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भारत में रोजगारविहीन शिक्षा

Lokesh Pal May 15, 2025 02:49 22 0

संदर्भ

अनेक शिक्षा सुधारों के उपरांत, हमारी शिक्षा प्रणाली परिवर्तित रोजगार परिदृश्य को समझने में विफल रही है, जिसके कारण स्नातक अप्रशिक्षित और बेरोजगार रह जाते हैं।

शिक्षित बेरोजगारी का विरोधाभास

  • शिक्षित बेरोजगारी से तात्पर्य ऐसी स्थिति से है, जिसमें औपचारिक शिक्षा प्राप्त व्यक्ति, प्रायः उच्च शिक्षा प्राप्त व्यक्ति अपनी योग्यता के अनुरूप उपयुक्त रोजगार पाने में असमर्थ होते हैं। भारत में, यह विरोधाभास और गहरा हो गया है, जैसे-जैसे शैक्षणिक योग्यता बढ़ती है, रोजगार की संभावना प्रायः कम होती जाती हैं।
  • ILO-IHD इंडिया एम्प्लॉयमेंट रिपोर्ट, 2024 के अनुसार, भारत के 83% से अधिक बेरोजगार कार्यबल युवा आधारित है और उनमें से 65% से अधिक के पास माध्यमिक या उच्च शिक्षा है।
  • स्नातक वर्ग में बेरोजगारी दर लगभग 29.1% है, जो निरक्षरों की तुलना में लगभग 9 गुना अधिक है।

यह विरोधाभास क्यों है?

  • शिक्षा पारंपरिक रूप से निम्नलिखित से जुड़ी होती है:-
    • मानव पूँजी निर्माण
    • बेहतर रोजगार की संभावनाएँ
    • सामाजिक गतिशीलता एवं आर्थिक सुरक्षा
  • भारत में
    • डिग्रीधारकों की संख्या में लगातार कमी आ रही है या वे बेरोजगार हैं।
    • यहाँ तक कि उच्च शिक्षण संस्थानों (जैसे- IITs) से स्नातक करने वाले छात्रों को भी प्लेसमेंट में कमी का सामना करना पड़ता है।
    • रोजगार प्राप्त स्नातकों में से आधे अपनी योग्यता से कम पदों पर कार्य करते हैं।
  • इससे विरोधाभास उत्पन्न होता है, शिक्षा अब रोजगार की गारंटी नहीं देती, जिससे औपचारिक शिक्षा प्राप्त करने का औचित्य ही समाप्त हो जाता है।

शिक्षित बेरोजगारी के कारण

  • स्नातकों की अधिक आपूर्ति, सीमित नौकरी की माँग: विश्वविद्यालयों की संख्या 642 (वर्ष 2011-12) से बढ़कर 993 (वर्ष 2018-19) हो गई, जिसमें 3.74 करोड़ छात्र नामांकित थे।
    • हालाँकि, स्नातक रोजगार सृजन ने गति नहीं पकड़ी है, जिससे बाजार में अतिसंतृप्ति हुई है।
  • उच्च शिक्षा की खराब गुणवत्ता: NEP, 2020 पाठ्यक्रम अनुकूलन पर जोर देता है, लेकिन शिक्षण एवं पाठ्यक्रम सुधारों की उपेक्षा करता है।
    • कई निजी कॉलेजों में योग्य संकाय और बुनियादी ढाँचे की कमी है, जिससे अधिगम परिणाम खराब होते हैं।
  • शिक्षा और उद्योग की आवश्यकताओं के मध्य कौशल में कमी: स्नातकों में संचार, समस्या-समाधान, डिजिटल साक्षरता और तकनीकी क्षेत्रों में कौशल की कमी है।
    • औपचारिक शिक्षा के बावजूद 47% स्नातक उद्योग की भूमिकाओं के लिए अयोग्य हैं।
  • संरचनात्मक और प्रणालीगत आर्थिक मुद्दे
    • बेरोजगारी वृद्धि: भारत ने 9 मिलियन रोजगार खो दिया (वर्ष 2011-18); विनिर्माण में 3.5 मिलियन की कमी आई।
    • पूँजी-गहन क्षेत्र के कारण ‘मेक इन इंडिया’ नौकरियाँ सृजित करने में विफल रहा है। 
    • उद्योग-अकादमिक सहयोग की कमी (जैसे- NEP प्रारूपण पैनल में कोई उद्योग सदस्य नहीं होना) पाठ्यक्रम प्रासंगिकता में बाधा डालती है।

श्रेणी सामान्यीकृत उद्धरण प्रभाव (Category Normalized Citation Impact- CNCI)

  • विशेष रूप से भारतीय शोध के संदर्भ में यह एक माप है, जिसका उपयोग शोध प्रकाशनों के उद्धरण प्रदर्शन का आकलन करने के लिए किया जाता है।
  • किसी दस्तावेज के CNCI की गणना उद्धृत वस्तुओं की वास्तविक संख्या को अपेक्षित उद्धरण दर से विभाजित करके की जाती है।
  • CNCI यह निर्धारित करने में मदद करता है कि किसी प्रकाशन को उसके क्षेत्र, प्रकाशन प्रकार और वर्ष के लिए अपेक्षा से अधिक या कम उद्धृत किया गया है।

  • खराब अनुसंधान आउटपुट और नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र: भारत G20 देशों में सामान्यीकृत उद्धरण प्रभाव (Category Normalized Citation Impact- CNCI) श्रेणी में 16वें स्थान पर है; यह 17वें स्थान से सुधार मामूली है।
    • आकाश टैबलेट और IMPRINT जैसी सार्वजनिक अनुसंधान और विकास परियोजनाओं में उच्च वित्तपोषण के बावजूद पारदर्शी परिणामों का अभाव है।
    • स्वदेशी प्रौद्योगिकी और पेटेंट फाइलिंग की कमी (उदाहरण के लिए, बंगलूरू पेटेंट में सैमसंग सबसे आगे है) कमजोर नवाचार नींव को दर्शाती है।

परिणाम

  • अल्परोजगार और मानव पूँजी की बर्बादी: शिक्षित युवाओं का एक बड़ा हिस्सा अपनी योग्यता से कम रोजगार में कार्य कर रहा है:
    • 50.3% स्नातक और 28.1% स्नातकोत्तर अर्द्ध-कुशल भूमिकाओं में हैं, जो उनकी शिक्षा के कम उपयोग को दर्शाता है।
  • शिक्षा में निवेश पर खराब रिटर्न: छात्र और परिवार उच्च शिक्षा पर काफी व्यय करते हैं, जिससे उन्हें आगे बढ़ने की उम्मीद होती है, लेकिन 47% स्नातक उद्योग के लिए अयोग्य हैं।
    • परिणामस्वरूप शिक्षा में निजी (छात्र) और सार्वजनिक (सरकारी) निवेश दोनों पर कम रिटर्न मिलता है।
  • ब्रेन ड्रेन और माइग्रेशन एस्पिरेशंस: यहाँ तक ​​कि IITs जैसे प्रमुख संस्थानों में भी प्लेसमेंट में काफी अंतर है, जिससे प्रतिभाशाली युवा विदेश में या असंबंधित क्षेत्रों में नौकरी की तलाश कर रहे हैं।
    • यह राष्ट्र निर्माण के लिए कुशल जनशक्ति को बनाए रखने के भारत के प्रयासों को कमजोर करता है।
  • युवा मोहभंग और मानसिक संकट: शिक्षित युवाओं में उच्च बेरोजगारी निराशा और चिंता को बढ़ाती है।
    • यह सामाजिक अशांति, राजनीतिक कट्टरता या आर्थिक भागीदारी से पीछे हटने (निराश श्रम) में बदल सकता है।
  • सामाजिक असमानता का विस्तार: रोजगार में लिंग, जाति और क्षेत्र के आधार पर असमानता बढ़ती जा रही है:
    • स्नातकों के मामले में महिला बेरोजगारी दर 34.5% तक है।
  • शिक्षा प्रणाली में विश्वास में कमी: जब डिग्री के आधार पर रोजगार नहीं प्राप्त होता है, तो इससे शिक्षा प्रणाली में लोगों का विश्वास कम होता है, विशेषतः टियर 2 और टियर 3 संस्थानों में।

शिक्षा-रोजगार असंतुलन से निपटने के लिए सरकारी पहल

  • राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP), 2020
    • उद्देश्य: पाठ्यक्रम में लचीलापन, व्यावसायिक प्रशिक्षण एकीकरण और कौशल-आधारित शिक्षा। 
    • चुनौतियाँ
      • NEP की ‘मल्टीपल एंट्री-एग्जिट प्रणाली’ ने कम गुणवत्ता वाली ई-कॉमर्स नौकरियों को जन्म दिया है, न कि सार्थक रोजगार को।
      • उचित कार्यान्वयन पद्धति का अभाव है और मसौदा समिति में उद्योग की कोई भागीदारी नहीं है।
      • पाठ्यक्रम चयन पर अत्यधिक ध्यान, पाठ्यक्रम सामग्री प्रासंगिकता और गुणवत्ता की उपेक्षा।
  • प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (Pradhan Mantri Kaushal Vikas Yojana- PMKVY)
    • उद्देश्य: युवाओं को कौशल प्रमाणन और अल्पकालिक प्रशिक्षण प्रदान करना। 
    • चुनौतियाँ
      • खराब प्लेसमेंट परिणाम और कमजोर निगरानी तंत्र।
      • उद्योग कौशल अंतराल को पर्याप्त रूप से पूर्ण नहीं पाता।
  • कौशल भारत मिशन (2015)
    • उद्देश्य: बाजार की माँग के अनुरूप कुशल कार्यबल तैयार करना। 
    • कवरेज अंतराल: भारत में अभी भी केवल 2.7% आबादी ही व्यावसायिक रूप से प्रशिक्षित है, जबकि दक्षिण कोरिया में यह आँकड़ा 96% है।
      • अधिकतर प्रवेश स्तर, कम वेतन वाली नौकरियों तक सीमित।
  • मेक इन इंडिया
    • उद्देश्य: श्रम-प्रधान क्षेत्रों में विनिर्माण और रोजगार सृजन को बढ़ावा देना।
    • मुद्दे
      • वर्ष 2011-12 और वर्ष 2017-18 के मध्य विनिर्माण क्षेत्र में नौकरियों में 3.5 मिलियन की गिरावट आई।
      • पूँजी गहन क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित रहा, जो कुशल श्रम को अवशोषित करने में विफल रहे।
  • दीन दयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल योजना (Deen Dayal Upadhyaya Grameen Kaushalya Yojana- DDU-GKY) (2021)
    • उद्देश्य: ग्रामीण युवाओं को बाजार से संबंधित कौशल और रोजगार प्रदान करना।
    • बाधाएँ: सीमित जागरूकता और कमजोर ग्रामीण बुनियादी ढाँचा प्रभावी पहुँच और ग्रहण को प्रभावित करता है।
  • राष्ट्रीय प्रशिक्षुता संवर्द्धन योजना (National Apprenticeship Promotion Scheme- NAPS) (2016)
    • उद्देश्य: उद्योग में प्रशिक्षुता को बढ़ावा देना और नियोक्ताओं को प्रोत्साहित करना।
    • बाधाएँ: फर्मों की कम भागीदारी और विश्वविद्यालय पाठ्यक्रम के साथ एकीकरण की कमी प्रभाव को सीमित करती है।

भारत में शिक्षा-रोजगार असंतुलन से निपटने की चुनौतियाँ

  • शैक्षिक सुधारों का खराब क्रियान्वयन: NEP 2020, हालाँकि महत्त्वाकांक्षी है, लेकिन यह अत्यधिक तक कागजों पर ही सीमित है।
    • पाठ्यक्रम की गुणवत्ता, शिक्षण पद्धति या उद्योग एकीकरण को संबोधित किए बिना ये सुधार लचीले पाठ्यक्रम विकल्पों तक सीमित हैं।
    • कौशल-जुड़े सीखने के परिणामों के लिए कोई रोडमैप नहीं है, जिसके परिणामस्वरूप जमीनी स्तर पर बहुत कम बदलाव हुए हैं।
  • कमजोर उद्योग-अकादमिक संबंध: NEP-2020 की मसौदा समिति में उद्योगों का कोई प्रतिनिधित्व नहीं था, जिससे नीति बाजार की आवश्यकताओं से अलग हो गई।
    • पाठ्यक्रमों को संशोधित करने, इंटर्नशिप प्रदान करने या दक्षताओं को संरेखित करने के लिए विश्वविद्यालयों में नियोक्ताओं से वास्तविक समय की प्रतिक्रिया लूप की कमी है।
  • अपर्याप्त कौशल विकास रूपरेखा: PMKVY तथा स्किल इंडिया जैसी कौशल विकास योजनाएँ निम्नलिखित से पीड़ित हैं:
    • कम प्लेसमेंट दर
    • वास्तविक कौशल-निर्माण के बिना प्रमाणन मुद्रास्फीति
    • दीर्घकालिक रोजगार परिणामों की खराब ट्रैकिंग।
  • डिग्री-केंद्रित, कौशल-केंद्रित शिक्षा नहीं: प्रणाली अभी भी रोजगार की तुलना में डिग्री अधिग्रहण पर जोर देती है।
    • पाठ्यक्रम शायद ही कभी आधुनिक कार्यस्थलों में आवश्यक ‘सॉफ्ट स्किल्स’, समस्या-समाधान क्षमता या डिजिटल साक्षरता का निर्माण करते हैं।
  • असमान पहुँच और क्षेत्रीय असमानताएँ: ग्रामीण क्षेत्रों और टियर 2/3 संस्थानों में एक्सपोजर, बुनियादी ढाँचे और कॉरपोरेट भागीदारी की कमी है।
    • तेलंगाना (25.1%), बिहार (23%) और आंध्र प्रदेश (22.2%) में उच्च स्नातक बेरोजगारी स्थानिक असमानता को दर्शाती है।
  • लैंगिक तथा सामाजिक बाधाएँ: शिक्षा के बढ़ते स्तर के बावजूद महिला बेरोजगारी (34.5%) पुरुष (26.4%) की तुलना में काफी अधिक है।
    • सामाजिक मानदंड और कार्यस्थल समर्थन की कमी महिलाओं की श्रम शक्ति भागीदारी को प्रतिबंधित करती है।
  • सरकारी योजनाओं में विखंडन और ओवरलैप: कई ओवरलैपिंग कार्यक्रम (NEP, पीएमकेवीवाई, डीडीयू-जीकेवाई, एनएसडीसी पहल) में समन्वय, निगरानी और परिणाम ट्रैकिंग की कमी है।
    • योजनाओं में प्रभाव को मापने के लिए कोई केंद्रीकृत रोजगार डैशबोर्ड मौजूद नहीं है।

आगे की राह

  •  शिक्षा-रोजगार के बीच के अंतराल को समाप्त करना
  • पाठ्यक्रम को उद्योग की आवश्यकताओं के साथ संरेखित करना: संचार, आलोचनात्मक सोच, डिजिटल साक्षरता और समस्या-समाधान जैसी वास्तविक दुनिया की कौशल आवश्यकताओं को प्रतिबिंबित करने के लिए उच्च शिक्षा पाठ्यक्रम को संशोधित करना।
    • 47% से अधिक स्नातक ऐसे कौशल अंतराल के कारण बेरोजगार माने जाते हैं।
    • NEP सुधारों को लचीलेपन से हटकर विषय-वस्तु की गुणवत्ता और शिक्षण पद्धति में सुधार की ओर स्थानांतरित किया जाना चाहिए।
  • व्यावसायिक और डिजिटल कौशल प्रशिक्षण का विस्तार करना: व्यावसायिक शिक्षा को सभी डिग्री कार्यक्रमों का अभिन्न अंग बनाना तथा डिजिटल कौशल प्रशिक्षण को बढ़ाना।
    • क्षेत्र-विशिष्ट माँगों से जुड़े रोजगार प्रमाण-पत्रों पर ध्यान देना।
  • क्षेत्र-विशिष्ट कौशल और एमएसएमई रोजगार वृद्धि को बढ़ावा देना: स्थानीय उद्योग की आवश्यकताओं (जैसे- तमिलनाडु में कपड़ा, हिमाचल में पर्यटन) के अनुसार कौशल विकास को अनुकूलित करना।
    • MSME और कृषि-उद्योगों को प्रोत्साहित करना, जो स्थानीय प्रतिभा को अवशोषित करते हैं।
  • लिंग आधारित समावेशी रोजगार नीतियाँ: लचीली कार्य व्यवस्था, चाइल्डकेयर सहायता और सुरक्षित कार्यस्थलों के साथ महिलाओं के रोजगार को प्रोत्साहित करना।
    • महिला स्नातक बेरोजगारी 34.5% है, जो पुरुष बेरोजगारी (26.4%) से कहीं अधिक है।
  • परिणामों की डेटा-संचालित निगरानी में सुधार: संस्थानों में स्नातक परिणामों, प्लेसमेंट दरों और नौकरी की अवधि के लिए एक ‘राष्ट्रीय निगरानी प्रणाली’ स्थापित करना।
    • PMKVY और DDU-GKY जैसी कई योजनाओं में नौकरी बनाए रखने की दीर्घकालिक निगरानी का अभाव है।
  • उद्यमिता और स्वरोजगार को बढ़ावा देना: छात्र उद्यमियों के लिए ऋण, सलाह और रोजगार प्रदान करना।
    • सरकारी या कॉरपोरेट नौकरियों पर अत्यधिक निर्भरता को कम करने में मदद करता है।
    • यह विशेषतः तकनीक, कृषि-व्यवसाय और सेवाओं में रोजगार के इच्छुक ही नहीं, बल्कि रोजगार प्रदानकर्ता को भी प्रोत्साहित करता है।

निष्कर्ष

भारत में शिक्षा-रोजगार का अंतराल उद्योग की आवश्यकताओं के अनुरूप पाठ्यक्रम को संरेखित करने, व्यावसायिक प्रशिक्षण को मजबूत करने और उद्योग-अकादमिक सहयोग को बढ़ावा देने के लिए तत्काल सुधारों की माँग करता है। कौशल में कमी और रोजगार सृजन को संबोधित किए बिना, जनसांख्यिकीय लाभांश जनसांख्यिकीय दायित्व स्थापित करने का जोखिम उठाता है, जिससे आर्थिक विकास और सामाजिक स्थिरता को खतरा होता है।

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