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पारिस्थितिकी-संवेदनशील क्षेत्र एवं पश्चिमी घाट

Lokesh Pal October 03, 2024 03:08 71 0

संदर्भ

कर्नाटक सरकार ने केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEF&CC) से पश्चिमी घाट के पर्यावरण-संवेदनशील क्षेत्र (ESA) की घोषणा के लिए जारी छठे मसौदा अधिसूचना को वापस लेने की अपील की है।

पृष्ठभूमि

  • 31 जुलाई, 2024 को, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने एक दशक में छठी बार मसौदा अधिसूचना जारी की, जिसमें छह राज्यों में पश्चिमी घाट के कुछ हिस्सों को ESA के रूप में वर्गीकृत करने का प्रस्ताव किया गया।
  • 60 दिन की अवधि के भीतर आपत्तियाँ और सुझाव माँगे गए हैं।
  • कर्नाटक सरकार ने 26 सितंबर को कैबिनेट की बैठक में कस्तूरीरंगन समिति की रिपोर्ट को खारिज कर दिया।
    • कर्नाटक सरकार का तर्क है कि रिपोर्ट को लागू करने से कर्नाटक के 10 जिलों के 33 तालुकों के 1,499 गाँवों को समस्या उत्पन्न हो सकती है, जिससे लाखों निवासी प्रभावित होंगे।

पारिस्थितिकी रूप से संवेदनशील क्षेत्रों (ESAs) 

  • पारिस्थितिकी-संवेदनशील क्षेत्र (ESA) संरक्षित क्षेत्रों, राष्ट्रीय उद्यानों और वन्यजीव अभयारण्यों के आसपास 10 किलोमीटर के क्षेत्र में अवस्थित हैं।
  • यह कम सुरक्षा वाले क्षेत्रों से लेकर अधिक सुरक्षा वाले क्षेत्रों के बीच संक्रमण क्षेत्र के रूप में कार्य करता है।

  • इन्हें पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 के तहत पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) द्वारा अधिसूचित किया जाता है।
  • वर्ष 2002 में स्थापित ESZ बफर जोन के रूप में कार्य करते हैं तथा यह  ‘शॉक एब्जॉर्बर’ के रूप में कार्य करते हुए वन्यजीव को एक अतिरिक्त संरक्षण प्रदान करते हैं तथा सख्ती से संरक्षित क्षेत्रों से अधिक शिथिल संरक्षण नियमों वाले क्षेत्रों में सुगम संक्रमण की सुविधा प्रदान करते हैं।
  • इसे पारिस्थितिकी रूप से संवेदनशील क्षेत्र (EFA) के नाम से भी जाना जाता है।

पश्चिमी घाट के संरक्षण के प्रयास

  • सरकार ने संरक्षित क्षेत्र नेटवर्क, बाघ रिजर्व और बायोस्फीयर रिजर्व की स्थापना के साथ जैव विविधता के संरक्षण के लिए विभिन्न उपाय किए हैं।
    • पश्चिमी घाट के कुल क्षेत्रफल का लगभग 10% हिस्सा वर्तमान में संरक्षित क्षेत्रों के अंतर्गत आता है।
  • सरकार ने पर्यावरण अनुकूल और सामाजिक रूप से समावेशी विकास को बढ़ावा देने के लिए पारिस्थितिकी रूप से संवेदनशील क्षेत्रों (ESAs) का सीमांकन करने की भी पहल की है।

माधव गाडगिल समिति (2011)

  • पारिस्थितिकी रूप से संवेदनशील क्षेत्रों (ESZ) का वर्गीकरण: रिपोर्ट में छह राज्यों में फैले पश्चिमी घाट के 64 प्रतिशत क्षेत्र को तीन श्रेणियों (ESZ-1, ESZ-2 और ESZ-3) में वर्गीकृत करने का प्रस्ताव किया गया है।
  • पारिस्थितिकी रूप से संवेदनशील क्षेत्र (ESA): संपूर्ण पश्चिमी घाट क्षेत्र को पारिस्थितिकी रूप से संवेदनशील क्षेत्र के रूप में नामित करने की सिफारिश की गई थी।
  • विकासात्मक गतिविधियाँ: रिपोर्ट में ESZ 1 में खनन, ताप विद्युत संयंत्रों तथा बाँधों के निर्माण जैसी लगभग सभी विकासात्मक गतिविधियों को रोकने का आह्वान किया गया है।
  • प्रतिबंध: आनुवंशिक रूप से संशोधित फसलें (GM), प्लास्टिक की थैलियाँ, विशेष आर्थिक क्षेत्र, नए हिल स्टेशन, तथा कृषि भूमि से गैर-कृषि भूमि में भूमि उपयोग में परिवर्तन पर प्रतिबंध लगाने की सिफारिश की गई।
    • क्षेत्र की पारिस्थितिकी तंत्र की सुरक्षा के लिए नदियों की दिशा परिवर्तित करने तथा सार्वजनिक भूमि को निजी भूमि में बदलने को भी हतोत्साहित किया गया।
  • बॉटम-टू-टॉप गवर्नेंस: रिपोर्ट में शासन के लिए विकेंद्रीकृत दृष्टिकोण का सुझाव दिया गया है, जिसमें स्थानीय प्राधिकारियों को अधिक शक्ति दी गई है।
    • इसने क्षेत्र की पारिस्थितिकी के प्रबंधन और सतत विकास को सुनिश्चित करने के लिए पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 के तहत पश्चिमी घाट पारिस्थितिकी प्राधिकरण की स्थापना की सिफारिश की है।
  • एकल व्यावसायिक फसलों पर प्रतिबंध: रिपोर्ट में पश्चिमी घाट में चाय, कॉफी, इलायची, रबर, केला और अनानास जैसी एकल व्यावसायिक फसलों को उगाने पर प्रतिबंध लगाने की माँग की गई है, क्योंकि इनका पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

के. कस्तूरीरंगन समिति (2013)

  • पारिस्थितिकी रूप से संवेदनशील क्षेत्र में कमी: इसने पश्चिमी घाट के केवल 37% क्षेत्र को पारिस्थितिकी रूप से संवेदनशील घोषित किया है।
  • क्षेत्रों का वर्गीकरण: समिति ने पश्चिमी घाट को दो श्रेणियों में विभाजित किया- सांस्कृतिक क्षेत्र (मानव बस्तियाँ) और प्राकृतिक क्षेत्र (गैर-मानव बस्तियाँ)।
  • इसमें सांस्कृतिक भूमि को पारिस्थितिकी दृष्टि से संवेदनशील क्षेत्र के रूप में नामित करने का प्रस्ताव किया गया।
  • गतिविधियों का वर्गीकरण: रिपोर्ट में गतिविधियों को तीन श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है- लाल, नारंगी और हरा।
    • लाल श्रेणी: खनन, पत्थर उत्खनन जैसी गतिविधियों पर प्रतिबंध लगाने की सिफारिश की गई।
    • नारंगी श्रेणी: गतिविधियों को विनियमित किया जाएगा और उचित अनुमति के साथ अनुमति दी जाएगी।
    • हरी श्रेणी: सभी कृषि, बागवानी और कुछ वाणिज्यिक गतिविधियों की अनुमति दी गई।

पश्चिमी घाट

  • हिमालय पर्वत से भी प्राचीन, ​​पश्चिमी घाट की पर्वत शृंखला अद्वितीय जैव-भौतिकीय और पारिस्थितिकी प्रक्रियाओं के साथ अत्यधिक महत्त्व की भू-आकृतिक विशेषताओं का प्रतिनिधित्व  करती है।
  • अवस्थिति: भारतीय प्रायद्वीप के पश्चिमी तट पर 1,600 किमी. (990 मील) तक विस्तृत है।
  • क्षेत्र: छह राज्यों में 1,60,000 वर्ग किमी. (62,000 वर्ग मील): गुजरात, महाराष्ट्र, गोवा, कर्नाटक, केरल और तमिलनाडु।
  • स्थानीय नाम
    • सह्याद्रि: महाराष्ट्र में
    • नीलगिरी पहाड़ियाँ: कर्नाटक और तमिलनाडु में
    • अन्नामलाई पहाड़ियाँ तथा कार्डेमम पहाड़ियाँ: केरल में
  • संरचना एवं भू-विज्ञान
    • गठन: जुरासिक काल के अंत और क्रेटेशियस काल के प्रारंभ में सुपरकॉन्टिनेंट गोंडवाना के विखंडन के दौरान निर्मित।
    • भू-वैज्ञानिक साक्ष्य: इन पर्वतों का निर्माण तब हुआ, जब भारत अफ्रीका से अलग हुआ और पश्चिमी तट के साथ ऊपर उठा।
    • संरचना: दक्कन का पठार बेसाल्ट चट्टानों से निर्मित है, जिसने पश्चिमी घाट के उत्थान को प्रभावित किया।
  • स्थलाकृतिक भिन्नता: ऊँचाई में अधिक (औसत ऊँचाई लगभग 1,500 मीटर) तथा पूर्वी घाट की तुलना में अधिक निरंतर, जिसमें उत्तर से दक्षिण की ओर ऊँचाई बढ़ती जाती है। उद्यान में कई वन्यजीव अभयारण्य और कई आरक्षित वन शामिल हैं।
  • प्रमुख संरक्षित क्षेत्रों में नीलगिरि बायोस्फीयर रिजर्व तथा साइलेंट वैली नेशनल पार्क शामिल हैं।
  • मान्यता: पश्चिमी घाट को वर्ष 2012 में संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन (UNESCO) द्वारा विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया था।
    • यह विश्व में जैव विविधता के आठ ‘सर्वाधिक गर्म हॉटस्पॉट’ में से एक है।

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