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डेनमार्क में बच्चों के लिए सोशल मीडिया पर प्रतिबंध

Lokesh Pal November 10, 2025 04:30 10 0

संदर्भ 

हाल ही में डेनमार्क ने 15 वर्ष से कम आयु के बच्चों के लिए सोशल मीडिया के उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिया है। यह कदम बच्चों में मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं, ऑनलाइन आदत विकसित होने और डेटा गोपनीयता जोखिमों के बढ़ते चिंताओं को देखते हुए उठाया गया है।

प्रतिबंध की मुख्य विशेषताएँ

  • आयु सीमा: 15 वर्ष से कम आयु के बच्चों को सोशल मीडिया अकाउंट बनाने या उपयोग करने की अनुमति नहीं है, 13 से 15 वर्ष की आयु के बच्चों को अभिभावक की सहमति से कुछ चुनिंदा ऐप्स तक पहुँच दी जा सकती है।
  • तर्क: सरकार ने चेतावनी दी है कि सोशल मीडियाबच्चों का समय, बचपन और कल्याण छीन लेता है” और इसे मानसिक स्वास्थ्य में गिरावट तथा सामाजिक परिवर्तन से जोड़ा।
  • विधायी समर्थन: इस प्रस्ताव को संसद में व्यापक समर्थन प्राप्त है, जिससे इसके पारित होने की संभावना सुनिश्चित है।
  • प्रभावित प्लेटफॉर्म: लोकप्रिय ऐप्स जैसे स्नैपचैट, यूट्यूब, इंस्टाग्राम और टिक टॉक  शामिल हैं।
  • डेटा इनसाइट: डेनमार्क के बच्चे औसतन 2 घंटे 40 मिनट प्रतिदिन सोशल मीडिया पर व्यतीत करते हैं।
  • वैश्विक संदर्भ: ऑस्ट्रेलिया ने वर्ष 2024 में 16 वर्ष से कम आयु के बच्चों के लिए सोशल मीडिया पर प्रतिबंध लगाया था और कई अन्य यूरोपीय देश भी बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य के जोखिमों से निपटने हेतु डिजिटल आयु सीमा पर विचार कर रहे हैं।
  • महत्त्व
    • यह यूरोप में बाल डिजिटल संरक्षण और ऑनलाइन कल्याण की दिशा में एक बड़ा कदम है।
    • यह वैश्विक स्तर पर बच्चों के ऑनलाइन क्षेत्र के नियमन के लिए एक मॉडल के रूप में कार्य कर सकता है।

भारत में सोशल मीडिया का विनियमन 

  • सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000: भारत में डिजिटल गतिविधियों को नियंत्रित करने वाला मुख्य कानून है, जिसमें सोशल मीडिया भी शामिल है।
  • सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यस्थ दिशा-निर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम, 2021: ये नियम विशेष रूप से सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को विनियमित करते हैं और उन पर विभिन्न दायित्व लागू करते हैं।
  • मुख्य प्रावधान
    • शिकायत अधिकारी की नियुक्ति: सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को उपयोगकर्ता शिकायतों के निवारण हेतु एक शिकायत अधिकारी नियुक्त करना आवश्यक है।
    • हानिकारक सामग्री को हटाना:  प्लेटफॉर्म्स को अवैध, आपत्तिजनक या हानिकारक सामग्री को हटाना अनिवार्य है।
    • संदेश के स्रोत का पता लगाना: प्लेटफॉर्म्स को संदेश के प्रथम स्रोत की पहचान करने में सक्षम होना चाहिए, जिससे गोपनीयता संबंधी चिंताएँ उत्पन्न होती हैं।
    • सावधानी और पारदर्शिता: प्लेटफॉर्म्स को उपयोगकर्ता खातों और सामग्री की प्रामाणिकता सुनिश्चित करनी होती है और सरकार को नियमित पारदर्शिता रिपोर्ट प्रस्तुत करनी होती है।
  • संबंधित प्राधिकरण
    • इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeitY): सोशल मीडिया सहित IT आधारित नीतियों के निर्माण और कार्यान्वयन के लिए उत्तरदायी प्रमुख निकाय।
    • साइबर अपराध जांच प्रकोष्ठ: सोशल मीडिया से संबंधित साइबर अपराधों की जाँच करता है।
    • कंप्यूटर इमरजेंसी रिस्पॉन्स टीम (CERT-In): साइबर खतरों और कमजोरियों की निगरानी और प्रतिक्रिया करता है।
  • नियमन का उद्देश्य: इन नियमों का उद्देश्य अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और भ्रामक या घृणास्पद सामग्री पर नियंत्रण के बीच संतुलन बनाना है।
    • हालाँकि, इन पर संभावित सेंसरशिप और निगरानी को लेकर चिंताएँ भी व्यक्त की गई हैं।

सोशल मीडिया उपयोग पर प्रतिबंध के समर्थन के कारण 

  • साइबर बुलिंग: छोटे बच्चे, विशेषकर लड़कियाँ, साइबर बुलिंग का सबसे आसान शिकार बनती हैं।
    • उदाहरण: चीनी ऐप टिक टॉक पर किशोर लड़कियों को साइबर बुलिंग’ का सामना करना पड़ा है।
  • अश्लीलता का जोखिम: बच्चे सोशल मीडिया पर अश्लील सामग्री के संपर्क में आ सकते हैं, जो उनके मानसिक विकास पर नकारात्मक प्रभाव डालती है।
    • उदाहरण: वर्ष 2022 में भारत में चाइल्ड पोर्नोग्राफी  के 1,000 से अधिक मामले दर्ज किए गए, जिनमें कर्नाटक में सर्वाधिक थे।
  • सोशल मीडिया की लत: सोशल मीडिया उपयोगकर्ताओं का ध्यान आकर्षित करने के लिए डिजाइन किया गया है, जिससे बच्चे डोपामाइन आधारित चक्र में फँस जाते हैं।
  • मानसिक अस्थिरता: ऑनलाइन उपस्थिति बढ़ने से बच्चों का संज्ञानात्मक विकास प्रभावित होता है, जिससे सामाजिक कौशल और मानसिक शांति पर असर पड़ता है।
    •  प्रोफेसर जोनाथन हैडट की मनोविज्ञान पुस्तक द एंग्जियस जेनरेशन: हाउ द ग्रेट रीवायरिंग ऑफ चाइल्डहुड इज कॉजिंग एन एपिडेमिक ऑफ मेंटल इलनेस’ युवाओं के खराब मानसिक स्वास्थ्य और कल्याण तथा स्मार्टफोन एवं सोशल मीडिया के उदय के कारण के बीच प्रत्यक्ष संबंध बताती है।
  • हिंसा और आक्रामकता: सोशल मीडिया पर हिंसक वायरल सामग्री जैसे यौन अपमानजनक सामग्री, बदमाशी, अपशब्द, सॉफ्ट पोर्न, अभद्र भाषा आदि के संपर्क में आने वाले बच्चों में हिंसक प्रवृत्ति विकसित हो सकती है।
    • उदाहरण: मुंबई स्थित एसोसिएशन ऑफ एडोलसेंट एंड चाइल्ड केयर इन इंडिया (AACCI) ने मुंबई और गुरुग्राम के स्कूलों का सर्वेक्षण किया और पाया कि बच्चों में आक्रामकता बढ़ रही है।
  • स्वास्थ्य पर प्रभाव:  सोशल मीडिया की आदत  से ADHD, स्मृति समस्याएँ, सिरदर्द, तनाव,
    आलस्य और अवसाद  जैसी समस्याएँ हो सकती हैं।

    • सोशल मीडिया के प्रयोग से नींद का पैटर्न भी गंभीर रूप से प्रभावित होता है।
  • भ्रामक जानकारी का शिकार: सोशल मीडिया फेक न्यूज का केंद्र है। दुष्प्रचार के माध्यम से बच्चों का ब्रेनवॉश आसानी से किया जा सकता है।
    • यूनिसेफ के एक अध्ययन के अनुसार, केवल 2% बच्चों और युवाओं के पास ही वह महत्त्वपूर्ण साक्षरता कौशल है, जो यह निर्णय करने के लिए आवश्यक है कि कोई समाचार वास्तविक है या झूठा।

सोशल मीडिया प्रतिबंध के विरोध में तर्क 

  • कार्यान्वयन की चुनौतियाँ: डिजिटल माध्यम में प्रतिबंध लागू करना कठिन है क्योंकि बच्चे तकनीकी बाधाएँ पार कर सकते हैं।
    • उदाहरण: दक्षिण कोरिया में सिंड्रेला कानून’ (Cinderella Law) के बाद बच्चों ने आईडी चोरी कर गेमिंग प्लेटफॉर्म्स तक पहुँच बनाई।
  • साझा उपकरण उपयोग: भारत में कम डिजिटल साक्षरता के कारण बच्चे ही माता-पिता को इंटरनेट चलाना सिखाते हैं, इसलिए उनसे बच्चों की निगरानी की अपेक्षा करना अव्यावहारिक है।
  • कम डिजिटल साक्षरता: आयु सत्यापन तकनीकों का उपयोग कम शिक्षित लोगों के लिए कठिन होगा।
    • उदाहरण: NSSO (वर्ष 2021) के अनुसार, केवल 40% भारतीय कंप्यूटर पर फाइल कॉपी करना जानते हैं।
  • जवाबदेही से बचना: पूर्ण प्रतिबंध लगाने से तकनीकी कंपनियाँ अपनी जवाबदेही से बच सकती हैं और बच्चों की सुरक्षा के अनुरूप प्लेटफॉर्म डिजाइन करने का दबाव कम हो जाएगा।
  • सकारात्मक उपयोग से वंचित होना: सोशल मीडिया बच्चों को आलोचनात्मक ढंग से सोचने और समान रुचियों वाले लोगों के साथ जुड़ने में मदद कर सकता है तथा अपने व्यापक संसाधनों के साथ भविष्य के लिए महत्त्वपूर्ण सामाजीकरण और संचार कौशल का निर्माण कर सकता है।
    • उदाहरण: ग्रेटा थनबर्ग जैसे जलवायु कार्यकर्ताओं ने अपने संदेश का प्रचार करने और समान विचारधारा वाले बच्चों के समुदाय बनाने के लिए सोशल मीडिया का उपयोग किया।
  • सीखने का साधन: डिजिटल युग और सोशल मीडिया ने बच्चों और युवाओं के लिए संवाद करने, सीखने, सामाजिक मेलजोल तथा खेल संबंधी अभूतपूर्व अवसर उत्पन्न किए हैं, जिससे उन्हें नए विचारों एवं सूचना के अधिक विविध स्रोतों से परिचित होने का अवसर मिला है।

आगे की राह 

  • आयु-उपयुक्त डिजाइन मॉडल अपनाना: ब्रिटेन के वर्ष 2020 के आयु-उपयुक्त डिजाइन मॉडल का पालन करना, जहाँ बच्चों के प्लेटफॉर्म से जुड़ने पर उनके लिए उन्हें न्यूनतम जोखिम का सामना करना पड़ता है।
  • तकनीकी डिजाइन पर सतत् प्रतिक्रिया: जब भी कोई नया जोखिम सामने आए तो प्लेटफॉर्म को निरंतर प्रौद्योगिकी डिजाइन उन्नयन में संलग्न रहना चाहिए, साथ ही बच्चों के व्यवहार में देखे गए परिवर्तनों की निगरानी के लिए एक फीडबैक तंत्र भी होना चाहिए।
    • एक हालिया अध्ययन में पाया गया कि मेटा, गूगल, टिक टॉक और स्नैपचैट जैसे प्लेटफॉर्मों ने बाल सुरक्षा और गोपनीयता से संबंधित 128 परिवर्तन किए हैं।
  • डिजिटल सुरक्षा साक्षरता: बच्चों को उनके मुख्य पाठ्यक्रम के एक भाग के रूप में डिजिटल सुरक्षा अभ्यास सिखाया जाना चाहिए, जैसे हम उन्हें भौतिक दुनिया में सुरक्षा अभ्यास सिखाते हैं।
  • शेयरेंटिंग’ पर कानून: माता-पिता द्वारा बच्चों की संवेदनशील जानकारी ऑनलाइन साझा करने की प्रवृत्ति को नियंत्रित करने हेतु नियम आवश्यक हैं।
    • उदाहरण: असम पुलिस नेशेयरेंटिंग’ के खतरों पर सोशल मीडिया के माध्यम से चेतावनी दी।
  • माता-पिता का आदर्श व्यवहार: सोशल मीडिया का उपयोग बच्चों तक सीमित रखना और इसका उपयोग अपने मनोरंजन के लिए करना, बच्चों को और अधिक क्रोधित स्वाभाव का बना देगा। इसलिए, अभिभावकों को भी अपने प्लेटफॉर्म के उपयोग को विनियमित करना होगा।
    • शोध से यह स्पष्ट होता है कि जब माता-पिता अपने बच्चों को ऑनलाइन माध्यम के लाभों का अधिकतम उपयोग करने में सहायता करते हैं, तो इससे उनसे होने वाले संभावित नुकसान भी कम हो जाते हैं।
  • साक्ष्य-आधारित नीति: उच्च गुणवत्ता वाले, बाल-केंद्रित अनुसंधान को प्रमुख प्लेटफॉर्मों द्वारा नीतियों और डिजाइनों का मार्गदर्शन करना चाहिए तथा उद्योग-व्यापी मानकों को विकसित करना चाहिए, जो यह परिभाषित करते हैं कि विभिन्न आयु के बच्चों के लिए किस प्रकार की सामग्री उपयुक्त है।
    • इसमें तेजी से अनुसंधान प्रक्रियाएँ शामिल हैं, जो उभरते डिजिटल जोखिमों के साथ सामंजस्य बनाए रखती हैं।
  • सुरक्षा-डिजाइन’ सिद्धांत लागू करना: ऑस्ट्रेलियाई ई-सुरक्षा आयुक्त द्वारा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लोकप्रिय सिद्धांत का उद्देश्य तकनीकी उत्पादों और प्लेटफॉर्मों में सुरक्षा सुविधाओं को शामिल करना है ताकि उनके फीड से यौन, हिंसक तथा अन्य आयु-अनुचित सामग्री को हटाया जा सके।
    • यौन या हिंसक सामग्री को हटाना।
    • बच्चों के लिए गोपनीयता डिफॉल्ट सेटिंग्स
    • सरल रिपोर्टिंग तंत्र।
    • AI द्वारा संदिग्ध तत्त्वों की पहचान

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