100% तक छात्रवृत्ति जीतें

रजिस्टर करें

डोनाल्ड ट्रंप ने संयुक्त राज्य अमेरिका के 47वें राष्ट्रपति के रूप में शपथ ली

Lokesh Pal January 23, 2025 03:06 122 0

संदर्भ

संयुक्त राज्य अमेरिका के 47वें राष्ट्रपति के रूप में डोनाल्ड ट्रंप का दूसरा कार्यकाल एक नए ‘ट्रंपियन’ युग की शुरुआत का प्रतीक है, जिसे उनके नेतृत्व द्वारा परिभाषित किया गया है।

संबंधित तथ्य 

  • डोनाल्ड ट्रंप ने 20 जनवरी, 2025 को संयुक्त राज्य अमेरिका के 47वें राष्ट्रपति के रूप में अपना दूसरा कार्यकाल प्रारंभ किया। वह वर्ष 2017 से वर्ष 2021 तक 45वें राष्ट्रपति भी रहे।
  • उन्होंने मैक्सिको के साथ अमेरिकी सीमा पर राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा करने, पेरिस समझौते और विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) से हटने और जन्म आधारित नागरिकता को समाप्त करने जैसे कई कार्यकारी आदेशों पर हस्ताक्षर किए।

ट्रंप द्वारा अपने दूसरे कार्यकाल में हस्ताक्षरित प्रमुख कार्यकारी आदेश 

  • जन्मजात नागरिकता समाप्त करना: 14वें संशोधन द्वारा गारंटीकृत जन्मजात नागरिकता यह सुनिश्चित करती है कि अमेरिकी धरती पर जन्म लेने वाले किसी भी व्यक्ति को स्वतः ही नागरिकता प्राप्त हो जाती है।
    • इस आदेश का उद्देश्य आदेश के लागू होने के 30 दिनों के भीतर अमेरिका में जन्मे व्यक्तियों को अमेरिकी नागरिकता की पुष्टि करने वाले दस्तावेज जारी करने से रोकना है।
  • विश्व स्वास्थ्य संगठन से बाहर निकलना: अमेरिका ने 12 महीनों में विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) से हटने की योजना की घोषणा की है और यह वैश्विक स्वास्थ्य निकाय को सभी प्रकार के वित्तीय योगदान देना बंद कर देगा।
    • WHO के सबसे बड़े वित्तीय समर्थक के रूप में, यह अमेरिका की भागीदारी में एक महत्त्वपूर्ण बदलाव को दर्शाता है।
  • पेरिस जलवायु समझौते से हटना: ट्रंप ने औपचारिक रूप से वर्ष 2017 में पेरिस जलवायु समझौते से अमेरिकी समर्थन वापस ले लिया।
    • यह नवीनतम कार्यकारी आदेश जलवायु परिवर्तन को संबोधित करने के उद्देश्य से वैश्विक संधि से बाहर निकलने की उनकी प्रतिबद्धता की पुष्टि करता है, जो उनके चुनाव अभियान के दौरान किया गया वादा था।
  • मैक्सिको की खाड़ी के नाम में परिवर्तन: ट्रंप ने हाल ही में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान किए गए वादे को पूरा करते हुए मैक्सिको की खाड़ी का नाम बदलकर ‘अमेरिका की खाड़ी’ करने का आदेश दिया।
  • राष्ट्रीय सीमा आपातकालीन घोषणा: यह कार्यकारी कार्रवाई दक्षिणी सीमा पर अमेरिकी सैनिकों को तैनात करने का रास्ता साफ करती है, जिससे कठोर आव्रजन नीतियों को लागू करने के अभियान से संबंधित वादे पूरे होते हैं।
    • वर्ष 1798 का ​​विदेशी शत्रु अधिनियम ‘अमेरिकी धरती पर विनाशकारी अपराध करने वाले सभी विदेशी गिरोहों तथा आपराधिक नेटवर्क की उपस्थिति को समाप्त करने’ में मदद करेगा।

वर्ष 1798 का ​​विदेशी शत्रु अधिनियम

  • यह विशेषतः युद्ध के दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति को राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरनाक माने जाने वाले विदेशियों को निर्वासित करने का अधिकार देता है।
  • इसका प्रयोग वर्ष 1812 के युद्ध, प्रथम विश्वयुद्ध तथा द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान जर्मन, ऑस्ट्रो-हंगेरियन, जापानी और इटालियन जैसे वंशानुगत अप्रवासियों को लक्षित करने के लिए किया गया था।
  • ट्रंप ने आव्रजन न्यायालयों को दरकिनार करने और निर्वासन में तेजी लाने के लिए इसका हवाला दिया।

  • राष्ट्रीय ऊर्जा आपातकाल की घोषणा: जीवाश्म ईंधन उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए ट्रंप ने राष्ट्रीय ऊर्जा आपातकाल की घोषणा की।
    • यह कदम अमेरिकी ऊर्जा उत्पादन को बढ़ाने की व्यापक रणनीति का हिस्सा है, जिसमें अलास्का में ड्रिलिंग प्रतिबंधों को हटाना तथा गैस निर्यात पर रोक को वापस लेना शामिल है।
    • यह घोषणा नई जीवाश्म ईंधन अवसंरचना परियोजनाओं को अनुमति प्रदान करने संबंधी प्रक्रियाओं को तीव्रता प्रदान करती है।
  • द्वि-लैंगिक नीति की स्थापना: ट्रंप ने संघीय दस्तावेजों, नीतियों और संचार से ‘लैंगिक विचारधारा’ को समाप्त करने के लिए एक कार्यकारी आदेश पर हस्ताक्षर किए।
    • नई नीति में कहा गया है कि केवल द्वि-लैंगिक (पुरुष और महिला) को सरकार द्वारा आधिकारिक तौर पर मान्यता दी जाएगी।

कार्यकारी आदेश 

  • कार्यकारी आदेश: कार्यकारी आदेश अमेरिकी राष्ट्रपति द्वारा संघीय संचालन का प्रबंधन करने या कांग्रेस की मंजूरी के बिना राष्ट्रीय मुद्दों को संबोधित करने के लिए जारी किए गए कानूनी रूप से बाध्यकारी निर्देश हैं।
    • अमेरिकी संविधान के अनुच्छेद-2  में निहित।
  • उद्देश्य
    • महत्त्वपूर्ण नीतिगत बदलावों और नियमित प्रशासनिक कार्यों के लिए उपयोग किया जाता है।
    • राष्ट्रपति को संघीय एजेंसियों तथा राष्ट्रीय मामलों पर अधिकार स्थापित करने में सक्षम बनाता है।

ट्रंप 2.0: वैश्विक निहितार्थ

WHO से अमेरिका के हटने के वित्तीय निहितार्थ

  • WHO बजट पर प्रभाव: संयुक्त राज्य अमेरिका कुल 578 मिलियन डॉलर में से 22.5% का मूल्यांकित योगदान देता है, जो स्वैच्छिक योगदान का लगभग 13% (138 मिलियन डॉलर) है और वर्ष 2023 में 356.3 मिलियन डॉलर के बराबर है।
    • संयुक्त राज्य अमेरिका WHO के बजट का लगभग 20% वित्तपोषित करता है।
  • चीन का योगदान: चीन मूल्यांकित योगदान में 87.6 मिलियन डॉलर (15%) और स्वैच्छिक योगदान में केवल 3.9 मिलियन डॉलर (0.14%) का योगदान देता है, जो अमेरिका से बहुत कम है।
  • वैश्विक प्रतिक्रिया: ऑस्ट्रेलिया, इंडोनेशिया और स्पेन सहित अन्य देशों ने वर्ष 2024 में 1.7 बिलियन डॉलर देने का वादा किया, जिससे WHO के वर्ष 2025-2028 कार्यक्रमों के लिए सुरक्षित निधि बढ़कर 53% हो गई।
  • चुनौतियाँ: अमेरिकी फंडिंग वापस लेने से महत्त्वपूर्ण वित्तीय अंतराल उत्पन्न हो सकते हैं, जो संभावित रूप से वैश्विक स्वास्थ्य कार्यक्रमों और महामारी की तैयारी के प्रयासों को कमजोर कर सकते हैं।

भारत पर प्रभाव

  • WHO द्वारा फंडिंग में कटौती से भारत में स्वास्थ्य कार्यक्रम प्रभावित होंगे, जिसमें उपेक्षित उष्णकटिबंधीय रोग, HIV, मलेरिया, तपेदिक और रोगाणुरोधी प्रतिरोध पर कार्य करना शामिल है।
  • WHO भारत के टीकाकरण कार्यक्रम में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है, जिसमें ‘वैक्सीन कवरेज’ की निगरानी भी शामिल है।
  • अमेरिकी विशेषज्ञता में कमी से वैश्विक स्वास्थ्य दिशा-निर्देश प्रदान करने और स्थानीय कार्यक्रमों को लागू करने की WHO की क्षमता कम हो सकती है।

  • बहुपक्षवाद का कमजोर होना: अंतरराष्ट्रीय संगठनों और समझौतों (जैसे WHO, पेरिस जलवायु समझौता) से ट्रंप का पीछे हटना स्वास्थ्य, व्यापार और जलवायु पर सामूहिक वैश्विक कार्रवाई को कमजोर करता है।
    • पेरिस समझौते से अमेरिका के बाहर निकलने से वैश्विक जलवायु लक्ष्यों को प्राप्त करने की गति धीमी हो गई है। अमेरिका, दूसरे सबसे बड़े ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जक के रूप में, वैश्विक जलवायु रणनीतियों में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  • व्यापार संरक्षणवाद में वृद्धि: ट्रंप द्वारा ‘अमेरिका फर्स्ट’ नीतियों तथा टैरिफ खतरों पर जोर दिए जाने से व्यापारिक युद्ध प्रारंभ होने का खतरा है।
    • गैर-डॉलर व्यापार प्रणालियों की खोज के लिए ब्रिक्स देशों पर टैरिफ लगाने से वैश्विक व्यापार ढाँचे पर दबाव पड़ सकता है तथा आपूर्ति शृंखला बाधित हो सकती है।
    • अपने पहले कार्यकाल के दौरान, ट्रंप ने चीनी वस्तुओं पर $360 बिलियन का टैरिफ लगाया, जिसके कारण जवाबी कार्रवाई की गई और वैश्विक बाजारों में व्यवधान उत्पन्न हुआ।
  • जलवायु नीति में परिवर्तन: जीवाश्म ईंधन-केंद्रित नीतियों का पुनरुद्धार और हरित ऊर्जा पहलों को रोकना वैश्विक जलवायु लक्ष्यों के लिए खतरा है।
    • जीवाश्म ईंधन उत्पादन का विस्तार करने के लिए राष्ट्रीय ऊर्जा आपातकाल की घोषणा, तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने के वैश्विक प्रयासों के विपरीत है।
    • अमेरिका में अक्षय ऊर्जा क्षेत्र, जिसमें 3.4 मिलियन से अधिक लोग कार्यरत हैं, को रुकी हुई हरित पहलों के कारण असफलताओं का सामना करना पड़ सकता है।
  • अंतरराष्ट्रीय कानूनी व्यवस्था का क्षरण: वैश्विक कॉरपोरेट कर समझौते को अस्वीकार करना और बहुपक्षीय संधियों में संप्रभुता पर पुनर्विचार करना जैसी कार्रवाइयाँ स्थापित मानदंडों को चुनौती देती हैं।
    • OECD के 15% वैश्विक न्यूनतम कॉरपोरेट कर को अपनाने से अमेरिका के इनकार से अन्य देश एकतरफा डिजिटल करों को फिर से लागू कर सकते हैं, जिससे प्रतिस्पर्द्धी टैरिफ का जोखिम हो सकता है।
    • OECD कर समझौते में 140 देश शामिल हैं और इसका उद्देश्य बहुराष्ट्रीय निगमों द्वारा लाभ-स्थानांतरण को संबोधित करना है।
  • भू-राजनीतिक पुनर्संरेखण: रूस के साथ अमेरिका के सामान्यीकरण और चीन के प्रति झुकाव से खासकर हिंद-प्रशांत क्षेत्र में शक्ति गतिशीलता में बदलाव आ सकता है।
    • मॉस्को के साथ घनिष्ठ संबंधों का स्वागत करते हुए, चीन के साथ ‘बड़े सौदे’ करने के ट्रंप के इतिहास ने जापान और भारत जैसे अमेरिकी सहयोगियों के बीच चिंताएँ पैदा की हैं।
    • ट्रंप 1.0 के तहत, अमेरिका ने ट्रांस-पैसिफिक पार्टनरशिप (Trans-Pacific Partnership- TPP) से स्वयं को अलग कर लिया, जिससे एक शून्य की स्थिति पैदा हो गई, जिसका चीन ने क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (Regional Comprehensive Economic Partnership- RCEP) को बढ़ावा देकर लाभ उठाया।
  • वैश्विक शासन पर प्रभाव: ट्रंप द्वारा WTO अपीलीय निकाय की नियुक्तियों में बाधा डालने से विवाद समाधान तंत्र निष्क्रिय हो गया।
    • वर्ष 1995 से वर्ष 2018 के बीच, WTO ने 500 से अधिक व्यापार विवादों का समाधान किया। इसकी वर्तमान निष्क्रियता से वैश्विक स्तर पर अनियंत्रित व्यापार संघर्षों का जोखिम है।

ट्रंप 2.0: भारत के लिए निहितार्थ

  • व्यापार चुनौतियाँ: भारतीय बाजारों को खोलने और व्यापार असंतुलन को दूर करने के लिए बढ़ते दबाव से आर्थिक संबंधों में तनाव आ सकता है।
    • ट्रंप द्वारा टैरिफ और संरक्षणवाद पर जोर, जिसमें गैर-डॉलर व्यापार की खोज करने वाले ब्रिक्स देशों पर 100% टैरिफ लगाने की धमकी शामिल है, फार्मास्यूटिकल्स तथा IT सेवाओं जैसे भारतीय निर्यातों को प्रभावित कर सकता है।
  • आव्रजन नीतियाँ: H-1B वीजा पर कार्रवाई और जन्मसिद्ध नागरिकता को हटाने से भारतीय पेशेवरों और उनके परिवारों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।
    • वर्ष 2022 में, मैक्सिको पिछले वर्ष आने वाले अप्रवासियों के लिए जन्म का शीर्ष देश था, जहाँ लगभग 1,50,000 लोग थे तथा भारत (लगभग 1,45,000) और चीन (लगभग 90,000) अप्रवासियों के अगले सबसे बड़े स्रोत थे।

जन्मसिद्ध नागरिकता

  • जन्मसिद्ध नागरिकता: जन्मसिद्ध नागरिकता किसी देश के भू- भाग पर जन्मे व्यक्तियों को नागरिकता प्रदान करती है, चाहे उनके माता-पिता की राष्ट्रीयता या आव्रजन स्थिति कुछ भी हो।
  • अमेरिकी संदर्भ: अमेरिकी संविधान का 14वाँ संशोधन (वर्ष 1868) जन्मसिद्ध नागरिकता की गारंटी देता है, जिसमें कहा गया है कि अमेरिका में जन्मे सभी व्यक्ति नागरिक हैं।
  • कानूनी आधार: अमेरिका में ‘जूस सोलाई’ (मिट्टी का अधिकार) के सिद्धांत का पालन किया जाता है, जहाँ अमेरिकी धरती पर जन्म लेने वाले किसी भी व्यक्ति को स्वतः ही नागरिकता मिल जाती है।

भारत पर प्रभाव

  • भारतीय-अमेरिकी जनसंख्या: वर्ष 2024 तक, 5.4 मिलियन से अधिक भारतीय अमेरिकी, अमेरिकी जनसंख्या का 1.47% हिस्सा हैं।
    • उनमें से दो-तिहाई पहली पीढ़ी के अप्रवासी हैं, जिनमें से कई अपने बच्चों के लिए जन्मसिद्ध नागरिकता की हानि से प्रभावित हो सकते हैं।
    • भारत सरकार अमेरिका में 18,000 अवैध भारतीय प्रवासियों को वापस लाने के लिए अमेरिकी प्रशासन के साथ सहयोग करने के लिए तैयार है, जो व्यापारिक युद्ध से बचने की इच्छा का संकेत है।
  • अमेरिका में भारतीय छात्र: भारतीय छात्र अमेरिका में अंतरराष्ट्रीय छात्रों के दूसरे सबसे बड़े समूह का प्रतिनिधित्व करते हैं, वर्ष 2024 में यह संख्या लगभग 2,00,000 होगी
    • नई नीति नए छात्रों और परिवारों को अमेरिका में अवसरों की तलाश करने से हतोत्साहित कर सकती है, जो कनाडा जैसे अधिक आव्रजन-अनुकूल देशों का विकल्प चुनते हैं, जहाँ वर्ष 2024 में 1,20,000 से अधिक भारतीय छात्र आए थे।
  • आर्थिक योगदान: भारतीय अमेरिकी प्रौद्योगिकी, स्वास्थ्य सेवा और शिक्षा जैसे प्रमुख क्षेत्रों के लिए महत्त्वपूर्ण हैं।
    • भारतीय मूल के पेशेवर अमेरिकी तकनीकी कार्यबल का लगभग 25% हिस्सा हैं, जिसमें सिलिकॉन वैली का प्रमुख योगदान है।
  • जन्म पर्यटन: जन्म पर्यटन, जहाँ महिलाएँ अपने बच्चों के लिए नागरिकता हासिल करने के लिए अमेरिका जाती हैं, मुख्य रूप से भारत और चीन जैसे देशों से आती हैं।
    • वर्ष 2020 में अमेरिका में गैर-नागरिक माताओं द्वारा लगभग 33,000 जन्मों की सूचना दी गई, जिनमें से एक महत्त्वपूर्ण संख्या भारत से थी।

    • अप्रैल-सितंबर 2024 की अवधि में कुल 1.3 लाख H-1B वीजा में से 24,766 वीजा भारतीय मूल की कंपनियों को जारी किए गए।
  • रक्षा और सामरिक सहयोग: इंडो-पैसिफिक और क्वाड साझेदारी पर निरंतर ध्यान केंद्रित करने से भारत-अमेरिका रक्षा संबंध मजबूत हो सकते हैं।
    • भारत ने 20 अरब डॉलर से अधिक मूल्य के अमेरिकी रक्षा उपकरण खरीदे हैं, जो बढ़ते रक्षा संबंधों को दर्शाता है।
  • ऊर्जा और जलवायु नीतियाँ: अमेरिका की जलवायु प्रतिबद्धताओं को पलटना और जीवाश्म ईंधन पर ध्यान केंद्रित करना वैश्विक अक्षय ऊर्जा प्रयासों में बाधा उत्पन्न कर सकता है, जिससे अप्रत्यक्ष रूप से भारत के स्वच्छ ऊर्जा लक्ष्यों पर असर पड़ सकता है।
    • जलवायु वित्त पर वैश्विक गति में कमी भारत के वर्ष 2030 तक 500 गीगावाट के अक्षय ऊर्जा लक्ष्यों को चुनौती दे सकती है।
  • भू-राजनीतिक पुनर्संरेखण: रूस के साथ अमेरिका के सामान्यीकरण से वैश्विक शक्ति संरचना में पुनर्संरेखण हो सकता है, जिससे भारत की विदेश नीति के लिए जटिलताएँ पैदा हो सकती हैं।
    • भारत अपने रक्षा उपकरणों का 60% से अधिक रूस से आयात करता है, जो मॉस्को पर इसकी रणनीतिक निर्भरता को दर्शाता है।
  • प्रौद्योगिकी और नवाचार सहयोग: उभरती प्रौद्योगिकियों (जैसे- AI, क्वांटम कंप्यूटिंग) पर बढ़ा हुआ ध्यान भारत-अमेरिका साझेदारी के लिए अवसर प्रदान कर सकता है।
    • महत्त्वपूर्ण तथा उभरती प्रौद्योगिकियों पर अमेरिकी पहल (iCET) संयुक्त अनुसंधान और नवाचार के लिए एक मंच प्रदान करती है।
  • सांस्कृतिक और लोगों-से-लोगों के मध्य संबंध: कठोर अमेरिकी आव्रजन नीतियाँ और अनिर्दिष्ट भारतीयों के संभावित निर्वासन द्विपक्षीय संबंधों को प्रभावित कर सकते हैं।
    • अमेरिका में 4.2 मिलियन से अधिक भारतीय प्रवासी, भारत-अमेरिका संबंधों को बढ़ावा देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

अमेरिका-भारत असैन्य परमाणु समझौता

  • यह एक द्विपक्षीय समझौता है, जो भारत को नागरिक उद्देश्यों के लिए परमाणु प्रौद्योगिकी और ईंधन तक पहुँच प्रदान करता है।
  • इस समझौते पर वर्ष 2008 में हस्ताक्षर किए गए थे तथा इसे 123 समझौते के रूप में भी जाना जाता है।
  • इसने भारत को परमाणु अप्रसार संधि (Non-Proliferation Treaty- NPT) पर हस्ताक्षर न करने के बावजूद परमाणु व्यापार में संलग्न होने की अनुमति दी।
  • इसने भारत को IAEA सुरक्षा उपायों के तहत अपने नागरिक और सैन्य परमाणु कार्यक्रमों को अलग करने के लिए प्रतिबद्ध करते हुए नागरिक उद्देश्यों के लिए परमाणु ईंधन, रिएक्टर और प्रौद्योगिकी तक पहुँच प्रदान की।
  • चुनौतियाँ
    • देयता जोखिम: भारत में परमाणु क्षति संबंधी नागरिक दायित्व अधिनियम (वर्ष 2010) वैश्विक मानदंडों के विपरीत आपूर्तिकर्ताओं पर देयता आरोपित करता है।
      • अमेरिकी कंपनियों (GE, वेस्टिंगहाउस) ने संभावित जोखिमों के कारण भागीदारी से परहेज किया है।
      • सरकार द्वारा समर्थित रूसी संस्थाओं ने भारत में अपनी भूमिका का विस्तार जारी रखा है।
    • तकनीकी बाधाएँ: अमेरिकी कंपनियों को प्रतिस्पर्द्धी कीमतों पर अत्याधुनिक तकनीक उपलब्ध कराने की आवश्यकता है।
      • भारतीय अधिकारी उच्च लागत और परमाणु परियोजनाओं में लागत में वृद्धि के पिछले अनुभवों से चिंतित हैं।
    • नियामक चिंताएँ: दोहरे उपयोग वाली तकनीक और इसके संभावित विचलन से संबंधित सुरक्षा मुद्दे।
      • भारत और अमेरिका के बीच निर्यात नियंत्रण प्रणालियों का संरेखण।
    • व्यावसायिक व्यवहार्यता: अमेरिका से सस्ती परमाणु तकनीक की अनुपस्थिति ने संयंत्रों के निर्माण की प्रगति को रोक दिया है।
      • वेस्टिंगहाउस द्वारा वर्ष 2016 में घोषित भारत में प्रस्तावित छह परमाणु संयंत्रों पर अभी तक कोई प्रगति नहीं देखी गई है।

भारत-अमेरिका संबंधों को मजबूत करने में भारत के लिए आगे की राह 

  • रक्षा और सामरिक सहयोग को मजबूत करना: इंडस-एक्स जैसी पहलों के तहत संयुक्त सैन्य अभ्यासों का विस्तार करना और रक्षा प्रौद्योगिकी सहयोग को बढ़ाना।
    • BECA तथा कॉमकासा (COMCASA) जैसे समझौतों के माध्यम से रक्षा उपकरणों के सह-उत्पादन को बढ़ाना।
  • व्यापार और आर्थिक संबंधों को बढ़ावा देना: व्यापार विवादों को हल करना तथा भारतीय वस्तुओं और सेवाओं के लिए बेहतर बाजार पहुँच सुनिश्चित करना।
    • टैरिफ मुद्दों तथा IT सेवा चिंताओं को दूर करने के लिए भारत-अमेरिका व्यापार नीति फोरम (Trade Policy Forum- TPF) में सक्रिय रूप से शामिल होना।
  • वैकल्पिक स्रोतों से फंडिंग: भारत को बिल और मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन जैसे परोपकारी संगठनों के साथ कार्य करना चाहिए तथा WHO द्वारा छोड़े गए फंडिंग अंतराल को भरने के लिए निजी क्षेत्र के निवेशों की तलाश करनी चाहिए।
    • मुख्य पहलों में निरंतरता सुनिश्चित करने के लिए सार्वजनिक-निजी भागीदारी सहित स्वास्थ्य कार्यक्रमों के लिए अभिनव वित्तपोषण मॉडल का अनुसरण करना।
  • प्रौद्योगिकी और नवाचार सहयोग को बढ़ाना: AI, सेमीकंडक्टर तथा क्वांटम कंप्यूटिंग में साझेदारी को बढ़ावा देने के लिए महत्त्वपूर्ण और उभरती प्रौद्योगिकियों (Initiative on Critical and Emerging Technologies- iCET) पर पहल का लाभ उठाना।
    • भारतीय और अमेरिकी विश्वविद्यालयों तथा उद्योगों के बीच अनुसंधान एवं विकास संबंधों को मजबूत करना।
  • जलवायु और ऊर्जा लक्ष्यों पर सहयोग करना: अक्षय ऊर्जा और हाइड्रोजन परियोजनाओं को आगे बढ़ाने के लिए रणनीतिक स्वच्छ ऊर्जा भागीदारी (SCEP) के तहत सहयोग को गहरा करना।
    • भारत के स्वच्छ ऊर्जा क्षेत्र में अमेरिकी निवेश के लिए अवसरों की खोज करना, ताकि वर्ष 2030 तक 500 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्य को पूरा किया जा सकता है।
  • भारतीय प्रवासियों की भूमिका को मजबूत करना: द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करने के लिए अमेरिका में 4.2 मिलियन भारतीय प्रवासियों के प्रभाव का लाभ उठाना।
    • सद्भावना और लोगों के बीच संबंधों को बढ़ाने के लिए सांस्कृतिक तथा शैक्षिक आदान-प्रदान को बढ़ावा देना।
  • आव्रजन मुद्दों को सक्रिय रूप से संबोधित करना: भारतीय पेशेवरों को लाभ पहुँचाने के लिए अमेरिकी वीजा नीतियों, विशेष रूप से H-1B वीजा में सुधारों की वकालत करना।
    • अनिर्दिष्ट भारतीयों के लिए सुगम निर्वासन प्रक्रिया सुनिश्चित करने के लिए राजनयिक जुड़ाव बढ़ाना।
  • भू-राजनीतिक चुनौतियों का प्रबंधन: क्वाड जैसी रणनीतिक साझेदारी का लाभ उठाते हुए अमेरिका, रूस और चीन के बीच संतुलित दृष्टिकोण बनाए रखना।
    • भारत के क्षेत्रीय हितों को सुरक्षित रखते हुए चीनी प्रभाव को संतुलित करने के लिए अमेरिकी इंडो-पैसिफिक रणनीतियों का समर्थन करना।

निष्कर्ष

ट्रंप 2.0 के तहत अमेरिका-भारत संबंधों की उभरती गतिशीलता चुनौतियों और अवसरों दोनों को प्रस्तुत करती है। रणनीतिक साझेदारी पर ध्यान केंद्रित करके, आर्थिक और नीतिगत विवादों को संबोधित करके और रक्षा, प्रौद्योगिकी तथा स्वच्छ ऊर्जा में सहयोग बढ़ाकर, भारत अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा करते हुए अमेरिका के लिए एक प्रमुख भागीदार के रूप में अपनी भूमिका को मजबूत कर सकता है।

Final Result – CIVIL SERVICES EXAMINATION, 2023. PWOnlyIAS is NOW at three new locations Mukherjee Nagar ,Lucknow and Patna , Explore all centers Download UPSC Mains 2023 Question Papers PDF Free Initiative links -1) Download Prahaar 3.0 for Mains Current Affairs PDF both in English and Hindi 2) Daily Main Answer Writing , 3) Daily Current Affairs , Editorial Analysis and quiz , 4) PDF Downloads UPSC Prelims 2023 Trend Analysis cut-off and answer key

THE MOST
LEARNING PLATFORM

Learn From India's Best Faculty

      

Final Result – CIVIL SERVICES EXAMINATION, 2023. PWOnlyIAS is NOW at three new locations Mukherjee Nagar ,Lucknow and Patna , Explore all centers Download UPSC Mains 2023 Question Papers PDF Free Initiative links -1) Download Prahaar 3.0 for Mains Current Affairs PDF both in English and Hindi 2) Daily Main Answer Writing , 3) Daily Current Affairs , Editorial Analysis and quiz , 4) PDF Downloads UPSC Prelims 2023 Trend Analysis cut-off and answer key

<div class="new-fform">







    </div>

    Subscribe our Newsletter
    Sign up now for our exclusive newsletter and be the first to know about our latest Initiatives, Quality Content, and much more.
    *Promise! We won't spam you.
    Yes! I want to Subscribe.