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भारत में ई-अपशिष्ट संकट

Lokesh Pal May 14, 2025 03:39 10 0

संदर्भ

भारत में ई-अपशिष्ट की मात्रा छह वर्षों में 151.03% बढ़ गई है, जिसके कारण तत्काल विनियामक और प्रणालीगत सुधार की आवश्यकता है।

ई-अपशिष्ट उत्पादन की स्थिति

  • चीन और अमेरिका के बाद भारत विश्व का तीसरा सबसे बड़ा ई-अपशिष्ट उत्पादक देश बन गया है।
  • तीव्र वृद्धि: भारत में वर्ष 2017-18 में 7,08,445 मीट्रिक टन से वर्ष 2023-24 में 17,78,400 मीट्रिक टन की ई-अपशिष्ट वृद्धि देखी गई, जिसमें 1,69,283 मीट्रिक टन की वार्षिक वृद्धि हुई।
  • भारत में सबसे बड़ा योगदानकर्ता: शहरी क्षेत्र और स्कूल और सरकारी कार्यालय जैसे- थोक उपभोक्ता,  अपशिष्ट की मात्रा में वृद्धि के प्रमुख कारण हैं।
  • कोविड-19 महामारी की भूमिका: महामारी के दौरान दूरस्थ कार्य और शिक्षा के लिए इलेक्ट्रॉनिक खपत में वृद्धि के कारण वर्ष 2019-20 और वर्ष 2020-21 के बीच सबसे तीव्र वृद्धि हुई है।
  • वैश्विक बोझ: ई-अपशिष्ट उत्पन्न होने वाले कुल अपशिष्ट का 70% हिस्सा है, जबकि मनुष्यों द्वारा उत्पन्न कुल अपशिष्ट का केवल 2% ही ई-अपशिष्ट है।
    • वर्ष 2022 में, विश्व में 62 मिलियन टन ई-अपशिष्ट उत्पन्न हुआ; जिसमें से केवल 22.3% का ही औपचारिक रूप से पुनर्चक्रण किया गया।

ई-अपशिष्ट और उसके प्रभाव के बारे में

  • ई-अपशिष्ट में मोबाइल फोन, लैपटॉप, रेफ्रिजरेटर और चिकित्सा उपकरण जैसे खराब इलेक्ट्रिकल और इलेक्ट्रॉनिक उपकरण (EEE) शामिल हैं।
  • इसमें सोना, चाँदी जैसी मूल्यवान धातुएँ और प्लास्टिक, भारी धातु आदि जैसे जहरीले पदार्थ शामिल हैं।

अनुचित निपटान का प्रभाव

  • पर्यावरण: अनौपचारिक पुनर्चक्रण विधियाँ पर्यावरण में 1,000 से अधिक विषैले रसायन उत्सर्जित करती हैं, जिनमें सीसा, पारा, आर्सेनिक, कैडमियम और लगातार बने रहने वाले कार्बनिक प्रदूषक शामिल हैं।
  • स्वास्थ्य के लिए खतरा: इन पदार्थों के संपर्क में आने से गंभीर स्वास्थ्य समस्याएँ हो सकती हैं, विशेषकर बच्चों एवं गर्भवती महिलाओं में।
    • ILO के अनुसार, अनौपचारिक ई-अपशिष्ट पुनर्चक्रण को बाल श्रम के सबसे बुरे रूपों में वर्गीकृत किया गया है।
    • ई-अपशिष्ट स्वास्थ्य जोखिमों में शामिल हैं:-
      • न्यूरोडेवलपमेंटल विकार
      • श्वसन संबंधी समस्याएँ और अस्थमा
      • मृत जन्म और समय से पूर्व जन्म
  • आर्थिक नुकसान: ई-अपशिष्ट के कुप्रबंधन के कारण भारत में भारी सामाजिक-आर्थिक नुकसान होता है।
    • पर्यावरण को होने वाले नुकसान (प्रदूषित वायु, जल, मिट्टी) में $10 बिलियन/वर्ष।
    • स्वास्थ्य प्रभावों से होने वाले सामाजिक नुकसान में $20 बिलियन/वर्ष
    • कच्चे तेल के निष्कर्षण के कारण महत्त्वपूर्ण धातु मूल्य में ₹80,000 करोड़/वर्ष।
    • अपंजीकृत, नकद-आधारित संचालन के कारण कर में $20 बिलियन/वर्ष की हानि।

ई-अपशिष्ट प्रसंस्करण के तरीके

विधि 

तंत्र

चिंताएँ/मुद्दे

लैंडफिलिंग ई-अपशिष्ट को पंक्तिबद्ध गड्ढों में डाल दिया जाता है, जिन्हें बाद में मिट्टी से ढक दिया जाता है। मिट्टी और भूजल में विषाक्त पदार्थों (कैडमियम, सीसा, पारा) के रिसने का खतरा बना रहता है।
एसिड बाथ  धातुओं के निष्कर्षण के लिए इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को मजबूत अम्लों (H₂SO₄, HCl, HNO₃) में भिगोया जाता है। खतरनाक अम्लीय अपशिष्ट उत्पन्न होता है; जल स्रोत संदूषण का खतरा बना रहता है।
भस्मीकरण ई-अपशिष्ट को उच्च तापमान पर जलाया जाता है, जिससे आयतन कम हो जाता है और ऊर्जा उत्पन्न होती है। डाइऑक्सिन, फ्यूरान और सस्पेंडेड पार्टिकल जैसे पदार्थों से निर्मित जहरीली गैसों के निकलने से वायु प्रदूषण होता है।
पुनर्चक्रण विघटित ई-अपशिष्ट से धातु जैसे मूल्यवान घटकों को पुनः प्राप्त किया जाता है तथा विनिर्माण में उनका पुनः उपयोग किया जाता है। यदि जिम्मेदारी से किया जाए तो यह अन्य तरीकों की तुलना में अधिक सुरक्षित है; अनौपचारिक क्षेत्र में पुनर्चक्रण से स्वास्थ्य/पर्यावरण संबंधी जोखिम उत्पन्न होते हैं।
पुन: उपयोग कार्यात्मक या मरम्मत योग्य इलेक्ट्रॉनिक्स को नवीनीकृत किया जाता है और प्रायः वंचित समुदायों में पुनः वितरित किया जाता है। सर्वाधिक पर्यावरण अनुकूल विधि; चक्रीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देती है तथा उत्पाद जीवन चक्र को बढ़ाती है।

भारत में ई-अपशिष्ट प्रबंधन नियम

  • ई-अपशिष्ट (प्रबंधन) नियम, 2022: वर्ष 2016 के नियमों के स्थान पर 1 अप्रैल, 2023 से प्रभावी हुए।
  • मुख्य प्रावधानों में शामिल हैं-
    • रीसाइकिलर्स, रिफर्बिशर्स और उत्पादकों का पंजीकरण।
    • निश्चित न्यूनतम मूल्य पर EPR प्रमाण-पत्रों की अनिवार्य खरीद।
    • उत्पादकों के लिए स्पष्ट वार्षिक रीसाइकिलिंग लक्ष्य।
  • कवरेज: इसमें इलेक्ट्रॉनिक और इलेक्ट्रिकल उपकरण (EEE) की 106 श्रेणियाँ शामिल हैं। ये आँकड़े वित्त वर्ष 2023-24 से आगे की अवधि के हैं; पहले के अनुमानों (वर्ष 2019-2023) में केवल 21 मद शामिल थे।

विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व (Extended Producer Responsibility- EPR)

  • EPR उत्पादकों को उनके उत्पादों के पूरे जीवन चक्र के लिए जवाबदेही प्रदान करता है, जिसमें जीवन के अंत में संग्रहण और पुनर्चक्रण शामिल है। यह बढ़ावा देता है:-
    • सतत् उत्पाद डिजाइन
    • पर्यावरण लागत एकीकरण
    • नगरपालिका अपशिष्ट बोझ में कमी।
  • फ्लोर प्राइसिंग: ई-अपशिष्ट (प्रबंधन) नियम, 2022 के तहत ‘फ्लोर प्राइसिंग’ विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व (EPR) प्रमाण-पत्रों के लिए न्यूनतम निर्धारित मूल्य को संदर्भित करता है, जिसे उत्पादकों को अपने दायित्वों का पालन करने, औपचारिक पुनर्चक्रणकर्ताओं के लिए उचित मुआवजा सुनिश्चित करने और अवैध प्रथाओं पर अंकुश लगाने के लिए पंजीकृत पुनर्चक्रणकर्ताओं से खरीदना होगा।
    • उन्नत, सुरक्षित प्रौद्योगिकियों के उपयोग को प्रोत्साहित करता है।
    • EPR बाजार को स्थिर करता है और विश्वास को बढ़ाता है।
    • लैंडफिल निपटान की तुलना में सामग्री पुनर्प्राप्ति को बढ़ावा देता है।
  • स्थिर मूल्य निर्धारण का लाभ: पूर्वानुमानित मूल्य निर्धारण औपचारिक क्षेत्र के निवेश को प्रोत्साहित करता है और ई-अपशिष्ट को दायित्व से परिसंपत्ति में परिवर्तित करता है, जिससे इसकी आर्थिक क्षमता का दोहन होता है।

  • थोक उपभोक्ता दायित्व: नियम 9 में यह अनिवार्य किया गया है कि थोक उपभोक्ता ई-अपशिष्ट का निपटान केवल पंजीकृत संचालकों के माध्यम से करें, जिससे पता लगाने की क्षमता और अनुपालन में सुधार हो।
  • ई-अपशिष्ट (प्रबंधन) संशोधन नियम, 2024: केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) द्वारा इसकी स्वीकृति से जारी दिशा-निर्देशों के अनुसार EPR प्रमाण-पत्रों के व्यापार का प्रावधान किया गया है।
    • CPCB विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व प्रमाण-पत्रों के लिए मूल्य सीमा निर्धारित करेगा, जो गैर-अनुपालन के लिए पर्यावरणीय क्षतिपूर्ति का 100% (अधिकतम) और 30% (न्यूनतम) होगा।

ई-अपशिष्ट से निपटने के लिए अन्य कानूनी ढाँचा

खतरनाक और अन्य अपशिष्ट (प्रबंधन और सीमापार संचलन) नियम, 2016

  • खतरनाक और अन्य अपशिष्टों के उत्पादन, हैंडलिंग, भंडारण और सीमापार आवागमन को नियंत्रित करता है।
  • सुरक्षित निपटान सुनिश्चित करता है और हितधारकों द्वारा अपशिष्ट हैंडलिंग के लिए प्राधिकरण को अनिवार्य बनाता है।
  • डंपिंग के लिए अपशिष्ट के आयात पर प्रतिबंध लगाता है और संसाधन पुनर्प्राप्ति को बढ़ावा देता है।

रासायनिक एवं अपशिष्ट प्रबंधन के लिए राष्ट्रीय कार्य योजना

  • यह खतरनाक अपशिष्ट से निपटने के लिए CPCB द्वारा तैयार की गई योजना है। 
  • स्टॉकहोम और रॉटरडैम कन्वेंशन के तहत भारत की प्रतिबद्धताओं के अनुरूप है।
    • स्टॉकहोम कन्वेंशन: वर्ष 2001 में अपनाया गया, इसका उद्देश्य स्थायी कार्बनिक प्रदूषकों (Persistent Organic Pollutants- POP) के उत्पादन और उपयोग को समाप्त करना या प्रतिबंधित करना है।
    • रॉटरडैम कन्वेंशन: वर्ष 1998 में अपनाया गया, यह खतरनाक रसायनों के अंतरराष्ट्रीय व्यापार को रोकने में साझा जिम्मेदारी को बढ़ावा देता है।
      • यह सुनिश्चित करता है कि देश ऐसे पदार्थों का आयात करने से पहले सूचना प्राप्त करना तथा पूर्व सूचित सहमति (Prior Informed Consent- PIC) देना निर्धारित करें।
  • इसका उद्देश्य संस्थागत तंत्र को मजबूत करना और रासायनिक अपशिष्ट प्रबंधन को बढ़ावा देना है।
  • यह सभी क्षेत्रों में क्षमता निर्माण, जन जागरूकता और सुरक्षित निपटान प्रथाओं को प्रोत्साहित करता है।

चुनौतियाँ

  • कम औपचारिक पुनर्चक्रण दर: वर्ष 2023-24 में केवल 43% ई-अपशिष्ट को औपचारिक रूप से संसाधित किया गया।
    • प्रसंस्करण में वृद्धि के बावजूद, वर्ष 2019-20 में 22% से अप्रसंस्कृत ई-अपशिष्ट में कुल मिलाकर 57% (9,90,000 मीट्रिक टन) की वृद्धि हुई है।
  • राज्य-वार डेटा का अभाव: राज्य-स्तरीय ई-अपशिष्ट के विस्तृत डेटा का अभाव लक्षित नीति निर्माण और स्थानीय हस्तक्षेप में बाधा डालता है।
  • अनौपचारिक क्षेत्र का बहिष्कार: संबंधित प्राधिकरण अनौपचारिक क्षेत्र को एकीकृत करने में विफल रहे हैं, जो अपशिष्ट संग्रह में महत्त्वपूर्ण अंतिम स्थान की भूमिका निभाता है।
  • प्रोत्साहन का अभाव: भारत में पर्यावरण के अनुकूल उत्पाद डिजाइन के लिए कर क्रेडिट प्रणाली का अभाव है, जो उत्पादकों को पुनर्चक्रण योग्य और सतत् उपकरण बनाने के लिए प्रेरित कर सकता है।
  • मूल्य निर्धारण पर उत्पादकों का विरोध: कुछ लोगों का तर्क है कि न्यूनतम मूल्य निर्धारण से उत्पाद की लागत बढ़ जाती है, जिसका असर अनुकूलन पर पड़ता है।
    • हालाँकि, विशेषज्ञों का तर्क है कि निष्क्रियता की सामाजिक लागत (प्रदूषण, स्वास्थ्य संकट, खोए हुए संसाधन) कहीं अधिक है।
  • अनौपचारिक कार्यबल: भारत में, अनौपचारिक पुनर्चक्रणकर्ता (मुख्य रूप से महिलाएँ और बच्चे) 95% ई-अपशिष्ट को सँभालते हैं।
    • लगातार विषाक्त पदार्थों के संपर्क में रहने के कारण उनका औसत जीवनकाल 27 वर्ष से कम है।

ई-अपशिष्ट से निपटने के लिए वैश्विक पहल

  • UNEP का बेसल कन्वेंशन (1989)
    • उद्देश्य: ई-अपशिष्ट सहित खतरनाक अपशिष्ट की सीमा पार आवाजाही को नियंत्रित करना।
    • कार्यान्वयन: कानूनी रूप से बाध्यकारी संधि; 190+ पक्षकार; राष्ट्रीय रिपोर्टिंग और नियंत्रण प्रक्रियाएँ।
      • भारत बेसल कन्वेंशन का एक पक्ष है।
  • प्रतिबंध संशोधन (वर्ष 2019 में लागू)
    • उद्देश्य: OECD से गैर-OECD देशों को खतरनाक अपशिष्ट के निर्यात पर रोक लगाना।
    • कार्यान्वयन: अब कानूनी रूप से बाध्यकारी, इसका उद्देश्य विकासशील देशों को विषाक्त अपशिष्ट डंपिंग से बचाना है।
  • अफ्रीकी संघ का बामको कन्वेंशन (1991)
    • उद्देश्य: अफ्रीका में खतरनाक अपशिष्ट के आयात पर प्रतिबंध लगाना।
    • कार्यान्वयन: अफ्रीकी देशों के लिए कानूनी रूप से बाध्यकारी; सख्त आयात नियंत्रण लागू करना।
  • वैगानी कन्वेंशन (1995)
    • संगठन: प्रशांत क्षेत्रीय पर्यावरण कार्यक्रम का सचिवालय (Secretariat of the Pacific Regional Environment Programme- SPREP)।
    • क्षेत्र: दक्षिण प्रशांत।
    • उद्देश्य: प्रशांत द्वीप देशों में खतरनाक अपशिष्ट के आयात/निर्यात पर प्रतिबंध लगाना।

आगे की राह 

  • अपशिष्ट प्रबंधन का औपचारिकीकरण: भारत को दक्षता और सुरक्षा बढ़ाने के लिए अनौपचारिक श्रमिकों को प्रशिक्षण, उपकरण और सामाजिक सुरक्षा के साथ उपयुक्त चैनलों में एकीकृत करना चाहिए।
  • हरित डिजाइन के लिए कर प्रोत्साहन: कर छूट या क्रेडिट के माध्यम से पर्यावरण के अनुकूल उत्पाद नवाचार को प्रोत्साहित करना सतत् विनिर्माण की संस्कृति को बढ़ावा दे सकता है।
    • यह इलेक्ट्रॉनिक्स निर्माताओं को विस्तारित जीवन काल और मरम्मत योग्य सुविधाओं के साथ उत्पादों को डिजाइन करने के लिए प्रोत्साहित करेगा।
  • निगरानी बढ़ाना: बेहतर नीति नियोजन और प्रवर्तन के लिए मजबूत राज्य-स्तरीय डेटा संग्रह प्रणाली विकसित करना।
  • जन जागरूकता: जन जागरूकता अभियान और स्कूल-स्तरीय कार्यक्रम जिम्मेदार ई-अपशिष्ट के निपटान और टेक-बैक योजनाओं में भागीदारी को बढ़ावा दे सकते हैं।
    • नोकिया का टेक-बैक अभियान भारत में जागरूकता की कमी के कारण विफल रहा है।
  • निवेश: अधिकृत रीसाइक्लिंग सुविधाएँ और ई-अपशिष्ट पार्कों में सार्वजनिक-निजी निवेश में वृद्धि औपचारिक क्षेत्र प्रसंस्करण को बढ़ा सकती है।
  • सख्त प्रवर्तन: EPR लक्ष्यों का पालन सुनिश्चित करने और अवैध प्रथाओं को हतोत्साहित करने के लिए अनुपालन नहीं करने वाले उत्पादकों, नवीनीकरण करने वालों और पुनर्चक्रणकर्ताओं को दंडित करना।
  • वैश्विक प्रथाओं को अपनाना: अग्रणी देशों की तरह बेंचमार्क मूल्य निर्धारण, अनुपालन और सुरक्षा मानक स्थापित करना।
    • उदाहरण के लिए, वैश्विक स्तर पर, EPR शुल्क काफी अधिक है, जो वास्तविक प्रभाव सुनिश्चित करता है।
  • मरम्मत का अधिकार: यह उपभोक्ताओं को उपकरणों को ठीक करने, उत्पाद की अवधि को बढ़ाने और समय से पहले निपटान को कम करने का अधिकार देता है, जिससे ई-अपशिष्ट के उत्पादन पर नियंत्रण लगता है।
    • यूरोपीय संघ के मरम्मत के अधिकार कानून (2023) के अनुसार, निर्माताओं को 10 वर्ष  तक स्पेयर पार्ट्स और मरम्मत सेवाएँ प्रदान करना अनिवार्य है।
  • आवधिक समीक्षा: विकसित हो रही प्रौद्योगिकियों, सामग्रियों और वैश्विक प्रतिबद्धताओं के आधार पर नियमों को संशोधित करने के लिए एक तंत्र स्थापित करना।

निष्कर्ष

भारत को बढ़ते ई-अपशिष्ट के प्रबंधन के लिए निर्णायक कदम उठाने चाहिए। मजबूत नीतियाँ, न्यूनतम मूल्य निर्धारण, अनौपचारिक क्षेत्र एकीकरण और वैश्विक सहयोग इस संकट को सतत् विकास तथा पर्यावरण नेतृत्व के अवसर में परिवर्तित कर सकते हैं।

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