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लोकसभा अध्यक्ष के कर्तव्य

Lokesh Pal June 26, 2024 03:40 143 0

संदर्भ 

हाल ही में लोकसभा में पूर्णकालिक अध्यक्ष का निर्वाचन हुआ। भारत के राष्ट्रपति ने सात बार से सांसद रहे भर्तृहरि महताब को 18वीं लोकसभा का ‘प्रोटेम स्पीकर’ नियुक्त किया है।

लोकसभा अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष

  • लोकसभा अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष का निर्वाचन कैसे किया जाता है?
    • भारतीय संविधान का अनुच्छेद-93: लोकसभा अपने अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष के रूप में दो सदस्यों का चयन करेगी।
    • लोकसभा  अध्यक्ष का निर्वाचन राष्ट्रपति द्वारा निर्धारित तिथि पर होता है। 
    • स्वतंत्र भारत में सभी लोकसभा अध्यक्ष निर्विरोध चुने गए हैं। 
    • उपाध्यक्ष का चुनाव अध्यक्ष द्वारा निर्धारित तिथि पर होता है।
  • रिक्तियाँ
    • एक लोकसभा के कार्यकाल के दौरान अध्यक्ष पद पर आसीन रहता है। 
    • हालाँकि, उसे निम्नलिखित तीन मामलों में से किसी एक में अपना पद कार्यकाल के पूर्व रिक्त करना होगा:
      1. यदि वह लोकसभा का सदस्य नहीं रह जाता है। 
      2. यदि वह उपाध्यक्ष को पत्र लिखकर इस्तीफा दे देता है। 
      3. यदि उसे लोकसभा सदस्यों के बहुमत (सामान्य  बहुमत) द्वारा पारित प्रस्ताव द्वारा हटाया जाता है। ऐसा प्रस्ताव केवल 14 दिन की अग्रिम सूचना देने के बाद ही लाया जा सकता है।
  • सामान्य बहुमत का तात्पर्य सदन में उपस्थित सदस्यों की संख्या से है। इसकी गणना सदन की कुल संख्या में से रिक्त एवं अनुपस्थित सीटों की संख्या घटाकर की जाती है।
  • जब लोकसभा अध्यक्ष को हटाने का प्रस्ताव सदन में विचाराधीन हो
    • वह सदन की बैठक की अध्यक्षता नहीं कर सकता है, भले ही वह सदन उपस्थित हो। 
    • वह ऐसे समय में अपना पक्ष रख सकता है एवं सदन की कार्यवाही में भाग ले सकता है तथा पहली बार में मतदान कर सकता है, हालाँकि वोट बराबर होने की स्थिति में निर्णायक वोट नहीं दे सकता।
  • जब भी लोकसभा भंग होती है: अध्यक्ष अपना पद रिक्त नहीं करता है और नवनिर्वाचित लोकसभा की बैठक होने तक पद पर आसीन रहता है।

शक्तियाँ एवं कर्तव्य

  • प्राथमिक उत्तरदायित्व: अपने कार्यो के संचालन एवं इसकी कार्यवाही को विनियमित करने के लिए सदन में व्यवस्था तथा मर्यादा बनाए रखना लोकसभा अध्यक्ष का प्राथमिक उत्तरदायित्व है एवं इस संबंध में अंतिम शक्ति अध्यक्ष  के पास है।
  • अंतिम व्याख्याकार 
    • भारत का संविधान
    • लोकसभा की प्रक्रिया और कार्य संचालन के नियम
    • सदन के भीतर संसदीय परंपराएँ
  • सदन में गणपूर्ति (कोरम) के अभाव में सदन को स्थगित करना या बैठक निलंबित कर देता है।
    • कोरम = सदन की कुल संख्या का दसवाँ भाग 
  • कोई विधेयक धन विधेयक है या नहीं इसका निर्णय लेना अतः धन विधेयक के प्रश्न पर लोकसभा अध्यक्ष का निर्णय अंतिम है।
  • लोकसभा  अध्यक्ष पहली बार में वोट नहीं करते। लेकिन मतों के बराबर होने  की स्थिति में निर्णायक मत का प्रयोग कर सकते हैं। 
  • लोकसभा अध्यक्ष संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक की अध्यक्षता करता है।
    • किसी विधेयक पर दोनों सदनों के बीच गतिरोध की स्थिति में  राष्ट्रपति द्वारा संयुक्त बैठक बुलाई जाती है।
  • सदन के नेता के अनुरोध पर सदन की ‘गुप्त’ बैठक की अनुमति देता है।
  • दसवीं अनुसूची के प्रावधानों के तहत दलबदल के आधार पर लोकसभा सदस्य की अयोग्यता के प्रश्नों का निर्णय करता है। 
  • भारतीय संसदीय समूह के पदेन अध्यक्ष के रूप में कार्य करता है, जो भारत की संसद एवं विश्व की विभिन्न संसदों के बीच एक कड़ी का कार्य करती है। 
  • लोकसभा की सभी संसदीय समितियों के अध्यक्ष की नियुक्ति करता है एवं उनकी कार्यप्रणाली की निगरानी करता है। 
  • संसद में व्यवसाय सलाहकार समिति (Business Advisory Committee), नियम समिति (Rules Committee) एवं सामान्य प्रयोजन समिति (General Purpose Committee) के अध्यक्ष के रूप  में कार्य करता है।

चिंताएँ

  • प्रावधानों का दुरुपयोग: सदस्यों को निलंबित करने के नियमों का अक्सर विपक्ष के खिलाफ दुरुपयोग किया जाता रहा है। 
    • उदाहरण के लिए, हाल ही में लोकसभा में कांग्रेस पार्टी के नेता अधीर रंजन चौधरी को प्रधानमंत्री के खिलाफ उनकी टिप्पणी के लिए निलंबित कर दिया गया था (जिसे बाद में रद्द कर दिया गया), लेकिन बहुजन समाज पार्टी के सांसद दानिश अली पर  सांप्रदायिक आरोप लगाने के लिए भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सदस्य रमेश बिधूड़ी के विरुद्ध ऐसी कोई  भी कार्रवाई नहीं की गई है।
  • विधेयकों को स्थायी समितियों को न भेजा जाना: अध्यक्ष के पास पेश किए गए विधेयकों को संसदीय स्थायी समितियों के पास भेजने का अधिकार है। हालाँकि, जिन महत्त्वपूर्ण विधेयकों की विस्तृत जाँच की आवश्यकता होती है, उन्हें भी ऐसी समितियों के पास नहीं भेजा जाता है। 
    • उदाहरण के लिए: वर्ष 2004-14 के दौरान लोकसभा में समितियों को 60% से अधिक विधेयक भेजे गए किंतु वर्ष 2014-2023 के दौरान यह संख्या 25% से भी कम हो गई है।
  • वाद-विवाद में भूमिका: वाद-विवाद को नियंत्रित करने और सभी सदस्यों को बोलने एवं अपने विचार व्यक्त करने का उचित अवसर सुनिश्चित करने में अध्यक्ष की भूमिका पर कभी-कभी चर्चा के प्रवाह को नियंत्रित करने एवं  कथित पक्षपात के आरोप लगाए जाते है।

संबंधित मामले

  • किहोतो होलोहन बनाम जाचिल्हू मामला (वर्ष 1992): उच्चतम न्यायालय ने घोषणा की कि पीठासीन अधिकारी का निर्णय अंतिम नहीं है और किसी भी न्यायालय  में उस पर सवाल उठाया जा सकता है। 
    • यह दुर्भावना, भेदभाव आदि के आधार पर न्यायिक समीक्षा के अधीन है।
  • कीशम मेघचंद्र सिंह बनाम माननीय अध्यक्ष मणिपुर (वर्ष 2020): विधानसभाओं एवं संसद के अध्यक्षों को असाधारण परिस्थितियों के अतिरिक्त तीन महीने की अवधि में अयोग्यता संबंधी याचिकाओं पर फैसला करना होगा।

  • दल-बदल विरोधी कानून पर प्रभाव: दल-बदल विरोधी कानून के संदर्भ में सदन के अध्यक्ष से संवैधानिक भूमिका के तहत निष्पक्ष तरीके से निर्णय लेने की उम्मीद की जाती है, हालाँकि, पिछले कई उदाहरणों को देखकर, यह अनुमान लगाया गया है, कि अध्यक्ष सत्तारूढ़ शासन के पक्ष में निर्णय  लेते हैं।
  • पार्टी संबद्धता: अध्यक्ष, जो मुख्यत: पर सत्तारूढ़ दल का सदस्य होता है, सदन में कार्यवाही संचालित करते समय या निर्णय लेते समय अपनी ही पार्टी के प्रति पूर्वाग्रह प्रदर्शित कर सकता है।

आगे की राह 

  • ब्रिटिश प्रणाली का पालन: अध्यक्ष के पद की गरिमा के लिए ब्रिटेन की तरह प्रथाओं को अपनाने की आवश्यकता है, जो अपनी निष्पक्षता को प्रतिबिंबित करने के लिए संबंधित राजनीतिक दल से इस्तीफा दे देता है।

स्वतंत्रता के बाद से निर्विरोध निर्वाचन 

  • स्वतंत्रता के बाद से, लोकसभा अध्यक्ष को सत्ता पक्ष एवं विपक्ष दोनों के मध्य  सर्वसम्मति से चुना जाता रहा है। 
  • केवल एम.ए. अय्यंगर, जी.एस. ढिल्लो, बलराम जाखड़ एवं जी. एम. सी. बालयोगी को पुनर्निर्वाचित किया गया ।
  • स्वतंत्रता के बाद से लोकसभा अध्यक्ष हमेशा बिना किसी प्रतिद्वंद्वी के चुना जाता रहा है।

  • संवैधानिक एवं नैतिक आचरण: केंद्र में लोकसभा एवं राज्यों में विधानसभा के पीठासीन अधिकारी के रूप में, अध्यक्ष को निष्पक्ष रूप से कार्य करना आवश्यक है। 
  • एक स्वतंत्र न्यायाधिकरण: दल-बदल के आधार पर सदस्यों की अयोग्यता संबंधी प्रश्नों के समाधान के लिए एक स्वतंत्र न्यायाधिकरण की आवश्यकता है। 
  • संरचनात्मक मुद्दों को हल करना: अध्यक्ष की नियुक्ति के तरीके एवं पद पर उनके कार्यकाल से संबंधित मुद्दों के  तत्काल निवारण की आवश्यकता है।

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