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डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण (DPDP) नियम, 2025

Lokesh Pal November 17, 2025 02:50 16 0

संदर्भ 

केंद्रीय इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण (DPDP) नियम 2025 को अधिसूचित किया है।

  • ये नए नियम, डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम, 2023 को लागू करने के लिए परिचालन रूपरेखा निर्धारित करते हैं।

DPDP  नियम, 2025 की विशेषताएँ: कार्यान्वयन समयरेखा

  • चरणबद्ध रोलआउट (12-18 महीने): सुचारू परिवर्तन की अनुमति देने के लिए, ये नियम 18 महीने की चरणबद्ध अनुपालन समय-सीमा निर्दिष्ट करते हैं, जहाँ मुख्य दायित्व चरणों में लागू होते हैं:
    • उदाहरण के लिए, सहमति प्रबंधक ढाँचा, DPO पारदर्शिता नियम, बच्चों का डेटा अनुपालन, अवधारण नियम।

श्रेणी प्रावधान
तत्काल प्रभाव से लागू होने वाले प्रावधान 
  • RTI अधिनियम संशोधन तत्काल प्रभाव से लागू- DPDP अधिनियम की धारा 44(3)
    • धारा 44(3): यह RTI अधिनियम की धारा 8(1)(j) में संशोधन करता है, जिससे प्रकट की जा सकने वाली सूचनाओं का दायरा सीमित हो जाता है।
    • छूट: सरकार और उसकी एजेंसियों को सब्सिडी तथा लाभ प्रदान करने के उद्देश्य से डेटा से संबंधित कुछ अनुपालनों से छूट दी गई है। ‘सांख्यिकीय’ उद्देश्यों के लिए एकत्रित डेटा भी छूट प्राप्त है।
  • भारतीय डेटा संरक्षण बोर्ड (DPBI) का कानूनी रूप से गठन और 4 सदस्यीय संरचना अधिसूचित
    • केंद्र सरकार ने DPBI की स्थापना की है, जिसके प्रमुख कार्य अनुपालन की निगरानी, ​​दंड लगाना, डेटा उल्लंघनों की स्थिति में डेटा न्यासियों को निर्देश देना और शिकायतों की सुनवाई करना है।
    • DPBI, इस अधिनियम के कार्यान्वयन की देख-रेख करेगा और इलेक्ट्रॉनिक्स तथा सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय का एक अधीनस्थ कार्यालय होगा।
    • इस निकाय में चार सदस्य होंगे।
    • सुनवाई और प्रक्रियाएँ मुख्यतः डिजिटल होंगी।
    • बोर्ड के सदस्यों की नियुक्ति दो वर्षों के लिए की जाएगी और वे पुनर्नियुक्ति के पात्र होंगे।
    • निर्णयों के विरुद्ध अपील दूरसंचार विवाद निपटान और अपीलीय न्यायाधिकरण में की जा सकेगी।
प्रावधान लगभग 12 महीनों के भीतर लागू किए जाएँगे (नवंबर 2026 तक)
  • सभी संगठनों के लिए मुख्य परिचालन दायित्व: नियमों के अनुसार, प्रत्येक डेटा फिड्यूशरी (वे संस्थाएँ जो यह तय करती हैं कि आपके डेटा को कैसे संसाधित किया जाए) को डेटा ब्रीच (डेटा उल्लंघन) को रोकने के लिए उचित सुरक्षा उपाय लागू करने होंगे। इसमें शामिल हैं:-
    • व्यक्तिगत डेटा का एन्क्रिप्शन, मास्किंग, टोकनाइजेशन। व्यक्तिगत डेटा का प्रबंधन करने वाली प्रणालियों के लिए कठोर पहुँच नियंत्रण।
    • अनधिकृत पहुँच का पता लगाने के लिए लॉगिंग और निगरानी।
    • किसी व्यवधान या उल्लंघन के बाद निरंतरता सुनिश्चित करने के लिए डेटा बैकअप।
    • डेटा प्रोसेसर के साथ अनुबंधों में अनिवार्य सुरक्षा खंड।
  • डेटा फिड्युशरी को अपने डेटा सुरक्षा अधिकारी (DPO) का विवरण प्रकाशित करना होगा।
  • सहमति प्रबंधक: DPDP नियम, 2025 के कार्यान्वयन की निगरानी के लिए सहमति प्रबंधक को पंजीकृत किया जाना चाहिए।
    • उपयोगकर्ता सहमति के प्रबंधन के लिए जिम्मेदार संस्थाओं को सटीक सत्यापन सुनिश्चित करना होगा और उपयोगकर्ताओं को सहमति वापस लेने की व्यवस्था प्रदान करनी होगी। उन्हें उन सभी उपयोगकर्ताओं का विस्तृत रिकॉर्ड भी रखना होगा, जिन्होंने सहमति दी है या वापस ली है।
  • डेटा उल्लंघन की सूचना: डेटा उल्लंघन की स्थिति में, डेटा न्यासियों को प्रभावित उपयोगकर्ताओं को तुरंत सूचित करना चाहिए तथा यह बताना चाहिए कि क्या हुआ, संभावित जोखिम क्या हैं, क्या कदम उठाए गए तथा किससे संपर्क करना है।
    • उन्हें 72 घंटों के भीतर डेटा संरक्षण बोर्ड को भी सूचित करना होगा।
  • सत्यापन योग्य अभिभावकीय सहमति: यह सुनिश्चित करने के लिए उपयुक्त तकनीकी और संगठनात्मक उपाय अपनाए जाएँगे कि बच्चे के किसी भी व्यक्तिगत डेटा के प्रसंस्करण से पहले अभिभावकीय सहमति प्राप्त कर ली जाए।
    • डेटा फिड्युशरीज को स्वेच्छा से प्रदान की गई पहचान और आयु संबंधी जानकारी या उससे संबंधित एक वर्चुअल टोकन पर निर्भर रहना होगा, जो कानून द्वारा सौंपी गई संस्था द्वारा जारी किया जाता है।
  • उपयोगकर्ता अधिकार प्रक्रियाओं के अनुपालन की शुरुआत
    • DPDP ढाँचा व्यक्तियों को अपने व्यक्तिगत डेटा तक पहुँचने, उसे सही करने, अपडेट करने या मिटाने तथा उनकी ओर से इन अधिकारों का प्रयोग करने के लिए किसी अन्य व्यक्ति को नामित करने के अधिकारों को सुदृढ़ करता है। 
प्रावधानों को लगभग 18 महीनों के भीतर लागू किया जाएगा (मई 2027 तक)
  • महत्त्वपूर्ण डेटा फिड्यूशरीज (बड़ी तकनीकी कंपनियाँ) के लिए पूर्ण अनुपालन: स्वतंत्र ऑडिट, डेटा सुरक्षा प्रभाव आकलन, जोखिम-आधारित उचित परिश्रम।
  • डेटा संग्रहण: डेटा को एक वर्ष से अधिक समय तक संगृहीत नहीं किया जाना चाहिए, जब तक कि कानून के तहत अनुपालन के लिए आवश्यक न हो।
    • अकाउंट/प्लेटफॉर्म के निरंतर उपयोग पर रोक लगाते हुए व्यक्तिगत डेटा को मिटाने से 48 घंटे पहले उपयोगकर्ताओं को सूचित किया जाना चाहिए।
  • DPBI शिकायत-निपटान और दंड कार्यप्रवाह का पूर्ण सक्रियण।
    • दंड और प्रवर्तन: डेटा संरक्षण नियमों का पालन न करने पर 250 करोड़ रुपये तक का जुर्माना हो सकता है तथा बार-बार उल्लंघन करने वालों के लाइसेंस निलंबित या रद्द किए जा सकते हैं।
  • डेटा स्थानीयकरण: इस प्रावधान के अनुसार, कुछ व्यक्तिगत डेटा भारत में ही संगृहीत किया जाना चाहिए और उसे विदेश में स्थानांतरित नहीं किया जा सकता है।
    • एक सरकारी समिति यह निर्धारित करेगी कि किस प्रकार के डेटा (जैसे- स्वास्थ्य या वित्तीय डेटा) को देश के बाहर स्थानांतरित नहीं किया जा सकता है।
  • मूल्यांकन और लेखा परीक्षा: महत्त्वपूर्ण डेटा न्यासियों को इस अधिनियम के प्रावधानों का प्रभावी पालन सुनिश्चित करने के लिए समय-समय पर ‘डेटा संरक्षण प्रभाव मूल्यांकन’ और लेखा परीक्षा करनी होगी।

DPDP अधिनियम, 2023 की संक्षिप्त पृष्ठभूमि

  • वर्ष 2017 में सर्वोच्च न्यायालय का गोपनीयता पर निर्णय (के.एस. पुट्टास्वामी मामला): सर्वोच्च न्यायालय ने सर्वसम्मति से माना कि अनुच्छेद-21 के अंतर्गत निजता का अधिकार एक मौलिक अधिकार है।
    • न्यायालय ने सरकार को भारत के लिए एक व्यापक डेटा सुरक्षा ढाँचा तैयार करने का निर्देश दिया।
  • वर्ष 2017 में न्यायमूर्ति बी.एन. श्रीकृष्ण समिति का गठन: सरकार ने डेटा सुरक्षा मुद्दों का अध्ययन करने और एक आधुनिक गोपनीयता कानून का मसौदा तैयार करने के लिए न्यायमूर्ति बी.एन. श्रीकृष्ण समिति का गठन किया।
    • इस समिति ने अपनी रिपोर्ट, ‘एक स्वतंत्र और निष्पक्ष डिजिटल अर्थव्यवस्था’, के साथ-साथ व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक, 2018 का मसौदा भी प्रस्तुत किया।
  • वर्ष 2019 में व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक संसद में प्रस्तुत किया गया: समिति की सिफारिशों के आधार पर, व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक, 2019 प्रस्तुत किया गया।
    • इसे विस्तृत समीक्षा के लिए संयुक्त संसदीय समिति (JPC) को भेजा गया।
    • JPC ने अगले दो वर्षों में कई बदलावों का सुझाव दिया।
  • वर्ष 2022 में विधेयक वापस लिया गया; नया मसौदा जारी किया गया: अगस्त 2022 में, भारत सरकार ने एक सरल और अधिक व्यावहारिक ढाँचा बनाने के लिए वर्ष 2019 के विधेयक को वापस ले लिया।
    • केंद्रीय इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने उद्योग, नागरिक समाज और संस्थानों से प्रतिक्रिया प्राप्त करते हुए, सार्वजनिक परामर्श के लिए डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक, 2022 का मसौदा प्रकाशित किया।
  • वर्ष 2023 का DPDP अधिनियम का अधिनियमन: वर्ष 2022 के मसौदे का एक परिष्कृत संस्करण संसद में प्रस्तुत किया गया और 11 अगस्त, 2023 को पारित किया गया।
    • डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम, 2023 भारत का पहला समर्पित डिजिटल गोपनीयता कानून बन गया, जिसमें निम्नलिखित स्थापित किए गए:-
      • व्यक्तियों के अधिकार (डेटा प्रिंसिपल)
      • डेटा सँभालने वाली संस्थाओं के दायित्व (डेटा फिड्यूशरीज)
      • अनुपालन न करने पर दंड
      • डेटा संरक्षण बोर्ड का ढाँचा
      • सहमति, उद्देश्य सीमा, सुरक्षा उपाय और जवाबदेही के नियम।

  • डेटा प्रिंसिपल: वह व्यक्ति जिससे व्यक्तिगत डेटा संबंधित है, अर्थात् वह व्यक्ति जिसका डेटा एकत्र या संसाधित किया जा रहा है।
  • डेटा फिड्यूशियरी: कोई भी संस्था (कंपनी, संगठन या व्यक्ति) जो व्यक्तिगत डेटा के प्रसंस्करण के उद्देश्य और तरीके तय करती है।

डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम, 2023 के बारे में

  • वर्ष 2023 में, भारत ने व्यक्तिगत डेटा की सुरक्षा के लिए डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम लागू किया।
  • यह अधिनियम डिजिटल व्यक्तिगत डेटा की सुरक्षा के लिए एक व्यापक ढाँचा स्थापित करता है, जिसमें ऐसे डेटा का प्रबंधन करने वाली संस्थाओं (डेटा फिड्यूशरीज) के दायित्वों और व्यक्तियों (डेटा प्रिंसिपल) के अधिकारों तथा कर्तव्यों को निर्धारित किया गया है।
  • पृष्ठभूमि: सर्वोच्च न्यायालय ने न्यायमूर्ति के.एस. पुट्टास्वामी बनाम भारत संघ, 2017 के ऐतिहासिक मामले में भारतीय संविधान के तहत निजता के अधिकार को एक मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता दी।
  • सरल डिजाइन का अनुसरण करता है: सरल, सुलभ, तर्कसंगत और कार्यान्वयन योग्य, समझने और अनुपालन में आसानी के लिए सरल भाषा और चित्रों का उपयोग करना।
  • यह अधिनियम सात मुख्य सिद्धांतों द्वारा निर्देशित है: सहमति और पारदर्शिता, उद्देश्य सीमा, डेटा न्यूनीकरण, सटीकता, भंडारण सीमा, सुरक्षा उपाय और जवाबदेही।

डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम, 2023 के प्रमुख प्रावधान

विशेष विवरण विवरण
प्रयोज्यता
  • भारत के भीतर डिजिटल व्यक्तिगत डेटा के प्रसंस्करण पर लागू।
  • भारत के बाहर प्रसंस्करण पर लागू, यदि भारत में व्यक्तियों को वस्तुएँ/सेवाएँ प्रदान की जाती हैं।
  • यह व्यक्तिगत या घरेलू उपयोग, या डेटा प्रिंसिपल द्वारा या कानूनी दायित्व के तहत सार्वजनिक रूप से उपलब्ध कराए गए डेटा पर लागू नहीं होता है।
वैध प्रसंस्करण और सहमति
  • प्रसंस्करण केवल वैध उद्देश्यों के लिए स्वतंत्र, सूचित और स्पष्ट सहमति से ही अनुमत है। सहमति कभी भी वापस ली जा सकती है।
  • वैध उपयोगों (सरकारी लाभ, चिकित्सा आपात स्थिति, न्यायालय के आदेश, आदि) के लिए सहमति की आवश्यकता नहीं है।
  • बच्चों और दिव्यांग व्यक्तियों के लिए, सहमति कानूनी अभिभावक से प्राप्त होनी चाहिए।
डेटा प्रिंसिपल के अधिकार
  • प्रसंस्करण के बारे में जानकारी प्राप्त करने का अधिकार।
  • व्यक्तिगत डेटा में सुधार, अपडेट करने और विलोपन का अधिकार।
  • शिकायत निवारण का अधिकार।
  • मृत्यु/अक्षमता की स्थिति में अधिकारों का प्रयोग करने के लिए किसी अन्य व्यक्ति को नामित करने का अधिकार।
  • अनावश्यक शिकायतें दर्ज न करने या झूठी जानकारी न देने का कर्तव्य।
डेटा फिड्युशरी के दायित्व
  • तकनीकी और संगठनात्मक सुरक्षा उपायों को लागू करना।
  • सटीकता बनाए रखना और सुनिश्चित करना कि डेटा का उपयोग केवल निर्दिष्ट उद्देश्य के लिए ही किया जाए।
  • उद्देश्य पूरा होने पर डेटा मिटा देना, जब तक कि कानूनी रूप से इसे बनाए रखना आवश्यक न हो।
महत्त्वपूर्ण डेटा फिड्युशरी (SDF)
  • केंद्र सरकार संसाधित डेटा की मात्रा और संवेदनशीलता, डेटा प्रिंसिपल के अधिकारों के लिए जोखिम, भारत की संप्रभुता और अखंडता पर संभावित प्रभाव, राज्य की सुरक्षा, चुनावी लोकतंत्र और सार्वजनिक व्यवस्था के लिए जोखिम जैसे कारकों के आधार पर किसी भी डेटा फिड्यूशरी को SDF के रूप में अधिसूचित कर सकती है।
  • SDF के अतिरिक्त दायित्व भी हैं, जिनमें एक डेटा सुरक्षा अधिकारी और एक स्वतंत्र डेटा ऑडिटर की नियुक्ति और प्रभाव आकलन करना शामिल है।
दंड
  • कर्तव्यों के उल्लंघन, सुरक्षा संबंधी चूक, उपयोगकर्ता अधिकारों की पूर्ति न करने और बच्चों के डेटा उल्लंघन के लिए वित्तीय दंड।
  • दंडों को गंभीरता और इकाई के आकार के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है।

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कार्यान्वयन चुनौतियाँ

  • सहमति को परिभाषित करना और लागू करना: सहमति की अवधारणा को सटीक परिभाषा की आवश्यकता होती है।
    • उदाहरण के लिए, यदि कोई व्यक्ति वित्तीय लेन-देन डेटा के लिए सहमति वापस लेता है, तो इससे RBI जैसी नियामक संस्थाओं को लेन-देन की निगरानी करने में बाधा आ सकती है, जिससे कर चोरी जैसी समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं।
    • ऐसी अस्पष्टताएँ फिनटेक कंपनियों और अन्य डिजिटल प्लेटफॉर्म के संचालन को बाधित कर सकती हैं।
    • मजबूत सहमति तंत्र सुनिश्चित करना: स्पष्ट, स्वतंत्र सहमति नोटिस और वापसी प्रणालियों के लिए सभी ऐप्स और प्लेटफॉर्म पर UX प्रवाह को फिर से डिजाइन करने की आवश्यकता है।
      • डिजिटल साक्षरता कम होने के कारण कई उपयोगकर्ता अभी भी सहमति को नहीं समझ पाते, जिससे सूचित अनुमति का उद्देश्य विफल हो जाता है।
  • व्यक्तिगत अधिकारों और नियामक आवश्यकताओं में संतुलन
    • व्यक्ति के निजता के अधिकार, जो स्वतंत्रतापूर्वक जीवन के अधिकार के अनुच्छेद-21 का एक हिस्सा है और नियामक निगरानी की आवश्यकता के बीच एक मूलभूत संघर्ष मौजूद है।
    • क्रेडिट ब्यूरो, दूरसंचार कंपनियाँ और उपयोगिता प्रदाता जैसे संगठन वैध संचालन तथा नियामक अनुपालन के लिए महत्त्वपूर्ण व्यक्तिगत डेटा एकत्र करते हैं।
  • व्यापक सरकारी छूट: DPDP अधिनियम और नियम सरकारी एजेंसियों को सब्सिडी, लाभ, कानून प्रवर्तन और सांख्यिकी जैसे कारणों से कई दायित्वों से छूट देते हैं।
    • इससे अनियंत्रित सरकारी निगरानी, ​​जवाबदेही की कमी और नागरिकों के लिए कमजोर सुरक्षा की चिंताएँ उत्पन्न होती हैं।
  • RTI संशोधन के बाद पारदर्शिता में कमी: RTI अधिनियम की धारा 8(1)(j) में संशोधन से उस जानकारी तक पहुँच कम हो जाती है, जिसका खुलासा पहले तब किया जा सकता था, जब जनहित गोपनीयता से अधिक महत्त्वपूर्ण था।
    • इससे पारदर्शिता कमजोर हो सकती है, खोजी पत्रकारिता सीमित हो सकती है और भ्रष्टाचार या प्रशासनिक दुरुपयोग को उजागर करना मुश्किल हो सकता है।
  • सीमा पार डेटा स्थानांतरण का प्रबंधन: केंद्र सरकार के पास अन्य देशों, विशेष रूप से शत्रुतापूर्ण माने जाने वाले देशों को व्यक्तिगत डेटा के स्थानांतरण को प्रतिबंधित करने की शक्ति है।
    • चूँकि कई डिजिटल प्लेटफॉर्म विभिन्न देशों में क्लाउड इन्फ्रास्ट्रक्चर और मुख्यालय वाली बहुराष्ट्रीय कंपनियों का उपयोग करते हैं, इसलिए अचानक लागू किया गया प्रतिबंध बेहद विघटनकारी हो सकता है।
  • स्टार्ट-अप्स और MSME पर अनुपालन का बोझ: चरणबद्ध कार्यान्वयन के बावजूद, ऑडिट, DPO नियुक्तियाँ, उल्लंघन की रिपोर्टिंग, अभिभावकों की सहमति का सत्यापन और कड़े सुरक्षा नियंत्रण जैसी जरूरतें छोटी फर्मों पर दबाव डाल सकती हैं।
    • तकनीकी क्षमता की कमी अनजाने में गैर-अनुपालन और दंड का कारण बन सकती है।
  • अनाम डेटा और AI जोखिम: हालाँकि डेटा को अनाम बनाने का उद्देश्य व्यक्तिगत पहचान की रक्षा करना है, लेकिन आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) का उदय एक नया खतरा उत्पन्न करता है।
    • AI संभावित रूप से छद्म नाम या अनाम डेटा से व्यक्तियों की पुनः पहचान कर सकता है, जिससे फर्जी प्रोफाइल बन सकते हैं या गलत सूचना तथा सार्वजनिक अव्यवस्था फैल सकती है।
  • डेटा उल्लंघन प्रोटोकॉल में अस्पष्टता: वर्तमान में अधिनियम में डेटा उल्लंघन की स्थिति में कार्रवाई के लिए विशिष्ट प्रावधानों का अभाव है।
  • मुकदमेबाजी और प्रावधानों के दुरुपयोग को कम करना: अधिनियम विवादों को सुलझाने के लिए एक डेटा संरक्षण बोर्ड की स्थापना करता है।
    • ऐसे अनावश्यक मामलों का खतरा है, जहाँ व्यक्ति, कंपनियों को परेशान करने के लिए प्रावधानों का दुरुपयोग कर सकते हैं।
  • डिजिटल सुरक्षा बोर्ड की क्षमता: हालाँकि DPBI ‘डिजिटल-प्रथम’ है, लेकिन इसका व्यावहारिक कामकाज नियुक्तियों, प्रशिक्षण, स्टाफिंग और सिस्टम की तैयारी पर निर्भर करता है।
    • यदि बोर्ड पर कार्यभार अधिक हो जाता है (जैसे- कई अर्द्ध-न्यायिक निकाय) तो इससे शिकायत निवारण में देरी हो सकती है।

आगे की राह 

  • वैश्विक उदाहरण: भारत, सिंगापुर के डेटा संरक्षण अधिनियम से सीख सकता है, जिसने चरणबद्ध तरीके से बदलाव लागू किए, क्षेत्र-विशिष्ट नियम स्थापित किए और संगठनात्मक जवाबदेही पर जोर दिया।
  • उपयोगकर्ता-केंद्रित डिजाइन: DPDP अधिनियम की वास्तविक सफलता के लिए, इसके नियमों में उपयोगकर्ता-केंद्रित नियम शामिल होने चाहिए।
    • इसके लिए व्यवसायों, उपयोगकर्ताओं और नियामकों को निरंतर संवाद और अनुकूलन के माध्यम से शामिल करते हुए एक समन्वित प्रयास की आवश्यकता है।
    • तेजी से बदलते तकनीकी परिदृश्य को देखते हुए नियमों का नियमित अद्यतन आवश्यक होगा।
  • क्षेत्र-विशिष्ट नियमों के माध्यम से स्पष्ट मार्गदर्शन: सरकार को वित्त, स्वास्थ्य, शिक्षा-तकनीक, ऑनलाइन बाजार और दूरसंचार जैसे क्षेत्रों के लिए विस्तृत, व्यावहारिक दिशा-निर्देश जारी करने चाहिए।
    • इससे भ्रम कम होता है और कंपनियों को अनुपालन को सही ढंग से लागू करने में मदद मिलती है।
  • मुकदमेबाजी को कम करना: विवाद समाधान तंत्र पर अत्यधिक बोझ और संभावित पतन को रोकने के लिए, नियमों में त्वरित डिजिटल न्यायाधिकरण स्थापित करने और अधिनियम के प्रावधानों के दुरुपयोग के लिए दंड लागू करने पर विचार किया जाना चाहिए।
    • इससे यह सुनिश्चित होगा कि केवल गंभीर शिकायतें ही बोर्ड तक पहुँचें।
  • स्टार्ट-अप्स और MSME के लिए क्षमता निर्माण: इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय और उद्योग निकायों (NASSCOM, DSCI) को अनुपालन टेंपलेट, नमूना नोटिस, सरलीकृत चेकलिस्ट और साइबर सुरक्षा टूलकिट तैयार करने चाहिए।
    • इससे यह सुनिश्चित होगा कि छोटी कंपनियों पर अत्यधिक बोझ न पड़े।
  • सरकारी छूटों के संबंध में मजबूत सुरक्षा उपाय: छूटों के साथ स्पष्ट मानक संचालन प्रक्रियाएँ, स्वतंत्र निगरानी और सरकारी एजेंसियों के लिए अनिवार्य ऑडिट भी होने चाहिए।
    • इससे यह सुनिश्चित होगा कि राज्य द्वारा संचालित डेटा प्रोसेसिंग के दौरान भी गोपनीयता सुरक्षित रहे।
  • डेटा उल्लंघन प्रोटोकॉल का स्पष्टीकरण: नियमों में स्पष्ट रूप से परिभाषित किया जाना चाहिए कि डेटा उल्लंघन क्या है, उल्लंघनों की घोषणा करने में भारतीय कंप्यूटर आपातकालीन प्रतिक्रिया दल (CERT-In) जैसी एजेंसियों की भूमिकाएँ निर्धारित की जानी चाहिए और आपातकालीन प्रावधानों की रूपरेखा तैयार की जानी चाहिए।
    • इसके अलावा, जिन व्यक्तियों के डेटा से छेड़छाड़ की गई है, उनके लिए और जनता का विश्वास बनाए रखने के लिए संगठनात्मक प्रतिक्रियाओं के लिए स्पष्ट दिशा-निर्देशों की आवश्यकता है।
  • अनाम डेटा और एआई जोखिमों का समाधान: नियमों में AI युग में अनाम डेटा के उपयोग के लिए इस तरह के दुरुपयोग को रोकने के लिए मजबूत स्पष्टीकरण तथा विनियमन प्रदान किया जाना चाहिए।
  • हितधारकों में सामंजस्य: प्रभावी डेटा सुरक्षा के लिए व्यवसायों, RBI, SEBI और UIDAI जैसे नियामकों तथा उपभोक्ताओं के बीच समन्वित प्रयास आवश्यक हैं।
    • नियमों में स्पष्टता और एकरूपता को बढ़ावा देना चाहिए तथा विभिन्न संस्थाओं पर अनुपालन का बोझ कम करने के लिए अद्यतन दिशा-निर्देश प्रदान करने चाहिए।
  • जन जागरूकता और डिजिटल साक्षरता अभियान: नागरिकों को सहमति, अधिकार, शिकायत निवारण तंत्र और डेटा दुरुपयोग के जोखिमों को समझना चाहिए।
    • सरकार को प्लेटफॉर्म के साथ मिलकर बहुभाषी जागरूकता अभियान शुरू करने चाहिए।
  • डिजाइन द्वारा गोपनीयता और डेटा न्यूनीकरण को प्रोत्साहित करना: कंपनियों को उत्पाद डिजाइन के दौरान गोपनीयता सुविधाओं को शामिल करना चाहिए, जैसे न्यूनतम डेटा संग्रह, डिफ़ॉल्ट रूप से एन्क्रिप्शन, कम डेटा प्रतिधारण और उद्देश्य सीमा।
    • इससे लंबे समय में अनुपालन का बोझ कम होता है।

निष्कर्ष

DPDP नियमों का प्रभावी क्रियान्वयन भारत को गोपनीयता का सम्मान करने वाली डिजिटल अर्थव्यवस्था बनाने का अवसर प्रदान करता है, लेकिन इसकी सफलता अंततः पारदर्शी कार्यान्वयन, संस्थागत क्षमता और उभरती हुई तकनीकी चुनौतियों के प्रति निरंतर अनुकूलन पर निर्भर करेगी।

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