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पारिस्थितिकी संवेदनशील क्षेत्र (ESZs)

Lokesh Pal July 16, 2025 02:57 9 0

संदर्भ 

केंद्रीय पर्यावरण मंत्री की अध्यक्षता में राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड  की स्थायी समिति (Standing Committee of the National Board for Wildlife- SCNBWL) ने वर्ष 2011 के पारिस्थितिकी संवेदनशील क्षेत्र (ESZs) दिशा-निर्देशों को संशोधित करने का निर्णय लिया ताकि उन्हें स्थल-विशिष्ट एवं स्थानीय पारिस्थितिकी एवं सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों के प्रति संवेदनशील बनाया जा सके।

संबंधित तथ्य

  • केंद्रीय मंत्री ने कहा कि हिमाचल प्रदेश जैसे राज्यों में, जहाँ कुल भौगोलिक क्षेत्र का 65% हिस्सा वन क्षेत्र है, वहाँ अत्यंत कठोर पारिस्थितिकी संवेदनशील क्षेत्र (ESZ) मानदंड विकास कार्यों में बाधा उत्पन्न कर सकते हैं, जबकि उनसे कोई स्पष्ट पारिस्थितिकी लाभ नहीं प्राप्त होता।
  • “सभी संरक्षित क्षेत्रों के चारों ओर 10 किलोमीटर का एक व्यापक ESZ” संबंधी प्रावधान विशेषतः संजय गांधी राष्ट्रीय उद्यान (मुंबई) एवं असोला भट्टी अभयारण्य (दिल्ली) जैसे शहरी क्षेत्रों में उपयुक्त नहीं है।

राष्ट्रीय पर्यावरण नीति (2006) पारिस्थितिकी संवेदनशील क्षेत्रों को “अद्वितीय पर्यावरणीय संसाधनों वाले क्षेत्र, जिनके संरक्षण पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है” के रूप में परिभाषित करती है क्योंकि इनमें भू-दृश्य, वन्यजीव, जैव विविधता, ऐतिहासिक एवं दर्शनीय विशेषताएँ होती हैं।

पारिस्थितिकी संवेदनशील क्षेत्र (ESZs) क्या हैं?

  • परिभाषा एवं दायरा: इन्हें पर्यावरण, वन तथा जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा जारी राष्ट्रीय वन्यजीव कार्य योजना (वर्ष 2002-2016) के अंतर्गत परिभाषित किया गया है।
  • पारिस्थितिकी संवेदनशील क्षेत्रों (ESZs) की अवधारणा 21 जनवरी, 2002 को भारतीय वन्यजीव बोर्ड की XXI बैठक में प्रस्तावित की गई थी।
    • ESZ को पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 के अंतर्गत अधिसूचित किया जाता है।
  • सीमांकन: राष्ट्रीय उद्यानों एवं वन्यजीव अभयारण्यों के 10 किमी. के भीतर की भूमि को आमतौर पर पारिस्थितिकी संवेदनशील क्षेत्र (ESZ) के रूप में नामित किया जाता है।
  • 10 किमी. की सीमा एक सामान्य दिशा-निर्देश है; पारिस्थितिकी रूप से महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों या संवेदनशील गलियारों के लिए 10 किमी. से आगे विस्तार संभव है।
  • केंद्र सरकार के पास ऐसे क्षेत्रों को अधिसूचित करने का अधिकार है।

ESZ का उद्देश्य

  • बफर कार्य: मुख्य संरक्षित क्षेत्रों को बाहरी प्रभावों से बचाने के लिए ‘सुरक्षात्मक बफर’ के रूप में कार्य करना।
  • पारिस्थितिक सुरक्षा: आसपास के क्षेत्रों में मानवीय गतिविधियों से होने वाले पारिस्थितिकी नुकसान को कम करना।
  • पारिस्थितिक संक्रमण: उच्च एवं निम्न पारिस्थितिकी संरक्षण वाले क्षेत्रों के बीच संक्रमण क्षेत्रों के रूप में कार्य करना।
  • सतत् सह-अस्तित्व: स्थानीय आजीविका को बाधित किए बिना संरक्षित क्षेत्रों के आस-पास पर्यावरणीय गुणवत्ता को बढ़ाने का लक्ष्य।

गतिविधियों का विनियमन

  • वर्ष 2011 के दिशा-निर्देशों ने ESZ के सीमांकन के लिए एक सांकेतिक रूपरेखा निर्धारित की है, जिसमें पार्कों के आसपास भूमि उपयोग की पहचान, अनुमत, विनियमित, निषिद्ध एवं प्रवर्तित गतिविधियों का समूहीकरण शामिल है।
  • पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, राज्य सरकार की सिफारिशों पर ESZ को अधिसूचित करता है।
  • राज्य सरकारों को प्रत्येक ESZ के लिए एक क्षेत्रीय मास्टर प्लान तैयार करना होगा।
    • क्षेत्रीय मास्टर प्लान में पर्यटन मास्टर प्लान तथा विरासत स्थलों की सूची को भी शामिल करना अनिवार्य है।
    • स्थानीय समुदायों को उनकी नियमित गतिविधियों में कोई प्रतिबंध नहीं है, बशर्ते वे पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान न पहुँचाएँ। इसमें लोगों का विस्थापन शामिल नहीं है।

निषिद्ध गतिविधियाँ

  • वाणिज्यिक खनन।
  • आरा मिलों का संचालन।
  • लकड़ी एवं काष्ठ का व्यावसायिक उपयोग।

विनियमित गतिविधियाँ

  • वनोन्मूलन।
  • कुछ प्रकार के निर्माण एवं बुनियादी ढाँचे का विकास।

अनुमत गतिविधियाँ

  • मौजूदा कृषि एवं बागवानी।
  • जैविक खेती।
  • वर्षा जल संचयन।

ESZ की वर्तमान स्थिति

  • सर्वोच्च न्यायालय ने पूर्व में आदेश दिया था कि विशिष्ट सीमांकन के अभाव में, संरक्षित क्षेत्रों के आस-पास के 10 किलोमीटर के क्षेत्र को ESZ माना जाए।
  • राज्यसभा के आँकड़ों के अनुसार, पर्यावरण मंत्रालय ने अब तक 347 अंतिम ESZ अधिसूचनाएँ जारी की हैं।

भारतीय वन्यजीव बोर्ड (Indian Board for Wildlife- IBWL)

  • मार्च 1952 में केंद्रीय वन्यजीव बोर्ड के रूप में गठित, उसी वर्ष बाद में इसका नाम बदलकर IBWL कर दिया गया।
  • प्रथम अध्यक्ष: श्री जयचामराज वाडियार, मैसूर के महाराजा।

राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड (National Board for Wildlife- NBWL)

  • वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 में संशोधन के माध्यम से वर्ष 2003 में स्थापित।
  • भारतीय वन्यजीव बोर्ड (Indian Board for Wildlife- IBWL) का स्थान लिया एवं उसका पुनर्गठन किया।
  • वन्यजीव संरक्षण तंत्र को सुदृढ़ करने हेतु एक वैधानिक एवं नियामक निकाय बनाया गया।
  • भारत में वन्यजीव संरक्षण पर सर्वोच्च सलाहकार निकाय के रूप में कार्य करता है।

NBWL की स्थायी समिति

  • NBWL के अंतर्गत एक स्वतंत्र निकाय के रूप में कार्य करती है।
  • पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री की अध्यक्षता में।

  • केंद्र सरकार को, विशेष रूप से संरक्षित क्षेत्रों (PAs) से संबंधित मुद्दों पर, सलाह प्रदान करता है।
  • NBWL से अनिवार्य अनुमोदन निम्नलिखित के लिए आवश्यक है:
    • PAs की सीमाओं में परिवर्तन।
    • वन्यजीव आवासों की हानि या परिवर्तन।
    • टाइगर रिजर्व की अधिसूचना रद्द करना।
    • PA में पर्यटक आवासों का निर्माण।

संरचना

  • कुल 47 सदस्य।
  • अध्यक्ष: भारत के प्रधानमंत्री
  • उपाध्यक्ष: केंद्रीय पर्यावरण मंत्री
  • इसमें शामिल हैं
    • थल सेनाध्यक्ष।
    • प्रमुख मंत्रालयों (रक्षा, जनजातीय मामले, वित्त, सूचना एवं प्रसारण) के सचिव।
    • तीन लोकसभा सांसद एवं एक राज्यसभा सांसद।
    • वन महानिदेशक।
    • 10 प्रख्यात संरक्षणवादी एवं पारिस्थितिकीविद्।
    • गैर-सरकारी संगठनों के 5 सदस्य।

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