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डिजिटल संप्रभुता (Digital Sovereignty)

Samsul Ansari January 06, 2024 04:11 247 0

संदर्भ

कृत्रिम बुद्धिमत्ता (Artificial Intelligence-AI) के क्षेत्र में हो रहे भविष्य के विकास और अनुप्रयोगों के साथ, क्षेत्रीय संप्रभुता का सिद्धांत डिजिटल संप्रभुता (Digital Sovereignty) में रूपांतरित हो रहा है।

डिजिटल संप्रभुता के बारे में

  • संप्रभुता का अर्थ: संप्रभुता का अर्थ है कि राज्य किसी निर्धारित क्षेत्र या सीमा के अंदर सर्वोच्च और एकमात्र प्राधिकारी है तथा यह किसी भी आंतरिक प्रतिस्पर्द्धी या अवांछित बाहरी प्रभाव के अधीन नहीं होता है।
  • डिजिटल संप्रभुता: हालाँकि इसकी कोई सार्वभौमिक परिभाषा नहीं है, डिजिटल संप्रभुता एक व्यापक शब्द है जो डिजिटल संपत्तियों, जैसे डाटा, सामग्री या डिजिटल बुनियादी ढाँचे या उन संपत्तियों के उपयोग पर नियंत्रण रखने की क्षमता को संदर्भित करता है।
    • डिजिटल संप्रभुता का उपयोग अक्सर एक व्यवस्थित, मूल्य संचालित, विनियमित, तर्कसंगत और सुरक्षित डिजिटल क्षेत्र का वर्णन करने के लिए किया जाता है।
    • माना जाता है कि यह व्यक्तिगत अधिकारों और स्वतंत्रता, सामूहिक तथा संरचनात्मक सुरक्षा, राजनीतिक एवं कानूनी प्रवर्तन व निष्पक्ष आर्थिक प्रतिस्पर्द्धा की बहुआयामी समस्याओं का समाधान करेगा।

डिजिटल संप्रभुता के बढ़ते महत्त्व के कारण

  • बढ़ता डिजिटलीकरण: यह अर्थशास्त्र, राजनीति और वैश्विक मामलों में शक्ति संतुलन को आकार देने में एक प्रमुख प्रेरक है।
    • बाजार के अनुमान के अनुसार, वैश्विक डिजिटल परिवर्तन बाजार का आकार वर्ष 2020 में लगभग $470 बिलियन से बढ़कर वर्ष 2025 तक लगभग $1000 बिलियन तक पहुँचने का अनुमान है।
  • कॉरपोरेट प्रशासन का उदय (Rise of Corporate Governance): AI प्रशासन, सीमा पार और बहुस्तरीय प्रशासन कॉर्पोरेट प्रशासन के मूल में है, तथा लोगों एवं राष्ट्रों पर संप्रभुता अब संचित गोपनीय डेटा पर संप्रभुता में बदल रही है।
  •  वैश्विक डेटा प्रशासन : इसका विभिन्न देशों और उद्योग जगत के दिग्गजों द्वारा विरोध किया जा रहा है, जो अपने रणनीतिक हितों को लाभ पहुँचाने के लिए नियमों को प्रभावित करना चाहते हैं।
    • भारत ने विदेश नीति के दृष्टिकोण में स्वयं को ‘डेटा संप्रभुता’ के सिद्धांत द्वारा चल रही लड़ाई के केंद्र में स्थापित किया है। डेटा संप्रभुता का सिद्धांत किसी देश की भौतिक सीमाओं के भीतर नागरिकों द्वारा उत्पन्न डेटा पर संप्रभु नियंत्रण के प्रसारण का समर्थन करता है।
  • डिजिटल संप्रभुता पर प्रतिस्पर्द्धा: पिछले एक दशक में, डिजिटल संप्रभुता डिजिटल मुद्दों पर नीतिगत चर्चाओं में एक केंद्रीय तत्त्व बन गई है, जो सत्तावादी और लोकतांत्रिक (Authoritarian and Democratic) दोनों देशों में समान रूप से लोकप्रिय है।
  • डिजिटल अर्थव्यवस्था का उदय: भारत डिजिटल अर्थव्यवस्था के विकास के साथ, साइबर स्पेस के आर्थिक लाभों पर अपना अधिक दावा करना चाहता है। इस उभरते परिदृश्य में, डिजिटल संप्रभुता से आशय एक देश वहाँ उपयोग की जाने वाली तकनीक और सेवाओं को कैसे नियंत्रित तथा उपयोग करता है।
    • उदाहरण के लिए, क्लाउड सेवाएँ डेटा का उपयोग, स्थानांतरण और भंडारण करने में सक्षम होने के लिए तेजी से महत्त्वपूर्ण होती जा रही हैं। हालाँकि, क्लाउड कंप्यूटिंग सेवाओं में संगृहीत डेटा एक से अधिक देशों के कानूनों के अधीन हो सकता है, ऐसे में देशों के बीच कई घरेलू डेटा गोपनीयता कानूनों का पालन एक संगठन के लिये अत्यधिक जटिल हो सकता है।
  • अन्य कारण
    • सरकारी तंत्र द्वारा निगरानी के बारे में चिंताएँ वर्ष 2013 के स्नोडेन के खुलासे के बाद और भी बढ़ गई ।
    • विदेशी अवसंरचना और प्रणालियों पर निर्भरता के स्तर को लेकर चिंताएँ।
    • ऑनलाइन क्षति से जुड़ी चिंताएँ।

स्नोडेन खुलासे (Snowden Revelations):

  • यह घोटाला वर्ष 2013 में सामने आया, जब एक अखबार ने बताया कि अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी (National Security Agency-NSA) लाखों अमेरिकियों के टेलीफोन रिकॉर्ड एकत्र कर रही थी।
  • पूर्व CIA (Central Intelligence Agency) सिस्टम विश्लेषक एडवर्ड स्नोडेन ने अमेरिका और ब्रिटेन के निगरानी कार्यक्रमों को सार्वजनिक किया।
  • अखबार ने अदालत के उस गुप्त आदेश को प्रकाशित किया, जिसमें दूरसंचार कंपनी वेरिजॉन (Verizon) को अपने सभी टेलीफोन डेटा को लगातार NSA को सौंपने का निर्देश दिया गया था।
  • उस रिपोर्ट के बाद यह खुलासा हुआ कि NSA ने प्रिज्म नामक निगरानी कार्यक्रम में ऑनलाइन संचार को ट्रैक करने के लिए फेसबुक, गूगल, माइक्रोसॉफ्ट और याहू समेत नौ इंटरनेट फर्मों के सर्वर में सीधे टैप किया था।
  • ब्रिटेन की इलेक्ट्रॉनिक जासूसी एजेंसी गवर्नमेंट कम्युनिकेशन हेडक्वार्टर (GCHQ) पर भी प्रिज्म के जरिए ऑनलाइन कंपनियों के बारे में जानकारी इकट्ठा करने का आरोप लगाया गया था।

भारत और डिजिटल संप्रभुता

  • भारत की डिजिटल संप्रभुता दृष्टि के तीन स्तंभ हैं:
    • बहुराष्ट्रीय निजी हितधारकों की प्रथाओं पर नियामक निगरानी बनाए रखकर  आर्थिक वृद्धि और विकास के एक प्रमुख उपकरण के रूप में डेटा का लाभ उठाने पर जोर दिया गया।
    • डिजिटल व्यापार नियमों के असमान निर्माण को रोकने के लिए वैश्विक कूटनीतिक कार्रवाई द्वारा समर्थित एक घरेलू प्रयास।
    • द्विपक्षीय सुरक्षा विवादों में डेटा सुरक्षा का लाभ उठाना।
  • वैश्विक डेटा गवर्नेंस: विश्व व्यापार संगठन (World Trade Organization-WTO) और अन्य मंचों पर बहुपक्षीय कूटनीति के माध्यम से, भारत ने स्वयं को डेटा गवर्नेंस पर वैश्विक लड़ाई के केंद्र में रखा है।
    • भारत ने WTO की बहसों में मजबूत रुख अपनाया है, जिसमें यह दावा भी शामिल है कि WTO के सर्वसम्मति संचालित मॉडल के बाहर डेटा प्रशासन पर कोई भी नियम बनाने से उभरती अर्थव्यवस्थाओं की आवाज कमजोर हो जाएगी तथा उनके नागरिकों के सर्वोत्तम हितों को बढ़ावा देने वाले नियम बनाने के उनके संप्रभु अधिकार को दबा दिया जाएगा।
    • विदेश नीति के दृष्टिकोण में एक महत्त्वपूर्ण स्तंभ डेटा संप्रभुता का सिद्धांत है, जो किसी देश की भौतिक सीमाओं के भीतर नागरिकों द्वारा उत्पन्न डेटा पर संप्रभु अधिकार के दावे का समर्थन करता है।

डिजिटल संप्रभुता से जुड़ी चुनौतियाँ

  • वैचारिक टकराव: वैश्विक समुदाय के लिए डिजिटल दुनिया के मानदंड तैयार करने के लिए देश  दो वैचारिक समूहों में विभाजित है।
    • पहला समूह जिसका नेतृत्व अमेरिका कर रहा है, अबाध डेटा प्रवाह में विश्वास रखता है और सरकार के हस्तक्षेप तथा अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकारों के ऑनलाइन संरक्षण के प्रति एक उदारवादी दृष्टिकोण का समर्थन करता है, जिसमें बहु-हितधारक प्रतिक्रिया भी शामिल है।
    • दूसरा समूह रूसी और चीनी “सूचना संप्रभुता” (Information sovereignty) के दृष्टिकोण का समर्थन करता है, जो देशों को अपने नेटवर्क की सीमाओं को परिभाषित करने तथा उन्हें अपने संप्रभु हितों को ध्यान में रखते हुए नियंत्रित करने की अनुमति देता है।
  • डेटा उपनिवेशवाद: पश्चिमी प्रौद्योगिकी कंपनियों द्वारा वैश्विक बाजारों पर अपने नियंत्रण को मजबूत करने के लिए उपयोग किए जाने वाले अनैतिक आर्थिक तरीकों से विकासशील देशों के व्यक्तिगत उपयोगकर्ता प्रभावित हो रहे हैं, जो वास्तव में इन डेटा के निर्माता/उत्पादक हैं।
    • भारत द्वारा सीमा पार डेटा प्रवाह पर ओसाका घोषणा (Osaka Declaration) पर हस्ताक्षर नहीं किए गए है, यह घोषणा वैश्विक स्तर पर डेटा के प्रवाह के नियमों को मानकीकृत करने का प्रयास करती है। साथ ही इसमें व्यक्तिगत जानकारी और बौद्धिक संपदा के बेहतर संरक्षण का प्रावधान है। 
  • मुक्त और खुले इंटरनेट के विरुद्ध : डेटा संप्रभुता के आदर्श के प्रति चिंता और इसका लाभ उठाने के वैश्विक प्रयासों की विभिन्न हितधारकों द्वारा भारी आलोचना की गई है क्योंकि यह अवधारणा मुक्त और खुले इंटरनेट सिद्धांत का उल्लंघन करती है।
    • आलोचकों का तर्क है कि डेटा संप्रभुता नवाचार और आर्थिक विकास में बाधा डालती है और सत्तावादी डिजिटल शासन के लिए एक चाल है।
  • राष्ट्रीय बुनियादी ढाँचे की सुरक्षा: तेजी से बदलती तकनीक को समझने में विधायकों, लोक सेवकों और आम जनता की अक्षमता/असफलता के कारण सार्वजनिक संस्थानों के बीच विश्वास का ह्रास हो रहा है। इसके अलावा, कुछ देशों से आने वाली तकनीक के प्रति अविश्वास बढ़ रहा है।
    • उदाहरण के लिए, फाइव आइज खुफिया गठबंधन (Five Eyes Intelligence Alliance) (संयुक्त राज्य अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, न्यूजीलैंड और यूनाइटेड किंगडम) के देशों ने चीनी कंपनी हुआवे (Huawei)  के आईटी उपकरणों से   संभावित  सुरक्षा खतरे की आशंकाओं को देखते हुए इस पर प्रतिबंध लगा दिया है या अन्य लगाने की प्रक्रिया में हैं।

भारत द्वारा उठाए गए कदम

  • राष्ट्रीय डिजिटल संचार नीति-2019: भारत में, डिजिटल संप्रभुता की अवधारणा का स्पष्ट रूप से उल्लेख करने वाला मुख्य आधिकारिक दस्तावेज राष्ट्रीय डिजिटल संचार नीति-2019 (National Digital Communications Policy-NDCP 2019) है। यह नीति सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (Information and communications technology-ICT) क्षेत्र के विकास के लिए रणनीतिक लक्ष्यों को रेखांकित करती है, जिसमें डेटा सुरक्षा एवं साइबर सुरक्षा उपायों को अपनाना भी शामिल है।
  • सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती दिशा-निर्देश) नियम 2021: मध्यवर्ती दिशा-निर्देश नियम, ऑनलाइन प्लेटफॉर्म के लिए अधिक कठोर सामग्री नियंत्रण (Moderation) नियमों के साथ, भारत की संप्रभुता और अखंडता की सुरक्षा के लिए कानूनी आधार प्रदान करता है।
  • डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम, 2023: यह अधिनियम भारत के सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 को प्रतिस्थापित करेगा और डिजिटल परिदृश्य की समग्र निगरानी प्रदान करेगा। इसका उद्देश्य साइबर अपराध, डेटा सुरक्षा, डीपफेक (Deepfakes) और ऑनलाइन सुरक्षा जैसी आधुनिक चुनौतियों का समाधान करना है।

आगे की राह

  • वैचारिक मध्यस्थता (Ideological Mediation): दुनिया भर के देशों में डिजिटल संप्रभुता की अलग-अलग व्याख्याएँ हैं, जिसमें से तीसरा तरीका जनहित को आगे बढ़ाने के लिए बहुराष्ट्रीय कंपनियों को उचित रूप से विनियमित करना है। साथ ही न्यूनतम प्रतिबंधों के साथ ऑनलाइन नागरिक स्वतंत्रता और सीमा पार डेटा प्रवाह का समर्थन करना है।
    • भारत को इस क्षेत्र में एक महत्त्वपूर्ण डिजिटल निर्णायक (Crucial Digital Decider) के रूप माना जाता है और इसकी कूटनीति आने वाले वर्षों के लिए इस व्यवस्था को परिभाषित करेगी।
    • इसके अलावा, यूरोपीय संघ संभवतः अमेरिकी खेमे से हटकर तीसरे रास्ते की ओर आगे बढ़ रहा है।
  • नए गठबंधन: भारत को डेटा भंडारण से संबंधित नए गठबंधन बनाने पर भी विचार करना चाहिए।
    • उदाहरण के लिए, चतुर्भुज सुरक्षा संवाद (Quadrilateral Security Dialogue) एक महत्त्वपूर्ण संभावना प्रदान करता है क्योंकि ऑस्ट्रेलिया ने क्वॉड टेक नेटवर्क के विकास का समर्थन करने के लिए पहले ही 5,00,000 ऑस्ट्रेलियाई डॉलर का निवेश किया है, जो AI सहित साइबर सुरक्षा और संवेदनशील तकनीकी मुद्दों पर केंद्रित है।
  • वैश्विक AI विनियमन: वर्ष 2020 में, भारत कृत्रिम बुद्धिमत्ता पर वैश्विक भागीदारी (Global Partnership on Artificial Intelligence-GPAI) का संस्थापक सदस्य बन गया, जो कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) के शासन के लिए मार्गदर्शक नियमों को निर्धारित करने हेतु स्थापित एक गठबंधन है। 
    • इसमें सभी G7 सदस्य देश, दक्षिण कोरिया, सिंगापुर, स्लोवेनिया और EU शामिल हैं।
  • लचीला दृष्टिकोण अपनाना: भारत को ‘सभी या कुछ नहीं’ (All or Nothing) समझौते का पालन करने की आवश्यकता नहीं है, जो इसे डिजिटल व्यापार के सभी मुद्दों पर सर्वसम्मति आधारित नियम-निर्माण को अपनाने के लिए मजबूर करता है। इसके बजाय, भारत को सिंगापुर, चिली और न्यूजीलैंड के बीच डिजिटल इकोनॉमी पार्टनरशिप एग्रीमेंट (DEPA) द्वारा अपनाए गए मॉड्यूलर दृष्टिकोण पर जोर देना चाहिए।
    • DEPA (Digital Economy Partnership Agreement) सदस्य उन मॉड्यूलों के वर्गीकरण पर निर्णय ले सकते हैं जिनका वे अनुपालन करना चाहते हैं। ऐसी व्यवस्था एक वैश्विक कानूनी संरचना के निर्माण की दिशा में आगे बढ़ सकती है जिसे क्रमिक रूप से लागू किया जाता है।
  • वैकल्पिक भारतीय प्लेटफॉर्मों को बढ़ावा देना जैसे:
    • कू (KOO): कू एक भारतीय माइक्रोब्लॉगिंग और सोशल नेटवर्किंग प्लेटफॉर्म है, जिसे भारतीय भाषाओं पर ध्यान केंद्रित करने और सरकार के अनुकूल रुख के साथ X [पहले ट्विटर (Twitter) के नाम से जाना जाता था] के विकल्प के रूप में लॉन्च किया गया था।
    • भारतओएस (BharatOS): गूगल को चुनौती देने वाला एक मोबाइल ऑपरेटिंग सिस्टम है, जिसका एंड्रॉइड ऑपरेटिंग सिस्टम (OS) देश के स्मार्टफोन बाजार में सर्वाधिक बढ़त रखता है।
    • ओपन नेटवर्क फॉर डिजिटल कॉमर्स (ONDC): यह सदस्य ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्मों के उत्पादों और सेवाओं को प्रदर्शित करता है और इसे अमेजन और वॉलमार्ट के विकल्प के रूप में प्रस्तुत किया गया है।

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