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पश्चिमी घाट को पारिस्थितिकी रूप से संवेदनशील घोषित करने के लिए मसौदा अधिसूचना

Lokesh Pal August 03, 2024 02:03 111 0

संदर्भ

केंद्र सरकार ने छह राज्यों में पश्चिमी घाट के 56,800 वर्ग किलोमीटर से अधिक क्षेत्र को पारिस्थितिकी रूप से संवेदनशील क्षेत्र (ESA) घोषित करने के लिए एक मसौदा अधिसूचना जारी की है, जिसमें केरल के भूस्खलन प्रभावित वायनाड के 13 गाँव भी शामिल हैं। 

संबंधित तथ्य

  • घोषित करने का कारण
    • यह कदम वायनाड में भारी भूस्खलन के कारण मची तबाही के बीच उठाया गया है, जिसके कारण 300 से अधिक लोगों की मौत हो गई है।
  •  मसौदा अधिसूचना
    • यह अधिसूचना वायनाड में भूस्खलन की शृंखला के एक दिन बाद 31 जुलाई को जारी की गई थी। इसके अलावा, मसौदा अधिसूचना पर 60 दिनों के भीतर सुझाव और आपत्तियाँ आमंत्रित की गई हैं।
    • मसौदा अधिसूचना में छह राज्यों – महाराष्ट्र, तमिलनाडु, गोवा, केरल, कर्नाटक और गुजरात, के बीच आम सहमति बनाने का प्रयास किया गया है, जो वर्ष 2011 में इस मुद्दे के उभरने के बाद से इसमें शामिल रहे हैं।
    • पाँच सदस्यीय समिति एक पारिस्थितिकी संवेदनशील क्षेत्र ढाँचा बनाने पर ध्यान केंद्रित कर रही है, जिससे बुनियादी ढाँचे के मुद्दों और पश्चिमी घाट में जैव विविधता के संरक्षण पर सभी हितधारकों से आम सहमति प्राप्त होगी।
      • पश्चिमी घाटों की मसौदा रिपोर्ट के लिए पश्चिमी घाट पारिस्थितिकी संवेदनशील क्षेत्रों (ESA) पर उच्च स्तरीय समिति के हिस्से के रूप में 15 अक्टूबर, 2022 को देहरादून में एक चर्चा आयोजित की गई थी।
    • मसौदा अधिसूचना के अनुसार, पश्चिमी घाट को पारिस्थितिकी रूप से संवेदनशील क्षेत्र (ESA) घोषित किया जाना है। पश्चिमी घाट यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल है और दुनिया में जैव विविधता के आठ ‘हॉटस्पॉट’ में से एक है।

पारिस्थितिकी रूप से संवेदनशील क्षेत्र (ESA)

  • पारिस्थितिकी संवेदनशील क्षेत्र को पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा संरक्षित क्षेत्रों, राष्ट्रीय पार्कों और वन्यजीव अभयारण्यों के चारों ओर के क्षेत्र के रूप में अधिसूचित किया जाता है। 
  • इन क्षेत्रों को घोषित करने का उद्देश्य एक प्रकार के आघात अवशोषक की भूमिका का निर्माण करना है, जिससे संरक्षित क्षेत्रों को नियमित करने और उनके मध्य गतिविधियों को प्रबंधित करने में आसानी हो। ये क्षेत्र उच्च संरक्षित क्षेत्रों से निम्न संरक्षित क्षेत्रों के मध्य संक्रमण क्षेत्र का निर्माण भी करते हैं।

    • समिति के लिए मुख्य चुनौती पश्चिमी घाट के छह राज्यों के बीच आम सहमति बनाना है। पैनल के सूत्रों का कहना है कि कई राज्यों ने अपने अधिकार क्षेत्र में कुछ हिस्सों को शामिल करने और बाहर करने को लेकर आशंकाएँ और चिंताएँ व्यक्त की हैं। इसलिए, नए मसौदे और फॉर्मूले पर आम सहमति बनाना पैनल के लिए बहुत चुनौतीपूर्ण काम साबित हो रहा है।
    • राज्यवार क्षेत्र
      • कुल मिलाकर, अधिसूचना में प्रस्तावित ईएसए में गुजरात में 449 वर्ग किमी., महाराष्ट्र में 17,340 वर्ग किमी., गोवा में 1,461 वर्ग किमी., कर्नाटक में 20,668 वर्ग किमी., तमिलनाडु में 6,914 वर्ग किमी. और केरल में 9,993.7 वर्ग किमी. क्षेत्र शामिल है।
    • मसौदा अधिसूचना में खनन, उत्खनन और रेत खनन पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने का सुझाव दिया गया है। 
      • अधिसूचना में मौजूदा खदानों को अंतिम अधिसूचना जारी होने की तिथि से या मौजूदा खनन पट्टे की समाप्ति पर, जो भी पहले हो, पाँच वर्षों के भीतर चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने का भी प्रस्ताव है।
    • “20,000 वर्ग मीटर और उससे अधिक निर्मित क्षेत्र वाली सभी नई और विस्तारित भवन एवं निर्माण परियोजनाएँ तथा 50 हेक्टेयर और उससे अधिक क्षेत्र वाली या 1,50,000 वर्ग मीटर और उससे अधिक निर्मित क्षेत्र वाली सभी नई और विस्तारित टाउनशिप और क्षेत्र विकास परियोजनाएँ प्रतिबंधित रहेंगी।
    • अधिसूचना में कहा गया है, पर्यावरण के प्रति संवेदनशील क्षेत्र में मौजूदा आवासीय मकानों की मरम्मत, विस्तार या नवीकरण पर मौजूदा कानूनों और नियमों के अनुसार कोई प्रतिबंध नहीं होगा।

पश्चिमी घाट से संबंधित पूर्व संरक्षण प्रयास

  • वर्ष 2011 में माधव गाडगिल समिति ने पश्चिमी घाट के लिए संरक्षण और रोकथाम उपायों की सिफारिश की थी।
  • वर्ष 2013 में सरकार ने पारिस्थितिकी दृष्टि से संवेदनशील पश्चिमी घाटों के संरक्षण के लिए सिफारिशें देने हेतु डॉ. के. कस्तूरीरंगन समिति का गठन किया था।
    • गाडगिल समिति ने सिफारिश की थी कि पश्चिमी घाट के 64 प्रतिशत हिस्से को पारिस्थितिकी संवेदनशील क्षेत्र घोषित किया जाए, जबकि डॉ. कस्तूरीरंगन समिति ने इसे घटाकर 37 प्रतिशत कर दिया। 
    • वर्ष 2011 में पश्चिमी घाट की पारिस्थितिकी पर माधव गाडगिल समिति की रिपोर्ट में सुझाव दिया गया था कि पूरे क्षेत्र को पारिस्थितिकी संवेदनशील क्षेत्र घोषित किया जाए तथा कुछ क्षेत्रों में बहुत सीमित विकास की अनुमति दी जाए।

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