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राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) के पदों को भरने में देरी

Lokesh Pal September 16, 2024 03:03 43 0

संदर्भ

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) जून 2024 से पूर्णकालिक अध्यक्ष के बिना कार्य कर रहा है और वर्तमान में पाँच पदों के लिए केवल एक सदस्य है।

पृष्ठभूमि

  • अध्यक्ष का रिक्त पद: NHRC अध्यक्ष का पद साढ़े तीन महीने से रिक्त है।
  • वर्तमान स्टाफ: NHRC में एक अध्यक्ष और पाँच पूर्णकालिक सदस्य होने चाहिए।
    • वर्तमान में, एकमात्र पूर्णकालिक सदस्य विजय भारती सयानी अपनी भूमिका और कार्यकारी अध्यक्ष के कर्तव्यों का निर्वहन कर रही हैं।
    • यह पैनल के संदर्भ में लैंगिक आवश्यकता को भी पूरा करता है।

NHRC में रिक्तियों के निहितार्थ

  • विलंबित जाँच: कम सदस्यों के कारण, NHRC को शिकायतों की संख्या को सँभालने में कठिनाई हो सकती है, जिसके परिणामस्वरूप मानवाधिकार उल्लंघनों की जाँच में देरी हो सकती है। 
  • सीमित निगरानी एवं सीमित पहुँच: ये रिक्तियाँ, आयोग की मानवाधिकार स्थितियों की निगरानी एवं देखरेख करने की क्षमता को सीमित कर सकती हैं। 
  • जाँच की गुणवत्ता: कम संसाधनों के कारण, जाँच की गुणवत्ता प्रभावित हो सकती है, जिसके परिणामस्वरूप कम गहन एवं प्रभावी परिणाम प्राप्त हो सकते हैं। 
  • संविधान के अनुच्छेद-14 और 21 का उल्लंघन: योग्य उम्मीदवारों की उपलब्धता के बावजूद पदों को रिक्त रखना मनमाना, अनुचित और संविधान के अनुच्छेद-14 और 21 का उल्लंघन है।  

अंतरराष्ट्रीय चिंताएँ

  • GANHRI मान्यता स्थगित: जिनेवा स्थित ‘राष्ट्रीय मानवाधिकार संस्थाओं के वैश्विक गठबंधन’ (Global Alliance of National Human Rights Institutions- GANHRI) ने पारदर्शिता और अपर्याप्त लैंगिक एवं अल्पसंख्यक प्रतिनिधित्व संबंधी चिंताओं के कारण लगातार दूसरे वर्ष NHRC की मान्यता स्थगित कर दी है। 
    • मान्यता के बिना NHRC संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में भारत का प्रतिनिधित्व करने में असमर्थ होगा। 
      • GANHRI, 114 राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोगों का एक वैश्विक नेटवर्क है, जो राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोगों और संयुक्त राष्ट्र के बीच संबंधों का समन्वय करता है। 
  • लंबित मान्यता: पेरिस सिद्धांतों का अनुपालन करने वाली संस्था के रूप में, NHRC के पास प्रभावी ढंग से कार्य करने के लिए आवश्यक कार्यकर्ता एवं बुनियादी ढाँचा आवश्यक है। वर्तमान में, इन आवश्यक घटकों की कमी है, जिससे इसके सुचारू संचालन के साथ-साथ इसकी ‘A’ स्थिति मान्यता भी प्रभावित हो रही है। 
    • पेरिस सिद्धांत, जिन्हें संयुक्त राष्ट्र द्वारा वर्ष 1992 और 1993 में अपनाया गया था, राष्ट्रीय मानवाधिकार संस्थाओं (National Human Rights Institutions- NHRI) के लिए छह प्रमुख मानदंडों की रूपरेखा प्रस्तुत करता है: अधिदेश और क्षमता, सरकार से स्वायत्तता, कानून द्वारा गारंटीकृत स्वतंत्रता, बहुलवाद, पर्याप्त संसाधन और जाँच की पर्याप्त शक्तियाँ। 
  • केंद्रीय गृह मंत्रालय की देरी: एमनेस्टी इंटरनेशनल ने इस बात पर प्रकाश डाला है कि NHRC के ‘A’ स्थिति को स्थगित करने के लगभग पाँच महीने बाद भी केंद्रीय गृह मंत्रालय ने NHRC सदस्यों की भर्ती पूरी नहीं की है और अब एक नए अध्यक्ष की नियुक्ति में भी देरी कर दी है। 
  • इच्छाशक्ति की कमी संबंधी चिंता: एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया, भर्ती में देरी की आलोचना करते हुए इसे मानवाधिकार उल्लंघनों से निपटने और पारदर्शिता एवं जवाबदेही को बनाए रखने के लिए NHRC तथा भारत सरकार की राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी का संकेत मानता है। 

NHRC के रिक्त पदों को भरने के लिए सरकार की कार्रवाई

  • संसद ने मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 में संशोधन किया और इस पात्रता मानदंड को संशोधित किया: वर्ष 2019 तक, NHRC अध्यक्ष की भूमिका विशेष रूप से भारत के सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीश (CJI) के लिए थी। 
    • हालाँकि, मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 में वर्ष 2019 में किए गए संशोधन द्वारा पात्रता का विस्तार करके इसमें सर्वोच्च न्यायालय के किसी भी न्यायाधीश को शामिल कर लिया गया। 
    • आयोग के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार, संशोधन का उद्देश्य सरकार की इस चिंता को दूर करना था कि मुख्य न्यायाधीश सेवानिवृत्ति के बाद NHRC में शामिल होने के लिए अनिच्छुक हैं।

संभावित कार्रवाई का आह्वान

  • त्वरित भर्ती प्रक्रिया: NHRC के रिक्त पदों को शीघ्र भरने के लिए एक सुव्यवस्थित और पारदर्शी प्रक्रिया लागू की जाएगी।
  • बुनियादी ढाँचे को मजबूत करना: यह सुनिश्चित करना कि NHRC के पास पेरिस सिद्धांतों के अनुरूप प्रभावी ढंग से कार्य करने के लिए आवश्यक संसाधन और बुनियादी ढाँचा उपलब्ध हो। 
  • अंतरराष्ट्रीय चिंताओं पर ध्यान देना: अमेरिकी विदेश विभाग की वर्ष 2023 की रिपोर्ट में भारत में मानवाधिकारों के हनन पर प्रकाश डाला गया है, जिनमें न्यायेतर हत्याएँ, जबरन गायब कर दिया जाना, मनमानी गिरफ्तारियाँ और हिरासत, इंटरनेट बंद करना तथा नृजातीय एवं जातिगत अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा शामिल है। 
    • विश्वसनीयता पुनर्स्थापित करने के लिए अंतरराष्ट्रीय निकायों से प्राप्त फीडबैक पर कार्रवाई करने की आवश्यकता है।
  • स्वतंत्रता और संसाधनों का आह्वान: भारत को न केवल एक नए NHRC प्रमुख की नियुक्ति करने की आवश्यकता है, बल्कि आयोग की स्वतंत्रता और उचित वित्तपोषण सुनिश्चित करने की भी आवश्यकता है। 

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) 

  • स्थापना: भारत द्वारा वर्ष 1993 में मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम लागू किए जाने के बाद राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) अस्तित्व में आया। 
  • चयन समिति: भारत के राष्ट्रपति चयन समिति की सिफारिश के आधार पर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) के सदस्यों की नियुक्ति करते हैं, जिसमें शामिल हैं:- 
    • प्रधानमंत्री (अध्यक्ष)
    • लोकसभा अध्यक्ष
    • केंद्रीय गृह मंत्री
    • राज्यसभा के उपसभापति
    • संसद के दोनों सदनों में विपक्ष के नेता
  • सदस्यता: इसमें एक अध्यक्ष, पाँच पूर्णकालिक सदस्य और सात मानद सदस्य होते हैं।
    • वह व्यक्ति जो भारत का मुख्य न्यायाधीश या सर्वोच्च न्यायालय का न्यायाधीश रह चुका हो, इसका अध्यक्ष होगा।
    • दो सदस्य: एक जो भारत के उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश हो या रहा हो तथा एक सदस्य जो किसी उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश हो या रहा हो। 
    • तीन सदस्य: इनमें से एक महिला होगी, जो मानव अधिकारों से संबंधित मामलों में ज्ञान या व्यावहारिक अनुभव रखने वाले व्यक्तियों में से होगी। 
    • सात मानद सदस्य: राष्ट्रीय अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति/अल्पसंख्यक/पिछड़ा वर्ग/महिला/बाल अधिकार संरक्षण आयोग के अध्यक्ष और दिव्यांग व्यक्तियों के लिए मुख्य आयुक्त पदेन सदस्य के रूप में कार्य करते हैं। 
  • कार्यकाल: वे तीन वर्ष की अवधि तक या 70 वर्ष की आयु प्राप्त करने तक, जो भी पहले हो, पद पर कार्यरत रहते हैं।
  • निष्कासन: सदस्यों को राष्ट्रपति द्वारा विशिष्ट परिस्थितियों में हटाया जा सकता है:-
    • यदि वह दिवालिया है।
    • यदि वह अपने पद के कर्तव्यों के अलावा किसी अन्य प्रकार का वेतनभोगी रोजगार करता है।
    • यदि वह मानसिक दुर्बलता के कारण पद पर बने रहने के लिए अयोग्य है।
    • यदि उसे दोषी ठहराया जाता है और कारावास की सजा सुनाई जाती है।

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