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भारतीय सांख्यिकी संस्थान (ISI) विधेयक, 2025 का मसौदा

Lokesh Pal December 09, 2025 03:09 21 0

संदर्भ

केंद्रीय सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय ने भारतीय सांख्यिकी संस्थान विधेयक, 2025 का मसौदा जारी किया है। यह विधेयक भारतीय सांख्यिकी संस्थान (ISI) के प्रशासनिक ढाँचे में व्यापक सुधार प्रस्तावित करता है।

महत्त्वपूर्ण तथ्य 

  • मसौदा विधेयक को विशेष रूप से शासन संरचना और शैक्षणिक स्वायत्तता में प्रस्तावित परिवर्तनों को लेकर व्यापक विरोध का सामना करना पड़ा है।

भारतीय सांख्यिकी संस्थान (ISI) के बारे में

  • स्वरूप: ISI सांख्यिकी, गणित, संगणक विज्ञान, मात्रात्मक अर्थशास्त्र तथा संबंधित विषयों में अनुसंधान, शिक्षा और अनुप्रयुक्त कार्य के लिए एक प्रमुख संस्थान है।
  • स्थापना: वर्ष 1931 में प्रख्यात सांख्यिकीविद प्रशांत चंद्र महालनोबिस द्वारा स्थापित।
    • वर्ष 1959 में संसद के अधिनियम द्वाराराष्ट्रीय महत्त्व का संस्थान’ का दर्जा प्राप्त।
  • मुख्यालय एवं केंद्र: ISI का प्राथमिक मुख्यालय कोलकाता में है, तथा इसके क्षेत्रीय केंद्र दिल्ली, बेंगलुरु, चेन्नई और तेजपुर में हैं।
  • शासन व्यवस्था
    • स्थिति: ISI सोसाइटी पंजीकरण अधिनियम 1860 और पश्चिम बंगाल सोसाइटी पंजीकरण अधिनियम 1961 के तहत पंजीकृत सोसाइटी है।
    • 33 सदस्यीय परिषद: इसमें निर्वाचित प्रतिनिधि, सरकारी नियुक्त सदस्य, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग का नामित सदस्य और वरिष्ठ संकाय शामिल हैं।
    • निदेशक की नियुक्ति: निदेशक की नियुक्ति परिषद द्वारा की जाती है, जिससे शैक्षणिक, प्रशासनिक और नियुक्ति संबंधी मामलों में संस्थान को पर्याप्त स्वायत्तता मिलती है।
  • प्रकाशन एवं कार्यक्रम: ISI प्रतिष्ठित सांख्य पत्रिका प्रकाशित करता है और सांख्यिकी एवं संबंधित विषयों में डिग्री कार्यक्रम संचालित करता है।

मसौदा विधेयक के तहत प्रस्तावित परिवर्तन

  • सांविधिक निकाय निगम में रूपांतरण: ISI को पंजीकृत सोसाइटी से बदलकर संसद के एक पृथक अधिनियम के माध्यम से एक सांविधिक निकाय निगम बनाया जाएगा।
  • शासन संरचना में परिवर्तन 
    • बोर्ड ऑफ गवर्नेंस (BoG): यह प्रशासनिक अधिकार तथा वित्तीय प्रबंधन करेगा, डिग्री प्रदान करेगा और संस्थान की प्रमुख नियुक्तियों की देखरेख करेगा।
    • संरचना: बोर्ड में सरकार-नामित सदस्यों का प्रभुत्व रहेगा, भारत के राष्ट्रपति द्वारा नामित अध्यक्ष बोर्ड की अध्यक्षता करेगा, जिससे संकाय प्रतिनिधित्व कम हो जाएगा।
  • निदेशक की नियुक्ति और पद से हटाना
    • केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त एक चयन समिति निदेशक के चयन के लिए उत्तरदायी होगी।
    • बोर्ड ऑफ गवर्नर्स’ के पास निदेशक की नियुक्ति का अधिकार है, जबकि भारत के राष्ट्रपति निदेशक को हटा सकते हैं और संस्थागत जाँच या समीक्षा का आदेश दे सकते हैं।
  • शैक्षणिक परिषद में परिवर्तन: शैक्षणिक परिषद की भूमिका घटाकर केवल बोर्ड ऑफ गवर्नेंस (BoG) को अनुशंसा देने तक सीमित कर दी जाएगी, जिससे संस्थागत निर्णयों में संकाय का प्रभाव घटेगा।

चिंताएँ

  • स्वायत्तता का क्षरण: आलोचकों के अनुसार, विधेयक BoG को अत्यधिक अधिकार देकर ISI की शैक्षणिक स्वतंत्रता कमजोर करता है, क्योंकि यह शैक्षणिक परिषद की अनुशंसाओं को निरस्त कर सकता है।
  • नियंत्रण का केंद्रीकरण: नई संरचना में नियुक्तियों और शासन पर सरकारी नियंत्रण बढ़ेगा, जिससे संकाय-आधारित निर्णय प्रणाली कमजोर होगी।
  • नियुक्तियों को लेकर आशंकाएँ: चयन समिति में सरकारी अधिकारियों की भागीदारी तथा निदेशक के कार्यकाल की आवधिक समीक्षा से नेतृत्व चयन में राजनीतिक हस्तक्षेप की आशंका जताई गई है।
  • परामर्श की कमी: आलोचकों का मत है कि यह विधेयक ISI के हितधारकों से पर्याप्त परामर्श के बिना लाया गया और सुधार मौजूदा वर्ष 1959 के अधिनियम में संशोधन द्वारा किए जाने चाहिए थे, न कि संस्थागत ढाँचे के व्यापक पुनर्गठन द्वारा।

सरकार का दृष्टिकोण

  • विजन: सरकार का तर्क है कि मसौदा विधेयक ISI की संस्थागत स्थिति को अधिक करेगा, इसे IIT और IIM जैसे अन्य प्रमुख राष्ट्रीय अनुसंधान संस्थानों के बराबर स्थान देगा, और वर्ष 2031 में अपनी स्थापना के शताब्दी वर्ष के करीब पहुँचने पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसकी प्रतिस्पर्द्धी स्थिति को बढ़ाएगा।
  • समीक्षा समितियों की अनुशंसाएँ: सरकार का तर्क है कि मसौदा विधेयक कई समीक्षा समितियों की अनुशंसाओं को लागू करता है, जिन्होंने शासन सुधार, शैक्षणिक कार्यक्रमों के विस्तार और संस्थागत प्रतिस्पर्द्धात्मकता को बढ़ाने का सुझाव दिया था।

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