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औपनिवेशिक मानसिकता को समाप्त करना

Lokesh Pal November 20, 2025 03:21 19 0

संदर्भ

प्रधानमंत्री ने वर्ष 1835 में मैकाले के शैक्षिक सुधारों से उत्पन्न तथा लगभग दो सदियों में संस्थागत, सांस्कृतिक और ज्ञान-आधारित संरचनाओं के माध्यम से सुदृढ़ हुई “औपनिवेशिक मानसिकता” को समाप्त करने हेतु दस वर्षीय राष्ट्रीय संकल्प का आह्वान किया।

10-वर्षीय राष्ट्रीय संकल्प (2025–2035)

  • औपनिवेशिक हीन भावना को समाप्त करना: उन गहरी सोच को दूर करना, जो शिक्षा, गवर्नेंस, संस्कृति और जीवनचर्या में पश्चिमी मॉडल को बेहतर मानती हैं।
  • सभ्यता-संबंधी आत्मविश्वास की पुनर्स्थापना: भारत की विरासत, भाषाओं और सांस्कृतिक ज्ञान पर गर्व को प्रोत्साहित करना, ताकि भारतीय पहचान शक्ति का स्रोत बने, न कि किसी प्रकार की हिचक या संकोच का कारण।
  • स्वदेशी ज्ञान प्रणाली (IKS) का पुनरुत्थान: भारत की शास्त्रीय विज्ञान, दर्शन, कला, गणित तथा चिकित्सा परंपराओं को मुख्यधारा की शिक्षा और अनुसंधान में समुचित रूप से एकीकृत करना।
  • एक आत्मनिर्भर वहनीय मॉडल का निर्माण करना: PLI, डिजिटल पब्लिक इन्फ्रास्ट्रक्चर और स्वदेशी विनिर्माण के माध्यम से आत्मनिर्भर भारत दृष्टिकोण को मजबूत करना ताकि विदेशी मूल्य  शृंखला पर निर्भरता कम हो सके।
  • गवर्नेंस और राजनीति को नई दिशा देना: चुनाव-केंद्रित दृष्टिकोण को कार्य-आधारित शासन में रूपांतरित करना, जिसे प्रधानमंत्री ने ‘इमोशन मोड 24×7’ कहा है, अर्थात् नागरिक-प्रथम सार्वजनिक सेवा की सतत् प्रतिबद्धता।

शिक्षा पर मैकाले का कार्यवृत्त (1835) 

  • थॉमस बैबिंगटन मैकाले द्वारा लिखित; 2 फरवरी, 1835 को प्रस्तुत किया गया।
  • इसमें पारंपरिक संस्कृत–अरबी शिक्षा के स्थान पर अंग्रेजी माध्यम की शिक्षा को अधिक उपयुक्त विकल्प के रूप में प्रस्तुत किया गया।
  • इसका प्रसिद्ध व्यक्तव्य है, “एक अच्छी यूरोपियन लाइब्रेरी की एक शेल्फ भारत और अरब के पूरे देसी साहित्य के बराबर है”।
  • उद्देश्य: ऐसे लोगों का एक समूह तैयार करना, जो ‘खून और रंग में भारतीय हों, लेकिन पसंद, राय, नैतिकता और समझ में ब्रिटिश हों।”
  • भारतीय संस्थानों से अंग्रेजी संस्थानों को धन का स्थान्नातरण किया गया।
  • दीर्घावधि प्रभाव
    • पारंपरिक ज्ञान पारिस्थितिकी तंत्र का ह्रास।
    • अंग्रेजी-भाषी अभिजात वर्ग का गठन।
    • सांस्कृतिक हीन भावना और पश्चिमी मान्यता पर संज्ञानात्मक निर्भरता।

भारत में औपनिवेशिक मानसिकता के तत्त्व

  • भाषा का प्रभुत्व और भाषायी पदानुक्रम
    • अंग्रेजी-केंद्रित शिक्षा: मैकाले के वर्ष 1835 के कार्यवृत्त ने प्रशासन तथा शिक्षा के माध्यम के रूप में अंग्रेजी को लागू किया।।
      • न्यायपालिका, कुलीन शिक्षा जगत, कॉरपोरेट नेतृत्व और सिविल सेवाओं में अंग्रेजी का प्रभुत्व है।
    • प्रतिष्ठा पदानुक्रम: अंग्रेजी माध्यम की स्कूली शिक्षा विशेषाधिकार से संबंधित है, जबकि स्थानीय भाषा माध्यम के छात्रों को संरचनात्मक असुविधाओं का सामना करना पड़ता है।
    • ज्ञान-मीमांसा पर निर्भरता: प्रमुख शोध, पाठ्य पुस्तकें, कानूनी प्रावधान, STEM (विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित) सामग्री मुख्यतः अंग्रेजी में उपलब्ध है।
  • सांस्कृतिक अवमूल्यन और सभ्यतागत असुरक्षा
    • आंतरिक हीनता: औपनिवेशिक शिक्षा ने यह धारणा स्थापित की कि पश्चिमी संस्कृति को प्रगति के पर्याय के रूप में देखा जाए, जबकि भारतीय परंपराओं को पिछड़ेपन से जोड़ा जाए।
      • उदाहरण के लिए: कार्यस्थलों पर पश्चिमी ड्रेस कोड (उष्णकटिबंधीय जलवायु में सूट/टाई) को अपनाना, भारतीय मौसम में ऐसे कपड़ों की अनुपयुक्तता के बावजूद, औपनिवेशिक प्रशासनिक मानदंडों की विरासत है।
    • विरासत की उपेक्षा: कई मंदिरों, किलों और स्मारकों को सांस्कृतिक-आर्थिक संपत्ति के स्थान पर खंडहर माना जाता है।
      • उदाहरण के लिए: गुजरात, राजस्थान और दिल्ली में ऐतिहासिक बावड़ियाँ (जैसे, नवीनीकरण से पूर्व अग्रसेन की बावली) वास्तुशिल्पीय महत्त्व के बावजूद दशकों तक उपेक्षित रहीं।
    • पर्यटन और सांस्कृतिक अंतराल: जापान, इटली, थाईलैंड की तुलना में भारत ने अपनी सभ्यतागत विरासत का कम उपयोग किया।
      • भारत द्वारा सभ्यतागत विरासत का कम उपयोग: भारत में 40 यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल हैं, लेकिन खराब बुनियादी ढाँचे, व्याख्या केंद्रों की कमी और कम निवेश के कारण विरासत-केंद्रित पर्यटन सीमित रहा।
      • जापान: समुराई संस्कृति, शिंटो तीर्थस्थल और एदो-कालीन वास्तुकला को गौरव के साथ प्रस्तुत करता है। क्योटो प्रतिवर्ष लाखों पर्यटकों को आकर्षित करता है।
      • इटली: रोम, फ्लोरेंस और वेनिस ने रोमन, पुनर्जागरण और कैथोलिक विरासत का जीर्णोद्धार करके एक वैश्विक पर्यटन अर्थव्यवस्था का निर्माण किया।
        • इटली सांस्कृतिक पर्यटन से प्रतिवर्ष अरबों डॉलर कमाता है।
      • थाईलैंड: बौद्ध मंदिरों को राष्ट्रीय पहचान के रूप में स्थापित करने से बैंकॉक और चियांग माई वैश्विक पर्यटन के आकर्षण के केंद्र बन गए।
  • औपनिवेशिक संरचनाओं में निहित कानून और संस्थाएँ
    • औपनिवेशिक कानूनी आधार (ऐतिहासिक): भारतीय दंड संहिता (IPC) 1860, दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (औपनिवेशिक मूल का ढाँचा), साक्ष्य अधिनियम, 1872 ने 150 से अधिक वर्षों तक पुलिस व्यवस्था और न्याय को आकार दिया।
    • नौकरशाही में औपनिवेशिक लोकाचार: पदानुक्रमित, आदेश-नियंत्रण दृष्टिकोण और नागरिक-केंद्रित सेवा अभिविन्यास का अभाव।
    • पुलिस संस्कृति: नियंत्रण, दबाव और अभिलेख-संचालन पर बल, सामुदायिक सेवा का प्राथमिक केंद्र नहीं।
  • आर्थिक और विकास कल्पना
    • पश्चिम-केंद्रित विकास मापदंड: GDP, शहरी आधुनिकता और औद्योगीकरण की पश्चिमी अवधारणाओं के माध्यम से विकास का अवलोकन।
      • उदाहरण के लिए: प्रारंभिक पंचवर्षीय योजनाओं (1951-1970 के दशक) में GDP-केंद्रित योजना ने सोवियत/पश्चिमी औद्योगिक ढाँचों पर आधारित भारी उद्योग और इस्पात उत्पादन पर बल दिया, जबकि हथकरघा, ग्रामोद्योग, आयुर्वेद और स्थानीय शिल्प जैसे पारंपरिक क्षेत्रों की उपेक्षा की गई।
    • वैश्विक मूल्य शृंखलाओं में कम मूल्य की भूमिका: औपनिवेशिक कच्चे माल आपूर्तिकर्ता की भूमिका स्वतंत्रता के बाद दशकों तक बनी रही।
    • उपभोग-आधारित पश्चिमी अनुकरण: पश्चिमी उपभोक्ता संस्कृति द्वारा आकारित आकांक्षात्मक जीवनशैली के रुझान।
      • उदाहरण के लिए: 1990 के दशक से शहरी भारत में पश्चिमी फास्ट-फूड शृंखलाओं (मैकडॉनल्ड्स, KFC, डोमिनोज) का तेजी से विस्तार हुआ है, जो युवाओं के लिए आकांक्षात्मक जीवन शैली के प्रतीक बन गए हैं, और प्रायः स्थानीय स्ट्रीट फूड तथा पारंपरिक भोजनालयों का स्थान ग्रहण कर रहे हैं।
  • ज्ञान प्रणालियाँ और ज्ञानमीमांसीय उपनिवेशवाद
    • स्वदेशी ज्ञान का दमन: आयुर्वेद, शास्त्रीय गणित, खगोल विज्ञान, न्याय तर्कशास्त्र, राजनीतिक सिद्धांत (अर्थशास्त्र) की।
    • पश्चिमी मान्यता पूर्वाग्रह: पश्चिमी पत्रिकाओं और सैद्धांतिक ढाँचों के आधार पर शोध की गुणवत्ता का आकलन।
  • सामाजिक आकांक्षाएँ और संस्थागत संस्कृति
    • आयातित विचारधाराएँ: वाम-दक्षिणपंथी द्विआधारी, यूरोपीय राजनीतिक दर्शन भारतीय विमर्श पर प्रभावी हैं।
      • उदाहरण के लिए: भारतीय राजनीति में “वाम बनाम दक्षिणपंथ” पर बहस, गांधी, अंबेडकर या अरबिंदो द्वारा वर्णित धर्म-अधर्म, लोकसंग्रह, सर्वोदय, न्याय या समुदाय-केंद्रित शासन जैसी स्वदेशी श्रेणियों के स्थान पर पश्चिमी वैचारिक दृष्टिकोण को प्रतिबिंबित करती है।
    • अंग्रेजी का अभिजात्यीकरण: अंग्रेजी बोलने वाले अभिजात वर्ग शिक्षा जगत, न्यायपालिका, नौकरशाही और मीडिया को आकार देते हैं।
      • उदाहरण के लिए: सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय और कार्यवाही मुख्यतः अंग्रेजी में होती हैं, जिससे अंग्रेजी में शिक्षित वकीलों का व्यावहारिक एकाधिकार स्थापित हो जाता है और आम नागरिकों की सीधी पहुँच सीमित हो जाती है।
  • संवैधानिक और अधिकार-आधारित औपनिवेशिक मानसिकता
    • बलपूर्वक प्रावधानों का प्रतिधारण: राजद्रोह जैसे प्रावधान, निवारक निरोध, औपनिवेशिक पुलिस व्यवस्था।
      • उदाहरण के लिए: राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (NSA) जैसे निवारक निरोध कानून, राज्य के पूर्व-नियंत्रित नियंत्रण के औपनिवेशिक तर्क को प्रतिबिंबित करते हैं।
    • प्रक्रियात्मक जटिलता: कानूनी भाषा और न्यायालयीन प्रक्रियाएँ आम नागरिकों के लिए दुर्गम हैं।
  • प्रौद्योगिकी, AI और संज्ञानात्मक निर्भरता
    • तकनीक में भाषा-विषमता: अंग्रेजी केंद्रित AI मॉडल, डेटासेट और सर्च इंजन भारतीय भाषाओं के समुचित समावेशन को सीमित कर रहे हैं।
    • पश्चिमी प्लेटफॉर्म पर निर्भरता: डिजिटल पारिस्थितिकी तंत्र, जो पहले विदेशी तकनीकी एकाधिकार के माध्यम से निर्मित होते थे।
      • उदाहरण के लिए: UPI के आगमन द्वारा भारत के डिजिटल भुगतान परिदृश्य में परिवर्तन लाए जाने से पूर्व, इस क्षेत्र पर वीजा और मास्टरकार्ड का प्रभुत्व था।
      • अमेजन और फ्लिपकार्ट (वॉलमार्ट के स्वामित्व वाली) ने ई-कॉमर्स एल्गोरिदम, विक्रेता दृश्यता और मूल्य निर्धारण को आकार दिया।

सुधारात्मक उपाय

  • कानूनी और संस्थागत सुधार
    • नए आपराधिक कानून (1 जुलाई, 2024 से):
      • भारतीय न्याय संहिता (BNS) जो IPC का स्थान  लेती है।
      • भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) जो CrPC का स्थान लेती है।
      • भारतीय साक्ष्य अधिनियम (BSA) जो साक्ष्य अधिनियम का स्थान ग्रहण करता है।
    • पुलिस व्यवस्था और प्रक्रिया में सुधार
      • गंभीर अपराधों के लिए अनिवार्य फोरेंसिक जाँच; डिजिटल FIR; और अधिक सशक्त पीड़ित केंद्रित प्रक्रियाएँ।
      • सामुदायिक जागरूकता अभियान: “पुलिस की पाठशाला” पहल।
  • शैक्षिक और भाषायी सुधार
    • राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 और राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा (NCF) 2023: मातृभाषा आधारित आधारभूत शिक्षा और बहुभाषावाद।
    • सीबीएसई 2025-26 निर्देश: CBSE ने अनिवार्य किया है कि उसके संबद्ध स्कूल प्रारंभिक कक्षाओं (आधारभूत और प्रारंभिक चरण) के लिए प्राथमिक शिक्षण माध्यम के रूप में मातृभाषा या किसी परिचित क्षेत्रीय भाषा का उपयोग करें।
    • भारतीय भाषा उच्च शिक्षा का विस्तार: अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (AICTE) अपनी तकनीकी पुस्तक लेखन एवं अनुवाद योजना तथा अनुवादक एआई टूल के प्रयोग के माध्यम से विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग, गणित, विधि तथा तकनीकी पाठ्यपुस्तकों के भारतीय भाषाओं में अनुवाद को प्रोत्साहित कर रही है।
  • सांस्कृतिक पुनरुत्थान और विरासत-आधारित विकास
    • विरासत परियोजनाएँ
      • काशी विश्वनाथ कॉरिडोर ने भीड़भाड़ वाले मंदिर परिसर को एक सुसंगठित और सजीव सांस्कृतिक स्थल में रूपांतरित किया, जो प्रतिवर्ष लाखों श्रद्धालुओं तथा पर्यटकों को आकर्षित करता है।
      • महाकाल लोक कॉरिडोर (उज्जैन) ने उपेक्षित क्षेत्र को एक महत्त्वपूर्ण आध्यात्मिक पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित किया है।
      • हैदराबाद के कुतुब शाही मकबरों तथा लद्दाख स्थित जास्कर मठों का पुनरुद्धार देश में सतत् विरासत संरक्षण की बढ़ती प्रवृत्ति को दर्शाता है।
    • भारतीय कलाओं और प्रणालियों का पुनरुद्धार: शास्त्रीय कलाओं, संस्कृत संस्थानों, आयुर्वेद और योग अनुसंधान को समर्थन।
      • योग अनुसंधान: अंतरराष्ट्रीय योग दिवस (संयुक्त राष्ट्र), नए योग प्रमाणन बोर्ड और आयुष एवं एम्स के सहयोग से मानसिक स्वास्थ्य एवं जीवन शैली संबंधी बीमारियों के लिए योग पर वैज्ञानिक अध्ययन।
      • आयुर्वेद: अखिल भारतीय आयुर्वेद संस्थान (AIIA), एकीकृत चिकित्सा केंद्रों की स्थापना, और आयुर्वेद स्वास्थ्य पर्यटन को वैश्विक स्तर पर बढ़ावा देना।
    • अन्य उदाहरण: नए संसद भवन में ‘सेंगोल’ की स्थापना भारत की लोकतांत्रिक और ऐतिहासिक विरासत का प्रतीक है।
      • राजपथ (जो औपनिवेशिक शासन का प्रतीक है) का नाम बदलकर कर्तव्य पथ कर दिया गया है। यह अधिकार से अधिक कर्तव्य पर बल देता है।
  • आर्थिक पुनर्विन्यास
    • PLI योजनाएँ: घरेलू इलेक्ट्रॉनिक्स, सेमीकंडक्टर, विमानन, फार्मा, वस्त्र उद्योग को बढ़ावा देना।
      • उदाहरण के लिए: 14 क्षेत्रों (इलेक्ट्रॉनिक्स, सेमीकंडक्टर, फार्मा, सौर ऊर्जा, वस्त्र उद्योग) में उत्पादन के लिए प्रोत्साहन।
    • आत्मनिर्भर भारत: आयात पर निर्भरता कम करना; घरेलू नवाचार को मजबूत करना।
    • डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना: भारत स्टैक (यूपीआई, आधार, डिजिलॉकर, ONDC) को वैश्विक मॉडल के रूप में निर्यात किया गया।
      • भारत स्टैक: यूपीआई, आधार, डिजिलॉकर, ई-केवाईसी, फास्टैग और ONDC मिलकर एक खुले तथा अंतर-संचालनीय डिजिटल तंत्र का निर्माण करते हैं, जो वैश्विक स्तर पर अप्रतिम है।
  • ज्ञान प्रणाली पुनरुद्धार
    • भारतीय ज्ञान प्रणालियाँ (IKS) प्रकोष्ठ: पारंपरिक भारतीय विज्ञान, दर्शन और प्रौद्योगिकियों का एकीकरण।
    • वैश्विक सांस्कृतिक कूटनीति: अंतरराष्ट्रीय योग दिवस, आयुर्वेद पर्यटन, बौद्ध कूटनीति।
  • प्रौद्योगिकी और डिजिटल संप्रभुता
    • भारतीय-भाषा AI मिशन: बहुभाषी डेटासेट के लिए भाषिनी; भारत-विशिष्ट AI मॉडल।
    • भाषिनी मिशन: यह पहल भारतीय भाषाओं के लिए व्यापक डेटासेट और उपयुक्त उपकरण विकसित कर रही है, ताकि AI प्रणालियाँ हिंदी, तमिल, बंगाली, मराठी, कन्नड़ सहित अन्य भाषाओं में भी वही दक्षता प्रदर्शित करें, जो वे अंग्रेजी में करती हैं।
    • खुला डिजिटल पारिस्थितिकी तंत्र: ONDC डिजिटल एकाधिकार को चुनौती देगा और छोटे भारतीय खुदरा विक्रेताओं को सशक्त बनाएगा।
      • ONDC छोटे विक्रेताओं को अमेजन एवं फ्लिपकार्ट जैसे प्रमुख मध्यस्थ प्लेटफॉर्मों पर निर्भर हुए बिना व्यापक डिजिटल बाजार तक पहुँच उपलब्ध कराकर ई-कॉमर्स का लोकतंत्रीकरण करता है।

आगे की राह: संज्ञानात्मक विऔपनिवेशीकरण

  • भाषायी उपनिवेशवाद का उन्मूलन करना
    • भारतीय भाषाओं को सभी क्षेत्रों में अंग्रेजी के समकक्ष स्थापित करना: स्थानीय भाषा की अदालतों, प्रशासनिक आदेशों और संसदीय कार्यवाहियों का विस्तार करना।
      • भारतीय भाषाओं में उच्च-गुणवत्ता वाली STEM और चिकित्सा सामग्री का विस्तार करना।
  • भारतीय ज्ञान प्रणालियों का पुनरुद्धार करना
    • पाठ्यक्रम-स्तरीय एकीकरण: उच्च शिक्षा में भारतीय तर्कशास्त्र, खगोल विज्ञान, राजनीतिक चिंतन, पारिस्थितिकी और गणित को शामिल करना।
    • संस्थागत अनुसंधान: भारतीय ज्ञानमीमांसा, आयुर्वेद, योग, प्रदर्शन कला और संस्कृत के लिए वैश्विक केंद्र स्थापित करना।
  • कानूनी एवं प्रशासनिक संस्कृति में परिवर्तन
    • कानूनों में परिवर्तन: पुलिस व्यवस्था की प्रकृति को “नियंत्रण बल” से बदलकर “सेवा संस्थान” में बदलना।
      • कानूनी प्रक्रियाओं को सरल बनाना; कानूनी सहायता का विस्तार करना; स्थानीय भाषा में पहुँच सुनिश्चित करना।
    • नागरिक-केंद्रित नौकरशाही: गोपनीयता/प्राधिकार से पारदर्शिता, डिजिटल सेवा वितरण और सहभागी शासन की ओर परिवर्तन।
  • व्यावहारिक और मनोवैज्ञानिक परिवर्तन
    • पश्चिम को श्रेष्ठ मानने वाली मानसिकता का परित्याग: स्वदेशी उपलब्धियों पर केंद्रित जन-अभियान तथा शिक्षा के माध्यम से आत्मविश्वासपूर्ण राष्ट्रीय दृष्टिकोण को सुदृढ़ करना।
    • संतुलित वैश्वीकरण का प्रोत्साहन: विश्वव्यापी ज्ञान और विचारों के प्रति खुलापन बनाए रखते हुए नीति-निर्माण तथा सामाजिक विकास को भारतीय सांस्कृतिक-वैचारिक आधार पर स्थिर रखना।
    • मीडिया को नैतिक संस्था के रूप में सशक्त करना: रामनाथ गोयनका की परंपरा से प्रेरित निर्भीक, तथ्य-आधारित और उत्तरदायी पत्रकारिता को प्रोत्साहित करना।
  • सांस्कृतिक आत्मविश्वास और सभ्यतागत आधारशिला
    • अनुकरण-आधारित आधुनिकता से सभ्यता-आधारित आधुनिकता की ओर अग्रसर होना: भारतीय सभ्यता के प्रतीकों, त्योहारों, वास्तुकला तथा पारंपरिक खाद्य प्रणालियों के प्रोत्साहन के माध्यम से सांस्कृतिक आधार को सुदृढ़ करना।
  • संवैधानिक विउपनिवेशीकरण का गहराना
    • अवशिष्ट बलपूर्वक प्रावधानों को हटाना: नए नियमों के अंतर्गत निवारक निरोध और राजद्रोह जैसी धाराओं की समीक्षा करना।
    • स्थानीय भाषाओं में अधिकार: नागरिकों को अंग्रेजी भाषा की बाधाओं के बिना अपने अधिकारों को समझने और उनके बारे में पूरी तरह जागरूक होने में सक्षम होना चाहिए।
  • आर्थिक और रणनीतिक उपनिवेशवाद का उन्मूलन
    • नवाचार-आधारित आत्मनिर्भरता: रक्षा, विमानन, डीप-टेक, जैव प्रौद्योगिकी में स्वदेशी अनुसंधान एवं विकास।
    • वैश्विक मूल्य शृंखला में सुधार की भूमिका: असेंबली से डिजाइन-आधारित मूल्य सृजन की ओर बढ़ना।
    • संप्रभु प्रौद्योगिकी स्टैक: स्वदेशी चिप डिजाइन, क्लाउड सेवाएँ, एआई प्लेटफॉर्म।
  • स्वदेशी आधुनिकता के माध्यम से वैश्विक नेतृत्व
    • भारत एक “उभरता हुआ मॉडल” है, न कि एक उभरता हुआ बाजार: लोकतंत्र, डिजिटल पब्लिक इन्फ्रास्ट्रक्चर (DPI), बहुसांस्कृतिकता और सभ्यतागत कूटनीति के आधार पर, जो पश्चिमी या चीनी विकास मॉडलों के एक विशिष्ट भारतीय विकल्प का प्रतिनिधित्व करता है।
    • दक्षिण-दक्षिण ज्ञान साझाकरण: एक्सपोर्ट इंडिया स्टैक, स्वास्थ्य प्लेटफॉर्म, भाषा-प्रौद्योगिकी उपकरण तथा विरासत संरक्षण ढाँचे, ये सभी भारत के उभरते वैश्विक समाधानों और संस्थागत क्षमताओं का प्रतिनिधित्व करते हैं।

निष्कर्ष

संज्ञानात्मक विऔपनिवेशीकरण विश्व को अस्वीकार करना नहीं है, बल्कि यह भारत का अपनी भाषा, विरासत, ज्ञान प्रणालियों और लोकतांत्रिक आत्मविश्वास के बल पर विश्व के साथ जुड़ने का प्रयास है।

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