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डॉपलर मौसम रडार

Lokesh Pal December 22, 2025 02:11 20 0

संदर्भ 

भारत में अब 47 डॉपलर मौसम रडार स्थापित हो चुके हैं, जो देश के 87 प्रतिशत क्षेत्र को शामिल करते हैं। ये चक्रवात, भारी वर्षा और हिमपात जैसी अत्यधिक मौसमीय घटनाओं की वास्तविक समय निगरानी में सहायक हैं।

डॉपलर रडार’ के बारे में

  • डॉपलर रडार’ ऐसे रडार तंत्र होते हैं, जो डॉपलर प्रभाव का उपयोग करके वर्षा की बूँदों और पवन जैसी गतिशील वस्तुओं की गति तथा दिशा मापते हैं।
  • ये रेडियो तरंगें प्रेषित करते हैं और परावर्तित संकेतों में आवृत्ति परिवर्तन का विश्लेषण कर गति का पता लगाते हैं।

डॉपलर मौसम रडार’ कैसे कार्य करते हैं

  • रेडियो तरंगों का प्रसारण: रडार वायुमंडल में सूक्ष्म तरंग रेडियो तरंगों के छोटे-छोटे स्पंद प्रेषित करता है।
  • वर्षा कणों द्वारा प्रकीर्णन: वर्षा की बूँदें, हिमकण या ओले आदि सभी जलकण, रडार द्वारा प्रसारित संकेत के एक भाग को प्रकीर्णन के माध्यम से प्रतिध्वनि के रूप में पुनः रडार एंटीना की ओर परावर्तित करते हैं।
  • डॉपलर प्रभाव: यदि लक्ष्य गतिमान हों, तो परावर्तित संकेत की आवृत्ति बदल जाती है (निकट आने पर अधिक, दूर जाने पर कम)।
  • वेग की गणना: रडार, परावर्तित संकेत में उत्पन्न डॉपलर आवृत्ति परिवर्तन (Doppler Frequency Shift) का विश्लेषण कर, तंत्र के अंतर्गत पवन की गति तथा दिशा का निर्धारण करता है।।
  • दूरी एवं तीव्रता: प्रतिध्वनि में विलंब से दूरी का आकलन होता है, जबकि संकेत की तीव्रता से वर्षा की मात्रा ज्ञात होती है।
  • आँकड़ों का प्रदर्शन: सूचना को ‘कलर-कोडित’ मानचित्रों में बदलकर वर्षा और तूफान की गति दर्शाई जाती है।

डॉपलर रडार’ के लाभ

  • पारंपरिक रडार के विपरीत, डॉपलर मौसम रडार मौसमी लक्ष्यों की गति भी पहचान सकते हैं।
  • ये प्रेषित और प्राप्त संकेतों के बीच चरण परिवर्तन को मापते हैं।
  • इससे वर्षा या तूफान की गति और दिशा (रडार की ओर या उससे दूर) का सटीक आकलन संभव होता है।

डॉपलर प्रभाव

  • परिभाषा: ‘डॉपलर प्रभाव’ वह परिवर्तन है, जिसमें स्रोत और प्रेक्षक की आपसी गति के कारण तरंग की आवृत्ति या तरंगदैर्ध्य बदल जाती है।
  • यह नाम उन्नीसवीं शताब्दी के ऑस्ट्रियाई भौतिक विज्ञानी क्रिश्चियन डॉपलर के नाम पर रखा गया।

  • प्रेक्षक की ओर गति: स्रोत के पास आने पर प्रेक्षित आवृत्ति बढ़ जाती है (तरंगें संकुचित होती हैं)।
  • प्रेक्षक से दूर गति: स्रोत के दूर जाने पर प्रेक्षित आवृत्ति घट जाती है (तरंगें विस्तारित होती हैं)।
  • अनुप्रयोग: डॉपलर रडार, खगोल विज्ञान में रेड एवं ब्लू शिफ्ट, चिकित्सीय अल्ट्रासाउंड और गति मापन में उपयोग।

भारत में प्रयुक्त डॉपलर रडार के प्रकार

  • भारत में भारत मौसम विज्ञान विभाग द्वारा विभिन्न आवृत्तियों वाले डॉपलर मौसम रडार (S –बैंड, C-बैंड और X-बैंड) का उपयोग मौसम प्रणालियों और मेघ समूहों की गति संबंधी निगरानी तथा वर्षा के आकलन हेतु किया जाता है।
  • इनका सामान्य कवरेज क्षेत्र लगभग 500 किलोमीटर होता है।
  • बैंड, कवरेज एवं उपयोग
    • S-बैंड: दीर्घ दूरी, मौसम निगरानी
    • C-बैंड: चक्रवात अनुगमन एवं वर्षा का मापन
    • X-बैंड: मेघ गर्जन, आकाशीय विद्युत और स्थानीय चक्रवातों की पहचान।

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