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वर्ष 2047 तक विकसित भारत के लिए मानव संसाधन विकसित करना

Lokesh Pal April 02, 2024 05:46 507 0

संदर्भ

हाल ही में भारतीय वित्त मंत्री ने उल्लेख किया कि हालिया जारी की गई भारत रोजगार रिपोर्ट 2024 (India Employment Report 2024) से संतोषजनक परिणाम सामने नहीं आए हैं और विकसित भारत के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए, भारत को लगभग 8% के वार्षिक औसत पर समावेशी विकास की आवश्यकता है। 

भारत रोजगार रिपोर्ट 2024 (India Employment Report 2024)

  • हाल ही में अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (International Labour Organisation- ILO) और मानव विकास संस्थान (Institute of Human Development- IHD) ने ‘भारत रोजगार रिपोर्ट 2024’ नाम से एक रिपोर्ट जारी की है। 

मानव विकास संस्थान (Institute of Human Development- IHD) के बारे में 

  • स्थापना: मानव विकास संस्थान (IHD) की स्थापना वर्ष 1998 में ‘इंडियन सोसायटी ऑफ लेबर इकोनॉमिक्स’ (Indian Society of Labour Economics- ISLE) द्वारा की गई थी।
  • उद्देश्य: एक ऐसे समाज की स्थापना में मदद करना, जो गरीबी और अभाव से मुक्त समावेशी सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक व्यवस्था को बढ़ावा और समर्थन देता है।
  • अनुसंधान: यह श्रम और रोजगार, आजीविका, लिंग, स्वास्थ्य, शिक्षा और मानव विकास के अन्य क्षेत्रों पर शोध करता है।

अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) के बारे में

  • यह एकमात्र त्रिपक्षीय संयुक्त राष्ट्र (UN) एजेंसी है।
    • यह श्रम मानकों को निर्धारित करने, नीतियाँ विकसित करने और सभी महिलाओं तथा पुरुषों के लिए सभ्य कार्य को बढ़ावा देने वाले कार्यक्रम तैयार करने के लिए 187 सदस्य राज्यों (भारत एक सदस्य है) की सरकारों, नियोक्ताओं एवं श्रमिकों को एक साथ लाता है।
  • स्थापना: वर्ष 1919 में वर्साय की संधि (Treaty of Versailles) द्वारा।
    • यह वर्ष 1946 में संयुक्त राष्ट्र की पहली विशेष एजेंसी बन गई।
  • मुख्यालय: जिनेवा, स्विट्जरलैंड
  • पुरस्कार: इसे वर्ष 1969 में नोबेल शांति पुरस्कार (Nobel Peace Prize) मिला।

संबंधित तथ्य

  • अंतरिम बजट में, भारतीय वित्त मंत्री ने कहा कि ‘विकसित भारत’ के लिए सरकार का दृष्टिकोण “प्रकृति के साथ सद्भाव में, आधुनिक बुनियादी ढाँचे के साथ समृद्ध भारत और सभी नागरिकों तथा सभी क्षेत्रों को उनकी क्षमता तक पहुँचने के अवसर प्रदान करना” (prosperous Bharat in harmony with nature, with modern infrastructure, and providing opportunities for all citizens and all regions to reach their potential) है। 
    • ‘विकसित भारत’ के इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए लोगों की क्षमता में सुधार करने और उन्हें सशक्त बनाने की आवश्यकता है।
    • विकसित भारत के लक्ष्य
      • सकल घरेलू उत्पाद (GDP) पर: प्रस्तावित उपायों से भारत की GDP को वर्ष 2030 में 6.69 ट्रिलियन डॉलर, वर्ष 2040 तक 16.13 ट्रिलियन डॉलर और वर्ष 2047 तक 29.02 ट्रिलियन डॉलर तक बढ़ाया जाना चाहिए।
      • प्रति व्यक्ति आय पर: मौजूदा कीमतों पर प्रति व्यक्ति आय का अनुमान वर्ष 2030 तक 4,418 डॉलर, वर्ष 2040 तक 10,021 डॉलर और वर्ष 2047 तक 17,590 डॉलर है।
        • इसका अर्थ है कि वर्तमान प्रति व्यक्ति आय लगभग 2 लाख रुपये वर्ष 2047 तक लगभग 14.9 लाख रुपये हो जाएगी।
      • निर्यात पर: निर्यात लक्ष्य वर्ष 2030 में मूल्य के हिसाब से 1.58 ट्रिलियन डॉलर, वर्ष 2040 तक 4.56 ट्रिलियन डॉलर और वर्ष 2047 तक 8.67 ट्रिलियन डॉलर हैं।

भारत रोजगार रिपोर्ट 2024 के बारे में

  • रिपोर्ट का आधार: शोध ज्यादातर वर्ष 2000 और 2022 के बीच आयोजित राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण (National Sample Surveys) और आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (Periodic Labour Force Surveys) के डेटा विश्लेषण पर आधारित है। 
  • प्रयुक्त संकेतक: सूचकांक सात श्रम बाजार परिणाम संकेतकों पर आधारित है:
    • नियमित औपचारिक कार्य में नियोजित श्रमिकों का प्रतिशत
    • आकस्मिक मजदूरों का प्रतिशत
    • गरीबी रेखा से नीचे स्वरोजगार करने वाले श्रमिकों का प्रतिशत
    • कार्य भागीदारी दर
    • आकस्मिक मजदूरों की औसत मासिक आय
    • माध्यमिक और उच्च-शिक्षित युवाओं की बेरोजगारी दर
    • युवा रोजगार और शिक्षा या प्रशिक्षण में नहीं हैं।

भारत रोजगार रिपोर्ट 2024 की मुख्य विशेषताएँ

  • ‘रोजगार स्थिति सूचकांक’ (Employment Condition Index) में सुधार: ‘रोजगार स्थिति सूचकांक’ में वर्ष 2004-05 और वर्ष 2021-22 के बीच सुधार हुआ है तथा दिल्ली, हिमाचल प्रदेश, तेलंगाना, उत्तराखंड एवं गुजरात शीर्ष पर रहे हैं।
    • लेकिन कुछ राज्य (बिहार, ओडिशा, झारखंड और उत्तर प्रदेश) इस अवधि में सबसे निचले पायदान पर रहे हैं।

  • रोजगार की गुणवत्ता में सुधार: स्वरोजगार रोजगार का प्राथमिक स्रोत (वर्ष 2022 में 55.8%) बना हुआ है। आकस्मिक और नियमित रोजगार क्रमशः 22.7% और 21.5% था। 
    • नियमित रोजगार: इसे आम तौर पर रोजगार की नियमितता और संबंधित सामाजिक सुरक्षा लाभों के कारण बेहतर गुणवत्ता वाली नौकरियाँ प्रदान करने के रूप में देखा जाता है।
      • आकस्मिक कार्य: यह अपनी अनियमित प्रकृति और कम दैनिक आय के कारण अपेक्षाकृत खराब गुणवत्ता वाली नौकरियों से जुड़ा हुआ है।
    • अनौपचारिक रोजगार (Informal Employment): औपचारिक क्षेत्र में नौकरियों की संख्या बढ़ी है और उनमें से लगभग आधी अनौपचारिक हैं।
      • लगभग 82% कार्यबल अनौपचारिक क्षेत्र में लगा हुआ है और लगभग 90% अनौपचारिक रूप से कार्यरत है।
      • स्व-रोजगार और अवैतनिक पारिवारिक कार्य भी बढ़े हैं, विशेषकर महिलाओं के लिए।
  • कृषि में उतार-चढ़ाव वाला रोजगार: गैर-कृषि रोजगार की ओर धीमा परिवर्तन वर्ष 2018-19 के बाद उलट गया है। कुल रोजगार में कृषि की हिस्सेदारी वर्ष 2000 में 60% से गिरकर वर्ष 2019 में लगभग 42% हो गई।
    • यह बदलाव मुख्य रूप से विनिर्माण एवं सेवाओं द्वारा अवशोषित किया गया था, जिसकी कुल रोजगार में हिस्सेदारी वर्ष 2000 में 23% से बढ़कर वर्ष 2019 में 32% हो गई। रोजगार में विनिर्माण की हिस्सेदारी लगभग 12-14% पर स्थिर बनी हुई है।
    • वर्ष 2018-19 के बाद से, कृषि रोजगार की हिस्सेदारी में वृद्धि के साथ यह धीमा संक्रमण रुक गया है या उलट गया है।
  • आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) का प्रभाव: AI के बढ़ने से रोजगार पर असर पड़ सकता है। भारत में आउटसोर्सिंग उद्योग बाधित हो सकता है क्योंकि AI कुछ बैक-ऑफिस कार्यों को संभाल लेगा।

विकसित भारत (Viksit Bharat) के बारे में

  • विकसित भारत‘ का अर्थ है ‘भारत को विकासशील देशों की श्रेणी से विकसित श्रेणी में लाना’, एक ऐसा दृष्टिकोण जिसे सरकार वर्ष 2047 (जिस वर्ष भारत स्वतंत्रता के 100 वर्ष पूरे करेगा) तक साकार करना चाहती है।
  • उद्देश्य: अनुमानित 1.65 अरब आबादी के लिए भारत को लगभग दो दशकों में 30 ट्रिलियन डॉलर की विकसित अर्थव्यवस्था में बदलना।
  • समावेशी वृद्धि (Inclusive Growth): दस्तावेज में आर्थिक विकास, सतत् विकास लक्ष्य, जीवन निर्वाह में आसानी और ईज ऑफ डूइंग बिजनेस, उन्नत बुनियादी ढाँचे और मजबूत सामाजिक कल्याण पहल की परिकल्पना की गई है। 
  • चार स्तंभ: युवा, गरीब, महिला और किसान। 
  • विकसित भारत का मुख्य विषय
    • सशक्त भारतीय (स्वास्थ्य, शिक्षा, नारी शक्ति, खेल, संस्कृति और देखभाल करने वाला समाज)
    • संपन्न और टिकाऊ अर्थव्यवस्था (उद्योग, ऊर्जा, कृषि, बुनियादी ढाँचा, सेवाएँ, हरित अर्थव्यवस्था और शहर)
    • नवाचार, विज्ञान और प्रौद्योगिकी (अनुसंधान और विकास, स्टार्टअप और डिजिटल)
    • सुशासन एवं सुरक्षा (Good Governance and Security)
    • विश्व में भारत (India in the World)
  • मुख्य फोकस क्षेत्र
    • शिक्षा: स्कूल के बुनियादी ढाँचे को उन्नत करना, स्कूल जाने वाले विद्यार्थियों की संख्या को बढ़ाना और शैक्षिक मानकों को उन्नत स्तर तक ले जाना।
    • स्वास्थ्य देखभाल: यह गारंटी देना कि प्रत्येक नागरिक को ऐसी स्वास्थ्य सेवाएँ उपलब्ध हों, जो पहुँच योग्य और उच्च गुणवत्ता वाली हों।
    • प्रौद्योगिकी: राष्ट्रीय उन्नति के लिए तकनीकी समाधानों को अपनाना और अग्रणी बनाना।
    • बुनियादी ढाँचा: परिवहन, संचार नेटवर्क और शहर की सुविधाओं जैसे मजबूत बुनियादी ढाँचे का निर्माण।
    • कृषि: उन्नत कृषि पद्धतियों का परिचय देना और किसानों को उनके उत्पादन एवं उत्पादकता को बढ़ाने के लिए सहायता प्रदान करना।
    • पर्यावरण: यह सुनिश्चित करने के लिए पर्यावरण अनुकूल तरीकों को आगे बढ़ाना और प्राकृतिक संपत्तियों की सुरक्षा करना कि पर्यावरण भविष्य की पीढ़ियों के लिए स्वच्छ और समृद्ध हो।

विकसित भारत को प्राप्त करने के लिए मानव संसाधन विकसित करने की आवश्यकता

  • मानव संसाधन विकास (Human Resource Development- HRD): HRD व्यक्तियों की प्रतिभा, दक्षता एवं कौशल को पोषित करने और बढ़ावा देने के लिए व्यवस्थित दृष्टिकोण को संदर्भित करता है, जिससे राष्ट्रीय विकास में योगदान मिलता है। 

मानव संसाधन कैसे विकसित करें?

  • शिक्षा और कौशल विकास: याद रखने की तुलना में व्यावहारिक कौशल और समस्या-समाधान को प्राथमिकता देने के लिए शिक्षा प्रणाली को बदलने की आवश्यकता है।
    • परियोजना आधारित शिक्षा: फिनलैंड की शिक्षा प्रणाली एक उल्लेखनीय उदाहरण है, जहाँ परियोजना आधारित शिक्षा को सफलतापूर्वक लागू किया गया है, जिससे विद्यार्थियों में रचनात्मकता और आलोचनात्मक सोच की संस्कृति को बढ़ावा मिलता है। भारत समस्या समाधान दृष्टिकोण विकसित करने के लिए ऐसे मॉडलों से संकेत ले सकता है।
    • उद्योग-अकादमिक सहयोग: IIT मद्रास और विभिन्न उद्योगों के बीच सहयोग शिक्षा और उद्योग के बीच सहजीवी संबंधों की क्षमता का एक प्रमाण है, जहाँ सैद्धांतिक शिक्षा व्यावहारिक माँगों को पूरा करती है, जिससे रोजगार की संभावनाएँ बढ़ती हैं।
  • कौशल और कार्यबल संवर्द्धन: सभी उद्योगों में कौशल विकास कार्यक्रमों का विस्तार करना और विश्वसनीय प्रमाण-पत्र प्रदान करना।
    • सतत् व्यावसायिक विकास: सिंगापुर में सतत् शिक्षक प्रशिक्षण और विकास के लिए एक एकीकृत प्रणाली है। भारत शिक्षकों को आजीवन सीखने में संलग्न रहने और उभरते शैक्षिक परिदृश्यों के अनुरूप ढलने के लिए प्रोत्साहित करके सीख सकता है।
  • स्वास्थ्य और खुशहाली: मजबूत बुनियादी ढाँचे के साथ सस्ती, गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवा सुनिश्चित करना।
    • टेलीमेडिसिन: COVID-19 महामारी के दौरान केरल जैसे राज्यों में टेलीमेडिसिन के सफल कार्यान्वयन ने प्रदर्शित किया कि कैसे प्रौद्योगिकी का उपयोग स्वास्थ्य देखभाल अंतराल को पाटने के लिए किया जा सकता है, जो अन्य राज्यों के अनुसरण के लिए एक व्यवहार्य मॉडल प्रस्तुत करता है।
  • कुपोषण को संबोधित: तमिलनाडु में अम्मा उनावगम (Amma Unavagam) पहल एक शानदार उदाहरण है, जहाँ सामुदायिक रसोई का उपयोग कुपोषण को दूर करने के साथ-साथ स्थानीय किसानों को भी समर्थन देने के लिए किया गया है।
  • अनुसंधान, नवाचार और प्रौद्योगिकी अपनाना: नवाचार को बढ़ावा देने और शिक्षा जगत और उद्योग के बीच संबंधों को बढ़ावा देने के लिए अनुसंधान में निवेश करना। उदाहरण: इसरो ने राष्ट्रीय अनुसंधान फाउंडेशन (National Research Foundation) की स्थापना की।
    • इन्क्यूबेशन केंद्र: IIT बॉम्बे जैसे इन्क्यूबेशन केंद्रों से आने वाली सफलता की कहानियाँ शैक्षिक संस्थागत स्तर पर नवाचार को बढ़ावा देने की क्षमता को दर्शाती हैं, जिससे अनुसंधान एवं विकास को बढ़ावा मिलता है। 
  • डिजिटल विभाजन को पाटना (Bridge Digital Divide): महाराष्ट्र में डिजिटल बस परियोजना (Digital Bus Project) जैसी पहल ने डिजिटल विभाजन को पाटने और डिजिटल साक्षरता को बढ़ावा देने में मोबाइल शिक्षा इकाइयों की प्रभावकारिता को प्रदर्शित किया है।
  • लैंगिक समानता और सामाजिक समावेशन: नीतियों और प्रोत्साहनों के माध्यम से शिक्षा एवं रोजगार में लैंगिक समानता को बढ़ावा देना।
  • मेंटरशिप कार्यक्रम: विभिन्न देशों में WISE (विज्ञान और इंजीनियरिंग में महिलाएँ) जैसे संगठनों द्वारा शुरू किए गए मेंटरशिप कार्यक्रम शैक्षणिक और व्यावसायिक क्षेत्रों में लैंगिक समानता को बढ़ावा देने के लिए एक अनुकरणीय मॉडल के रूप में काम कर सकते हैं।
  • कौशल उत्सव: जर्मनी जैसे देशों ने त्योहारों और मेलों के माध्यम से व्यावसायिक प्रशिक्षण को बढ़ावा देने की प्रभावशीलता का प्रदर्शन किया है, जहाँ व्यक्तियों को अपने व्यावसायिक कौशल प्रदर्शित करने और विविध कॅरियर के अवसरों के बारे में जानने के लिए एक मंच मिलता है।
  • विभिन्न योजनाएँ: भारत में शिक्षा मंत्रालय (MoE) के पास भी मानव संसाधन विकास के लिए विभिन्न योजनाएँ हैं।
    • इनमें से कुछ योजनाओं में मदरसों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने के लिए समग्र शिक्षा योजना (Samagra Shiksha Scheme), मध्याह्न भोजन योजना (Mid-Day Meal Scheme), राष्ट्रीय उपलब्धि सर्वेक्षण (National Achievement Survey- NAS), और अल्पसंख्यक संस्थानों में बुनियादी ढाँचा विकास (Infrastructure Development in Minority Institutes- IDMI) शामिल हैं।
  • मानव विकास से संबंधित विभिन्न अन्य सरकारी पहल हैं- पीएम कौशल विकास योजना (PM Kaushal Vikas Yojana), श्रेयस योजना (SHREYAS Scheme), स्टार्टअप इंडिया (Startup India), नई शिक्षा नीति- 2020 (New Education Policy- 2020), प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना (Pradhan Mantri Jeevan Jyoti Bima Yojana- PMJJBY), इंजीनियरिंग, विज्ञान और प्रौद्योगिकी में महिलाएँ (Women in Engineering, Science, and Technology- WEST) पहल आदि।

समावेशी विकसित भारत को प्राप्त करने के लिए जिन चुनौतियों पर ध्यान देने की आवश्यकता है:

  • बढ़ती जनसंख्या वृद्धि और जनसांख्यिकीय परिवर्तन
    • उदाहरण: वर्ष 2024 में भारत की 33% आबादी 20-29 वर्ष की है, लेकिन वर्ष 2047 तक, युवा और वृद्ध कामकाजी उम्र की आबादी का अनुपात लगभग 28% होगा।

  • बुनियादी ढाँचे, असमानताओं और उच्च लैंगिक अंतर की चुनौतियाँ भी हैं।
    • उदाहरण: ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट, 2023 के अनुसार, लैंगिक समानता के मामले में भारत 146 देशों में से 127वें स्थान पर है।
    • संयुक्त राष्ट्र मानव विकास सूचकांक (Human Development Index- HDI) पर भारत की रैंकिंग 193 देशों में से 134वीं है।
  • अन्य चुनौतियाँ: भारत रोजगार रिपोर्ट 2024 द्वारा उठाई गई चिंताएँ
  • खराब रोजगार स्थितियों की चिंता
    • गैर-कृषि रोजगार की ओर स्थानांतरण मंद हो गया है।
    • स्वरोजगार और अवैतनिक पारिवारिक कार्यों में वृद्धि के लिए बड़े पैमाने पर महिलाएँ जिम्मेदार हैं।
    • युवाओं का रोजगार वयस्कों के रोजगार की तुलना में खराब गुणवत्ता वाला है।
    • मजदूरी और कमाई स्थिर है या घट रही है।
  • महिला कार्यबल की कम भागीदारी: भारत की महिला श्रम बल भागीदारी दर (Labour Force Participation Rate- LFPR) दुनिया में सबसे कम बनी हुई है।
  • उच्च लैंगिक अंतर: वर्ष 2022 में महिलाओं का LFPR (32.8%) पुरुषों (77.2%) की तुलना में 2.3 गुना कम था।
    • भारत का कम LFPR काफी हद तक कम महिला LFPR के कारण है, जो वर्ष 2022 में विश्व औसत 47.3% से काफी कम था, लेकिन दक्षिण एशियाई औसत 24.8% से अधिक था।
    • सुधार देखा गया: महिला LFPR में वर्ष 2000 और 2019 के बीच 14.4% अंक की गिरावट आई लेकिन वर्ष 2019 और 2022 के बीच 8.3% अंक की वृद्धि हुई।
  • युवा रोजगार की चुनौतियाँ: युवा रोजगार में वृद्धि हुई है, लेकिन काम की गुणवत्ता चिंता का विषय बनी हुई है, खासकर योग्य युवा श्रमिकों के लिए।
    • शिक्षित युवाओं के बीच बेरोजगारी दर वर्ष 2000 में 23.9% से बढ़कर वर्ष 2019 में 30.8% हो गई, लेकिन वर्ष 2022 में गिरकर 18.4% हो गई।
    • वर्ष 2022 में कुल बेरोजगार आबादी में बेरोजगार युवाओं की हिस्सेदारी 82.9% थी।  सभी बेरोजगार लोगों में शिक्षित युवाओं की हिस्सेदारी भी वर्ष 2000 में 54.2% से बढ़कर वर्ष 2022 में 65.7% हो गई।
    • वर्ष 2022 में युवाओं के बीच बेरोजगारी दर उन लोगों की तुलना में छह गुना अधिक थी, जिन्होंने माध्यमिक शिक्षा या उच्च शिक्षा (18.4%) पूर्ण कर ली थी और स्नातकों (29.1%) के लिए नौ गुना अधिक थी, जो पढ़ या लिख (3.4%) नहीं सकते थे।
    • पुरुषों (26.4%) की तुलना में शिक्षित युवा महिलाओं (21.4%) में यह पुरुषों (17.5%) की तुलना [विशेषकर महिला स्नातकों के बीच (34.5%)] में अधिक था।

आगे की राह

  • पाँच प्रमुख नीति क्षेत्रों पर ध्यान देना: रोजगार सृजन को बढ़ावा देना; रोजगार की गुणवत्ता में सुधार; श्रम बाजार की असमानताओं को संबोधित करना; कौशल और सक्रिय श्रम बाजार नीतियों को मजबूत करना।
  • निवेश और विनियम: उभरती देखभाल और डिजिटल अर्थव्यवस्थाओं में इनकी आवश्यकता है।
    • नौकरी की सुरक्षा की कमी, अनियमित वेतन और श्रमिकों के लिए अनिश्चित रोजगार की स्थिति गिग अर्थव्यवस्था के लिए महत्त्वपूर्ण चुनौतियाँ पैदा करती हैं।
  • नीतियों में वृद्धि: विशेष रूप से विनिर्माण क्षेत्र में उत्पादक गैर-कृषि रोजगार को बढ़ावा देने के लिए आर्थिक नीतियों की आवश्यकता है, भारत में अगले दशक के दौरान सालाना 7-8 मिलियन युवाओं को श्रम बल में जोड़ने की संभावना है।
  • डिजिटल समर्थन: सूक्ष्म, लघु और मध्यम आकार के उद्यमों को अधिक समर्थन प्रदान करने की आवश्यकता है, विशेष रूप से डिजिटलीकरण और AI जैसे उपकरण और विनिर्माण के लिए क्लस्टर आधारित दृष्टिकोण प्रदान करके।
  • समग्र विकास: जनसंख्या और देश की बुनियादी जीवन स्थितियों में सुधार के लिए आर्थिक विकास, सामाजिक और पर्यावरणीय विकास सहसंबद्ध और महत्त्वपूर्ण हैं।
  • पहुँच (Reach), रेंज (Range) और कारण (Reason) आधारित (3R) नीतियाँ: अमर्त्य सेन के अनुसार, विकास को बढ़ावा देने के लिए, सरकारी नीतियों को 3R पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए:
    • पहुँच (प्राप्त किए जाने वाले कारण की पहुँच)
    • रेंज (उपयोग किए जाने वाले तरीके और साधन)
    • कारण (आगे बढ़ाने की प्राथमिकता)
  • सामाजिक-आर्थिक समावेशन: भारतीय संविधान के अनुच्छेद-14 के तहत लैंगिक अंतर को कम करके और सतत् विकास लक्ष्यों को प्राप्त करके अवसर की समानता सुनिश्चित की जानी चाहिए।
  • सामाजिक बुनियादी ढाँचे का विकास: जीवन की बेहतर गुणवत्ता और कौशल विकास के साथ एक सार्वभौमिक शिक्षा तथा स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली विकसित भारत के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए एक वांछित एवं आवश्यक है।
  • कृषि पर ध्यान: भारत के विकास के लिए कृषि महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि इसमें अभी भी लगभग 45% कामकाजी आबादी शामिल है (वर्ष 2022-23 के PLFS डेटा के अनुसार)। इसलिए, यदि विकसित भारत को एक समावेशी भारत बनाना है, तो उसे अपनी कृषि को अपनी पूरी क्षमता से विकसित करना होगा।

निष्कर्ष

वर्ष 2047 तक विकसित भारत के सपने को हासिल करने के लिए, भारत को उदार बाजार नीतियों, निवेश और नवाचारों के साथ-साथ अनुसंधान तथा नवाचार के लिए एक सहायक पारिस्थितिकी तंत्र बनाने, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा एवं कौशल निर्माण के माध्यम से मानव विकास पर लगातार काम करने की आवश्यकता है। हालाँकि, एकमात्र चेतावनी यह है कि कोई कोविड-19 जैसी महामारी का प्रकोप या कोई बड़ा युद्ध, प्राकृतिक आपदा अथवा राजनीतिक उथल-पुथल न हो। 

News Source: Livemint

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