देश ने वित्तीय वर्ष (वित्त वर्ष) 2023-24 के दौरान स्वदेशी रक्षा उत्पादन में अपनी अब तक की सबसे अधिक वृद्धि दर्ज की गई है।
देश में रक्षा उत्पादन का मूल्य ₹1,26,887 करोड़ के उच्च-रिकॉर्ड स्तर तक पहुँच गया है, जो पिछले वित्तीय वर्ष के रक्षा उत्पादन की तुलना में 16.7% की वृद्धि दर्शाता है।
वित्त वर्ष 2022-23 में रक्षा उत्पादन का मूल्य ₹1,08,684 करोड़ था।
महत्त्वपूर्ण तथ्य
पिछले 5 वर्षों में वृद्धि: पिछले पाँच वर्षों में (वर्ष 2019-20 से), रक्षा उत्पादन का मूल्य लगातार बढ़ रहा है एवं 60% से अधिक की वृद्धि दर्ज की गई है।
रक्षा निर्यात: वित्त वर्ष 2023-24 में रक्षा निर्यात में ₹21,083 करोड़ की रिकॉर्ड वृद्धि दर्ज की गई, जो पिछले वित्तीय वर्ष (₹15,920 करोड़) की तुलना में 32.5% की वृद्धि को प्रदर्शित करता है।
रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता: यह उपलब्धि सरकार द्वारा पिछले 10 वर्षों में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने पर ध्यान केंद्रित करते हुए लाए गए नीतिगत सुधारों, पहलों और व्यापार सुगमता (Ease of Doing Business) के कारण हासिल हुई है।
रक्षा सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रमों (Defence Public Sector undertakings – DPSUs)/PSUs का योगदान: लगभग 79.2%।
निजी क्षेत्र का योगदान: 20.8%।
निरपेक्ष मूल्य (Absolute Value) के संदर्भ में, DPSUs/PSUs एवं निजी क्षेत्र दोनों ने रक्षा उत्पादन में लगातार वृद्धि दर्ज की है।
सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम (Public Sectors Undertakings- PSUs)
PSUs एक कंपनी या उद्यम है, जिसका स्वामित्व एवं संचालन सरकार द्वारा किया जाता है।
PSUs आमतौर पर आवश्यक सेवाएँ या सामान प्रदान करने अथवा आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिए स्थापित किए जाते हैं।
PSUs को सार्वजनिक क्षेत्र उद्यम (Public Sector Enterprises- PSEs),केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र उद्यम (Central Public Sector Enterprises- CPSEs) एवं सार्वजनिक क्षेत्र बैंक (Public Sector Banks- PSBs) के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है।
PSUs को कार्य क्षेत्रों के आधार पर ‘रणनीतिक’ एवं ‘गैर-रणनीतिक’ क्षेत्र में भी वर्गीकृत किया गया है:
हथियार एवं गोला-बारूद तथा रक्षा उपकरणों से संबद्ध वस्तुएँ, रक्षा विमान एवं युद्धपोत।
परमाणु ऊर्जा।
रेलवे परिवहन।
भारतीय रक्षा क्षेत्र के स्वदेशीकरण की आवश्यकता
अनिश्चितता के समय सहायता: आत्मनिर्भर भारत एवं मेक इन इंडिया के लक्ष्य महत्त्वपूर्ण आपूर्ति शृंखलाओं में व्यवधान या हेरफेर के कारण जोखिम को कम करेंगे।
उदाहरण: जिस तरह की चुनौतियों का सामना यूक्रेन को रूस के साथ संघर्ष में करना पड़ रहा है।
उच्च आयात: स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टिट्यूट (Stockholm International Peace Research Institute- SIPRI) के अनुसार भारत, वर्ष 2014-18 में प्रमुख हथियार आयातक देशों में विश्व में द्वितीय स्थान पर था, जो वैश्विक आयात का कुल का 9.5% भाग भारत आयत करता था तथा भारत का सैन्य व्यय में 3.1% की वृद्धि हुई।
भारत विश्व में हथियारों का सबसे बड़ा आयातक देश बना हुआ है, वर्ष 2018-22 के दौरान वैश्विक हथियार आयात में इसकी हिस्सेदारी 11 प्रतिशत रही।
आर्थिक निकास (Economic Drain): भारत के रक्षा बजट में पिछले कुछ वित्तीय वर्षों में लगातार उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है।
इस वर्ष, भारत ने रक्षा मंत्रालय को ₹6.21 लाख करोड़ आवंटित किए। जो कुल बजट खर्च का 13 फीसदी है।
वित्तीय वर्ष 25 के लिए आवंटन सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 1.9 प्रतिशत है।
शत्रुतापूर्ण पड़ोसी: चीन एवं पाकिस्तान जैसे शत्रुतापूर्ण पड़ोसियों की उपस्थिति भारत के लिए अपनी आत्मरक्षा तथा रक्षा तैयारियों को बढ़ावा देना आवश्यक बना देते है।
भारतीय रक्षा क्षेत्र के स्वदेशीकरण में चुनौतियाँ
भारत की खरीद आवश्यकताओं को पूरा करना: सरकार के प्रयासों एवं वर्ष 2025 तक 26 बिलियन अमेरिकी डॉलर के महत्त्वाकांक्षी उत्पादन लक्ष्य के बावजूद, सशस्त्र बलों की वार्षिक खरीद आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि नहीं हुई है।
निर्यात:अंतरराष्ट्रीय हथियारों की बिक्री में उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज करने के बावजूद, शस्त्र उद्योग सरकार द्वारा निर्धारित लक्ष्य से काफी पीछे है।
उदाहरण: भारत की सबसे बड़ी रक्षा कंपनी हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (Hindustan Aeronautics Limited) मलेशिया में अपने हल्के लड़ाकू विमान तेजस के लिए अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता नहीं जीत सकी, जिसने मलेशिया कोरियाई विकल्प का चयन किया।
तकनीकी विशेषज्ञता का अभाव: वृहद उत्पादन एवं अनुसंधान एवं विकास आधार के बावजूद, प्रमुख प्रणालियों तथा महत्त्वपूर्ण भागों, घटकों एवं कच्चे माल को डिजाइन/निर्माण करने के लिए तकनीकी विशेषज्ञता का अभाव है, जिन्हें अंततः आयात किया जाता है।
तकनीकी विशेषज्ञता में कमी के कारण ही भारत सरकार अभी भी कई प्रमुख रक्षा उत्पादों के निर्माण के लिए लाइसेंस प्रणाली को अपनाती है।
रक्षा सुधारों की आवश्यकता: सुधार की घोषणाओं और उनके वास्तविक अनुबंध, उत्पादन और वितरण में परिवर्तन के बीच का समय अनावश्यक रूप से बढ़ गया है।
कार्यान्वयन में देरी निकट भविष्य में एक प्रमुख चुनौती बनी रहेगी।
प्रमुख सरकारी पहल
रक्षा उत्पादन और निर्यात संवर्द्धन नीति, 2020 (Defence Production and Export Promotion Policy- DPEPP): यह रक्षा मंत्रालय का मार्गदर्शक दस्तावेज है, जो देश की रक्षा उत्पादन क्षमताओं को आत्मनिर्भरता और निर्यात के लिए केंद्रित, संरचित और महत्त्वपूर्ण बल प्रदान करता है।
नीति में निम्नलिखित लक्ष्य एवं उद्देश्य निर्धारित किए गए हैं:
वर्ष 2025 तक एयरोस्पेस एवं रक्षा वस्तुओं तथा सेवाओं में 35,000 करोड़ रुपये (5 बिलियन अमेरिकी डॉलर) के निर्यात सहित 1,75,000 करोड़ रुपये (US$ 25 बिलियन) का व्यापार हासिल करना।
गुणवत्तापूर्ण उत्पादों के साथ सशस्त्र बलों की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए एयरोस्पेस एवं नौसेना जहाज निर्माण उद्योग सहित एक गतिशील, मजबूत तथा प्रतिस्पर्धी रक्षा उद्योग विकसित करना।
आयात पर निर्भरता कम करना एवं घरेलू डिजाइन तथा विकास के माध्यम से “मेक इन इंडिया” पहल को आगे बढ़ाना।
रक्षा उत्पादों के निर्यात को बढ़ावा देना एवं वैश्विक रक्षा मूल्य शृंखला का हिस्सा बनना।
एक ऐसा वातावरण निर्मित करना, जो अनुसंधान एवं विकास को प्रोत्साहित करता हो, नवाचार को पुरस्कृत करता हो, भारतीय IP स्वामित्व एवं शक्तिशाली तथा आत्मनिर्भर रक्षा उद्योग को बढ़ावा देता हो।
7 नई 100% सरकारी स्वामित्व वाली कॉरपोरेट संस्थाएँ: आत्मनिर्भर भारत की अपनी नीति का पालन करते हुए, सरकार ने रक्षा मंत्रालय के अधीनस्थ कार्यालय, ऑर्डनेंस फैक्ट्री बोर्ड (OFB) को पेशेवर प्रबंधन के साथ सात नई 100% सरकारी स्वामित्व वाली कॉरपोरेट संस्थाओं में परिवर्तित करने का ऐतिहासिक निर्णय लिया।
इससे पूर्व देश में 41 आयुध कारखाने ऑर्डनेंस फैक्ट्री बोर्ड (OFB) के अंतर्गत थे, जिनमे से कई घाटे में थे तथा खराब प्रदर्शन कर रहे थे।
वर्ष 2020 में, रक्षा मंत्रालय (Ministry of Defence- MoD) ने 101 वस्तुओं की एक सूची तैयार की: जिन्हें स्वदेशी रूप से उत्पादित किया जाएगा तथा इनके आयात पर प्रतिबंध लगाया जाएगा।
रक्षा उत्पादन विभाग ने 4,666 वस्तुओं वाली चार सकारात्मक स्वदेशीकरण सूचियाँ अधिसूचित कीं।
MSMEs एवं स्टार्टअप की प्रमुख भागीदारी: रक्षा विभाग स्वदेशीकरण के लक्ष्य की ओर तेजी से आगे बढ़ रहा है, रक्षा उत्पादन में प्रतिवर्ष 40 से 50 लाइसेंस जारी किए जाते हैं।
रक्षा उत्पादन में न केवल टाटा एवं अडानी जैसे बड़े निजी समूह शामिल हैं, बल्कि सरकार MSMEs तथा स्टार्टअप को भी प्रोत्साहित कर रही है।
रक्षा उत्कृष्टता के लिए नवाचार (Innovations for Defense Excellence- iDEX): यह देश के रक्षा उद्योग को आधुनिक बनाने के लिए भारत सरकार की एक पहल है।
यह रक्षा क्षेत्र में प्रौद्योगिकी सह-निर्माण एवं सह-नवाचार की संस्कृति को सशक्त बनाएगा तथा स्टार्ट-अप के बीच नवाचार को बढ़ावा देगा एवं उन्हें रक्षा पारिस्थितिकी का हिस्सा बनने के लिए प्रोत्साहित करेगा।
रक्षा गलियारे: भारत सरकार ने आयात पर निर्भरता कम करने, घरेलू निर्माताओं के लिए अवसर पैदा करने एवं स्वदेशी उपकरणों के निर्यात को बढ़ाने के लिए दो रक्षा औद्योगिक गलियारे उत्तर प्रदेश औद्योगिक रक्षा गलियारा तथा तमिलनाडु रक्षा गलियारा स्थापित किए हैं।
SRIJAN स्वदेशी पोर्टल:MSMEs सहित भारतीय उद्योग द्वारा स्वदेशीकरण की सुविधा के लिए SRIJAN स्वदेशी पोर्टल का शुभारंभ किया गया है।
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