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कोयला खनन से संबंधित बीमारियाँ

Lokesh Pal June 28, 2024 04:14 190 0

संदर्भ

हाल ही में नेशनल फाउंडेशन फॉर इंडिया द्वारा किए गए सर्वेक्षण के अनुसार,  कोल खनन प्रदूषकों के लंबे समय तक संपर्क में रहने से श्रमिकों में व्यापक श्वसन एवं त्वचा संबंधी रोगों की पुष्टि हुई है।

  • सर्वेक्षण में भारत के छत्तीसगढ़, झारखंड और ओडिशा के छह जिलों के लगभग 1,200 परिवार शामिल थे, जहाँ कोयला खनन एक प्रमुख व्यवसाय है।
    • ओडिशा का अंगुल जिला, भारत का सबसे बड़ा कोयला उत्पादक जिला है।

व्यावसायिक खतरे क्या हैं?

  • सर्वेक्षण में शामिल लगभग 65% प्रतिभागियों में क्रोनिक ब्रोंकाइटिस, अस्थमा, तथा त्वचा संबंधी बीमारियों जैसे एक्जिमा, डर्मेटाइटिस और फंगल संक्रमण पाया गया है। 
  • कोयला खदानों के संपर्क में आने से निम्नलिखित समस्याएँ हो सकती हैं:
  1. कोयला खदान की धूल के संपर्क में आने से विभिन्न प्रकार की श्वसन संबंधी बीमारियाँ होती हैं, जिनमें कोयला श्रमिकों में  कोल वर्कर्स न्यूमोकोनियोसिस (CWP) और क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (Chronic Obstructive Pulmonary Disease- COPD) शामिल हैं।
  2. वे क्रिस्टलीय सिलिका धूल के भी संपर्क में आते हैं, जो सिलिकोसिस, COPD, और अन्य बीमारियों का कारण बनती है।
  3. ये फेफड़े संबंधी रोग दिव्यांगता, अशक्तता और असमय मृत्यु का कारण भी बन सकते हैं।

रिपोर्ट के मुख्य तथ्य

  • खदानों के निकट रहने वाले लोग अपेक्षाकृत अधिक असुरक्षित थे। उदाहरण: धनबाद और रामगढ़, जहाँ ऐसे क्षेत्रों में अधिक लोग रहते हैं, वहाँ फेफड़े और श्वसन संबंधी बीमारियों के साथ-साथ त्वचा संक्रमण के मामले भी अधिक थे।
  • इन 6 जिलों में औसतन एक परिवार प्रत्येक माह 300 से 1,000 रुपये तक मेडिकल बिल पर खर्च करता है। धनबाद में औसत वार्षिक अस्पताल में भर्ती होने का खर्च (प्रति परिवार 28,461 रुपये) सबसे अधिक था।
    • वित्त वर्ष 2022 में औसत भारतीय परिवार ने स्वास्थ्य सेवा से संबंधित व्यय पर 3,632 रुपये खर्च किए।

जस्ट ट्रांजिशन  (Just Transition) 

  • यह असमानता, असुरक्षा और अवसर के विभिन्न आयामों को संबोधित करता है।
  • जस्ट ट्रांजिशन परिवर्तन को मानवाधिकार की दृष्टि से देखता है, जिसका उद्देश्य विद्यमान असमानताओं को समाप्त करना, सामाजिक समावेशन को सक्षम बनाना तथा विभिन्न प्रकार की समानता को बढ़ावा देना है।

  • जस्ट ट्रांजिशन  (Just Transition): विश्व में कोयले पर निर्भरता कम होने  से कोयला निर्भर क्षेत्रों में बड़ी संख्या में नौकरियाँ समाप्त होने और आर्थिक मंदी आने की संभावना है।
    • इसका सीधा प्रभाव न केवल कोयला खनिकों और श्रमिकों पर पड़ेगा, बल्कि व्यापक स्थानीय अर्थव्यवस्था पर भी पड़ेगा।

ग्लोबल एनर्जी मॉनिटर रिपोर्ट

  • दुनिया में मौजूदा कोयला खनन श्रमिकों में से एक-तिहाई को वर्ष 2050 तक छँटनी का सामना करना पड़ सकता है।
  • कोल इंडिया लिमिटेड अकेले ही वर्ष 2050 तक 73,800 श्रमिकों की छँटनी कर सकती है, क्योंकि भारत का लक्ष्य वर्ष 2070 तक शुद्ध-शून्य कार्बन उत्सर्जन हासिल करना है।

  • नवीकरणीय ऊर्जा (Renewable energy): भारत ने लगभग 500 गीगावाट ऊर्जा या वर्ष 2030 तक  अपनी अनुमानित स्थापित क्षमता का लगभग आधा नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों से प्राप्त करने के लिए प्रतिबद्धता व्यक्त की है, लेकिन एक अनुमान के अनुसार, अभी कोयला दशकों तक भारत में ऊर्जा उत्पादन का मुख्य आधार बना रहेगा।
    • कुल ऊर्जा उत्पादन क्षमता में कोयले की हिस्सेदारी (लिग्नाइट सहित) 1960 के दशक के बाद पहली बार 50% से नीचे आ गई है।
      • भारत की स्थापित विद्युत उत्पादन क्षमता का लगभग आधा भाग कोल आधारित  ताप विद्युत संयंत्रों का है।
      • वर्ष 2024 की पहली तिमाही (जनवरी-मार्च) में नवीकरणीय ऊर्जा रिकॉर्ड 13.6 गीगावाट विद्युत उत्पादन कर कुल क्षमता का 71.5% हिस्सा नवीकरणीय ऊर्जा से प्राप्त किया है, जबकि कुल ऊर्जा क्षमता में कोयले (लिग्नाइट सहित) की हिस्सेदारी 1960 के दशक के बाद पहली बार 50% से नीचे आ गई।
  • वंचित वर्गों के समक्ष गंभीर चुनौतियाँ: सर्वेक्षण में शामिल 81.5 प्रतिशत लोग वंचित समूह  अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग समुदायों से थे तथा शेष सामान्य वर्ग से थे।
    • जाति और शैक्षिक उपलब्धि के बीच स्पष्ट असमानता : प्राथमिक शिक्षा वाले या निरक्षर परिवार अनुसूचित जातियों, जनजातियों और अन्य पिछड़े वर्गों में अधिक प्रमुख थे।
    • आय का निम्न स्तर: OBC समूहों की तुलना में SC और ST समूहों में आय का निम्न स्तर पाया गया।
    • कोयला-डंपिंग यार्ड, कोयला साइडिंग, कोयला लोडिंग, कोयला परिवहन, कोयला वाशरी और अन्य अनौपचारिक कार्यों में कम वेतन वाली एवं अनियमित नौकरियों में उच्च प्रतिनिधित्व।

कोयले पर  निर्भरता कम करना: भारत का अंतिम राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान

जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (UNFCCC) और इसके पेरिस समझौते के एक पक्ष के रूप में, भारत ने वर्ष 2015 में अपना प्रथम राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDC) प्रस्तुत किया।

  • वर्ष 2005 के स्तर से 2030 तक सकल घरेलू उत्पाद (GDP) की उत्सर्जन तीव्रता को 33 से 35 प्रतिशत तक कम करना।
  • वर्ष 2030 तक गैर-जीवाश्म ईंधन आधारित ऊर्जा संसाधनों से लगभग 40 प्रतिशत संचयी विद्युत ऊर्जा स्थापित क्षमता प्राप्त करना।

अगस्त 2022 में भारत ने अपने NDC में परिवर्तन किया 

  • सकल घरेलू उत्पाद की उत्सर्जन तीव्रता को कम करने का लक्ष्य वर्ष 2005 के स्तर से बढ़ाकर वर्ष 2030 तक 45 प्रतिशत कर दिया गया है।
  • गैर-जीवाश्म ईंधन आधारित ऊर्जा संसाधनों से संचयी विद्युत ऊर्जा स्थापित क्षमता का लक्ष्य वर्ष 2030 तक 50% तक बढ़ा दिया गया है।

इसके लिए भारत कोयले के उपयोग को चरणबद्ध तरीके से कम करने की योजना बना रहा है।

  • NFI की वर्ष 2021 रिपोर्ट के अनुसार, कोयले पर निर्भरता कम  करने से 13 मिलियन लोगों के प्रभावित होने की उम्मीद है और 266 जिले इस परिवर्तन के प्रति संवेदनशील होंगे।

कोयला खनन से संबंधित अन्य मुद्दे

  • पर्यावरणीय प्रभाव: कोयला खनन के महत्त्वपूर्ण पर्यावरणीय प्रभाव हैं, जिनमें वायु और जल प्रदूषण, मृदा क्षरण और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन शामिल हैं। इन प्रभावों से स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ, जैव विविधता का नुकसान और जलवायु परिवर्तन हो सकता है।
  • संसाधन ह्रास: कोयला एक गैर-नवीकरणीय संसाधन है, जो सीमित है। इसलिए, ऊर्जा उत्पादन के लिए इसका निरंतर उपयोग अंततः इसके ह्रास का कारण बन सकता है।
  • जलवायु परिवर्तन: कोयला ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में एक प्रमुख योगदानकर्ता है, जो जलवायु परिवर्तन के लिए जिम्मेदार है। ऊर्जा उत्पादन के लिए कोयले का निरंतर उपयोग असंवहनीय है और इससे पर्यावरण का और अधिक क्षरण होगा।

आगे की राह 

  • कर्मचारियों को स्वस्थ जीवनशैली के बारे में शिक्षित करने की आवश्यकता है, जिसमें मादक पदार्थो  के सेवन की आदतों को कम करने पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए।
  • इसके अतिरिक्त, उन्हें प्रासंगिक व्यावसायिक जोखिम कारकों के बारे में अवगत कराया जाना चाहिए और व्यावसायिक जोखिम से स्वयं को बचाने के लिए PPE का उपयोग करने और हस्तक्षेप उपाय करने पर जोर दिया जाना चाहिए।
  • COP26 में कोयले पर निर्भरता कम करने संबंधी चुनौती पर वैश्विक ध्यान केंद्रित करने को लेकर प्रतिबद्धता जताई गई है। इस चुनौती से निपटने के लिए एकजुट होने का दृष्टिकोण अपनाया जाना चाहिए।
  • परिवर्तन को सुगम बनाने के लिए पाँच स्पष्ट चैनल हैं-
    1. अस्थायी आय सहायता प्रदान करना।
    2. श्रमिकों की क्षमता/कौशल में वृद्धि।
    3. श्रमिकों को नई नौकरियों से जोड़ना।
    4. प्रभावित क्षेत्रीय श्रम बाजारों में श्रम की माँग बढ़ाने के लिए निजी क्षेत्र के व्यवसाय विकास को प्रोत्साहित करना।
    5. निजी निवेश और रोजगार सृजन के लिए अनुकूल नियामक व्यवस्था सुनिश्चित करना।

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