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भारतीय चावल की किस्मों में विविध नाइट्रोजन दक्षता

Lokesh Pal August 13, 2024 02:48 61 0

संदर्भ

भारतीय जैव प्रौद्योगिकीविदों ने भारत में चावल की लोकप्रिय किस्मों के बीच नाइट्रोजन उपयोग क्षमता में व्यापक भिन्नता की खोज की है।

पृष्ठभूमि 

  • उपज पर ऐतिहासिक फोकस (Historical Focus on Yield): भारतीय कृषि ने ऐतिहासिक रूप से NUE की तुलना में उपज को प्राथमिकता दी है, जिसके परिणामस्वरूप सिंथेटिक उर्वरक का उपयोग और संबंधित प्रदूषण में वृद्धि हुई है। 
  • किस्म रैंकिंग का अभाव (Lack of Variety Ranking): भारत में NUE पर आधारित फसल किस्मों के लिए रैंकिंग प्रणाली का अभाव है, जिससे चयन या प्रजनन के माध्यम से फसल सुधार में बाधा आती है। 
  • भारत में यूरिया की खपत: भारत में कुल यूरिया का दो-तिहाई हिस्सा अनाजों द्वारा खपत किया जाता है, जिसमें चावल का प्रमुख योगदान है। 
  • आर्थिक प्रभाव (Economic Impact): चावल में खराब नाइट्रोजन-उपयोग दक्षता (Nitrogen Use Efficiency- NUE) के कारण भारत में प्रतिवर्ष 1 ट्रिलियन रुपये और विश्व स्तर पर 170 बिलियन डॉलर से अधिक मूल्य का यूरिया बर्बाद होता है। 
  • पर्यावरण संबंधी चिंताएँ: नाइट्रोजन उर्वरक नाइट्रस ऑक्साइड (N2O) और अमोनिया प्रदूषण के प्रमुख स्रोत हैं, जो स्वास्थ्य, जैव विविधता और जलवायु परिवर्तन को प्रभावित करते हैं। 
  • ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन (Greenhouse Gas Emissions): भारत नाइट्रस ऑक्साइड (N2O) का दुनिया में दूसरा सबसे बड़ा उत्सर्जक है, जिसका मुख्य कारण उर्वरक का उपयोग है, जो वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में महत्त्वपूर्ण योगदान देता है। 
  • वैश्विक प्रतिबद्धताएँ: भारत कुनमिंग-मॉन्ट्रियल वैश्विक जैव विविधता फ्रेमवर्क (Kunming-Montreal Global Biodiversity Framework), 2022 का हस्ताक्षरकर्ता है, जो देशों को वर्ष 2030 तक सभी स्रोतों से पोषक तत्त्वों की बर्बादी को आधा करने का आदेश देता है। 

मुख्य निष्कर्ष

  • अध्ययन के निष्कर्ष: अध्ययन में एक हजार से अधिक चावल की किस्मों की जाँच की गई और NUE में महत्त्वपूर्ण भिन्नता की पहचान की गई। 20 पैरामीटर NUE के साथ दृढ़ता से संबद्ध पाए गए, जिनमें आठ नए पैरामीटर शामिल थे।
  •  NUE में भिन्नता: अध्ययन में चावल की किस्मों में NUE में पाँच गुना भिन्नता पाई गई। उच्च NUE हमेशा उच्चतम पैदावार से संबंधित नहीं होता है।
  • सुधार की संभावना (Potential for Improvement): किसानों की भूमि प्रजातियों सहित चावल की व्यापक किस्मों की खोज करके NUE में सुधार की संभावना है। 
  • इस खोज का महत्त्व: इस खोज का उपयोग नई किस्मों को विकसित करने के लिए किया जा सकता है, जो कम नाइट्रोजन का उपयोग करती हैं और उच्च उपज देती हैं, जिससे आयातित उर्वरकों पर खर्च कम होगा और नाइट्रोजन से जुड़े प्रदूषण में कमी आएगी। 

नाइट्रोजन उपयोग दक्षता (Nitrogen Use Efficiency- NUE) 

  • नाइट्रोजन उपयोग दक्षता से तात्पर्य किसी फसल को उपलब्ध नाइट्रोजन (प्राकृतिक और कृत्रिम) के सापेक्ष उसकी उपज से है। 
    • इसे फसलों द्वारा प्रभावी रूप से उपयोग की जाने वाली नाइट्रोजन की मात्रा और लागू की गई नाइट्रोजन की मात्रा के अनुपात के रूप में परिभाषित किया जाता है। यह मापता है कि कोई पौधा विकास और उत्पादकता के लिए नाइट्रोजन का कितना अच्छा उपयोग करता है। 

कृषि में NUE का महत्त्व

  • फसल की पैदावार को अनुकूलतम बनाना: फसल की पैदावार को अधिकतम करने के लिए नाइट्रोजन का कुशल उपयोग महत्त्वपूर्ण है। 

  • खराब NUE का आर्थिक प्रभाव: खराब NUE के कारण नाइट्रोजन उर्वरक की भारी बर्बादी होती है, जिसकी लागत भारत में प्रतिवर्ष 1 लाख करोड़ रुपये और विश्व स्तर पर 170 बिलियन डॉलर से अधिक होने का अनुमान है। 
  • पर्यावरणीय परिणाम: अकुशल नाइट्रोजन प्रबंधन ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन (जैसे, नाइट्रस ऑक्साइड) और जल निकाय यूट्रोफिकेशन (Water Body Eutrophication) में योगदान देता है, जो जलीय पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान पहुँचाता है। 
  • उन्नत NUE के लाभ: NUE में वृद्धि से उर्वरक लागत में कमी एवं पर्यावरणीय प्रभावों को न्यूनतम करके किसानों की उत्पादकता एवं लाभप्रदता में वृद्धि हो सकती है। 

नाइट्रोजन उपयोग दक्षता (NUE) को प्रभावित करने वाले कारक 

  • आनुवंशिकी: पौधों की विविधता NUE को प्रभावित करती है, जिससे समग्र नाइट्रोजन उपयोग दक्षता प्रभावित होती है। 
  • मृदा की स्थिति: मृदा का प्रकार और स्वास्थ्य नाइट्रोजन अवशोषण को प्रभावित करता है, जिससे फसल की पैदावार और उर्वरक की आवश्यकता प्रभावित होती है। 
  • उर्वरक अनुप्रयोग (Fertiliser Application): अनुप्रयोग का प्रकार, समय और विधि दक्षता को प्रभावित करते हैं तथा इनपुट लागत और पर्यावरणीय प्रभाव को प्रभावित करते हैं। 
  • फसल प्रबंधन: चक्रीकरण और आवरण फसल जैसी पद्धतियाँ NUE में सुधार करती हैं, उत्पादकता बढ़ाती हैं और बर्बादी को कम करती हैं। 
  • पर्यावरणीय परिस्थितियाँ: मौसम और जलवायु नाइट्रोजन के उपयोग को प्रभावित करते हैं, तथा पौधों की वृद्धि और पोषक तत्त्वों की उपलब्धता को प्रभावित करते हैं। 
  • मृदा सूक्ष्मजीव: सूक्ष्मजीवी गतिविधियाँ नाइट्रोजन की उपलब्धता को प्रभावित करती हैं तथा समग्र पोषक तत्त्व अवशोषण और पौधों के स्वास्थ्य को प्रभावित करती है। 

निष्कर्ष

फसल की NUE को बढ़ाने के लिए जैव प्रौद्योगिकी का लाभ उठाने पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए। इसके अतिरिक्त, विभिन्न कृषि जलवायु परिस्थितियों के लिए उपयुक्त उच्च NUE वाली किस्मों की पहचान करने के लिए चावल की किस्मों की बड़े पैमाने पर जाँच आवश्यक है। 

नाइट्रोजन (N)

  • परिचय: पृथ्वी के वायुमंडल में प्रमुख गैस नाइट्रोजन जीवन के लिए महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह मिट्टी, भोजन और हमारे DNA में पाई जाती है।
    • नाइट्रोजन (N) को एक आवश्यक सूक्ष्म पोषक तत्त्व (Macronutrient) माना जाता है।
    • सूक्ष्म पोषक तत्त्व (Macronutrient) उन आवश्यक पोषक तत्त्वों में से एक है जो पौधों को उनकी वृद्धि और विकास के लिए अपेक्षाकृत बड़ी मात्रा में चाहिए। 
  • नाइट्रोजन का महत्त्व (Significance of Nitrogen): यह पौधों में प्रोटीन, एंजाइम, क्लोरोफिल और DNA के लिए आवश्यक है, प्रकाश संश्लेषण, अमीनो एसिड उत्पादन और महत्त्वपूर्ण पौधों की संरचनाओं का समर्थन करता है। 
    • अपर्याप्त नाइट्रोजन के कारण विकास अवरुद्ध हो जाता है, पत्तियाँ पीली पड़ जाती हैं तथा उपज कम हो जाती है।
  • नाइट्रोजन निर्धारण (Nitrogen Fixation): वायुमंडल का 78% हिस्सा होने के बावजूद, अधिकांश जीव वायुमंडलीय नाइट्रोजन का सीधे उपयोग नहीं कर सकते, जिसके लिए नाइट्रोजन निर्धारण जैसी रूपांतरण प्रक्रियाओं की आवश्यकता होती है। 
    • नाइट्रोजन स्थिरीकरण वह प्रक्रिया है, जिसके द्वारा नाइट्रोजन को वायुमंडल में उसके आणविक रूप (N2) से लिया जाता है और अन्य जैव रासायनिक प्रक्रियाओं के लिए उपयोगी नाइट्रोजन यौगिकों में परिवर्तित किया जाता है। 
    • फिक्सेशन वायुमंडलीय (आकाशीय बिजली), औद्योगिक, या जैविक प्रक्रियाओं के माध्यम से हो सकता है।
  • नाइट्रोजन प्रदूषण: यह पर्यावरण में नाइट्रोजन यौगिकों की अत्यधिक उपस्थिति को संदर्भित करता है, जो अक्सर कृषि, औद्योगिक प्रक्रियाओं और परिवहन जैसी मानवीय गतिविधियों के परिणामस्वरूप होता है। 
    • नाइट्रोजन की अधिकता से विभिन्न पर्यावरणीय समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं, जिनमें जल प्रदूषण, वायु प्रदूषण और पारिस्थितिकी तंत्र में व्यवधान शामिल हैं। 
  • नाइट्रोजन प्रदूषण के स्रोत
    • कृषि उर्वरक: अत्यधिक उपयोग से नाइट्रस ऑक्साइड उत्सर्जन होता है, जो एक शक्तिशाली ग्रीनहाउस गैस है।
    • सीवेज: उचित तरीके से उपचार न किए जाने पर नाइट्रोजन प्रदूषण में योगदान देता है।
    • खाद्य अपशिष्ट: इसमें नाइट्रोजन की मात्रा अधिक होती है, जो मानव और पशुधन दोनों स्रोतों से उत्पन्न होता है। 
    • अपशिष्ट जल उपचार: नाइट्रोजन निष्कासन प्रक्रियाओं के बिना सुविधाएँ पानी में नाइट्रोजन के स्तर को बढ़ा सकती हैं। 
    • स्टॉर्म वाटर अपवाह: शहरी अपवाह सड़कों और छतों से नाइट्रोजन और फास्फोरस को जल निकायों तक ले जाता है।
    • जीवाश्म ईंधन का उपयोग: स्वच्छ प्रौद्योगिकियों के बावजूद, डीजल वाहन अभी भी नाइट्रोजन प्रदूषण में योगदान करते हैं। 

नाइट्रोजन प्रदूषण का प्रभाव

  • पारिस्थितिकी तंत्रों में व्यवधान (Disruption of Ecosystems): जलीय पारिस्थितिकी तंत्र विषाक्त शैवाल प्रस्फुटन और तटीय मृत क्षेत्रों (Coastal Dead Zones) से ग्रस्त हैं, जो वैश्विक जैव विविधता के लिए खतरा उत्पन्न करते हैं।
    • नाइट्रोजन प्रदूषण से सुपोषण [यूट्रोफिकेशन (Eutrophication)] हो सकता है। 
    • सुपोषण एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें जल निकाय पोषक तत्त्वों से अत्यधिक समृद्ध हो जाता है, जिसके परिणामस्वरूप शैवाल, प्लवक आदि की प्रचुर वृद्धि होती है।
  • भूजल प्रदूषण: नाइट्रेट का बढ़ा हुआ स्तर पेयजल स्रोतों को दूषित करता है।
  • मृदा स्वास्थ्य में गिरावट (Soil Health Deterioration): नाइट्रोजन प्रदूषण मृदा की गुणवत्ता एवं उर्वरता पर नकारात्मक प्रभाव डालता है। 
  • जलवायु परिवर्तन में योगदान: उर्वरकों और कृषि उत्सर्जन से नाइट्रस ऑक्साइड और अमोनिया उत्सर्जित होते हैं, जो ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन और सूक्ष्म कण प्रदूषण में योगदान करते हैं। 
  • स्वास्थ्य जोखिम: जल में नाइट्रेट का उच्च स्तर शिशुओं में मेथेमोग्लोबिनेमिया (Methemoglobinemia) और वयस्कों में कैंसर का खतरा बढ़ाता है।
    • मेथेमोग्लोबिन (Methemoglobin) हीमोग्लोबिन का एक रूप है, जो ऑक्सीजन नहीं ले जा सकता। मेथेमोग्लोबिनेमिया में ऊतकों को पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं मिल पाती। 
    • अमोनिया उत्सर्जन से वायु प्रदूषण बढ़ता है और मानव स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। 

नाइट्रोजन प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उठाए गए कदम

  • अंतरराष्ट्रीय नाइट्रोजन पहल (International Nitrogen Initiative): यह सतत् नाइट्रोजन प्रबंधन के लिए एक मंच है, जिसे वर्ष 2003 में स्थापित किया गया था।
    • इसकी स्थापना वर्ष 2003 में पर्यावरण की समस्याओं पर वैज्ञानिक समिति (Scientific Committee on Problems of the Environment- SCOPE) और अंतरराष्ट्रीय भूमंडल-जैवमंडल कार्यक्रम (International Geosphere-Biosphere Program- IGBP) के प्रायोजन के तहत की गई थी। 
  • गोथेनबर्ग प्रोटोकॉल (Gothenburg Protocol), 1999: यह नाइट्रोजन ऑक्साइड सहित प्रमुख प्रदूषकों के उत्सर्जन को कम करने के लिए एक समझौता है। 
  • साउथ एशिया नाइट्रोजन हब (South Asia Nitrogen Hub- SANH): नाइट्रोजन संबंधी मुद्दों से निपटने के लिए दक्षिण एशिया और यूके के 32 से अधिक अनुसंधान संगठनों को जोड़ता है। 
  • कोलंबो घोषणा: वर्ष 2030 तक नाइट्रोजन अपशिष्ट को आधा करने का लक्ष्य। 

भारत की पहल

  • नीम-लेपित यूरिया: नीम-लेपित यूरिया एक उर्वरक और कृषि योजना है, जो गेहूँ और धान की वृद्धि को बढ़ावा देने और यूरिया की कालाबाजारी तथा जमाखोरी पर अंकुश लगाने के लिए भारत सरकार द्वारा समर्थित है। 
    • पौधों द्वारा बेहतर अवशोषण के लिए नाइट्रोजन उत्सर्जन को धीमा करके नाइट्रोजन उपयोग दक्षता में सुधार करने के लिए इसका उपयोग अनिवार्य किया गया है।  
  • मृदा स्वास्थ्य कार्ड: मृदा स्वास्थ्य कार्ड मृदा की पोषकता स्थिति के बारे में जानकारी प्रदान करता है, साथ ही इसकी उर्वरता और स्वास्थ्य में सुधार के लिए उपयोग किए जाने वाले पोषक तत्त्वों की मात्रा के बारे में सिफारिशें भी प्रदान करता है। 
    • यह कार्ड मृदा पोषण संबंधी जानकारी और पोषक तत्त्व अनुप्रयोग संबंधी सिफारिशें प्रदान करता है, जिससे कृषि में नाइट्रोजन की खपत कम होती है। 
  • भारत स्टेज मानदंड: भारत स्टेज (BS) मोटर वाहनों से वायु प्रदूषकों के उत्सर्जन को विनियमित करने के लिए भारत सरकार द्वारा स्थापित उत्सर्जन मानक हैं। 
    • ये मानदंड सल्फर डाइऑक्साइड (SO₂) और नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (NO₂) सहित हानिकारक गैसों के वाहनों से होने वाले उत्सर्जन को नियंत्रित करते हैं। 

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