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DNA पॉलीमॉर्फिज्म

Lokesh Pal March 26, 2025 02:48 28 0

संदर्भ

आज DNA फिंगरप्रिंटिंग विभिन्न उद्देश्यों के लिए एक आवश्यक उपकरण है, जो DNA पॉलीमॉर्फिज्म के कारण DNA विशिष्टता का उपयोग करता है।

DNA फिंगरप्रिंटिंग क्या है?

  • DNA फिंगरप्रिंटिंग एक वैज्ञानिक तकनीक है, जिसका उपयोग व्यक्तियों की उनकी अद्वितीय आनुवंशिक प्रोफाइल के आधार पर पहचान करने के लिए किया जाता है।
  • DNA फिंगरप्रिंटिंग शॉर्ट टेंडम रिपीट (STR) नामक विशिष्ट DNA अनुक्रमों के आधार पर व्यक्तियों की पहचान करने की एक प्रक्रिया है।
  • इसका उपयोग आनुवंशिक संबंध स्थापित करने, आपराधिक जाँच और फोरेंसिक पहचान के लिए किया जाता है।
  • DNA फिंगरप्रिंट विभिन्न जैविक नमूनों जैसे रक्त, लार, पसीना, वीर्य, ​​त्वचा कोशिकाओं, हड्डियों और दाँतों से प्राप्त किए जा सकते हैं।
  • DNA फिंगरप्रिंटिंग अत्यधिक विश्वसनीय है, क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति (समान जुड़वाँ बच्चों को छोड़कर) का एक अद्वितीय DNA प्रोफाइल होता है।

DNA पॉलीमॉर्फिज्म के बारे में

  • DNA पॉलीमॉर्फिज्म DNA अनुक्रमों में छोटे परिवर्तन हैं, जो व्यक्तियों को अलग करते हैं।
  • ये विविधताएँ माता-पिता से विरासतदोनों  में मिले DNA में अंतर के कारण होती हैं।
  • वे वंश का पता लगाने, व्यक्तियों की पहचान करने और आनुवंशिक विविधता को समझने के लिए आवश्यक हैं।

DNA पॉलीमॉर्फिज्म का न्यूक्लियस बेस

  • SNP (सिंगल न्यूक्लियोटाइड पॉलीमॉर्फिज्म) और VNTR (वैरिएबल नंबर टेंडेम रिपीट) जैसे उत्परिवर्तनों से उत्पन्न होता है।
  • DNA के गैर-कोडिंग और कोडिंग क्षेत्रों में आनुवंशिक विविधताओं को शामिल करता है।
  • जीन अभिव्यक्ति, प्रोटीन फंक्शन और फेनोटाइप परिवर्तनशीलता को प्रभावित करता है।
  • आनुवंशिक पुनर्संयोजन, प्रतिकृति त्रुटियों या पर्यावरणीय कारकों के परिणामस्वरूप हो सकता है।

पॉलीमॉर्फिज्म DNA अनुक्रमों का विकासात्मक महत्त्व 

  • आनुवंशिक विविधता को बढ़ाता है, जिससे प्रजातियाँ बदलते परिवेश के अनुकूल ढल पाती हैं।
  • प्राकृतिक चयन और विकासात्मक फिटनेस में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  • जनसंख्या के बीच वंश और विकासवादी संबंधों का पता लगाने में मदद करता है।
  • विभिन्न आनुवंशिक समूहों में रोग संवेदनशीलता और प्रतिरोध को समझने में सहायता करता है।

शॉर्ट टेंडम रिपीट्स (STR) के बारे में

  • STR दोहराए जाने वाले DNA अनुक्रम हैं, जो व्यक्तियों के बीच लंबाई में भिन्न होते हैं।
  • प्रत्येक STR में DNA बेस (A, T, G, C) की छोटी दोहराई जाने वाली इकाइयाँ होती हैं।
  • विशिष्ट स्थानों पर दोहराई जाने वाली संख्याओं में ये भिन्नताएँ DNA फिंगरप्रिंटिंग का आधार बनती हैं।
  • STR विश्लेषण का उपयोग आमतौर पर आपराधिक जाँच और आनुवंशिक पहचान में किया जाता है।

DNA प्रतिलिपीकरण (PCR  प्रक्रिया) बनाम DNA फिंगरप्रिंटिंग

पहलू DNA प्रतिलिपीकरण (PCR प्रक्रिया) DNA फिंगरप्रिंटिंग
परिभाषा एक तकनीक जिसका उपयोग किसी विशिष्ट DNA अनुक्रम को बढ़ाने (उसकी अनेक प्रतियाँ बनाने) के लिए किया जाता है। यह तकनीक विशिष्ट DNA पैटर्न के आधार पर व्यक्तियों की पहचान करने के लिए उपयोग की जाती है।
उद्देश्य अनुसंधान, निदान और फोरेंसिक विश्लेषण के लिए DNA की कई प्रतियाँ तैयार करना। पहचान स्थापित करना, जैविक संबंधों को सत्यापित करना और फोरेंसिक मामलों को सुलझाना।
मुख्य प्रक्रिया पॉलीमरेज चेन रिएक्शन (Polymerase Chain Reaction-PCR). STR विश्लेषण और केशिका वैद्युत कण संचलन
शामिल चरण
  • विकृतीकरण (95°C): DNA स्ट्रैंड अलग हो जाते हैं।
  • एनीलिंग (60°C): DNA प्राइमर बँध जाते हैं।
  • विस्तार (72°C): DNA पॉलीमरेज नए स्ट्रैंड को संश्लेषित करता है।
  • नमूनों (रक्त, लार, आदि) से DNA निष्कर्षण
  • PCR के माध्यम से STR प्रवर्धन
  • केशिका वैद्युत कण संचलन के माध्यम से DNA का पृथक्करण
  • एक अद्वितीय DNA प्रोफाइल का निर्माण।
अंतिम उत्पाद एक विशिष्ट DNA खंड की लाखों एक समान प्रतियाँ। किसी व्यक्ति का अद्वितीय DNA  पैटर्न (फिंगरप्रिंट)।
फोरेंसिक में उपयोग विश्लेषण से पहले अपराध स्थल के नमूनों से DNA को बढ़ाने के लिए इसका उपयोग किया जाता है। अपराध स्थल से प्राप्त DNA की तुलना संदिग्ध के DNA से करने के लिए उपयोग किया जाता है।
चिकित्सा में उपयोग रोग निदान और आनुवंशिक अनुसंधान में सहायता करता है। अंग प्रत्यारोपण अनुकूलता और वंशानुगत रोग की पहचान में मदद करता है।
डेटा आउटपुट आगे के अध्ययन के लिए समान DNA की बड़ी मात्रा। एक अद्वितीय STR प्रोफाइल जो व्यक्तियों को पृथक करती है।

DNA फिंगरप्रिंटिंग के अनुप्रयोग

  • फोरेंसिक विज्ञान: अपराध स्थलों से DNA साक्ष्य का उपयोग करके अपराधियों की पहचान करता है।
  • पितृत्व परीक्षण: जैविक संबंध स्थापित करता है।
  • आपदा पीड़ित की पहचान: नश्वर अवशेषों की पहचान करने में मदद करता है।
  • चिकित्सा अनुप्रयोग: अंग प्रत्यारोपण अनुकूलता में सहायता करता है।
  • गलत तरीके से आरोपित व्यक्तियों को दोषमुक्त करना: पुनर्विचार और अन्य मामलों की जाँच में उपयोग किया जाता है।

DNA पॉलीमॉर्फिज्म अध्ययन में नैतिक और कानूनी मुद्दे

  • आनुवंशिक गोपनीयता और आनुवंशिक डेटा के संभावित दुरुपयोग के बारे में चिंताएँ उत्पन्न होती है।
  • सूचित सहमति और आनुवंशिक जानकारी के स्वामित्व के मुद्दे।
  • बीमा और रोजगार में आनुवंशिक भेदभाव की संभावना।
  • फोरेंसिक अनुप्रयोगों और वंशावली परीक्षण में कानूनी चुनौतियाँ।

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