा का विषय रही हैं, जिनमें से कुछ को सोशल मीडिया पर व्यापक रूप से प्रसारित किया गया था।

  • अनिल कपूर बनाम सिंपली लाइफ इंडिया (Simply Life India) एवं अन्य मामला
    • मामला: दिल्ली उच्च न्यायालय ने अनिल कपूर के गैर-सहमति वाले डीपफेक के इस्तेमाल की जाँच की।
    • मुद्दा: उनकी छवि, नाम, आवाज और व्यक्तित्व का उनकी सहमति के बिना दुरुपयोग किया गया था।
    • न्यायालय का निर्णय: न्यायालय ने माना कि अनिल कपूर की समानता, छवि, व्यक्तित्व आदि सभी बौद्धिक संपदा कानून के तहत संरक्षित होने के हकदार हैं।
    • व्यंग्य पर टिप्पणी: न्यायालय ने कहा कि सार्वजनिक हस्तियों के संदर्भ में मुक्त भाषण के लिए कानूनी संरक्षण के दायरे में व्यंग्य शामिल है, लेकिन इसमें ऐसा भाषण शामिल नहीं है, जो व्यक्ति के व्यक्तित्व या उनसे जुड़ी विशेषताओं को खतरे में डालता हो।
  • रजत शर्मा का मामला
    • मामला: टेलीविजन पत्रकार रजत शर्मा ने डीपफेक पर व्यापक आदेश की माँग की। डीपफेक बनाने वाले सॉफ्टवेयर तक पहुँच का अनुरोध किया गया।
    • दिल्ली उच्च न्यायालय इस मामले पर जुलाई 2024 में आगे विचार करेगा।
  • अन्य: स्वस्थ जीवनशैली या हरित कारणों को बढ़ावा देने के लिए प्रसिद्ध हस्तियों की प्रतिष्ठा को डीपफेक द्वारा नुकसान पहुँचाया जा सकता है, जिसमें उन्हें जंक फूड के प्रति प्रेम या निजी जेट पर उड़ान भरने के बारे में चर्चा करते हुए दिखाया जाता है।
    • ये स्थितियाँ संरक्षित व्यंग्य के दायरे से बाहर प्रतीत होती हैं, जिसे दिल्ली उच्च न्यायालय ने अनिल कपूर मामले में मान्यता दी थी।

डीपफेक और व्यंग्य (Deepfakes and Satire) के बारे में 

व्यंग्य हजारों वर्ष पुराना है। डीपफेक इस दशक की खोज हैं। आज, वे सोशल मीडिया पर मौजूद हैं, गलत सूचना, भ्रामक जानकारी और संदर्भहीनता से भरे हुए हैं।

  • व्यंग्य: यह रचनात्मक अभिव्यक्ति की एक शैली है, जो किसी व्यक्ति, लोगों के समूह, मानदंडों के एक समूह या एक बड़े विचार पर निर्णय देने के लिए हास्य उपकरणों (अतिशयोक्ति, विडंबना, आदि) का उपयोग करती है। अपने सर्वश्रेष्ठ रूप में, कला के ऐसे कार्य बड़े सामाजिक सत्य को उजागर करने का लक्ष्य रखते हैं।
    • इसका उद्देश्य आम तौर पर वास्तविक जीवन में लोगों एवं घटनाओं को आलोचनात्मक मूल्यांकन के तौर पर परखना है।
    • व्यंग्य को लंबे समय से मुक्त भाषण के वैध रूप के रूप में स्वीकार किया गया है, न कि मानहानि के रूप में।
    • किसी व्यक्ति के व्यंग्यात्मक चित्र और चित्रण के मामले में, एक निष्पक्ष दर्शक या पाठक को पता होता है कि विचाराधीन सामग्री वास्तव में व्यंग्य के विषय से उत्पन्न नहीं हुई है।
  • डीपफेक: ये कंप्यूटर द्वारा संश्लेषित ऑडियो और/या वीडियो होते हैं, जो ऐसा दिखाते हैं कि लोगों ने ऐसी चीजें की हैं या कही हैं, जो उन्होंने कभी नहीं की या कही हैं।
    • डीप फेक कृत्रिम छवियों और ऑडियो का संकलन है, जिसे मशीन-लर्निंग एल्गोरिदम के साथ मिलकर गलत सूचना फैलाने और वास्तविक व्यक्ति की उपस्थिति, आवाज या दोनों को समान कृत्रिम समानता अथवा आवाज से बदलने के लिए तैयार किया जाता है।
    • शब्द की उत्पत्ति: डीपफेक शब्द की उत्पत्ति वर्ष 2017 में हुई थी, जब एक अनाम Reddit उपयोगकर्ता ने खुद को ‘डीपफेक’ कहा था।
    • डीपफेक तकनीक: जेनरेटिव एडवर्सरियल नेटवर्क (Generative Adversarial Networks- GAN) नामक एक तकनीक का अनुप्रयोग, जो दो AI एल्गोरिदम (जहाँ एक नकली सामग्री उत्पन्न करता है और दूसरा उसके प्रयासों को ग्रेड देता है, जिससे सिस्टम को बेहतर होना सिखाया जाता है) का उपयोग करता है, उसने अधिक सटीक डीपफेक बनाने में मदद की है।
      • जनरेटिव एडवर्सेरियल नेटवर्क (Generative Adversarial Network- GAN) एक गहन शिक्षण आर्किटेक्चर है, जिसमें दो न्यूरल नेटवर्क शामिल होते हैं, जो जीरो-सम गेम फ्रेमवर्क (Zero-Sum Game Framework) में एक दूसरे के विरुद्ध प्रतिस्पर्द्धा करते हैं।

डीपफेक से मानहानि और मतभेद के बारे में (About Defamation and its Differences from Deepfakes)

  • मानहानि (Defamation) एक झूठा बयान देना है जो किसी व्यक्ति, व्यवसाय, उत्पाद, समूह, सरकार, धर्म या राष्ट्र की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुँचाता है।

डीपफेक और मानहानि के अंतर (Differences of Defamation and Deepfakes)

मानहानि (Defamation)

डीपफेक (Deepfakes)

  • मानहानि को ‘निष्पक्ष टिप्पणी’ के रूप में माना जाता है, जिसमें आमतौर पर व्यंग्य, पैरोडी या नकल शामिल होती है, जो कि दिए गए विशिष्ट बयानों और जिस संदर्भ में कंटेंट प्रकाशित किया गया है, उस पर निर्भर करता है।
    • पैरोडी (Parody) किसी व्यक्ति, कार्य या शैली की हास्यपूर्ण नकल है, जिसमें अक्सर अतिशयोक्ति या चंचल शैलीकरण शामिल होता है।
  • मानहानि के लिए लागू ‘निष्पक्ष टिप्पणी’ के समान मानक सीधे डीपफेक पर लागू नहीं किए जा सकते।
  • यदि कोई डीपफेक यह भ्रम पैदा करता है कि उसके विषय ने कुछ ऐसा कहा या किया गया है, जिससे उस व्यक्ति की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुँचेगा, तो यह यकीनन राय या व्यंग्य के रूप में प्रमाणित नहीं होगा।
  • मानहानि न केवल ऐसे डीपफेक की विषय-वस्तु से उत्पन्न हो सकती है, बल्कि चित्रित व्यक्ति के शब्दों और कार्यों के गलत उल्लेख से भी उत्पन्न हो सकती है।
  • डीपफेक दो अलग-अलग AI  डीप-लर्निंग एल्गोरिदम का उपयोग करके तैयार किए जाते हैं:- 
    • एक जो वास्तविक चित्र या वीडियो की सर्वोत्तम संभव प्रतिकृति तैयार करता है तथा दूसरा जो यह पता लगाता है कि प्रतिकृति नकली है या नहीं, यदि नकली है, तो उसके और मूल के बीच अंतर की रिपोर्ट करता है।


  • मानहानि की पृष्ठभूमि
    • भारत में
      • प्राचीन काल में: इसका उल्लेख मनुस्मृति में भी मिलता है। इसमें किसी व्यक्ति के विरुद्ध बुरा बोलने से उसकी प्रतिष्ठा को होने वाली हानि पर बल दिया गया है।
      • ब्रिटिश शासन के दौरान: ब्रिटिश सरकार के खिलाफ आलोचना को रोकने के लिए वर्नाक्यूलर प्रेस अधिनियम, 1878 (Vernacular Press Act, 1878) और समाचार-पत्र (अपराधों के लिए प्रोत्साहन) अधिनियम, 1908 [Newspaper (Incitement to Offences) Act, 1908] आदि जैसे कानून बनाए गए थे।
    • विश्व में 
      • प्राचीन रोमन कानून (Ancient Roman Law): किसी के खिलाफ अपमानजनक शब्दों के प्रयोग के लिए मृत्युदंड दिया जाता था। 
      • मध्य युग में (In the Middle Ages): संयुक्त धर्मनिरपेक्ष और आध्यात्मिक अधिकारियों द्वारा इंग्लैंड में प्रतिष्ठा की रक्षा की गई थी। इसके बाद मानहानि का अधिकार क्षेत्र न्यायालयों में न्यायाधीशों के पास चला गया।
  • मानहानि कानून: यह विचार की स्वतंत्रता और सार्वजनिक चर्चा के लाभ का त्याग किए बिना, व्यक्तिगत चरित्र और सार्वजनिक संस्थानों को विनाशकारी हमलों से बचाने का दावा करता है।
  • मौलिक अधिकार बनाम मानहानि (Fundamental Rights vis-i-vis Defamation)
    • मौलिक अधिकारों का उल्लंघन: अक्सर यह तर्क दिया जाता है कि मानहानि कानून भारतीय संविधान के अनुच्छेद-19 के तहत गारंटीकृत मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है। 
    • सर्वोच्च न्यायालय का फैसला: सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया है कि मानहानि के आपराधिक प्रावधान संवैधानिक रूप से वैध हैं और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार के साथ टकराव में नहीं हैं।
      • न्यायालय ने यह भी माना कि भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता ‘पूर्णतया पवित्र’ (Absolutely Sacrosanct) है और पूर्ण नहीं है। 
        • भारतीय संविधान के अनुच्छेद-21 के तहत जीवन के अधिकार में किसी व्यक्ति की प्रतिष्ठा का अधिकार भी शामिल होगा और उसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार के तहत दूसरे को सजा देने की अनुमति नहीं दी जा सकती।
  • भारत में मानहानि कानूनों का वर्गीकरण: भारत में मानहानि सिविल और आपराधिक दोनों कानूनों के तहत एक अपराध है।
    • भारत में सिविल मानहानि कानून: मानहानि को क्षतिपूर्ति कानून के तहत दंडनीय माना जाता है, जिसके तहत दावेदार को क्षतिपूर्ति के रूप में दंड दिया जाता है।
      • अपकृत्य (Tort) एक सिविल गलती है, जिसके कारण दावेदार को हानि या नुकसान होता है, जिसके परिणामस्वरूप अपकृत्य कार्य करने वाले व्यक्ति पर कानूनी दायित्व लागू होता है।
    • भारत में आपराधिक मानहानि कानून: मानहानि एक जमानती, गैर-संज्ञेय और समझौता योग्य अपराध है। 
    • संवैधानिक प्रावधान: संविधान के अनुच्छेद-19(2) ने अनुच्छेद-19(1)(a) के तहत दी गई भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर उचित छूट दी है।
      • न्यायालय की अवमानना, मानहानि और अपराध के लिए उकसाना कुछ अपवाद हैं।
  • मानहानि से संबंधित विवाद
    • अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता: मानहानि कानूनों की व्यापक व्याख्या और दुरुपयोग की संभावना व्यक्तियों और मीडिया संगठनों पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकती है, जिससे सार्वजनिक हित के मामलों पर राय व्यक्त करने या रिपोर्ट करने की उनकी क्षमता सीमित हो सकती है।
    • मानहानि का अपराधीकरण: आलोचकों का तर्क है कि मानहानि का अपराधीकरण अत्यधिक है और मानहानि के दावों को संबोधित करने के लिए सिविल उपचार पर्याप्त होना चाहिए।
    • दुरुपयोग और उत्पीड़न: ऐसे कई उदाहरण हैं जहाँ पत्रकारों, कार्यकर्ताओं और मुखबिरों के खिलाफ मानहानि के मामले दर्ज किए गए हैं ताकि उन्हें चुप कराया जा सके या गलत कामों को उजागर करने से रोका जा सके।

  • भारत में मानहानि कानून (Defamation Laws in India)
    • भारतीय न्याय संहिता, 2023 (Bharatiya Nyay Sanhita- BNS), 2023: मानहानि के अपराध के लिए दो वर्ष तक का साधारण कारावास या जुर्माना, अथवा दोनों या सामुदायिक सेवा का प्रावधान है।
      • BNS की धारा 354 मानहानि को परिभाषित करती है और IPC की धारा 499 से मेल खाती है।
    • भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code- IPC): मानहानि के अपराध में 2 वर्ष तक की साधारण कैद या जुर्माना अथवा दोनों की सजा का प्रावधान है। आपराधिक मानहानि का कानून IPC, 1860 की धारा 499, 500, 501 और 502 में वर्णित है।
    • सूचना प्रौद्योगिकी (Information Technology- IT) अधिनियम, 2000: मानहानि से संबंधित सभी आपराधिक और नागरिक कानून IT अधिनियम, 2000 के तहत सोशल मीडिया के उपयोग से की गई मानहानि पर लागू होते हैं।
  • दुनिया भर में मानहानि कानून
    • जापान: जापान के कानून मानहानि के मामलों में आपराधिक और नागरिक दोनों में मुकदमा चलाने की अनुमति देते हैं। दोषी पाए गए लोगों को एक वर्ष की जेल की सजा और जबरन श्रम का विकल्प और 3,00,000 येन तक का जुर्माना भरना पड़ सकता है।
    • न्यूजीलैंड: न्यूजीलैंड में वर्ष 1993 में आपराधिक मानहानि को समाप्त कर दिया गया। 
    • संयुक्त राज्य अमेरिका (USA): संघीय स्तर पर मानहानि एक आपराधिक अपराध नहीं है, अमेरिकन सिविल लिबर्टीज यूनियन का कहना है कि 24 राज्यों में अभी भी आपराधिक मानहानि के प्रावधान बरकरार हैं। 
    • यूरोप: वर्ष 2017 में सुरक्षा और सहयोग संगठन ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय अधिकार निकायों की सिफारिशों के बावजूद तीन-चौथाई सदस्य देशों के पास मानहानि के खिलाफ पर्याप्त पहुँच नहीं हैं।

संबंधित प्रश्न 

डीपफेक का निर्माण और वितरण विभिन्न प्रश्न उठाता है, जो इस प्रकार हैं:- 

  • कानूनी दायित्व पर: जैसे-जैसे AI और डीपफेक विशेष रूप से ऑनलाइन प्लेटफॉर्मों पर मुख्यधारा में आते हैं, यह सवाल और अधिक प्रमुख हो जाता है कि ये प्रौद्योगिकियाँ नागरिकों के कानूनी दायित्वों को कैसे प्रभावित करती हैं।
  • अस्वीकरण पर: हालाँकि भारत सहित कई न्यायालय व्यंग्य में एक वैध सार्वजनिक रुचि देखते हैं, स्पष्ट संकेत जो आम तौर पर दर्शकों को यह निष्कर्ष निकालने के लिए प्रेरित करते हैं कि वे जिस कंटेंट का उपयोग कर रहे हैं वह व्यंग्यपूर्ण है, अति-यथार्थवादी डीपफेक में इसके समाप्त होने की संभावना है।
  • कानून पर बातचीत: हालाँकि अनिल कपूर मामले में दिल्ली उच्च न्यायालय का फैसला स्वीकार्य होने पर एक निश्चित सीमा रेखा प्रदान करता है, यह सवाल बना रहता है कि डीपफेक मानहानि के कानून के साथ कैसे अंतर्संबंधित होते हैं।
    • सिविल कानून के तहत मानहानि के पहलू
      • प्रकाशन: किसी भी माध्यम में सामग्री का प्रकाशन।
      • प्रतिष्ठा: इस प्रकार सार्वजनिक डोमेन में रखी गई सामग्री अपने विषय की प्रतिष्ठा को कम करती पाई जाती है।
  • निर्धारण पर: हाल के शोध से पता चलता है कि निष्पक्ष सोच वाले लोगों को भी यह निर्धारित करने में कठिनाई हो सकती है कि क्या कथन या कार्य डीपफेक के विषय के लिए जिम्मेदार हैं।

आगे की राह

विश्वास और सुरक्षा से समझौता किए बिना डीपफेक प्रौद्योगिकी के लाभों का दोहन करने के लिए नवाचार और जिम्मेदारी के बीच संतुलन बनाना महत्त्वपूर्ण है।

  • स्पष्ट अस्वीकरण का उपयोग: व्यंग्यकारों को स्पष्ट अस्वीकरण जारी करना चाहिए, जो उन्हें लोगों की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुँचाने के खिलाफ कानूनी कार्रवाई से बचा सके।
    • डीपफेक पर अस्वीकरण का उपयोग इस जोखिम को कम कर सकता है कि दर्शक गुमराह होकर कंटेंट को वास्तविक मान लेगा।
    • उदाहरण: यूरोपीय संघ के अनुसार, वर्तमान में डीपफेक सहित AI-जनरेटेड कंटेंट को उसी रूप में लेबल करने की आवश्यकता है। 
      • भारत के इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय द्वारा जारी हालिया सिफारिश में इसी तरह के उपाय शामिल हैं।
      • भारतीय न्यायालयों ने माना है कि जहाँ कंटेंट, उसके संदर्भ से, मानहानिकारक प्रतीत नहीं होता है, एक अस्वीकरण यह दर्शाता है कि कंटेंट व्यंग्य है, उपयोगी रूप से सभी पक्षों के अधिकारों की रक्षा कर सकता है।
  • 3C पर ध्यान केंद्रित करना और उनका पालन करना: 3C अर्थात् सहमति (Consent), नियंत्रण (Control) और सहयोग (Collaboration) जो हमारे समाज के समक्ष वर्तमान चुनौतियों का सामना करने के लिए एक इष्टतम समाधान हो सकता है।
    • सहमति: बिना सहमति के किसी का भी संश्लेषण नहीं किया जाना चाहिए। इस प्रक्रिया को सरल बनाने के लिए डिजिटल सहमति प्रणाली लागू करने की आवश्यकता है।
      • उदाहरण: बिना सहमति के सार्वजनिक हस्तियों का संश्लेषण करना इन नैतिक दिशा-निर्देशों का उल्लंघन है, चाहे सामग्री का उद्देश्य कुछ भी हो।
    • नियंत्रण: अभिनेताओं को अपनी समानता पर नियंत्रण रखना चाहिए और उन सभी सिंथेटिक मीडिया सामग्री के रिकॉर्ड तक पहुँच होनी चाहिए, जिनमें वे दिखाई देते हैं।
    • सहयोग: उचित साधनों के अंतर्गत, सिंथेटिक मीडिया के बारे में सार्वजनिक चर्चा और शिक्षा में संलग्न होने की सामान्य इच्छा।
  • स्पष्ट चेतावनियाँ: स्पष्ट चेतावनियाँ कि इस तरह के व्यंग्यात्मक कंटेंट AI का उपयोग करके बनाए गए हैं, और यह वास्तव में वास्तविक घटनाओं को चित्रित करने का प्रयास नहीं करते है, दर्शकों की अपेक्षाओं को प्रबंधित करने और अनपेक्षित मानहानि के आरोपों तथा उनके दंडात्मक परिणामों की संभावना को कम करने में मदद कर सकती है।
    • चूँकि डीपफेक के वास्तविक चित्रण के रूप में प्रस्तुत होने की संभावना बढ़ती जा रही है, इसलिए धोखा देने के बजाय पैरोडी करने के लिए बनाई गई विषय-वस्तु अभी भी मानहानिकारक हो सकती है।

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