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‘डेजर्ट सॉइलीफिकेशन टेक्नोलॉजी’

Lokesh Pal October 01, 2025 03:30 47 0

संदर्भ

राजस्थान केंद्रीय विश्वविद्यालय (CUoR) के शोधकर्ताओं ने स्वदेशी जैव-सूत्रीकरण आधारित ‘डेजर्ट सॉइलीफिकेशन टेक्नोलॉजी’ का उपयोग करके शुष्क थार रेगिस्तान में सफलतापूर्वक गेहूँ की खेती की है।

‘डेजर्ट सॉइलीफिकेशन टेक्नोलॉजी’ क्या है?

  • ‘डेजर्ट सॉइलीफिकेशन टेक्नोलॉजी’ एक जैव-प्रौद्योगिकीय और पारिस्थितिकी प्रक्रिया है, जिसमें अनुर्वरक रेगिस्तानी रेत को उसकी संरचना, जल धारण क्षमता और सूक्ष्मजीवी गतिविधियों में परिवर्तन करके मृदा जैसी, कृषि-उत्पादक भूमि में परिवर्तित किया जाता है।

मरुस्थलीकरण क्या है?

  • मरुस्थलीकरण: यह शुष्क, अर्द्ध-शुष्क और शुष्क उप-आर्द्र क्षेत्रों में भूमि क्षरण को दर्शाता है, जो जलवायु परिवर्तन और मानवीय गतिविधियों सहित विभिन्न कारणों से होता है।
  • भूमि क्षरण: यह मृदा कटाव, लवणता, जलभराव, वनों की कटाई, खनन या अव्यवस्थित भूमि उपयोग के कारण भूमि की जैविक/आर्थिक उत्पादकता में कमी या हानि को दर्शाता है।
  • भारत में स्थिति: ISRO के मरुस्थलीकरण और भूमि क्षरण एटलस (2021) के अनुसार:
    • भारत के कुल भौगोलिक क्षेत्र की 29.77% (लगभग 97.85 मिलियन हेक्टेयर) भूमि क्षरण की प्रक्रिया से गुजर रही है।
    • प्रमुख प्रभावित राज्य: राजस्थान, महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक, झारखंड, ओडिशा, मध्य प्रदेश, तेलंगाना।
    • केवल राजस्थान में भारत के मरुस्थलीकृत क्षेत्र का लगभग 20% भाग है।
  • मरुस्थलीकरण की चुनौतियाँ: यह चुनौती अरावली पर्वतमाला के विनाश, वर्षा में अस्थिरता, रेतीले टीलों के विस्तार, अनियंत्रित वृक्षारोपण और भूमि क्षरण के कारण तीव्रता से बढ़ रही है।

प्रौद्योगिकी और कार्यप्रणाली

  • सॉइलीफिकेशन टेक्नोलॉजी: पॉलिमर और स्वदेशी जैव-सूत्रीकरण का उपयोग करके रेगिस्तानी रेत को मृदा में परिवर्तित किया जाता है।
  • जैव-सूत्रीकरण के कार्य
    • रेतीली मृदा में जल धारण क्षमता बढ़ाना।
    • रेत के कणों के परस्पर संयोजन को बढ़ावा देकर मृदा की संरचना में सुधार करना।
    • लाभकारी सूक्ष्मजीवी गतिविधियों को प्रोत्साहित करें, जिससे फसलों में तनाव प्रतिरोधक क्षमता बढ़े।
  • उद्देश्य: रेतीली रेगिस्तानी भूमि को कृषि-उत्पादक मृदा में बदलने के लिए एक स्थायी विधि विकसित करना।
  • पूर्व परीक्षण: खेत-स्तरीय गेहूँ परीक्षणों से पहले बाजरा, ग्वार गम और चना के साथ प्रयोगशाला में किए गए।

गेहूँ की खेती का प्रयोग

  • स्थान: अजमेर जिले (थार रेगिस्तान का किनारा) के पुष्कर के पास बांसेली गाँव।
  • फसल: गेहूँ-4079 देशी किस्म।
  • पैमाना: नवंबर 2024 में 1,000 वर्ग मीटर में बोए गए 13 किलोग्राम बीज।
  • सिंचाई दक्षता: चक्र के दौरान केवल तीन सिंचाई की आवश्यकता, जबकि सामान्यतः पाँच से छह चक्रों में सिंचाई करनी पड़ती है।
  • उपज: अप्रैल 2025 में कटाई की गई, प्रति 100 वर्ग मीटर 26 किलोग्राम गेहूँ का उत्पादन।
  • बीज-से-कटाई अनुपात: 1:20, सामान्य शुष्क क्षेत्र की स्थितियों की तुलना में दोगुना।
  • संस्थागत सहायता: कृषि विज्ञान केंद्र (KVK) और राज्य बागवानी विभाग द्वारा समर्थित परियोजना।

महत्त्व

  • कृषि उत्पादकता: अनुर्वरक रेगिस्तान को कृषि योग्य भूमि में परिवर्तित करता है, जिससे खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित होती है।
  • जल दक्षता: शुष्क क्षेत्रों के लिए आवश्यक उच्च जल-उपयोग दक्षता प्रदर्शित करता है।
    • सिंचाई की आवश्यकता में कमी (3-4 चक्र बनाम 5-6 चक्र)।
  • धारणीयता: अनुर्वरक रेगिस्तानी भूमि को उत्पादक कृषि भूमि में परिवर्तित करके, मरुस्थलीकरण का जैव-प्रौद्योगिकी समाधान प्रदान करता है।
  • मापनीयता: राजस्थान और अन्य शुष्क क्षेत्रों में बाजरा तथा मूँग जैसी अन्य फसलों तक विस्तार की क्षमता।
  • सामाजिक प्रभाव: शुष्क पारिस्थितिकी तंत्रों में खाद्य सुरक्षा और सतत् कृषि के लिए अनुप्रयुक्त विज्ञान को एक व्यावहारिक समाधान में परिवर्तित होते हुए प्रदर्शित करता है।

मरुस्थलीकरण के प्रति भारत की प्रतिक्रिया

  • राष्ट्रीय मरुस्थलीकरण, भूमि क्षरण और सूखा नियंत्रण कार्ययोजना (NAPDLDD, 2001): यह संयुक्त राष्ट्र मरुस्थलीकरण प्रतिवेदन (UNCCD) की प्रतिबद्धताओं के अनुरूप स्थायी भूमि उपयोग, मृदा संरक्षण, वनरोपण और सूखा प्रबंधन के लिए एक ढाँचा प्रदान करता है।
  • राष्ट्रीय वनरोपण कार्यक्रम (NAP): यह कार्बन सिंक को बढ़ाने और भूमि क्षरण को रोकने के लिए बड़े पैमाने पर वृक्षारोपण तथा जंगलों की पारिस्थितिकी-बहाली को बढ़ावा देता है।
  • मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना (2015): यह किसानों को मृदा स्वास्थ्य कार्ड जारी करता है, जिसमें पोषक तत्त्वों की स्थिति और उर्वरक संबंधी सिफारिशें होती हैं, जो रासायनिक उर्वरकों के अत्यधिक उपयोग को रोकने और मृदा की उर्वरता को बनाए रखने में मदद करती हैं।
  • राष्ट्रीय वर्षा-आधारित क्षेत्रों के लिए जलाशय विकास परियोजना (NWDPRA): यह क्षीण वर्षा-आधारित क्षेत्रों में मृदा और जल संरक्षण, वर्षा जल संचयन और नमी प्रबंधन पर ध्यान केंद्रित करता है।
  • प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (PMKSY): इसका उद्देश्य ‘हर खेत को जल’ और जल उपयोग दक्षता में सुधार (“प्रति बूँद, अधिक फसल”) है, ताकि जलभराव, क्षारीयकरण और मरुस्थलीकरण को रोका जा सके।
  • मरुस्थलीकरण और भूमि क्षरण पर एटलस (ISRO, 2016 और 2021): यह उपग्रह आधारित मानचित्रण और निम्नीकृत भूमि की निगरानी करता है, जिससे नीति निर्माताओं को हॉटस्पॉट की पहचान करने और हस्तक्षेप की योजना बनाने में मदद मिलती है।
  • अंतरराष्ट्रीय प्रतिबद्धताएँ
    • भारत संयुक्त राष्ट्र मरुस्थलीकरण रोकथाम अभिसमय (UNCCD, 1994) का हस्ताक्षरकर्ता है।
    • UNCCD के कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज-14 (COP-14), नई दिल्ली, 2019 में भारत ने यह संकल्प लिया:
      • वर्ष 2030 तक भूमि क्षरण तटस्थता (Land Degradation Neutrality – LDN) हासिल करना।
      • वर्ष 2030 तक 2.6 करोड़ हेक्टेयर (26 मिलियन हेक्टेयर) क्षतिग्रस्त भूमि को पुनर्स्थापित करना।

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