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वित्त वर्ष 2024 में विनिवेश लक्ष्य (Disinvestment Target in financial year 2024)

Samsul Ansari December 28, 2023 01:10 151 0

संदर्भ

विशेषज्ञों के अनुसार, आगामी आम चुनावों के कारण भारत सरकार चालू वित्त वर्ष के लिए विनिवेश लक्ष्य को प्राप्त करने में एक बार पुनः असफल रह सकती है।

संबंधित तथ्य

  • केंद्रीय बजट 2023-24 में विनिवेश से ₹51,000 करोड़ जुटाने का लक्ष्य रखा गया था। इसमें से लगभग 20% या ₹10,049 करोड़ ही एकत्र किया जा सका है।
    • इस वित्तीय वर्ष में अधिकांश संग्रह प्रारंभिक सार्वजनिक प्रस्ताव (Initial Public Offering- IPO) और ऑफर फॉर सेल (Offer For Sale-OFS) के माध्यम से अल्पांश हिस्सेदारी बिक्री के माध्यम से हुआ है।
    • इस वित्तीय वर्ष में निजीकरण की बड़ी योजनाएँ अपना लक्ष्य प्राप्त नहीं कर सकी हैं।
  • निजीकरण के लक्ष्य विफल
    • आगामी चुनावों के कारण भारत पेट्रोलियम कॉरपोरेशन लिमिटेड (BPCL), शिपिंग कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (SCI) और कॉनकोर जैसी इकाइयों के निजीकरण की योजनाओं में देरी हुई है।
    • सरकार ने कई कानूनी मामलों के कारण पवन हंस का निजीकरण रद्द कर दिया है।
    • एनएमडीसी स्टील लिमिटेड (NMDC Steel Ltd), बीईएमएल (BEML) और आईडीबीआई बैंक (IDBI Bank) सहित कई केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र उद्यमों (Central Public Sector Enterprises- CPSEs) की रणनीतिक बिक्री पर कार्य चल रहा है।
  • मंजूरी के बावजूद देरी
    • आईडीबीआई बैंक: इसकी बोली प्रक्रिया (Bidding Process) जनवरी 2023 में शुरू हुई, लेकिन बोलीदाताओं (Bidders) को अभी तक सरकार और आरबीआई से आवश्यक मंजूरी नहीं मिली है।
    • अन्य मामले: राष्ट्रीय इस्पात निगम लिमिटेड (Rashtriya Ispat Nigam Limited- RINL), कंटेनर कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (Container Corporation of India- CONCOR) और एआई एसेट होल्डिंग लिमिटेड (AI Asset Holding Ltd- AIAHL) की सहायक कंपनियाँ, जिन्हें कैबिनेट द्वारा ‘सैद्धांतिक रूप से’ मंजूरी मिल गई है किंतु उन्हें दीपम (Department of Investment and Public Asset Management- DIPAM) की तरफ से देरी की जा रही है।
  • चुनौतियाँ
    • कर्मचारी संघ: राष्ट्रीय इस्पात निगम लिमिटेड (RINL) और वाईजैग स्टील (Vizag Steel) की रणनीतिक बिक्री के प्रस्ताव का कर्मचारी संघों द्वारा विरोध किया है।
    • वैश्विक मंदी: विस्तारित नियामक प्रक्रियाओं, वैश्विक आर्थिक अस्थिरता, राजनीतिक विरोध और बदलती सरकारी प्राथमिकताओं जैसे कारक इस प्रक्रिया में देरी के मुख्य कारण हैं।
  • धन एकत्रीकरण का रुझान
    • अल्पांश हिस्सेदारी बिक्री: पिछले 10 वर्षों में विनिवेश से जुटाए गए लगभग ₹4.20 लाख करोड़ में से ₹3.15 लाख करोड़ अल्पांश हिस्सेदारी बिक्री से प्राप्त हुए हैं।
    • रणनीतिक बिक्री: 10 CPSEs – एचपीसीएल (HPCL), आरईसी (REC), डीसीआईएल (DCIL), एचएससीसी (NHCC), एनपीसीसी (NPCC), एनईईपीसीओ (NEEPCO), टीएचडीसी (THDC), कामराजार पोर्ट, एयर इंडिया और एनआईएनएल (NINL) में रणनीतिक लेनदेन से ₹69,412 करोड़ प्राप्त हुए हैं।
    • अन्य स्रोत: प्रत्यक्ष कर और जीएसटी संग्रह में वृद्धि हुई जबकि निजीकरण पर ध्यान कम रहा है।
  • अर्थव्यवस्था पर प्रभाव: विशेषज्ञों के अनुसार, जब तक सरकार को अपने राजकोषीय लक्ष्यों को पूरा करने में कोई समस्या नहीं आ रही है, तब तक विनिवेश लक्ष्य न प्राप्त कर पाना अधिक चिंताजनक नहीं है।

Selloff Report Card

विनिवेश (Disinvestment) के बारे में

  • परिभाषा: यह सरकार द्वारा सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी जैसी किसी संपत्ति या सहायक कंपनी को बेचने या उसमें अपनी हिस्सेदारी समाप्त करने की प्रक्रिया को संदर्भित करता है।
  • अर्थ: विनिवेश का अर्थ वित्तीय संसाधन उत्पन्न करने और निवेश पर रिटर्न (Returns on Investment- RoI) में सुधार करने के लिए सरकारी संपत्तियों की बिक्री है।
  • विनिवेश के तीन बुनियादी तरीके हैं
    • अधिकतम विनिवेश (Majority Disinvestment): सरकार कंपनी का एक हिस्सा अपने पास रखते हुए नियंत्रण और प्रबंधन निजी कंपनी को हस्तांतरित कर देती है। उदाहरण के लिए हिंदुस्तान लीवर को मॉडर्न फूड्स की बिक्री, स्टरलाइट को बाल्को (BALCO) की बिक्री।
    • अल्पांश विनिवेश (Minority Disinvestment): इसके अंतर्गत सरकार प्रबंधकीय नियंत्रण सुनिश्चित करते हुए व्यवसाय में बहुमत हिस्सेदारी (आमतौर पर 51% से अधिक) रखती है। जैसे- पॉवर ग्रिड कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड, रूरल इलेक्ट्रिफिकेशन कॉरपोरेशन लिमिटेड, एनटीपीसी लिमिटेड, एनएचपीसी लिमिटेड।
    • पूर्ण निजीकरण (Complete Privatization): इसके अंतर्गत निजी कंपनी को व्यवसाय का पूर्ण स्वामित्व प्राप्त होता है। जैसे- ITDC की 8 होटल संपत्तियाँ और HCI की 3 होटल संपत्तियाँ।

रणनीतिक विनिवेश के लिए नीति: विनिवेश के लिए नीति का मार्गदर्शन करने के लिए आर्थिक क्षेत्रों का दो-स्तरीय वर्गीकरण किया गया है:

  • रणनीतिक क्षेत्र: इन रणनीतिक क्षेत्रों को सहारा देने के लिए इन क्षेत्रों में सार्वजनिक क्षेत्र की न्यूनतम उपस्थिति होती है। इसके अंतर्गत आने वाले निम्नलिखित 4 क्षेत्र:
    • परमाणु ऊर्जा, अंतरिक्ष और रक्षा
    • परिवहन और दूरसंचार
    • बिजली, पेट्रोलियम, कोयला और अन्य खनिज
    • बैंकिंग, बीमा और वित्तीय सेवाएँ
  • गैर-रणनीतिक क्षेत्र: इस क्षेत्र में, सीपीएसई (CPSE) का निजीकरण किया जाता है या अन्य कंपनियों के साथ विलय किया जाता है।

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