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DSR धान की खेती

Lokesh Pal March 18, 2024 06:34 165 0

संदर्भ

फेडरेशन ऑफ सीड इंडस्ट्रीज ऑफ इंडिया (FSII) एवं सथगुरु कंसल्टेंट्स (Sathguru Consultants) द्वारा जारी एक पेपर के अनुसार, भारत में चावल की खेती में डायरेक्ट सीडेड राइस (Direct Seeded Rice- DSR) तकनीक को बढ़ावा देने के लिए कई हितधारकों के बीच सहयोग की आवश्यकता है।

संबंधित तथ्य

  • इसके विभिन्न हितधारक हैं:-
  • कृषि-इनपुट एवं कृषि मशीनीकरण कंपनियाँ: आवश्यक मशीन एवं उपकरण प्रदान करना।
  • फसल प्रबंधन एडवाइजरी: सर्वोत्तम प्रथाओं पर किसानों का मार्गदर्शन करना।
  • सरकार: एक सक्षम वातावरण बनाना एवं नीतिगत परिवर्तनों का समर्थन करना।

डायरेक्ट सीडेड राइस (DSR) तकनीक के बारे में

  • डायरेक्ट सीडेड राइस (DSR), जिसे ब्रॉडकास्टिंग सीड तकनीक‘ (Broadcasting Seed Technique) के रूप में भी जाना जाता है।
    • यह एक ऐसी विधि है, जिसमें धान की खेती के दौरान कम पानी का उपयोग होता है।
  • विधि विवरण: DSR तकनीकी के तहत में, बीजों को प्रत्यक्ष रूप से खेतों में बोया जाता है। जिससे खेतों में धान रोपाई की आवश्यकता समाप्त हो जाती है।
  • भूजल संरक्षण: पारंपरिक तरीकों के विपरीत, DSR रोपाई से संबंधित जल-गहन प्रथाओं का उपयोग करके भूजल बचाता है।
  • सरलीकृत प्रक्रिया: DSR के लिए न्यूनतम तैयारी की आवश्यकता होती है, जिसमें नर्सरी सेटअप या रोपाई की कोई आवश्यकता नहीं होती है।
    • किसानों को केवल अपनी भूमि को समतल करने एवं एक बुवाई-पूर्व सिंचाई प्रदान करने की आवश्यकता है, जिससे खेती की प्रक्रिया सरल हो जाएगी।

प्रत्यक्ष बुवाई से जुड़ी चुनौतियाँ

  • वर्षों के अभ्यास के बावजूद सीमित रूप में अपनाना: कई वर्षों तक अस्तित्व में रहने के बावजूद, डायरेक्ट सीडेड राइस (DSR) ने भारत के प्रमुख चावल उगाने वाले क्षेत्रों में लोकप्रियता हासिल नहीं की है क्योंकि इस विधि के माध्यम से उगाए गए चावल की खरीद के लिए प्रोत्साहन की कमी इसके व्यापक अनुकूलन में बाधा डालती है।
  • उपज और कीट संवेदनशीलता के बारे में चिंताएँ

    • पारंपरिक रोपाई विधियों की तुलना में फसल की कम पैदावार के कारण किसान अक्सर DSR पर असंतोष व्यक्त करते हैं।
    • इसके अतिरिक्त, वे एक और चुनौती के रूप में DSR फसलों में कीटों एवं कीड़ों के प्रति बढ़ती संवेदनशीलता का हवाला देते हैं।
  • सहयोगी मंच का अभाव: बेहतर DSR उत्पादों के विकास एवं प्रसार में तेजी लाने के लिए कृषि अनुसंधान संस्थानों, विश्वविद्यालयों तथा बीज कंपनियों के बीच एक सहयोगी मंच की आवश्यकता है। ऐसे सहयोग के बिना, DSR में प्रगति धीमी हो सकती है।
  • नीति एवं नियामक ढाँचे की अनुपस्थिति: सरकार की ओर से सहायक नीतियों एवं नियामक ढाँचे की अनुपस्थिति DSR किसानों के लिए चुनौतियाँ खड़ी करती है। DSR प्रथाओं को सुचारु रूप से अपनाने एवं कार्यान्वयन की सुविधा के लिए भूमि स्वामित्व, ऋण पहुँच तथा बाजार लिंकेज से संबंधित मुद्दों को संबोधित करने की आवश्यकता है।
  • कटाई के बाद की अपर्याप्त सुविधाएँ: कटाई के बाद की अपर्याप्त सुविधाएँ DSR को तेजी से अपनाने में बाधा उत्पन्न करती हैं। DSR फसलों को कुशलतापूर्वक सँभालने एवं संसाधित करने के लिए बेहतर सुविधाएँ आवश्यक हैं।

भारत में चावल की स्थिति

  • पूरे भारत में लगभग 43.86 मिलियन हेक्टेयर भूमि पर चावल की खेती की जाती है। पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, पंजाब, तमिलनाडु, बिहार, छत्तीसगढ़ एवं ओडिशा भारत में चावल उत्पादन में अग्रणी राज्यों में से हैं।

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