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वर्ष 2026 में अल नीनो की वापसी

Lokesh Pal December 22, 2025 02:25 6 0

संदर्भ

भूमध्यरेखीय प्रशांत महासागर में अल नीनो की संभावित वापसी के शुरुआती संकेत दिख रहे हैं, जो वर्ष 2026 के उत्तरार्द्ध में शुरू हो सकता है और उत्तरी गोलार्द्ध की सर्दियों के दौरान चरम पर पहुँच सकता है।

अल नीनो के बारे में

  • परिभाषा: अल नीनो, अल नीनो-दक्षिणी दोलन (ENSO) की गर्म अवस्था को दर्शाता है।
    • स्पेनिश भाषा में अल नीनो का अर्थछोटा लड़का” होता है।

  • मुख्य विशेषताएँ: मध्य और पूर्वी भूमध्यरेखीय प्रशांत क्षेत्र में समुद्री सतह का तापमान असामान्य रूप से अधिक होता है।
    • पेरू और इक्वाडोर के तटों से पोषक तत्त्वों से युक्त ठंडे जल का आरोहण रुक जाता है।
    • अल नीनो की स्थिति में व्यापारिक पवनें कमजोर हो जाती हैं।
    • अल नीनो प्रायः भारतीय मानसून के दुर्बल होने से जुड़ा होता है।
  • अल नीनो के दौरान वायुमंडलीय क्रियाविधि: अल नीनो के दौरान, उष्णकटिबंधीय प्रशांत क्षेत्र में वायुमंडलीय दाब सामान्य से कम हो जाता है।
    • पूर्वी प्रशांत क्षेत्र में वायु के आरोहण से वर्षा और तूफानों की गतिविधियाँ बढ़ जाती हैं।
    • पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र में वायु नीचे की ओर उतरती है, दाब बढ़ता है और मौसम अधिक स्थिर रहता है।
  • वैश्विक जलवायु पर प्रभाव: ये दाब और वर्षा में परिवर्तन विश्वव्यापी स्तर पर प्रसारित होते हैं।
    • इनका प्रभाव प्रशांत क्षेत्र तक सीमित न रहकर दक्षिण एशिया सहित अनेक दूरस्थ भौगोलिक क्षेत्रों के मौसमीय प्रतिरूपों को भी व्यापक रूप से प्रभावित करता है।

अल नीनो-दक्षिणी दोलन (ENSO) के बारे में

  • ENSO एक प्राकृतिक जलवायु घटना है, जिसमें भूमध्यरेखीय प्रशांत महासागर के ऊपर समुद्र की सतह के तापमान और वायुमंडलीय दाब में आवधिक उतार-चढ़ाव शामिल होते हैं।
  • ENSO के चरण: इसके तीन चरण होते हैं:
    • अल नीनो, ला नीना और एक तटस्थ चरण।
  • ला नीना (शीत चरण): मध्य/पूर्वी भूमध्यरेखीय प्रशांत क्षेत्र में समुद्र की सतह का तापमान असामान्य रूप से कम होता है; व्यापारिक पवनों को मजबूत करता है; यह प्रायः भारतीय मानसून के मजबूत होने से संबंधित होता है।
  • तटस्थ (सामान्य चरण): समुद्री सतह का तापमान लगभग औसत होता है।

वर्तमान ENSO स्थितियाँ

  • ला नीना की स्थिति: भूमध्यरेखीय प्रशांत महासागर में समुद्री सतह के तापमान सामान्य से निम्न रहने के परिणामस्वरूप वर्तमान में कमजोर ला नीना स्थितियाँ विद्यमान हैं।
    • ये स्थितियाँ नवंबर में चरम पर थीं और उत्तरी गोलार्द्ध की सर्दियों के दौरान इनके कमजोर होने की संभावना है।
  • परिवर्तन के संकेत: ENSO तापमान विसंगतियाँ बढ़ने लगी हैं, जो ला नीना चरण के अंत की शुरुआत का संकेत दे रही हैं।

संभावित अल नीनो के संकेतक

  • समुद्री सतह तापमान (SST) विसंगतियाँ: राष्ट्रीय महासागरीय एवं वायुमंडलीय प्रशासन द्वारा प्रदत्त समुद्री सतह संबंधी तापमान विसंगति आँकड़ों के अनुसार, भूमध्यरेखीय प्रशांत महासागर में तापमान वृद्धि के प्रारंभिक संकेत परिलक्षित हो रहे हैं, जिसके परिणामस्वरूप विद्यमान ला नीना स्थिति क्रमशः दुर्बल होती प्रतीत हो रही है।
  • समुद्री सतह के नीचे ऊष्मा की मात्रा: समुद्री सतह के नीचे तापमान विसंगतियाँ पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र में एक बड़े उष्ण क्षेत्र को दर्शाती हैं।
    • यह उष्ण क्षेत्र लगभग 100-250 मीटर की गहराई पर स्थित है।
    • ये उष्ण विसंगतियाँ, समुद्र की सतह के नीचे प्रसारित हो रही हैं।
    • समुद्री सतह के नीचे संचित यह उप-सतही उष्णता पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र से पूर्व की ओर प्रसारित होकर ला नीना की प्रबलता को क्रमशः कमजोर कर रही है।
  • सीवियर वेदर यूरोप’ (Severe Weather Europe) द्वारा पूर्वानुमान: नवीनतम पूर्वानुमान डेटा से संकेत मिलता है कि वर्ष 2026 में अल नीनो की वापसी हो सकती है, जो वर्ष के उत्तरार्द्ध में और मजबूत होगा।
  • ECMWF (यूरोपीय मध्यम-श्रेणी मौसम पूर्वानुमान केंद्र) का मौसमी पूर्वानुमान: ECMWF के मौसमी पूर्वानुमान के अनुसार, वर्ष 2026 की गर्मियों तक ENSO की स्थिति अल नीनो की श्रेणी में प्रवेश कर जाएगी।

संभावित जलवायु प्रभाव

  • तापमान सीमा के निकट: अल नीनो की पुनः सक्रियता वैश्विक तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस की सीमा के निकट या उससे ऊपर ले जा सकती है।
    • वैज्ञानिक तीव्र लू, सूखे, वनाग्नि और चरम मौसम संबंधी घटनाओं के बढ़ते खतरों की चेतावनी दे रहे हैं।
  • भारत पर प्रभाव: भारत में अतीत में मानसून के दौरान सूखे की घटनाओं का संबंध भूमध्यरेखीय प्रशांत क्षेत्र में अल नीनो की स्थिति से रहा है।
    • अल नीनो की घटनाओं के दौरान, दबाव के परिवर्तित पैटर्न प्रायः भारत में मानसून की वर्षा को कम कर देते हैं।

निष्कर्ष

अल नीनो के शुरुआती संकेतों से आने वाले वर्षों में वैश्विक तापमान में लगातार वृद्धि की संभावना प्रदर्शित होती है। जलवायु संबंधी जोखिमों का पूर्वानुमान लगाने के लिए महासागरीय और वायुमंडलीय संकेतकों की सूक्ष्म निगरानी अत्यंतपूर्ण है।

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