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सूर्य के क्रोमोस्फीयर का ‘डिफरेंशियल रोटेशन’

Lokesh Pal October 01, 2024 03:28 85 0

संदर्भ

कोडईकनाल सौर वेधशाला (Kodaikanal Solar Observatory) के खगोलविदों ने सूर्य के 100 वर्षों के दैनिक रिकॉर्ड का उपयोग करके पहली बार भूमध्य रेखा से लेकर ध्रुवीय क्षेत्रों तक सूर्य के क्रोमोस्फीयर की घूर्णन गति में परिवर्तन का मानचित्रण किया है। 

क्रोमोस्फीयर (Chromosphere) 

  • क्रोमोस्फीयर, प्लाज्मा की एक पतली परत है, जो सूर्य की दृश्य सतह (फोटोस्फीयर) और कोरोना (सूर्य का ऊपरी वायुमंडल) के बीच स्थित होती है।
  • यह सतह से कम-से-कम 2,000 किमी. (1,200 मील) ऊपर तक फैली हुई है।
  • यह चमकीला लाल दिखाई देता है क्योंकि सूर्य में उपस्थित हाइड्रोजन उच्च तापमान पर लाल रंग का प्रकाश उत्सर्जित करती है।

सूर्य के क्रोमोस्फीयर के मानचित्रण से प्रमुख निष्कर्ष 

  • डिफरेंशियल रोटेशन रेट्स (Differential Rotation Rates): सूर्य भूमध्य रेखा पर तेजी से घूमता है (13.98 डिग्री प्रति दिन) और ध्रुवों की ओर धीमी गति (80 डिग्री अक्षांश पर 10.5 डिग्री प्रति दिन) से घूमता है। 
  • प्लेज (Plages) और सौर नेटवर्क की विशेषताओं का समान घूर्णन: प्लेज (Plages) और सौर नेटवर्क संबंधी आकृतियाँ समान घूर्णन दर प्रदर्शित करती हैं, जो सूर्य के भीतर गहराई में साझा उत्पत्ति का संकेत देती हैं।
  • प्रथम मानचित्रण उपलब्धि (First Mapping Achievement): यह अध्ययन भूमध्य रेखा से ध्रुवों तक सूर्य के घूर्णन का मानचित्रण करने के लिए सौर नेटवर्क सेल का सफलतापूर्वक उपयोग करने वाला पहला अध्ययन है। 

‘डिफरेंशियल रोटेशन’ के बारे में

  • परिभाषा: सूर्य के भूमध्य रेखा और ध्रुवों के बीच घूर्णन गति के अंतर को ‘डिफरेंशियल रोटेशन’ के रूप में जाना जाता है।

  • पृथ्वी बनाम सूर्य का घूर्णन
    • पृथ्वी का एकसमान घूर्णन: पृथ्वी एक दृढ़ पिंड के रूप में घूमती है, जो भूमध्य रेखा से ध्रुवों तक एकसमान घूर्णन गति के साथ प्रत्येक 24 घंटे में एक पूर्ण घूर्णन पूरा करती है।
    • सूर्य का ‘डिफरेंशियल रोटेशन’: प्लाज्मा से बना सूर्य अक्षांश के आधार पर अलग-अलग गति से घूमता है।
      • सूर्य की भूमध्य रेखा, उसके ध्रुवों की तुलना में बहुत तेज घूमती है। 
      • भूमध्य रेखा क्षेत्र को एक चक्कर पूरा करने में केवल 25 दिन लगते हैं, जबकि ध्रुवों को 35 दिन लगते हैं। (आरेख सूर्य के विभेदक घूर्णन को दर्शाता है, जहाँ विभिन्न अक्षांशों पर सतही क्षेत्र अलग-अलग गति से घूमते हैं।)
  • ‘डिफरेंशियल रोटेशन’ का महत्त्व 
    • सूर्य को समझने के लिए, अक्षांश और समय के आधार पर घूर्णन गति में होने वाले परिवर्तन की कठिनाइयों को समझना बहुत आवश्यक है।
    • यह सौर डायनेमो, 11 वर्षीय सौर चक्र और तीव्र सौर गतिविधि की अवधि को संचालित करता है, जो पृथ्वी पर चुंबकीय तूफानों को ट्रिगर कर सकता है।

कोडईकनाल सौर वेधशाला (Kodaikanal Solar Observatory- KoSO)

  • स्थापना: वर्ष 1899 में
  • संचालन: भारत सरकार ने अप्रैल 1971 में खगोल भौतिकी को भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (India Meteorological Department-IMD) से अलग कर दिया। 
    • 1 अप्रैल, 1971 को KoSO को भारतीय खगोल भौतिकी संस्थान (Indian Institute of Astrophysics- IIA), बंगलूरू के अधीन लाया गया।
  • स्थान: तमिलनाडु में पलानी पहाड़ियों के दक्षिणी सिरे पर स्थित, जो अपने साफ आसमान, कम आर्द्रता और न्यूनतम कोहरे के लिए जाना जाता है।
  • मुख्य वैज्ञानिक खोज: एवरशेड प्रभाव (Evershed effect), सूर्य के धब्बों की उपछाया (Penumbra of Sunspots) में गैस का स्पष्ट रेडियल प्रवाह, पहली बार जनवरी 1909 में यहाँ देखा गया था।
  • चर्चा में क्यों: यह वेधशाला अपनी 125वीं वर्षगाँठ मना रही है और यह पूरी दुनिया में ऐसे दो स्थानों में से एक है, जहाँ इतने दीर्घकालिक डेटा का संग्रह किया गया हैं।
  • KoSO में उन्नत उपकरण (Advanced Instruments at KoSO)
    • H-अल्फा टेलिस्कोप: सूर्य की पूर्ण-डिस्क इमेजिंग के लिए उपयोग किया जाता है।
    • व्हाइट लाइट एक्टिव रीजन मॉनिटर (White Light Active Region Monitor-WARM): फोटोस्फीयर और क्रोमोस्फीयर के एक साथ अवलोकन के लिए कैल्शियम और सोडियम फिल्टर से युक्त।

  • ‘डिफरेंशियल रोटेशन’ की खोज: ‘डिफरेंशियल रोटेशन’ की खोज 19वीं शताब्दी में कैरिंगटन (Carrington) द्वारा की गई थी, जिन्होंने देखा था कि सूर्य की दृश्य सतह पर स्थित सौर-कलंक अपने अक्षांश के आधार पर अलग-अलग गति से घूमते हैं।
    • ‘डिफरेंशियल रोटेशन’ के लिए सौरकलंक संबंधी अवलोकन पर निर्भर रहने की चुनौतियाँ
      • सीमित अक्षांश कवरेज: सूर्य के धब्बे 35 डिग्री अक्षांश से ऊपर दिखाई नहीं देते हैं, जिससे ध्रुवों के करीब सूर्य के घूर्णन को मापने में उनका उपयोग सीमित हो जाता है।
      • उच्च अक्षांशों पर कम आवृत्ति: उच्च अक्षांशों पर सूर्य के धब्बे बहुत कम दिखाई देते हैं, जिससे सूर्य की पूर्ण घूर्णन गतिशीलता का अध्ययन करने के लिए डेटा संग्रह दुर्लभ एवं अविश्वसनीय हो जाता है। इसके लिए वैकल्पिक तरीकों की आवश्यकता थी।
      • समयकालिक निर्भरता वाले अध्ययनों के लिए अपर्याप्तता: सीमित और छिटपुट डेटा के कारण, सूर्य के धब्बे-आधारित तरीके समय के साथ ‘डिफरेंशियल रोटेशन’ कैसे बदलता है, इस पर नजर रखने के लिए अपर्याप्त हैं।

भारतीय खगोल भौतिकी संस्थान (Indian Institute of Astrophysics-IIA) का अभिनव दृष्टिकोण

  • सौर प्लेज (Solar Plages) और सौर नेटवर्क का उपयोग: भारतीय खगोल भौतिकी संस्थान (IIA) के खगोलविदों ने कोडईकनाल सौर वेधशाला द्वारा बनाए गए 100 वर्षों के दैनिक सूर्य रिकॉर्ड से सौर प्लेज एवं सौर नेटवर्क का उपयोग, इसके घूर्णन का अध्ययन करने के लिए किया।
    • सौर प्लेज के बारे में: क्रोमोस्फीयर में सूर्य के धब्बों की तुलना में कमजोर चुंबकीय क्षेत्र वाले चमकीले क्षेत्र को सौर प्लेज कहा जाता है।
      • इनका आकार सूर्य के धब्बों से काफी बड़ा, अर्थात् उनके आकार से 3 से 10 गुना तक होता है।

    • सौर नेटवर्क के बारे में: यह कमजोर चुंबकीय क्षेत्रों में स्थित है तथा इसका व्यास लगभग 30,000 किमी. है।
      • व्यक्तिगत सौर कलंकों से थोड़ा बड़ा, परंतु सौरकलंक समूहों से छोटा।
    • सौर प्लेज और सौर नेटवर्क का उपयोग करने का महत्त्व 
      • सनस्पॉट के विपरीत, प्लेज और नेटवर्क विशेषताएँ पूरे सौर चक्र में सूर्य की सतह पर मौजूद रहती हैं।
      • यह निरंतर उपस्थिति खगोलविदों को सूर्य के घूर्णन का अध्ययन करने में सक्षम बनाती है, यहाँ तक कि ध्रुवीय क्षेत्रों में भी, जहाँ सनस्पॉट दुर्लभ हैं।

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