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भारत में जलवायु-जनित आपदाओं के प्रति क्षेत्रीय संवेदनशीलता तथा आपदा प्रबंधन

Lokesh Pal October 07, 2025 06:04 88 0

संदर्भ

हाल ही में पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग में अत्यधिक वर्षा के कारण विनाशकारी भूस्खलन और बाढ़ आई है।

  • इसने जलवायु-जनित आपदाओं के प्रति क्षेत्र की संवेदनशीलता तथा आपदा लचीलेपन की आवश्यकता पर प्रकाश डाला है।

आपदा के प्रति लचीलापन के बारे में

  • आपदा के प्रति लचीलापन, व्यक्तियों, समुदायों और देशों, उनकी आजीविका, स्वास्थ्य, सांस्कृतिक विरासत, सामाजिक-आर्थिक संपत्तियों और पारिस्थितिकी तंत्रों की प्रभावी सुरक्षा के लिए आपदा जोखिम का पूर्वानुमान लगाने, योजना बनाने और उसे कम करने के बारे में है।
  • बाउंस बैक’ (Rebound), ‘स्प्रिंग फॉरवर्ड’ और ‘बिल्ड बैक बेटर’ जैसे विचार प्रायः लचीलेपन (Resilience) के संदर्भ में प्रयोग किए जाते हैं।
    • बाउंस बैक” का तात्पर्य व्यक्तियों, समुदायों और प्रणालियों को आपदाओं से शीघ्र उबरने, आवश्यक कार्यों, सेवाओं और आजीविका को आपदा-पूर्व स्तर पर बहाल करने की क्षमता से है।
    • स्प्रिंग फॉरवर्ड” न केवल उबरने की, बल्कि भविष्य की आपदाओं का सामना करने की अपनी क्षमता को अनुकूलित और बेहतर बनाना भी है, जिससे प्रणालियाँ अधिक लचीली और दूरदर्शी बनती हैं।
    • बिल्ड बैक बेटर” संयुक्त राष्ट्र आपदा जोखिम न्यूनीकरण कार्यालय (United Nations Office for Disaster Risk Reduction-UNDRR) द्वारा प्रचारित एक अवधारणा है, जो आपदाओं के बाद पुनर्निर्माण पर इस तरह केंद्रित है, जिससे लचीलापन बढ़े, भेद्यता कम हो और सतत् विकास को बल मिले।

आपदा के प्रति लचीलेपन की प्रमुख विशेषताएँ

  • व्यापक तैयारी: आपदा प्रतिरोधक क्षमता के लिए विविध परिदृश्यों के लिए सावधानीपूर्वक योजना बनाना आवश्यक है, जिनमें चक्रवात, बाढ़, भूकंप जैसे प्राकृतिक खतरे और औद्योगिक दुर्घटनाएँ जैसी मानव-जनित आपदाएँ शामिल हैं।
  • मज़बूत संस्थागत समर्थन: लचीली प्रणालियाँ समन्वय और निर्णय लेने के लिए मजबूत संस्थागत ढाँचों पर निर्भर करती हैं। भारत में, राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (National Disaster Management Authority [NDMA]) राष्ट्रीय, राज्य और जिला स्तरों पर आपदा जोखिम न्यूनीकरण (Disaster Risk Reduction-DRR) की योजना बनाने, नीति-निर्माण और समन्वय के लिए सर्वोच्च निकाय के रूप में कार्य करता है।
  • सतत् विकास के साथ एकीकरण: आपदा प्रतिरोधक क्षमता को दीर्घकालिक स्थिरता लक्ष्यों के साथ संरेखित किया जाना चाहिए।
  • विधायी आधार: प्रभावी कानून और नीतियाँ आपदा की तैयारी को संस्थागत बनाती हैं। भारत का आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 सरकारी एजेंसियों की भूमिकाओं और जिम्मेदारियों को परिभाषित करता है, जिससे शमन, तैयारी, प्रतिक्रिया और पुनर्प्राप्ति के लिए एक संरचित दृष्टिकोण संभव होता है।
  • पूर्व चेतावनी में तकनीकी प्रगति: उपग्रह निगरानी, ​​सुदूर संवेदन, भौगोलिक सूचना प्रणाली (GIS)-आधारित जोखिम मानचित्रण और पूर्वानुमानात्मक मॉडलिंग जैसी आधुनिक प्रौद्योगिकियाँ पूर्व चेतावनी क्षमताओं को बढ़ाती हैं।
  • शैक्षणिक कार्यक्रम और सार्वजनिक जागरूकता: सार्वजनिक जागरूकता और शैक्षणिक संस्कृति को बढ़ावा देना।

आपदा के प्रति लचीलेपन के निर्धारक

  • व्यापक आकलन के माध्यम से जोखिम की पहचान: खतरों, कमजोरियों और संभावित प्रभावों को समझना आवश्यक है।
    • भारत की खतरा पहचान और जोखिम आकलन (Hazard Identification and Risk Assessment-HIRA) प्रक्रिया विभिन्न क्षेत्रों में जोखिमों का व्यवस्थित मूल्यांकन करती है, जिससे लक्षित शमन रणनीतियाँ संभव होती हैं।
  • समुदाय-केंद्रित मूल्यांकन उपाय: जब समुदाय, योजना निर्माण में सक्रिय रूप से भाग लेते हैं तो लचीलापन सुदृढ़ होता है। स्थानीय ज्ञान कमजोरियों की पहचान करने और हस्तक्षेपों को अनुकूलित करने में मदद करता है।
    • उदाहरण के लिए, राष्ट्रीय भूस्खलन जोखिम शमन परियोजना (National Landslide Risk Mitigation Project-NLRMP) के अंतर्गत ग्राम-स्तरीय आपदा समितियाँ, यह सुनिश्चित करती हैं कि शमन उपाय वास्तविक स्थानीय चुनौतियों का समाधान करें।
  • आपातकालीन तैयारी के लिए संसाधन आवंटन: वित्तीय, मानवीय और तकनीकी संसाधनों का पर्याप्त आवंटन महत्त्वपूर्ण है।
    • भारत का राष्ट्रीय आपदा शमन कोष (National Disaster Mitigation Fund -NDMF) राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को तैयारी, शमन और पुनर्प्राप्ति परियोजनाओं के लिए धन उपलब्ध कराता है।
  • नीति कार्यान्वयन और बुनियादी ढाँचे की मजबूती: मजबूत नीतियाँ और लचीला बुनियादी ढाँचा आपदा के प्रभावों को कम करता है।
    • जापान की भूकंपरोधी इमारतें और भारत के ओडिशा और आंध्र प्रदेश में चक्रवात-रोधी आवास इस बात का उदाहरण हैं कि कैसे मजबूत निर्माण मानदंड जीवन और संपत्ति की रक्षा करते हैं।
  • उभरती चुनौतियों के प्रति अनुकूलन: जलवायु परिवर्तन, शहरी बाढ़ और ग्लेशियल बर्स्ट जैसे उभरते खतरों से निपटने के लिए लचीलेपन की आवश्यकता होती है।
    • बाढ़ जलाशयों, तटीय मैंग्रोव पुनर्स्थापन और जलवायु-अनुकूल कृषि जैसे नवीन समाधान अनुकूलन क्षमता को बढ़ाते हैं।
  • पुनर्प्राप्ति और पुनर्वास क्षमताएँ: आपदा के बाद प्रभावी पुनर्प्राप्ति दीर्घकालिक लचीलापन सुनिश्चित करती है।
    • संयुक्त राज्य अमेरिका में चक्रवात कैटरीना (2005) के बाद के पुनर्संरक्षण प्रयासों ने दीर्घकालिक पुनर्वास रणनीतियों के महत्त्व को उजागर किया।
    • भारत का भुज स्थित स्मृतिवन स्मारक, वर्ष 2001 के भूकंप की स्मृति और सीख का प्रतीक है, जो भविष्य में लचीलापन उपायों के लिए मार्गदर्शन प्रदान करता है।

भारत में आपदा के प्रति लचीलेपन की आवश्यकता

  • भारत एक बहु-संकटग्रस्त देश: भारत एक बहु-संकटग्रस्त देश होने के नाते, भूकंप, बाढ़, चक्रवात, भूस्खलन, लू और ‘ग्लैशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड’ (GLOF) सहित लगातार और विविध प्राकृतिक आपदाओं का सामना करता है।
  • संवेदनशीलता आँकड़े: राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) के अनुसार, लगभग 58% जिले भूकंपीय खतरों के प्रति संवेदनशील हैं, 12% चक्रवातों के प्रति संवेदनशील हैं, और 75% सूखे का सामना करते हैं।
  • जलवायु परिवर्तन का प्रभाव: जलवायु परिवर्तन की तीव्रता ने इन खतरों की आवृत्ति, गंभीरता और अप्रत्याशितता को और बढ़ा दिया है, जिससे जीवन, आजीविका, महत्त्वपूर्ण बुनियादी ढाँचे और राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के लिए एक बड़ा खतरा पैदा हो गया है।
  • आपदाओं के सामाजिक-आर्थिक परिणाम
    • जीवन की हानि और स्वास्थ्य जोखिम: मृत्यु दर में वृद्धि और बीमारी व कुपोषण जैसे द्वितीयक प्रभाव।
    • आजीविका में व्यवधान: विशेष रूप से कृषि, मत्स्य पालन और अनौपचारिक क्षेत्रों में।
    • महत्त्वपूर्ण बुनियादी ढाँचे की हानि: इसमें सड़कें, पुल, स्कूल और अस्पताल शामिल हैं।
    • आर्थिक नुकसान: आपदाएँ क्षेत्रीय और राष्ट्रीय सकल घरेलू उत्पाद को भारी नुकसान पहुँचाती हैं।
    • जबरन प्रवास और विस्थापन: शहरी केंद्रों पर दबाव बढ़ना।
    • समता संबंधी निहितार्थ: कमजोर और हाशिए पर स्थित समुदायों पर असमानुपातिक प्रभाव, जो आपदा सहनशीलता के सामाजिक समता संबंधी आयाम पर बल देता है।
  • ये चुनौतियाँ दर्शाती हैं कि आपदाएँ केवल प्राकृतिक घटनाएँ नहीं हैं, बल्कि सामाजिक-आर्थिक तनाव को बढ़ाने वाली होती हैं, जो समुदायों, बुनियादी ढाँचे और विकास को प्रभावित करती हैं।

भारत की व्यापक आपदा जोखिम न्यूनीकरण पहल

  • भारत ने रोकथाम, तैयारी, प्रतिक्रिया, शमन, पुनर्प्राप्ति और पुनर्निर्माण सहित एक समग्र दृष्टिकोण अपनाया है।
  • संस्थागत और नीतिगत ढाँचा: गृह मंत्रालय (Ministry of Home Affairs [MHA]) और राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (National Disaster Management Authority-NDMA) आपदा-पूर्व तैयारी और आपदा-पश्चात प्रतिक्रिया, दोनों की देखरेख करते हैं। प्रमुख संस्थागत तंत्रों में शामिल हैं:
    • राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन योजना (National Disaster Management Plan-NDMP): इसे पहली बार वर्ष 2016 में विकसित किया गया और वर्ष 2019 में संशोधित किया गया। इसे सेंडाई फ्रेमवर्क के अनुरूप बनाया गया है और इसमें मंत्रालयों, राज्यों और जिलों की भूमिकाओं को एकीकृत किया गया है।
    • NDMA दिशा-निर्देश: आपदा तैयारी और प्रतिक्रिया को मानकीकृत करने के लिए 38 विषयगत और जोखिम-विशिष्ट दिशा-निर्देश।
    • 15वाँ वित्त आयोग (2021-26): आपदा जोखिम न्यूनीकरण (Disaster Risk Reduction [DRR) के लिए ₹2.28 लाख करोड़ (30 बिलियन अमेरिकी डॉलर) आवंटित किए गए, जिसमें सार्वजनिक वित्त को रोकथाम, शमन, तैयारी, क्षमता निर्माण और पुनर्निर्माण से जोड़ा गया।

आपदा जोखिम न्यूनीकरण के लिए वित्तीय संरचना

  • बजट आवंटन: तैयारी और क्षमता निर्माण (10%), शमन (20%), प्रतिक्रिया (40%), पुनर्निर्माण (30%)।
  • प्रकृति-आधारित समाधान: पारिस्थितिकी तंत्र पुनर्स्थापन, ढलान स्थिरीकरण और बाढ़ के मैदान प्रबंधन पर बल।
  • संस्थागत सामंजस्य: अंतर-मंत्रालयी और केंद्र-राज्य समन्वय तंत्र दक्षता सुनिश्चित करते हैं और दोहराव से बचते हैं।
  • कार्यान्वयन और प्रभाव
    • पुनर्निर्माण पैकेज: उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, सिक्किम, असम और केरल के लिए ₹5,000 करोड़ स्वीकृत।
    • अग्नि सुरक्षा आधुनिकीकरण: अग्निशमन प्रणालियों और आपातकालीन प्रतिक्रिया इकाइयों के उन्नयन हेतु ₹5,000 करोड़ आवंटित।
    • स्वयंसेवी बल: स्थानीय आपदा प्रतिक्रिया के लिए ‘आपदा मित्र’ और ‘युवा आपदा मित्र’ पहल के अंतर्गत 2.5 लाख से अधिक प्रशिक्षित स्वयंसेवक।
    • शिक्षा के माध्यम से क्षमता निर्माण: राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान (NIDM) ने पंचायत स्तर पर आपदा प्रबंधन को मुख्यधारा में लाने के लिए 36-धाराओं पर आधारित DRR पाठ्यक्रम शुरू किया।
  • वैज्ञानिक और तकनीकी उपाय
    • शमन परियोजनाएँ: कई राज्यों में प्रकृति-आधारित जलवायु अनुकूलन के लिए ₹10,000 करोड़ मूल्य की परियोजनाएँ स्वीकृत।
    • राष्ट्रीय चक्रवात शमन कार्यक्रम (2011-22): चक्रवात आश्रयों, तटबंधों और सात-दिवसीय पूर्व चेतावनी प्रणालियों के माध्यम से तटीय सुभेद्यता को कम किया गया।
    • शहरी बाढ़ प्रबंधन: जल निकायों का पुनरुद्धार, बाढ़ मानचित्रण के लिए सुदूर संवेदन और हिमनद झीलों की निगरानी के लिए स्वचालित मौसम केंद्र।
    • भूस्खलन और वनाग्नि निवारण: उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों में जैव-इंजीनियरिंग ढलान स्थिरीकरण, ईंधन निकासी, और विराम रेखा का निर्माण।
    • गतिशील समग्र जोखिम एटलस (Web-DCRA & DSS): चक्रवात जोखिम शमन और योजना का समर्थन करता है, जिसका चक्रवात बिपरजॉय और मिचांग में सफलतापूर्वक उपयोग किया गया।
    • बाढ़ जोखिम एटलस और हिमनद झील डेटाबेस: बाढ़ और ग्लैशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड’ (GLOF) जोखिमों के प्रबंधन के लिए राष्ट्रीय सुदूर संवेदन केंद्र (NRSC) द्वारा तैयार किया गया।
  • प्रारंभिक चेतावनी, शिक्षा और क्षमता निर्माण
    • कॉमन अलर्टिंग प्रोटोकॉल (CAP) और SACHET ऐप: SMS, TV, रेडियो, इंटरनेट और सेटेलाइट सिस्टम के माध्यम से भू-लक्षित, बहुभाषी अलर्ट प्रसारित करता है। 6,400 करोड़ से अधिक अलर्ट प्रसारित किए जा चुके हैं।
    • पूर्व चेतावनी मोबाइल ऐप: दामिनी, मौसम, मेघदूत ऐप- वास्तविक समय आधारित मौसम, चक्रवात और बिजली की चेतावनी प्रदान करते हैं।
    • प्रशिक्षण नेटवर्क: NDRF अकादमी, राष्ट्रीय अग्निशमन सेवा महाविद्यालय (NNFSC) और NIDM प्रत्येक वर्ष हजारों लोगों को आपदा विज्ञान और नीति में प्रशिक्षित करते हैं।
    • मॉक ड्रिल और स्कूल सुरक्षा कार्यक्रम: क्षेत्र-विशिष्ट जागरूकता अभियान और शैक्षिक पहल सामुदायिक तत्परता को बढ़ाती हैं।
  • सामुदायिक एवं स्वयंसेवी सहभागिता:
    • आपदा मित्र योजना: 350 बहु-संकटग्रस्त जिलों में 1 लाख स्वयंसेवकों को प्रशिक्षित करती है।
    • युवा आपदा मित्र योजना (YAMS): 315 आपदा-प्रवण जिलों में NCC, NSS, NYKS, BS&G के 2.37 लाख युवाओं को शामिल करती है।
  • अंतरराष्ट्रीय नेतृत्व और सहयोग
    • आपदा रोधी अवसंरचना गठबंधन (Coalition for Disaster Resilient Infrastructure-CDRI): भारत के नेतृत्व वाली वैश्विक पहल, जो 42 देशों को जलवायु-रोधी अवसंरचना को बढ़ावा देते हुए समर्थन प्रदान करती है।
    • क्षेत्रीय सहयोग: संयुक्त अभ्यास और ज्ञान साझाकरण हेतु G20, SCO, BIMSTEC और IORA के साथ सहयोग।
    • भारतीय सुनामी पूर्व चेतावनी केंद्र (ITEWC): संयुक्त राष्ट्र आपदा जोखिम न्यूनीकरण कार्यालय (UNDRR) द्वारा मान्यता प्राप्त पाँच वैश्विक प्रणालियों में से एक।
    • मानवीय सहायता: भारत वसुधैव कुटुंबकम् को दर्शाते हुए वैश्विक स्तर पर आपदा सहायता प्रदान करता है, जैसे कि तुर्की और सीरिया भूकंप राहत (2023)

आपदा जोखिम न्यूनीकरण के लिए प्रधानमंत्री का दस सूत्री एजेंडा (2016)

  • सभी विकास क्षेत्रों में आपदा जोखिम न्यूनीकरण (DRR) को शामिल किया जाना चाहिए: प्रत्येक विकास पहल में लचीलापन सुनिश्चित करने के लिए शहरी नियोजन, आवास, बुनियादी ढाँचे, कृषि, स्वास्थ्य और शिक्षा में DRR सिद्धांतों को एकीकृत किया जाना चाहिए।
  • सभी के लिए जोखिम कवरेज की दिशा में कार्य करना: जीवन, स्वास्थ्य, फसलों और आजीविका के लिए गरीबों और कमजोर लोगों को कवर करने के लिए बीमा और सामाजिक सुरक्षा की पहुँच का विस्तार करना।
  • आपदा जोखिम प्रबंधन में महिला नेतृत्व को प्रोत्साहित करना: योजना, प्रतिक्रिया और पुनर्प्राप्ति में महिलाओं को परिवर्तन के वाहक और निर्णयकर्ता के रूप में सशक्त बनाना।
  • जोखिम मानचित्रण और बुनियादी ढाँचे के लचीलेपन में निवेश करना: लचीले बुनियादी ढाँचे में निवेश को निर्देशित करने के लिए डेटा संग्रह, जोखिम मानचित्रण और भेद्यता मूल्यांकन को मजबूत करना।
  • जोखिम न्यूनीकरण हेतु प्रौद्योगिकी का लाभ उठाना: पूर्व चेतावनी, वास्तविक समय निगरानी और आपदा प्रतिक्रिया के लिए अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी, उपग्रह-आधारित संचार, भौगोलिक सूचना प्रणाली (Geographic Information Systems-GIS) और मोबाइल एप्लिकेशन का उपयोग करना।
  • DRR के लिए विश्वविद्यालयों और संस्थानों का एक नेटवर्क विकसित करना: शैक्षणिक सहयोग के माध्यम से अनुसंधान, प्रशिक्षण और नवाचार को बढ़ावा देना।
    • आपदा प्रबंधन के बहु-विषयक पहलुओं पर काम करने वाले विश्वविद्यालयों का एक राष्ट्रीय नेटवर्क स्थापित करना।
  • स्थानीय क्षमता और पारंपरिक ज्ञान का उपयोग करना: संदर्भ-विशिष्ट आपदा समाधानों के लिए आधुनिक विज्ञान को स्वदेशी और समुदाय-आधारित प्रथाओं के साथ मिलाना।
  • आपदा प्रतिक्रिया क्षमताओं को मजबूत बनाना: राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (NDRF) के सहयोग से, राज्य आपदा प्रतिक्रिया बलों (SDRF) और स्थानीय संस्थानों की क्षमता का निर्माण करना ताकि त्वरित और प्रभावी प्रतिक्रिया हो सके।
  • युवाओं की अधिक भागीदारी और नेतृत्व सुनिश्चित करना: सामुदायिक स्तर की तैयारी और जागरूकता अभियानों में राष्ट्रीय कैडेट कोर (NCC), राष्ट्रीय सेवा योजना (NSS), और भारत स्काउट्स एंड गाइड्स (BS&G) जैसे युवा संगठनों को शामिल करना।
  • DRR को सभी की जिम्मेदारी बनाना: जोखिम जागरूकता और लचीलापन निर्माण गतिविधियों में नागरिकों, मीडिया, निजी क्षेत्र और नागरिक समाज को शामिल करके सुरक्षा की संस्कृति का निर्माण करना।

आपदा लचीलेपन में वैश्विक पहल और सर्वोत्तम अभ्यास

  • जापान: उन्नत भवन संहिताएँ, संरचनात्मक पुनर्रचना और आधार-पृथक निर्माण यह सुनिश्चित करते हैं कि आवासीय, वाणिज्यिक और सार्वजनिक भवन भूकंपीय झटकों का सामना कर सकें।
  • जर्मनी: इसने बाढ़ जोखिम न्यूनीकरण और जलवायु अनुकूलन के लिए नवीन दृष्टिकोणों का प्रयोग किया है, जिनमें शामिल हैं:
    • बाढ़ के मैदानों का जीर्णोद्धार: अतिरिक्त जल को अवशोषित करने और शहरी बाढ़ के जोखिम को कम करने के लिए प्राकृतिक बाढ़ के मैदानों तथा आर्द्रभूमियों का पुनर्निर्माण।
    • प्रकृति-आधारित शहरी नियोजन: तूफानों और बाढ़ के प्रति लचीलापन बढ़ाने के लिए हरित छतों, पारगम्य सतहों और शहरी हरित स्थानों को एकीकृत करना।
  • आपदा जोखिम न्यूनीकरण हेतु सेंडाई फ्रेमवर्क (2015-2030): संयुक्त राष्ट्र आपदा जोखिम न्यूनीकरण कार्यालय (UNDRR) ने सेंडाई फ्रेमवर्क प्रस्तुत किया है, जो आपदा जोखिमों को कम करने और लचीलापन बढ़ाने के लिए एक वैश्विक ढाँचा है। इसके प्रमुख सिद्धांतों में शामिल हैं:
    • खतरा मानचित्रण और जोखिम मूल्यांकन
    • पूर्व चेतावनी प्रणालियाँ
    • अनुकूलित निर्माण।
  • G20 और शंघाई सहयोग संगठन (SCO) की पहल: G20 और SCO जैसे वैश्विक मंचों ने आपदा सहनशीलता पर बहुपक्षीय सहयोग को बढ़ावा दिया है, जिसका मुख्य उद्देश्य है:
    • आपदा-प्रतिरोधी अवसंरचना
    • जलवायु अनुकूलन रणनीतियाँ
    • क्षेत्रीय सहयोग और क्षमता निर्माण।

भारत में आपदा लचीलेपन संबंधी चुनौतियाँ

  • बहु-संकट घटनाओं के प्रति उच्च संवेदनशीलता: भारत जल-मौसम संबंधी, भू-वैज्ञानिक, हिमनद, चक्रवाती और सूखा-संबंधी आपदाओं के प्रति संवेदनशील है, जिससे आपदा तैयारी जटिल और बहुआयामी हो जाती है।
  • शहरीकरण में तीव्र वृद्धि और जनसंख्या दबाव: संकट-प्रवण क्षेत्रों में बढ़ता जनसंख्या घनत्व स्थानीय संसाधनों, बुनियादी ढाँचे और आपातकालीन प्रतिक्रिया क्षमताओं पर दबाव डालता है।
  • परिवर्तित जलवायु पैटर्न: तीव्र वर्षा, अनियमित मानसून, तापमान में अत्यधिक उतार-चढ़ाव और अप्रत्याशित मौसम आपदाओं की आवृत्ति और गंभीरता को बढ़ाते हैं।
  • पर्यावरणीय और जल विज्ञान संबंधी तनाव: नदी के मार्ग में परिवर्तन, प्राकृतिक जल निकासी चैनलों का अवरुद्ध होना और अनियोजित बस्तियाँ बाढ़ एवं भूस्खलन के खतरों को बढ़ाती हैं।
  • संस्थागत और प्रशासनिक कमियाँ: स्थानीय शासन निकायों में प्रायः प्रशिक्षित कर्मियों, पर्याप्त धन और तकनीक का अभाव होता है, जिससे उनकी आपदा प्रतिक्रिया प्रभावशीलता सीमित हो जाती है।
  • पूर्व चेतावनी और सामुदायिक जागरूकता में कमी: वैज्ञानिक चेतावनियों के बावजूद, समुदाय प्रायः तैयार नहीं रहते हैं, जिससे प्रतिक्रिया और शमन उपायों की प्रभावशीलता कम हो जाती है।

आगे की राह

केस स्टडी – स्मृतिवन स्मारक, भुज

  • वर्ष 2001 में भुज में आए 7.9 तीव्रता के भूकंप ने लगभग 12,932 लोगों की जान ले ली और व्यापक विनाश किया। भारत ने 470 एकड़ में विस्तृत स्मृतिवन स्मारक और संग्रहालय का निर्माण किया, जिसमें स्थायी वास्तुकला, नवीकरणीय ऊर्जा, जल प्रबंधन और 3 लाख से अधिक पौधों वाला दुनिया का सबसे बड़ा मियावाकी वन शामिल है।
  • यह संग्रहालय आगंतुकों को सात विषयगत खंड: रीबर्थ, रीडिस्कवरी, रेस्टोरेशन, रिकन्स्ट्रक्शन, रिकन्सिडरेशन, रिवाइवल और रिन्युअल के माध्यम से शिक्षित करता है, जिसमें आपदा प्रतिरोधक क्षमता, पुनर्वास और पारिस्थितिक पुनर्स्थापन शामिल हैं। इसेयूनेस्को प्रिक्स वर्सेल्स पुरस्कार’ के लिए चुना गया है, जो लचीले बुनियादी ढाँचे और आपदा शिक्षा में भारत की उत्कृष्टता को दर्शाता है।

ओडिशा का चक्रवात प्रबंधन मॉडल: वर्ष 1999 के महाचक्रवात (10,000 से अधिक मौतें) के बाद, ओडिशा आपदा पूर्व तैयारी के एक वैश्विक मॉडल के रूप में विकसित हुआ। वर्ष 2000 में स्थापित ओडिशा राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (OSDMA) ने सक्रिय आपदा प्रबंधन को संस्थागत रूप दिया।

  • प्रमुख विशेषताएँ
    • प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियाँ: IMD  और INCOIS के साथ सहयोग; EWDS 879 तटीय गाँवों को सायरन, SMS अलर्ट और डिजिटल नेटवर्क के माध्यम से जोड़ता है।
    • सामुदायिक तैयारी: स्थानीय समितियों द्वारा प्रबंधित 800 से अधिक बहुउद्देशीय चक्रवात आश्रय; नियमित मॉक ड्रिल और स्वयंसेवी प्रशिक्षण अंतिम लक्ष्य तक की तैयारी सुनिश्चित करते हैं।
    • लचीला बुनियादी ढाँचा: बीजू पक्का घर योजना और प्रधानमंत्री आवास योजना के अंतर्गत चक्रवात-रोधी आवास, तटबंध और सड़कें; बेहतर बिजली और दूरसंचार पुनर्प्राप्ति प्रणालियाँ।
    • समन्वित प्रतिक्रिया: बहु-विभागीय एकीकरण त्वरित कार्रवाई सुनिश्चित करता है; सामूहिक निकासी के माध्यम से शून्य हताहत नीति।
    • कमजोर समूहों पर ध्यान: महिलाओं, बुजुर्गों और दिव्यांगों के लिए विशेष निकासी; स्वयं सहायता समूह (Self Help Groups-SHG) खाद्य आपूर्ति और राहत प्रयासों का नेतृत्व करते हैं।

  • विकास नियोजन में आपदा जोखिम न्यूनीकरण (DRR) को मुख्यधारा में लाना: शहरी नियोजन, बुनियादी ढाँचे, आवास, परिवहन और स्वास्थ्य नीतियों में DRR सिद्धांतों को एकीकृत करना।
    • सभी प्रमुख बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं के लिए पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (EIA) के साथ-साथ आपदा प्रभाव आकलन (Disaster Impact Assessments-DIA) को अनिवार्य बनाना।
    • संघ और राज्य वित्त मेंअनुकूलित बजट” लागू करना, रोकथाम, शमन और तैयारी के लिए समर्पित आवंटन सुनिश्चित करना।
    • सार्वजनिक निवेश की सुरक्षा और स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए राष्ट्रीय बुनियादी ढाँचा पाइपलाइन (National Infrastructure Pipeline-NIP) के तहत ऑडिट को संस्थागत बनाना।
  • स्थानीय शासन और समुदाय-केंद्रित तैयारियों को मजबूत बनाना: स्थानीय आपदा योजनाओं के लिए पंचायती राज संस्थाओं (PRI) और शहरी स्थानीय निकायों (ULB) को वित्तीय, तकनीकी और मानव संसाधनों से सशक्त बनाना।
    • प्रशिक्षित सामुदायिक प्रथम प्रतिक्रियाकर्ता तैयार करने के लिए आपदा मित्र और युवा आपदा मित्र नेटवर्क का विस्तार करना।
  • प्रकृति-आधारित और जलवायु-अनुकूल समाधानों को बढ़ावा देना: कम लागत वाले, दीर्घकालिक शमन उपायों के रूप में पारिस्थितिकी-पुनर्स्थापन, आर्द्रभूमि पुनरुद्धार, मैंग्रोव पुनर्जनन और जलग्रहण प्रबंधन को प्राथमिकता देना।
    • भूस्खलन-प्रवण हिमालयी और पश्चिमी घाट क्षेत्रों में ढलान स्थिरीकरण के लिए जैव-इंजीनियरिंग तकनीकों का उपयोग करना।
    • ग्रामीण क्षेत्रों में लचीलापन निर्माण के लिए जलवायु-अनुकूल कृषि, सूखा-प्रतिरोधी फसलों और सतत् जल प्रबंधन को प्रोत्साहित करना।
    • जलवायु चरम स्थितियों के प्रति सतत् अनुकूलन के लिए प्रकृति-आधारित समाधानों को बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं के साथ एकीकृत करना।
  • प्रौद्योगिकी, विज्ञान और नवाचार का लाभ उठाना: भौगोलिक सूचना प्रणाली (GIS) और सुदूर संवेदन (RS)-आधारित आपदा मानचित्रण और जोखिम पूर्वानुमान का विस्तार करना।
    • पूर्वानुमानात्मक मॉडलिंग और वास्तविक समय आपदा विश्लेषण के लिए कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) और मशीन लर्निंग (ML) को शामिल करना।
    • नीतिगत निर्णयों के लिएडायनामिक कंपोजिट रिस्क एटलस’ और फ्लड एटलस (Web-DCRA & DSS) जैसे नवाचारों को बढ़ावा देना।
    • पूर्व चेतावनी, रसद और पुनर्प्राप्ति उपकरणों के लिए अटल नवाचार मिशन (AIM) के तहत आपदा-तकनीक स्टार्ट-अप को बढ़ावा देना।
  • लचीला बुनियादी ढाँचा और वित्तीय सुरक्षा जाल बनाना: स्थानीय अधिकारियों के माध्यम से भूकंप, बाढ़ और चक्रवात क्षेत्रों के लिए जोखिम-सूचित भवन संहिताओं को लागू करना।
    • स्मार्ट सिटी मिशन और अमृत 2.0 के अंतर्गत लचीले डिजाइन सिद्धांतों (जैसे- हरित छतें, पारगम्य फुटपाथ, तूफानी नालियाँ) को एकीकृत करना।
    • दीर्घकालिक लचीलापन बढ़ाने के लिए पुनर्निर्माण में बिल्ड बैक बेटर (BBB) प्रथाओं को अपनाना।
    • आपदा बॉण्ड, आपदा बीमा और राष्ट्रीय आपदा न्यूनीकरण कोष (NDMF) के संचालन के माध्यम से वित्तीय लचीलापन मजबूत करना।
    • लचीले बुनियादी ढाँचे और जोखिम-साझाकरण तंत्र के वित्तपोषण के लिए सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) को बढ़ावा देना।
  • प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियों, शिक्षा और क्षमता निर्माण का विस्तार करना: क्षेत्रीय भाषाओं में अंतिम लक्ष्य तक कवरेज के लिए कॉमन अलर्टिंग प्रोटोकॉल’ (CAP) और सचेत ऐप जैसे चेतावनी तंत्रों को मजबूत बनाना।
    • तैयारी की संस्कृति का निर्माण करने के लिए स्कूल और कॉलेज के पाठ्यक्रम में आपदा शिक्षा को शामिल करना।
    • राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान (NIDM), राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (NDRF) अकादमी और राष्ट्रीय अग्निशमन सेवा महाविद्यालय (NFSC) के माध्यम से संस्थागत क्षमता में वृद्धि करना।
    • सामुदायिक तैयारी के लिए राज्यों में नियमित रूप से मॉक ड्रिल, जागरूकता अभियान और सिमुलेशन अभ्यास आयोजित करना।
  • क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देना: CDRI, G20, SCO, BIMSTEC और IORA के माध्यम से भारत के वैश्विक नेतृत्व को सुदृढ़ करना।
    • ओडिशा के चक्रवात प्रबंधन मॉडल जैसी भारत की सर्वोत्तम प्रथाओं को साझा करके दक्षिण-दक्षिण सहयोग को मजबूत करना।
    • क्षमता निर्माण और ज्ञान के आदान-प्रदान के लिए संयुक्त राष्ट्र आपदा जोखिम न्यूनीकरण कार्यालय (UNDRR) और विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) के साथ सहयोग करना।
    • प्रगति की निगरानी के लिए एक नेशनल रेजिलिएंस इंडेक्स’ (National Resilience Index [NRI]) स्थापित करना और स्वतंत्र ऑडिट करना।

निष्कर्ष

एक आपदा रोधी संरचना से युक्त भारत के निर्माण के लिए प्रतिक्रियात्मक राहत से सक्रिय रोकथाम की ओर बदलाव आवश्यक है, जो विज्ञान, स्थिरता और सामुदायिक भागीदारी पर आधारित हो। जोखिम-सूचित शासन, प्रकृति-आधारित समाधानों और तकनीकी नवाचार को एकीकृत करके, भारत सेंडाई फ्रेमवर्क (2015-2030), प्रधानमंत्री के दस सूत्री एजेंडा (2016) और सतत विकास लक्ष्यों (SDG) के अनुरूप, विकास की ओर अग्रसर हो सकता है।

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