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रक्षा निर्यात: एक रणनीतिक अनिवार्यता

Lokesh Pal February 19, 2024 05:00 145 0

संदर्भ

वैश्विक स्तर पर बढ़ते भू-राजनीतिक तनाव के कारण रक्षा और एयरोस्पेस उद्योग के विस्तार के बीच भारत के पास अंतरराष्ट्रीय रक्षा निर्यात बाजार में प्रमुख दावेदार  बनने का एक महत्त्वपूर्ण अवसर है।

रक्षा निर्यात की स्थिति

  • वैश्विक रक्षा उद्योग का विस्तार: विश्लेषकों का अनुमान है कि वैश्विक रक्षा और एयरोस्पेस उद्योग के तेजी से विस्तार के साथ वर्ष 2022 के $750 बिलियन  से बढ़कर  2030 तक $1.38 ट्रिलियन हो जाएगा।
    • अग्रणी हथियार निर्यातक: सिप्री (Stockholm International Peace Research Institute-SIPRI) की रिपोर्ट के अनुसार, वैश्विक हथियार निर्यात में अमेरिका, रूस, फ्राँस, चीन और जर्मनी की हिस्सेदारी लगभग 77% है।
  • भारत के रक्षा निर्यात में उछाल: भारत का रक्षा निर्यात वित्त वर्ष 2013-14 में 686 करोड़ रुपये से बढ़कर वित्त वर्ष 2022-23 में लगभग 16,000 करोड़ रुपये हो गया है।

    • पाँच वर्षों में यह 800% बढ़ गया है और विश्व के 85 देशों तक पहुँच गया है।
    • इसने भारत को वैश्विक स्तर पर शीर्ष 25 रक्षा निर्यातकों में शामिल कर दिया।
  • निजी क्षेत्र का प्रभुत्व: रक्षा निर्यात में लगभग 80% वृद्धि निजी उद्योग के कारण है।
  • निर्यात की वस्तुएँ: भारत के बढ़ते रक्षा निर्यात में मिसाइलें, रॉकेट, टॉरपीडो, तोप, बंदूकें और ड्रोन आदि शामिल हैं।
  • प्रमुख निर्यात गंतव्य: भारत की निजी कंपनियाँ और रक्षा सार्वजनिक उपक्रम वर्तमान में 75 से अधिक देशों को रक्षा उपकरण निर्यात करते हैं।
    • इटली, मालदीव, श्रीलंका, रूस, फ्राँस, नेपाल, मॉरीशस, श्रीलंका, इजराइल, मिस्र, संयुक्त अरब अमीरात, भूटान, इथियोपिया, सऊदी अरब, फिलीपींस, पोलैंड, स्पेन और चिली रक्षा उपकरणों और प्लेटफॉर्मों के लिए कुछ प्रमुख निर्यात स्थल हैं।

रक्षा निर्यात के लाभ

  • आर्थिक लाभ: रक्षा वस्तुओं के निर्यात से न केवल विदेशी मुद्रा अर्जित होती है बल्कि रक्षा उत्पादों के आयात पर वाले खर्च के लिये एक प्रतिपूरक विकल्प भी प्रदान करता है।
    •  स्थानीय रक्षा उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए शुरू की ‘आत्मनिर्भर भारत’ पहल ने भारत की आयात निर्भरता को वर्ष 2018-19 में रक्षा खर्च के 46% से घटाकर दिसंबर  वर्ष 2022 तक 36.7% कर दिया है।
  • वैश्विक रक्षा आपूर्ति शृंखला के साथ एकीकरण: भारत के रक्षा उद्योग का विकास उन्हें संयुक्त राज्य अमेरिका, फ्राँस आदि देशों के साथ वैश्विक रक्षा आपूर्ति शृंखला के साथ एकीकृत कर रहा है।
  • रणनीतिक निर्भरता: रक्षा निर्यात रखरखाव, मरम्मत और भविष्य के उन्नयन के लिए निर्भरता पैदा करता है, जो भारत को तकनीकी रूप से भागीदार देशों के साथ जोड़ता है।
  • उन्नत सैन्य सहयोग: रक्षा उपकरण बेचने से अनुकूलता को बढ़ावा मिलता है, संयुक्त संचालन की सुविधा मिलती है और सैन्य सहयोग के अवसरों का विस्तार होता है।
  • भू-राजनीतिक प्रभाव और कूटनीतिक लाभ : रक्षा संबंध साझेदार देशों के भू-राजनीतिक रुख को प्रभावित करते हैं, जो भारत की रणनीतिक स्थिति और कूटनीतिक संबंधों को बढ़ावा देने में सहायक हो सकता है।
  • रक्षा में आत्मनिर्भरता: स्वदेशीकरण पर ध्यान केंद्रित करने से भारत का रक्षा क्षेत्र मजबूत करने के साथ विदेशी आयात से जुड़ी कमजोरियाँ कम होंगी और एक प्रमुख हिंद-प्रशांत शक्ति के रूप में इसकी भूमिका मजबूत  करने में भी सहायता प्राप्त होगी।

रक्षा निर्यात प्रमुख के रूप में अमेरिका का उदय

अमेरिका जो वर्तमान में लगभग 40% बाजार हिस्सेदारी के साथ वैश्विक हथियार आपूर्ति के क्षेत्र में बढ़त बनाए हुए है 19वीं सदी के अंत में यूरोप से पिछड़ गया था।

  • उत्पादन में रणनीतिक बदलाव: बदलती नौसैनिक प्रौद्योगिकियों की प्रतिक्रया में 1880 के दशक में अमेरिका ने आयात से हटकर जहाजों और घटकों के घरेलू उत्पादन को अनिवार्य कर दिया और एक निजी रक्षा उद्योग के लिए आधार तैयार किया।
  • सरकारी समर्थन: सरकारी धातु परीक्षण कार्यक्रम की शुरुआत प्रत्यक्ष खरीद वार्ता की अनुमति देने वाले संशोधन और अमेरिकी कंपनियों द्वारा विदेशी बिक्री को बढ़ावा देना जैसी प्रमुख नीतियों ने अमेरिकी रक्षा उद्योग को गति प्रदान की।

एक रक्षा निर्यात क्षेत्र में भारत की बढ़त  के लिए प्रमुख कारक

  • भू-राजनीतिक अनिश्चितताएँ: विदेशी आपूर्तिकर्ताओं पर निर्भरता उन कमजोरियों को उजागर करती है, जिन्हें  वर्तमान की वैश्विक अस्थिरता के बीच भारत वहन नहीं कर सकता।

भारत के प्रमुख रक्षा निर्यात उत्पाद 

भारत द्वारा निर्यात किए जाने वाले प्रमुख रक्षा उत्पादों में व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण, अपतटीय गश्ती जहाज, एएलएच हेलीकॉप्टर, एसयू एवियोनिक्स, भारती रेडियो, तटीय निगरानी प्रणाली, कवच एमओडी II लॉन्चर और एफसीएस, रडार के लिए स्पेयर, इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम और लाइट इंजीनियरिंग मैकेनिकल पार्ट्स शामिल हैं।

  • भारत का लगभग 60% रक्षा आयात रूस से आता है, जो वर्तमान में यूक्रेन के साथ संघर्षरत है। दूसरी तरफ भारत इजरायल से उन्नत रक्षा उपकरण प्रणालियों के आयत पर विचार कर रहा है, जो गाजा में युद्धरत है।
  • बाहरी अवसर
    • चीन की निर्यात चुनौतियाँ:  म्याँमार, नाइजीरिया और पाकिस्तान में परिचालन समस्याओं के कारण चीनी हथियारों की गुणवत्ता और प्रदर्शन के मुद्दों के सामने आने से इनके निर्यात में गिरावट देखी गई है, जो भारत के लिए नए अवसर खोलता है।
      • म्याँमार द्वारा चीनी जेटों के परिचालन को रोकना, नाइजीरिया द्वारा चेंगदू एफ-7 लड़ाकू विमानों को वापस करने, और पाकिस्तान  को दिए गए एफ-22 फ्रिगेट्स में तकनीकी समस्या का मुद्दा चीन के हथियार उद्योग के सामने आने वाली चुनौतियों को उजागर करता है।
      • चीन के हथियार निर्यात में वर्ष 2016 और वर्ष 2020 के बीच 7.8% की गिरावट देखी गई है।
  • घरेलू क्षमता एवं पहल
    • रूसी उपकरणों को सँभालने में विशेषज्ञता: भारत में लंबे समय से रूस के सैन्य उत्पादों के उपयोग के अनुभव के कारण इसे सैन्य प्लेटफॉर्मों की सर्विसिंग में वैश्विक स्तर पर जाना जाता है, जो इसे रूसी सैन्य उपकरणों का इस्तेमाल करने वाले देशों के में सेवा प्रदान करने के लिए अधिक आकर्षक विकल्प बनाता है।
    • रणनीतिक भौगोलिक स्थिति: हिंद-प्रशांत क्षेत्र का बढ़ता रणनीतिक महत्त्व अमेरिकी और यूरोपीय नौसैनिक बलों की सेवा में भारतीय शिपयार्ड की भूमिका को बढ़ाता है।
    • तकनीकी बढ़त: भारत रक्षा क्षेत्र में सॉफ्टवेयर और AI में अपनी क्षमता प्रदर्शित कर रहा है, जो आधुनिक युद्ध के तकनीकी-केंद्रित रुझानों के अनुरूप है और वैश्विक रक्षा क्षेत्र के मूल उपकरण निर्माताओं (OEM) को आकर्षित कर रहा है।
  • सरकारी समर्थन और नीति
    • रक्षा उत्कृष्टता के लिए नवाचार (IDEX): इस पहल ने वैश्विक लाइसेंसिंग के लिए तैयार नवीन रक्षा प्रौद्योगिकियों की पेशकश करने वाले सैकड़ों स्टार्टअप को बढ़ावा दिया है।
    • सकारात्मक स्वदेशीकरण सूची: सरकार ने चार सकारात्मक स्वदेशीकरण सूचियाँ अधिसूचित की हैं, जिनमें 411 प्रमुख हथियार प्लेटफाॅर्म और सिस्टम शामिल हैं, जिन्हें स्थानीय स्तर ही विकसित किया जाना आवश्यक है, और इन्हें आयात नहीं किया का सकता।
    • रक्षा निर्यात संचालन समिति: यह एक ऐसी संस्था है, जो भारत से रक्षा उत्पादों के निर्यात के समन्वय और प्रचार में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रही है।
  • बुनियादी ढाँचा और नवाचार
    • निजी क्षेत्र और स्टार्टअप: उपकरणों के उत्पादन एवं आपूर्ति में विलंब को कम करने के लिए निजी क्षेत्र की भागीदारी को प्रोत्साहित करना और निर्यात अनुमतियों को सुव्यवस्थित करना रक्षा क्षेत्र के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान दे सकता है।
    • निर्यात सुविधा उपाय: निर्यात के लिए एक ऑनलाइन प्रणाली लागू करना, सामान्य निर्यात लाइसेंस खोलना और विदेश में में राजनयिक मिशन पर भेजे गए सैन्य अधिकारियों के प्रदर्शन मूल्यांकन के अंतर्गत रक्षा निर्यात के क्षेत्र में नई उपलब्धियों को शामिल किया जाना चाहिये।
    • वित्तीय और प्रचारात्मक सहायता: उदार रक्षा ऋण व्यवस्था और भारतीय रक्षा नवाचारों के लिए वैश्विक प्रदर्शन के रूप में डेफएक्सपो (DefExpo) और एयरो इंडिया की पुनर्स्थापन ने भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
    • रक्षा औद्योगिक गलियारे: उत्तर प्रदेश और तमिलनाडु में दो रक्षा औद्योगिक गलियारे स्थापित किए जा रहे हैं और इसका उद्देश्य रक्षा उत्पादों के स्वदेशीकरण को बढ़ाने के साथ रक्षा निर्यात को बढ़ाना है।

रक्षा निर्यात वृद्धि की चुनौतियाँ

  • नियामक और नौकरशाही बाधाएँ: नौकरशाही प्रतिरोध और पुरानी प्रथाएँ विशेष रूप से डीआरडीओ जैसे संस्थानों द्वारा, रक्षा विनिर्माण में निजी क्षेत्र के एकीकरण को अवरुद्ध करती हैं और नवाचार को रोकती हैं।
  • परियोजना में देरी: महत्त्वपूर्ण रक्षा परियोजनाओं में देरी और ऐसी देरी के कारण लागत में वृद्धि से रक्षा क्षेत्र की विकास संभावना में बाधा आती है।
    • रक्षा मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार, डीआरडीओ की 55 ‘मिशन मोड’ परियोजनाओं में से 23 में देरी हुई है।
    • कैग (CAG) की एक रिपोर्ट के अनुसार, DRDO 178 में से 119 परियोजनाओं में मूल समय सीमा पर पूरा नहीं रह सका है।
  • फंडिंग और निवेश की कमी: अनुसंधान एवं विकास के लिए अपर्याप्त फंडिंग और निजी निवेशकों के लिए आकर्षक निवेश तंत्र की कमी रक्षा निर्यात वृद्धि के लिए एक चुनौती है।
    • प्रमुख रक्षा निर्यातक देशों में अनुसंधान और विकास पर सकल व्यय (GERD) -इजरायल (4.8%), दक्षिण कोरिया (4.5%), अमेरिका (~3%), चीन (2.6%) और फ्राँस (~2.5%) हैं, जबकि भारत का जीईआरडी केवल 0.65% है।
  • बुनियादी ढाँचागत घाटा: यह भारत की रसद लागत को बढ़ाता है, जिससे रक्षा क्षेत्र में देश की लागत प्रतिस्पर्द्धात्मकता और दक्षता कम हो जाती है।

आगे की राह

  • बिक्री के नियमों को का सरलीकरण: सरकार को भारतीय कंपनियों से विदेशी सरकारों द्वारा खरीद को आसान बनाने के लिए सरकारी बिक्री के नियमों को सरल बनाकर रक्षा निर्यात को सक्रिय रूप से बढ़ावा देना चाहिए।
  • अंतरराष्ट्रीय बिक्री के लिए रूपरेखा: अमेरिका के साथ विशिष्ट समझौतों से परे भारत को आसान अंतरराष्ट्रीय लेनदेन की सुविधा के लिए अमेरिका के विदेशी सैन्य ढाँचे के समान एक व्यापक ढाँचे की आवश्यकता है।
  • डिफेंस लाइन्स ऑफ क्रेडिट : पैनल में शामिल रक्षा कंपनियों को अपने प्रस्तावों में डिफेंस एलओसी शामिल करने की अनुमति देने पर विचार किया जा सकता है। डिफेंस एलओसी के लिए ब्याज दरें कम करने की आवश्यकता है।
  • नवाचार और प्रौद्योगिकी लाइसेंसिंग: IDEX स्टार्टअप्स द्वारा माँग की जाने वाली नवीन तकनीकों को विकसित करने के साथ एक लाइसेंसिंग ढाँचा, जो राष्ट्रीय हितों की रक्षा करता है और स्टार्टअप्स का समर्थन करता है,  महत्त्वपूर्ण है।
  • रक्षा और शिक्षा क्षेत्र को एकीकृत करना: रक्षा नवाचार को बढ़ावा देने के लिए भारत को उन्नत प्रौद्योगिकी विकसित करने हेतु अकादमिक उद्योग और अनुसंधान एवं विकास प्रयोगशालाओं को अपने पारिस्थितिकी तंत्र में एकीकृत करने की आवश्यकता है। पाठ्यक्रम को अद्यतन करने और विद्यार्थियों तथा शोधकर्ताओं को आकर्षक कॅरियर पथ प्रदान करने की भी आवश्यकता है।
  • थिंक टैंक की स्थापना: सरकार को वैश्विक आवश्यकताओं के अनुसार,  रक्षा रोडमैप को गतिशील रूप से अद्यतन करने के लिए एस एंड टी, वॉर-गेमिंग नीति निर्माण आदि में राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों के साथ रक्षा विभाग के तहत एक थिंक टैंक के निर्माण पर विचार करना चाहिए।

निष्कर्ष

रक्षा निर्यात भारत की वैश्विक प्रतिष्ठा को बढ़ाता है और सहयोगी देशों के साथ रणनीतिक संबंधों में सुधार करता है, जो सरकार की प्राथमिकता के लिए एक महत्त्वपूर्ण एजेंडा पेश करता है।

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