हाल ही में मुंबई (13 मई) और दिल्ली (10 मई) में अत्यधिक तेज हवाओं के साथ धूल भरी आंधियाँ आईं।
संबंधित तथ्य
वार्षिक रूप से, लगभग 2 बिलियन टन रेत एवं धूल, पृथ्वी के वायुमंडल में व्यापक दूरी तय करती है, जिससे यह गहरे प्रभाव वाली एक वैश्विक घटना बन जाती है।
धूल भरी आँधियों के बारे में
धूल भरी आँधियाँ मौसम संबंधी घटनाएँ हैं, जहाँ अत्यधिक तेज हवाएँ जमीन से धूल और मिट्टी उठाती हैं और उन्हें लंबी दूरी तक ले जाती हैं। इस प्रकार की धूल भरी आँधियाँ शुष्क और अर्द्ध-शुष्क क्षेत्रों में काफी आम हैं।
ये घटनाएँ तड़ितझंझा के समान हैं, ये तब घटित होती हैं, जब बादल का तल जमीन से ऊँचे स्तर पर होता है और हवा में थोड़ी नमी होती है।
पूर्वावश्यक कारक : किसी भी तूफान के निर्माण के लिए स्थल का गर्म होना एक आवश्यक कारक है एवं संवहन के लिए 4-5 दिनों के ऊष्मण की आवश्यकता होती है, जो तूफान में बदल जाता है।
प्रेरक कारक : एक बार तूफान बनने के बाद, यह कभी-कभी ठंडी और शुष्क हवाओं द्वारा संचालित होता है जो नीचे की ओर और शक्तिशाली होते हैं, जिन्हें गुरुत्वाकर्षण से भी सहायता मिलती है। गर्मियों के दौरान गर्म सतहों पर चलने पर ये हवाएँ बहुत तेज हो सकती हैं।
धूल भरी आँधी बनने का कारण
जलवायु परिवर्तन द्वारा प्राकृतिक कारकों को बल मिलता है:-
पश्चिमी विक्षोभ में वृद्धि: भूमध्यसागरीय क्षेत्र से उत्पन्न होने वाले पश्चिमी विक्षोभ ईरान, अफगानिस्तान और पाकिस्तान से होते हुए भारत के मौसम को प्रभावित करते हैं। इन विक्षोभों के कारण तीव्र धूल भरी आँधियाँ आ सकती हैं।
उदाहरण: वर्ष 2022 में, उत्तर भारत में असामान्य धूल भरी आँधियों को पश्चिमी विक्षोभ में वृद्धि के लिए जिम्मेदार ठहराया गया था।
उत्तर-पश्चिमी भारत का ऊष्मण: उत्तर-पश्चिमी भारत में उच्च तापमान वायु को शुष्क बनाकर धूल भरी आँधियों के लिए अनुकूल परिस्थितियों का निर्माण करता है।
धूल भरी आँधी के दौरान दिल्ली में हवा की अधिकतम गति 92.7 किमी./घंटा थी, जो सामान्य 40-50 किमी./घंटा से काफी अधिक है।
आर्कटिक क्षेत्र का तेजी से गर्म होना: आर्कटिक क्षेत्र का तेजी से गर्म होना वैश्विक मौसम को प्रभावित करता है, जो भारत में धूल भरी आँधियों की तीव्रता में योगदान देता है।
उत्तर भारत में वर्ष 2018 की धूल भरी आँधियाँ आर्कटिक क्षेत्र के तेजी से गर्म होने से संबंधित थीं।
भौगोलिक कारक: स्थानीय स्थलाकृति के साथ-साथ अरब सागर एवं आस पास के शुष्क क्षेत्रों धूल भरी आँधी की उत्पत्ति में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
अरब सागर के पास स्थित मुंबई और इसकी तीव्र गर्मी की जलवायु के कारण यहाँ रेत और धूल से भरी तेज हवाएँ चलने का खतरा बना रहता है।
टनल इफेक्ट (Tunneling Effect): मुंबई के आसपास के पश्चिमी घाट जैसे ऊँचे निर्मित क्षेत्रों के बीच घाटियों से बहने वाली हवाएँ तेज हो सकती हैं, जिससे टनल इफेक्ट उत्पन्न हो सकता है।
धूल भरी आँधियों के दौरान सुरंग बनाने का प्रभाव हवा की गति को 40% तक बढ़ा सकता है।
चक्रवाती परिसंचरण: चक्रवाती परिसंचरण, तूफान को प्रेरित कर सकता है एवं धूल भरी आँधियों का कारण बन सकता है।
प्रतिचक्रवात की उपस्थिति: अरब सागर और बंगाल की खाड़ी के ऊपर प्रतिचक्रवात, अपनी दक्षिणावर्त हवाओं के साथ, उत्तरी हवाएँ लाते हैं, जो धूल भरी आँधी की स्थिति को अनुकूल बनाती हैं। वे अपनी स्थिति के आधार पर अधिक नमी या धूल लाते हैं, जो पूरे भारत में धूल भरी आँधी जैसी मौसमी घटनाओं में योगदान करते हैं।
जलवायु-संबंधित प्रवर्द्धक: उच्च तापमान, न्यूनतम वर्षा एवं शुष्क स्थितियाँ धूल भरी आँधियों की संभावना एवं तीव्रता को बढ़ाती हैं।
जलवायु परिवर्तन के कारण वायु प्रवाह में वृद्धि हुई है, जिससे धूल भरी आँधियों की आवृत्ति बढ़ जाती है।
मानवजनित कारक
अस्थिर कृषि पद्धतियाँ: जुताई, भूमि की सफाई करना एवं परित्यक्त फसल भूमि जैसी कृषि गतिविधियाँ धूल उत्सर्जन में महत्त्वपूर्ण योगदान देती हैं।
कृषि हेतु जल उपयोग के कारण अरल सागर के संकुचन ने इसे अरलकुम (Aralkum) रेगिस्तान में बदल दिया है, जो धूल भरी आँधियों का एक नया स्रोत है।
भूमि उपयोग परिवर्तन: वनों की कटाई एवं शहरीकरण स्थल सतहों को अस्थिर करते हैं, जिससे धूल उत्सर्जन बढ़ता है। शुष्क क्षेत्रों में शहरी विस्तार एवं वनों की कटाई धूल भरी आँधी की गतिविधियों को बढ़ाने में योगदान करती है।
धूल भरी आँधी का सटीक पूर्वानुमान लगाने में IMD’s की असमर्थता के कारण
धूल भरी आँधियों की स्थानीयकृत एवं संक्षिप्त प्रकृति
IMD के पास पर्याप्त संख्या में डॉपलर रडार (ट्रैकिंग के लिए आवश्यक) का अभाव है।
पश्चिमी विक्षोभ, चक्रवाती परिसंचरण एवं प्रतिचक्रवात जैसे विभिन्न मौसम संबंधी कारक धूल भरी आँधी को प्रभावित करते हैं, जिससे इसका सटीक मॉडल बनाना जटिल हो जाता है।
धूल भरी आँधी का प्रभाव
सामाजिक-आर्थिक प्रभाव
स्वास्थ्य परिणाम: धूल भरी आंधियाँ फेफड़ों, हृदय पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकती हैं, एलर्जी का कारण बन सकती हैं और अस्थमा जैसी बीमारियों को बढ़ा सकती हैं।
आर्थिक परिणाम: ये तूफान बुनियादी ढाँचे को नुकसान पहुँचाकर, कृषि उत्पादकता को कम, परिवहन को बाधित और स्वास्थ्य देखभाल लागत में वृद्धि करके काफी आर्थिक क्षति पहुँचाते हैं।
सामाजिक व्यवधान: धूल भरी आँधियाँ दैनिक जीवन को बाधित कर सकती हैं, जिससे सामाजिक अशांति, प्रवासन एवं आबादी का विस्थापन हो सकता है।
पर्यावरणीय प्रभाव
मृदा का क्षरण: धूल भरी आँधियाँ पोषक तत्त्वों से भरपूर ऊपरी मृदा की परत को हटा देती हैं, जिससे मृदा की गुणवत्ता एवं उर्वरता कम हो जाती है। यह क्षरण वनस्पति को पनपने की क्षमता को प्रभावित करता है, कृषि को प्रभावित करता है और मरुस्थलीकरण में योगदान देता है।
पारिस्थितिकी तंत्र में व्यवधान: ये तूफान वनस्पति को नष्ट कर सकते हैं, प्राकृतिक आवासों को बाधित कर सकते हैं और वन्य जीवन को प्रभावित कर सकते हैं। इन तूफानों के साथ आक्रामक प्रजातियों का भी एक जगह से दूसरी जगह स्थानांतरण हो सकता है, जो देशज प्रजातियों से प्रतिस्पर्द्धा कर सकती हैं, जिससे जैव विविधता की हानि एवं पारिस्थितिक असंतुलन हो सकता है।
धूल भरी आँधी के प्रभाव को कम करने के तरीके
मृदा संरक्षण प्रथाएँ: मिट्टी के कटाव को कम एवं मिट्टी की उर्वरता बनाए रखने के लिए समोच्च जुताई, विंडब्रेक (Windbreaks) और कवर क्रॉपिंग (Cover Cropping) जैसी तकनीकों का उपयोग करना चाहिए|
वनरोपण और पुनर्वनीकरण: मिट्टी को स्थिर करने, हवा की गति को कम करने एवं धूल भरी आँधियों के मार्ग में अवरोध उत्पन्न करने के लिए वृक्ष की दीवार बनाई जानी चाहिए।
सतत् कृषि पद्धतियाँ: मिट्टी के स्वास्थ्य में सुधार एवं कृषि भूमि से धूल उत्सर्जन को कम करने के लिए बिना जुताई वाली खेती, फसल चक्र एवं जैविक खेती को अपनाया जाना चाहिए।
शहरी नियोजन एवं बुनियादी ढाँचे का विकास: धूल भरी आँधियों के खिलाफ अवरोधों के रूप में कार्य करने के लिए हरित बेल्ट और बफर जोन को शहरी परिदृश्य में शामिल किया जाना चाहिए। निर्माण गतिविधियों में धूलरोधी सामग्री का प्रयोग किया जाना चाहिए।
प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली: पूर्वानुमान क्षमताओं को बढ़ाना और धूल भरी आँधियों के बारे में समुदायों को सचेत करने के लिए प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली स्थापित की जानी चाहिए।
स्वास्थ्य सुरक्षा उपाय: मास्क एवं वायु शोधक के उपयोग को बढ़ावा देना और धूल भरी आँधी की घटनाओं के दौरान श्वसन संबंधी समस्याओं से निपटने के लिए सुसज्जित चिकित्सा सुविधाएँ स्थापित करना।
बुनियादी ढाँचे का विकास: धूल भरी आँधियों की गति और प्रभाव को कम करने के लिए विंडब्रेक, बैरियर या ग्रीन बेल्ट जैसे बुनियादी ढाँचे का निर्माण करना।
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