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भारत में निर्वासन का मुद्दा

Lokesh Pal May 21, 2025 02:43 11 0

संदर्भ

हाल ही में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने एक श्रीलंकाई तमिल नागरिक के निर्वासन को बरकरार रखा तथा दोहराया कि भारत विदेशी नागरिकों के लिए “धर्मशाला” नहीं हो सकता है।

वर्तमान निर्वासन मुद्दा: सुबास्करन का मामला

  • पृष्ठभूमि: सुबास्करन को प्रतिबंधित LTTE से जुड़े होने के कारण UAPA की धारा 38(1) के तहत दोषी ठहराया गया था।
    • मूल रूप से उसे 10 वर्ष की सजा सुनाई गई थी, जिसे वर्ष 2022 में मद्रास उच्च न्यायालय ने घटाकर 7 वर्ष कर दिया।
  • याचिका खारिज: श्रीलंका में जान को खतरा और भारत में पारिवारिक संबंधों के दावों के बावजूद, न्यायालय ने निर्वासन प्रक्रिया में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया।

सर्वोच्च न्यायालय का अवलोकन

  • भारत में निवास करने और बसने का अधिकार केवल भारतीय नागरिकों को अनुच्छेद-19(1)(e) के तहत उपलब्ध है।
  • हालाँकि अनुच्छेद-14 और अनुच्छेद-21 सभी व्यक्तियों पर लागू होते हैं, वे विदेशी नागरिकों के लिए भारत में रहने का अधिकार प्रदान नहीं करते हैं।
  • न्यायालय ने फिर से पुष्टि की कि विदेशी नागरिकों को भारत में रहने का कोई स्वचालित अधिकार नहीं है और उनकी निरंतर उपस्थिति राष्ट्रीय कानूनों का पालन करना चाहिए।

निर्वासन (Deportation) क्या है?

  • निर्वासन, आव्रजन कानूनों के उल्लंघन या राष्ट्रीय सुरक्षा संबंधी चिंताओं के कारण किसी विदेशी नागरिक को देश से जबरन बाहर निकालने की प्रक्रिया है।
  • निर्वासन के आधार
    • वीजा उल्लंघन
    • अवैध प्रवेश या अधिक समय तक रहना
    • आपराधिक गतिविधियों में संलिप्तता
    • सार्वजनिक सुरक्षा या राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा।

शरण चाहने वाला (Asylum Seeker) बनाम शरणार्थी (Refugee) बनाम अवैध प्रवासी (Illegal Migrant)

शब्दावली

परिभाषा

संचलन का कारण

अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत अधिकार

भारतीय संदर्भ

शरण चाहने वाला (Asylum Seeker) वह व्यक्ति, जो अपने देश से भाग कर आया है और अंतरराष्ट्रीय संरक्षण की माँग कर रहा है, लेकिन शरणार्थी स्थिति के लिए उसका दावा अभी तक निर्धारित नहीं हुआ है। उत्पीड़न, युद्ध या हिंसा के कारण दावे की प्रक्रिया के दौरान अंतरराष्ट्रीय शरणार्थी कानून के तहत संरक्षित भारत में कोई राष्ट्रीय शरण कानून नहीं है।

मामला दर मामला निपटाया जाता है (उदाहरण के लिए, UNHCR के माध्यम से)

शरणार्थी (Refugee) ऐसा व्यक्ति, जिन्हें अंतरराष्ट्रीय कानून (जैसे- वर्ष 1951 का शरणार्थी अभिसमय) के तहत उत्पीड़न के भय के कारण संरक्षण की आवश्यकता माना गया है। जाति, धर्म, राष्ट्रीयता, राजनीतिक राय या किसी समूह की सदस्यता के आधार पर उत्पीड़न। वर्ष 1951 का शरणार्थी अभिसमय और गैर-वापसी सिद्धांत के तहत संरक्षित भारत वर्ष 1951 के अभिसमय का पक्षकार नहीं है, लेकिन व्यवहार में इस अभिसमय का पालन करता है (उदाहरण के लिए, तिब्बती, श्रीलंकाई तमिल)।
अवैध प्रवासी (Illegal Migrant) वह व्यक्ति, जो किसी देश में बिना कानूनी अनुमति के प्रवेश करता है या रहता है (जैसे- वैध वीजा, पासपोर्ट नहीं है, या वीजा की अवधि से अधिक समय तक रहता है)
  • प्रायः आर्थिक कारण।
  • अपने देश में कोई विशेष खतरा नहीं
शरणार्थी कानून द्वारा संरक्षित नहीं; घरेलू आव्रजन कानून के अधीन संप्रभुता के लिए खतरा माना जाता है।

सर्वोच्च न्यायालय ने निर्वासन अधिकारों को बरकरार रखा (उदाहरण के लिए, रोहिंग्या मामला, सोनोवाल बनाम भारत संघ)

प्रमुख निर्वासन मामले

मामले

वर्ष

आरोप / पृष्ठभूमि

शामिल देश

कानूनी परिणाम

रोहिंग्या निर्वासन मामला वर्ष 2021 में म्याँमार से आए रोहिंग्या शरणार्थियों को जम्मू में हिरासत में लिया गया; भारत ने अवैध आव्रजन का हवाला देते हुए उन्हें वापस भेजने की योजना बनाई। म्याँमार
  • सर्वोच्च न्यायालय ने 7 रोहिंग्याओं को म्यांमार वापस भेजने पर रोक लगाने से इनकार कर दिया।
  • वे अवैध अप्रवासी थे और म्याँमार ने उनकी वापसी स्वीकार कर ली थी।
बांग्लादेशी अवैध अप्रवासी मामला जारी

(वर्ष 2005, वर्ष 2014 में सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणियाँ)

बांग्लादेश से अवैध प्रवासियों का आगमन; असम और पश्चिम बंगाल पर ध्यान केंद्रित बांग्लादेश
  • सर्बानंद सोनोवाल बनाम भारत संघ (2005) मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने अवैध प्रवासी निर्धारण न्यायाधिकरण (IMDT) अधिनियम को रद्द कर दिया।
  • सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि यह अवैध प्रवास को बढ़ावा देता है और इसे संप्रभुता के लिए खतरा बताया।

भारत में शरणार्थी संकट

शरणार्थी समूह

मूल देश

अनुमानित संख्या

प्रवेश की प्रकृति

सरकार की प्रतिक्रिया

श्रीलंकाई तमिल श्रीलंका लगभग 1,00,000 युद्ध शरणार्थी (1983)
  • तमिलनाडु में शरण दी गई।
  • कानून के तहत शरणार्थी के रूप में मान्यता नहीं दी गई।
  • अधिकांशतः शिविरों में बसे हुए हैं।
  • नागरिकता के कोई अधिकार नहीं।
रोहिंग्या म्याँमार लगभग 40,000 अवैध प्रवास
  • अवैध अप्रवासी माने जाते हैं।
  • सर्वोच्च न्यायालय ने निर्वासन रोकने की याचिका खारिज कर दी।
  • कुछ को नजरबंदी शिविरों में रखा गया।
बांग्लादेशी प्रवासी बांग्लादेश लाखों (अनुमानित) आर्थिक प्रवास
  • अवैध प्रवासी माने जाते हैं।
  • वर्गीकरण के लिए NRC और CAA के माध्यम से लक्षित किया गया।
अफगान (तालिबान के बाद) अफगानिस्तान लगभग 20,000 तालिबान शासन से भागना
  • भारत मानवीय आधार पर ई-वीजा प्रदान करता है।
  • कोई औपचारिक शरण या शरणार्थी का दर्जा नहीं।
  • प्रतिबंधित आवागमन।
तिब्बती  तिब्बत (चीन) लगभग  1,00,000 वर्ष 1959 के बाद
  • शरणार्थियों के रूप में मान्यता दी गई।
  • उन्हें आवासीय परमिट दिए गए।
  • धर्मशाला जैसी बस्तियाँ बनाने की अनुमति दी गई।
चकमा और हाजोंग बांग्लादेश लगभग  65,000 1960 के दशक के बाद
  • अरुणाचल प्रदेश में पुनर्वासित किया गया।
  • विरोध का सामना करना पड़ा।
  • कुछ व्यक्तियों को सर्वोच्च न्यायालय के हस्तक्षेप के बाद नागरिकता प्रदान की गई।

प्रवेश और प्रवास को विनियमित करने का राज्य का अधिकार

  • संप्रभुता का सिद्धांत: अंतरराष्ट्रीय कानून और भारत के संविधान के तहत, एक संप्रभु राष्ट्र को यह नियंत्रित करने का विशेष अधिकार है कि कौन उसके क्षेत्र में प्रवेश कर सकता है और  कौन उसके क्षेत्र में निवास कर सकता है। यह सिद्धांत मार्गदर्शन करता है:
    • वीजा नियम
    • निर्वासन आदेश
    • शरण या शरणार्थी का दर्जा देने से इनकार।
  • भारतीय कानूनों में कानूनी आधार

कानून

अधिनियमित वर्ष

प्रमुख प्रावधान

विदेशियों विषयक अधिनियम वर्ष 1946 विदेशियों के प्रवेश, उपस्थिति और निर्वासन को नियंत्रित करता है।
पासपोर्ट (भारत में प्रवेश) अधिनियम वर्ष 1920 वैध पासपोर्ट और वीजा के बिना प्रवेश प्रतिबंधित है।
विदेशियों का रजिस्ट्रीकरण अधिनियम वर्ष 1939 एक निश्चित अवधि से अधिक समय तक रहने वाले विदेशियों के लिए पंजीकरण आवश्यक है।
आव्रजन (वाहक दायित्व) अधिनियम वर्ष 2000 बिना दस्तावेज वाले विदेशियों को ले जाने वाली एयरलाइनों पर जुर्माना लगाया जाता है।

  • स्थायी निवास का कोई मौलिक अधिकार नहीं: सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणियों के अनुसार, अनुच्छेद-19 के अधिकार भारतीय नागरिकों के लिए आरक्षित हैं। विदेशी नागरिकों को स्थायी निवास का दावा करने का कोई अधिकार नहीं है।

आव्रजन और विदेशी अधिनियम, 2025

  • उद्देश्य: भारत के आव्रजन और विदेशी प्रबंधन कानूनों को एकीकृत और आधुनिक बनाकर एकल, व्यापक कानून का निर्माण करना।

प्रमुख विशेषताएँ

  • विदेशियों विषयक अधिनियम (1946), विदेशियों का रजिस्ट्रीकरण अधिनियम (1939) और 
  • पासपोर्ट (भारत में प्रवेश) अधिनियम (1920) सहित औपनिवेशिक युग के कानूनों को निरस्त करना।
  • वीजा, यात्रा दस्तावेज और निर्वासन की शर्तों को विनियमित करने के लिए एक कानूनी ढाँचे का निर्माण।
  • प्रवेश से इनकार करने के आधारों की परिभाषा, जैसे:-
    • सार्वजनिक सुरक्षा के लिए खतरा
    • संक्रामक रोग
    • अमान्य यात्रा दस्तावेज
    • प्रत्यर्पण से संवंधित  मामले
    • बार-बार अपराध करने वाले।

राष्ट्रीय सुरक्षा बनाम मानवीय चिंताएँ

  • सुरक्षा संबंधी मुद्दे 
    • आतंकवादी गतिविधियों (जैसे- LTTE, ISIS, रोहिंग्या से जुड़े समूह) में विदेशियों की संलिप्तता चिंता का विषय है।
    • अवैध अप्रवासी कानून प्रवर्तन पर दबाव डाल सकते हैं तथा विशेषतः असम, जम्मू और कश्मीर तथा पश्चिम बंगाल जैसे संवेदनशील सीमावर्ती राज्यों में जनसांख्यिकीय प्रबंधन को जटिल बना सकते हैं।
  • मानवीय दायित्व
    • भारत वर्ष 1951 के संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी अभिसमय या इसके वर्ष 1967 के प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षरकर्ता नहीं है, लेकिन ऐतिहासिक रूप से मानवीय आधार पर शरण प्रदान करता रहा है।
    • न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया है कि अनुच्छेद-21 सभी व्यक्तियों को बुनियादी अधिकारों की गारंटी प्रदान करता है, जिसमें यातना या अमानवीय व्यवहार से सुरक्षा शामिल है।
    • हालाँकि, इसका अर्थ, अनिश्चित काल तक निवास करने का अधिकार नहीं है।
  • न्यायिक संतुलन अधिनियम
    • सर्वोच्च न्यायालय के वर्ष 2021 और वर्ष 2025 में दिए गए निर्णयों के अनुसार, मानवीय चिंताओं को राष्ट्रीय सुरक्षा या कानूनी प्रावधानों से ऊपर नहीं रखा जा सकता। 
    • जोखिमग्रस्त शरणार्थी, पुनर्वास के लिए UNHCR या तीसरे देशों से संपर्क कर सकते हैं।
      • उदाहरण के लिए, भारत ने बांग्लादेश में कई रोहिंग्याओं को मानवीय सहायता प्रदान की है।

अवैध अप्रवासियों के लिए भारतीय कानून से संबंधित चुनौतियाँ

  • कानूनी प्रावधानों का अतिव्यापन: विदेशियों विषयक अधिनियम, पासपोर्ट (भारत में प्रवेश) अधिनियम और नागरिकता अधिनियम जैसे कई कानून अवैध अप्रवासियों को नियंत्रित करते हैं, जिससे प्रशासनिक भ्रम की स्थिति पैदा होती है।
  • एकीकृत कानूनी ढाँचे का अभाव: शरणार्थियों, शरण चाहने वालों और अन्य अवैध अप्रवासियों को वर्गीकृत तथा प्रबंधित करने के लिए कोई एकल व्यापक कानून नहीं है।
  • एक विशिष्ट शरणार्थी कानून का अभाव: भारत में एक समर्पित शरणार्थी कानून नहीं है, इसके स्थान पर पुराने औपनिवेशिक युग के कानूनों पर निर्भर है।
  • निर्वासन प्रक्रियाओं में अस्पष्टता: अवैध अप्रवासियों को निर्वासित करने के लिए कोई स्पष्ट और सुसंगत प्रक्रिया मौजूद नहीं है, जिसके परिणामस्वरूप देरी और कानूनी चुनौतियाँ होती हैं।
  • असंगत अस्थायी प्रवास नीतियाँ: अस्थायी आश्रय और कानूनी प्रवास का निर्णय मामला-दर-मामला आधार पर किया जाता है, जिसमें प्रायः एकरूपता का अभाव होता है।
  • कानूनी अधिकारों पर नीतिगत विवेक: यह निर्णय प्रायः कानूनी अधिकारों के स्थान पर कार्यकारी विवेक पर निर्भर होते हैं, जिससे पारदर्शिता और निष्पक्षता प्रभावित होती है।

आगे की राह

  • आव्रजन कानून का अधिनियमन: प्रवेश, प्रवास और निर्वासन प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करने के लिए आव्रजन और विदेशी अधिनियम, 2025 के कार्यान्वयन में तेजी लाना।
    • यह औपनिवेशिक युग के कानूनों का स्थान लेगा और प्रशासनिक अस्पष्टता को कम करते हुए एक एकीकृत कानूनी ढाँचा तैयार करेगा।
  • शरणार्थी नीति को संस्थागत बनाना: शरणार्थियों के अधिकारों, दायित्वों और वर्गीकरण को परिभाषित करने के लिए एक विशिष्ट शरणार्थी और शरण कानून का मसौदा तैयार करना।
    • अमेरिका और जर्मनी जैसे देशों ने सुरक्षा और मानवीय सुरक्षा दोनों को सुनिश्चित करने के लिए संरचित ढाँचे निर्मित किए हैं।
  • बेहतर सीमा जाँच: अवैध प्रवेश को रोकने के लिए बायोमेट्रिक सिस्टम (जैसे- आधार से जुड़े विदेशियों की ट्रैकिंग) और क्षेत्रीय समन्वय का उपयोग करना।
    • यूरोपीय संघ शेंगेन वीजा सूचना प्रणाली जैसी वैश्विक प्रथाओं के साथ संरेखित करना।
  • कार्रवाई को संतुलित करना: स्थानांतरण के लिए UNHCR के साथ सहयोग करते हुए अस्थायी सुरक्षा (जैसे- अफगान शरणार्थियों के लिए ई-वीजा) प्रदान करना।
    • स्थायी निवास दिए बिना अमानवीय व्यवहार के विरुद्ध अनुच्छेद-21 के तहत सुरक्षा सुनिश्चित करना।
  • क्षेत्रीय सहयोग: शरणार्थी और प्रवासन प्रबंधन पर सार्क स्तरीय आम सहमति को बढ़ावा देना।
    • साझा रणनीति क्षेत्रीय दबाव को कम कर सकती है, जैसा कि आसियान की संयुक्त रोहिंग्या प्रतिक्रियाओं में देखा गया है।

निष्कर्ष

भारत की शरणार्थी नीति मानवीय करुणा को संप्रभु और कानूनी अनिवार्यताओं के साथ संतुलित करती है। सर्वोच्च न्यायालय का दृष्टिकोण एवं आव्रजन और विदेशी अधिनियम, 2025 राष्ट्रीय सुरक्षा तथा संसाधनों की सुरक्षा करते हुए विदेशी उपस्थिति को विनियमित करने के भारत के उद्देश्य को उजागर करता है।

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