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अल्मोडा भ्रंश के सक्रिय होने से भारत में भूकंप (Earthquake in India due to activation of Almora fault)

Samsul Ansari December 15, 2023 11:07 175 0

संदर्भ

पिछले तीन वर्षों की तुलना में भारत में जनवरी से नवंबर, 2023 के बीच भूकंप की संख्या में वृद्धि हुई है।

संबंधित तथ्य 

  • भूकंप और अल्मोडा भ्रंश के मध्य का संबंध: वर्ष 2023 में भूकंप के झटकों में वृद्धि मुख्य रूप से पश्चिमी नेपाल में अल्मोडा भ्रंश की सक्रियता से संबंधित है।
    • इसकी सक्रियता के कारण 24 जनवरी, 2023 (भूकंप की तीव्रता 5.8), 3 अक्टूबर, 2023 (भूकंप की तीव्रता 6.2) और 3 नवंबर, 2023 (भूकंप की तीव्रता 6.4) को तीव्र भूकंप के झटके महसूस किये गए।
  • हालाँकि, भू-वैज्ञानिकों ने इस अवधारणा को खारिज दिया है कि भूकंप की आवृत्ति में वृद्धि सक्रिय अल्मोडा भ्रंश के कारण है।

अल्मोड़ा भ्रंश के सक्रिय होने के संबंध में भू-वैज्ञानिकों के विचार

  • मेनशॉक के कारण आफ्टरशॉक: हिमालयी क्षेत्र में भूकंप के पीछे विवर्तनिक टकराव ही कारण है और छोटे भूकंप (आफ्टरशॉक) के बाद ज्यादातर गंभीर भूकंप आते हैं।
    • वर्ष 2023 में, दो बड़े भूकंप आए, एक जनवरी में और दूसरा नवंबर में, जिससे इस साल भूकंपीय गतिविधि में समग्र वृद्धि हुई।

अल्मोडा भ्रंश के बारे में 

  • अल्मोडा भ्रंश पश्चिम-उत्तर-पश्चिम-पूर्व-दक्षिण-पूर्व से उत्तर-पश्चिम-दक्षिण-पूर्व की ओर एक उच्च कोण पर प्रवृत्त विवर्तनिक तल है।
  • यह उत्तर में आंतरिक लघु हिमालय के गढ़वाल समूह को दक्षिण में बाहरी लघु हिमालय के जौनसार और दूधातोली समूहों से अलग करता है।

सक्रिय भ्रंश क्या है?

  • यदि पिछले 10,000 वर्षों के दौरान कोई हलचल देखी गई हो या भूकंपीय गतिविधि का प्रमाण मिला हो तो भ्रंश को आमतौर पर सक्रिय माना जाता है।
  • हिमालय में कोई भी भ्रंश (मेन सेंट्रल थ्रस्ट, नॉर्थ अल्मोडा थ्रस्ट या साउथ अल्मोडा थ्रस्ट) सक्रिय नहीं है।

  • भूकंप के पीछे MBT (मेन बाउंड्री थ्रस्ट) : भू-वैज्ञानिकों के अनुसार, हिमालय क्षेत्र में भूकंप का कारण मेन बाउंड्री थ्रस्ट नामक भ्रंश है।
    • वर्ष 2023 में दोनों बड़े भूकंप MBT से संबंधित थे किंतु गलत तरीके से अल्मोडा भ्रंश को जिम्मेदार ठहराया गया।
    • MBT पर्वत शृंखला से लगभग 15 से 20 किलोमीटर नीचे अवस्थित है।
  • कोई सक्रिय भ्रंश नहीं: हिमालय में कोई भी भ्रंश यानी मेन सेंट्रल थ्रस्ट, नॉर्थ अल्मोडा थ्रस्ट या साउथ अल्मोडा थ्रस्ट सक्रिय नहीं है।
  • अल्मोडा थ्रस्ट: सरकार ने उत्तर या दक्षिण अल्मोडा थ्रस्ट में हाल ही में आए भूकंपों की गलत मैपिंग की है।
    • अल्मोडा थ्रस्ट गहरा नहीं है और मेंटल तक नहीं पहुँचता है यह ऊपरी भ्रंश है। इससे भूकंप आने की आशंका न के बराबर है। 

थ्रस्ट 

  • थ्रस्ट फॉल्ट पृथ्वी की परत में एक प्रकार की दरार है।

उत्तराखंड में थ्रस्ट

  • कुमाऊं, उत्तराखंड में दो थ्रस्ट हैं: साउथ अल्मोडा थ्रस्ट और नॉर्थ अल्मोडा थ्रस्ट।
  • यह अल्मोडा भ्रंश पश्चिमी नेपाल तक फैला हुआ है।

पृथ्वी की आंतरिक संरचना

  • भूपर्पटी: पृथ्वी की सबसे ऊपरी परत को भूपर्पटी के नाम से जाना जाता है, जो परतदार चट्टानों से बनी है।
  • मेंटल: अगली परत मेंटल है, जो अर्द्ध-पिघली हुई चट्टानों से बनी होती है।
  • मेंटल में भूकंपीयता: मेंटल में दबाव बहुत अधिक होता है और परत के भीतर की भूकंपीयता ऊपरी परत में हलचल का कारण बनती है।
    • ऊर्जा कभी-कभी सीमा तक पहुँचती है और दूसरी टेक्टोनिक प्लेट के किनारे से टकराती है।

भूकंप क्या है?

  • साधारण शब्दों में भूकंप का अर्थ पृथ्वी के कंपन से होता है। यह एक प्राकृतिक घटना है, जिसमें पृथ्वी के अंदर से ऊर्जा के निकलने के कारण तरंगें उत्पन्न होती हैं जो सभी दिशाओं में फैलकर पृथ्वी को कंपित करती हैं।
  • यह गतिमान लिथोस्फेरिक या क्रस्टल प्लेटों के संचित ऊष्मा के मुक्त होने के परिणामस्वरूप होता है।

भारत में भूकंप का खतरा

  • देश के वर्तमान भूकंपीय क्षेत्र मानचित्र के अनुसार, भारत का 59 प्रतिशत से अधिक भू-क्षेत्र, मध्यम से गंभीर भूकंपीय खतरे की श्रेणी में है।
  • संपूर्ण हिमालय बेल्ट को 8.0 से अधिक तीव्रता वाले बड़े भूकंपों के प्रति संवेदनशील माना जाता है।
  • वैज्ञानिकों ने हिमालय क्षेत्र में बहुत गंभीर भूकंप आने की संभावना की चेतावनी दी है, जो भारत में कई मिलियन लोगों के जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है।

भारत का भूकंपीय क्षेत्र

  • भारतीय मानक ब्यूरो (BIS) द्वारा दिए गए देश के भूकंपीय क्षेत्र मानचित्र (राज्यवार) ने भारत को भूकंपीय क्षेत्रों (जोन II से जोन V) में वर्गीकृत किया है।
  • उत्तराखंड का अल्मोड़ा भूकंपीय क्षेत्र IV में स्थित है।                                                                    

भूकंपों में वर्तमान वृद्धि के कारण

  • भूकंप के खतरे में वृद्धि शहरीकरण, आर्थिक विकास और भारत की अर्थव्यवस्था के वैश्वीकरण द्वारा संचालित विकासात्मक गतिविधियों में वृद्धि के कारण है।
  • विनिर्माण और सेवा उद्योगों में उच्च-प्रौद्योगिकी उपकरणों और औज़ारों के उपयोग में वृद्धि ने उन्हें अपेक्षाकृत मध्यम ज़मीनी झटकों के कारण व्यवधान के प्रति संवेदनशील बना दिया है।

हिमालय क्षेत्र भूकंप के प्रति संवेदनशील क्यों है?

  • टेक्टोनिक परिवर्तन: हिमालय एक टेक्टोनिक रूप से अस्थिर क्षेत्र है क्योंकि यह भारतीय और यूरेशियन प्लेटों का अभिसरण क्षेत्र है।
    • दोनों प्लेटें लगातार एक-दूसरे पर दबाव डाल रही हैं और समय के साथ, तनाव बढ़ता जाता है और समय-समय पर भूकंप के रूप में सामने आता है, जैसा कि हाल ही में नेपाल में आए भूकंप के मामले में हुआ था।
  • पर्वत निर्माण प्रक्रिया: पर्वत निर्माण प्रक्रिया अभी भी जारी है क्योंकि भारतीय प्लेट अभी भी यूरेशियन प्लेट की ओर बढ़ रही है।
    • भारतीय प्लेट एशियाई प्लेट को लगभग 2 सेमी प्रति वर्ष की दर से उत्तर की ओर धकेल रही है। इसका अर्थ है कि प्रत्येक 100 साल में भारत एशियाई प्लेट के विपरीत 200 सेमी उत्तर की ओर बढ़ता है।
  • भ्रंश रेखाएँ: विभिन्न भ्रंश रेखाओं का अस्तित्व इसे भूकंप के प्रति संवेदनशील बनाता है।
    • इन भ्रंशों के साथ तनाव बढ़ने पर भूकंपीय गतिविधियों की ओर ले जाता है।

  • हिमालय की गैर-समान संरचना: हिमालय एक समान नहीं है और अलग-अलग दिशाओं में अलग-अलग भौतिक और यांत्रिक गुणों को धारण किये हुए है।
    • इसके परिणामस्वरूप हिमालय में बड़े पैमाने पर भूकंप की घटनाएँ हुईं।
  • क्षेत्र की अस्थिरता: नेपाल में वर्ष 2015 से चल रही टेक्टोनिक गतिविधि के कारण पूरा क्षेत्र तेजी से अस्थिर हो गया है|
    • इसके अलावा, कुछ क्षेत्रों में पिछले भूकंपों के कारण झटके महसूस होते हैं।
  • मानवीय गतिविधियाँ: खनन, बड़े जलाशयों को भरने से जलाशय-प्रेरित भूकंपीयता और भूतापीय ऊर्जा निष्कर्षण जैसी गतिविधियाँ भी भूकंप को प्रेरित कर सकती हैं, हालाँकि ये आम तौर पर कम तीव्रता के होते हैं।

टेक्टोनिक प्लेटें 

  • पृथ्वी की परत सात प्रमुख प्लेटों में विभाजित है, जो लगभग 50 मील मोटी हैं, जो पृथ्वी के आंतरिक भाग और कई छोटी प्लेटों पर धीरे-धीरे गतिमान रहती हैं।

टेक्टोनिक टकराव 

  • भूकंप मूल रूप से विवर्तनिकी से संबंधित होते हैं अर्थात गतिशील प्लेटें के कारण भूकंप जैसी घटनाएं  होती रहती हैं।

भारत में भूकंप के दुष्प्रभावों से निपटने दिशा में किये गये उपाय

  • भारत का भूकंपीय ज़ोनिंग मानचित्र: भारतीय मानक ब्यूरो (Bureau of Indian Standards – BIS) ने जोन II से जोन V तक के लिए भारत का भूकंपीय ज़ोनिंग मानचित्र प्रकाशित किया।
    • यह भूकंप प्रतिरोधी इमारतों के निर्माण के लिए आवश्यक इंजीनियरिंग कोड और प्रथाओं को लागू करने के लिए दिशा-निर्देश प्रदान करता है।
  • राष्ट्रीय भूकंप विज्ञान केंद्र (National Centre for Seismology- NCS): पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के तहत NCS देश में और उसके आस-पास भूकंप की निगरानी के लिए भारत सरकार की नोडल एजेंसी है।
    • NCS संबंधित केंद्रीय और राज्य आपदा अधिकारियों को भूकंप की जानकारी प्रसारित करने के लिए 115 वेधशालाओं से युक्त एक राष्ट्रीय भूकंपीय नेटवर्क (National Seismological Network- NSN) स्थापित किये हुए है।
  • शहरों का भूकंपीय माइक्रोज़ोनेशन: यह 5 लाख और उससे अधिक की आबादी वाले शहरों में किया जाना है।
    • इसका उद्देश्य भूकंप के प्रभावों को कम करने और भूकंप जोखिम प्रतिरोधी इमारतों/संरचनाओं के निर्माण के लिए इनपुट उत्पन्न करना है।
  • राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (National Disaster Management Authority- NDMA): यह भूकंप से भवन सुरक्षा के लिए रोकथाम और तैयारियों पर कार्यक्रमों को संवेदनशील बनाने के लिए प्रत्येक वर्ष नियमित जागरूकता अभियान चलाता है।

आगे की राह: भूकंप प्रबंधन के छह स्तंभ

  • नई संरचनाओं के निर्माण के लिए भूकंप प्रतिरोधी डिजाइन सुविधाओं का समावेश सुनिश्चित करना।
  • भूकंप-संभावित क्षेत्रों में मौजूदा प्राथमिकता और जीवन रेखा संरचनाओं के चयनात्मक सुदृढ़ीकरण एवं भूकंपीय रेट्रोफिटिंग की सुविधा प्रदान करना।
  • उचित विनियमन एवं प्रवर्तन के माध्यम से अनुपालन व्यवस्था में सुधार करना।
  • सभी हितधारकों को जागरूक एवं उनकी तैयारियों में सुधार करना।
  • प्रभावी भूकंप प्रबंधन (शिक्षा, प्रशिक्षण, अनुसंधान एवं विकास और दस्तावेज़ीकरण सहित) के लिए उचित क्षमता विकास हस्तक्षेप शुरू करना।
  • भूकंप-संभावित क्षेत्रों में आपातकालीन प्रतिक्रिया क्षमता को मजबूत करना।

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