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चुनावी बॉण्ड ‘असंवैधानिक’ घोषित

Lokesh Pal February 16, 2024 04:38 128 0

संदर्भ

उच्चतम न्यायालय ने चुनावी बॉण्ड योजना को यह कहते हुए रद्द कर दिया कि यह संविधान के अनुच्छेद-19(1)(a) के तहतसूचना के अधिकारका उल्लंघन करती है।

पृष्ठभूमि

  • चुनावी बॉण्ड की घोषणा वर्ष 2017 के बजट भाषण में की गई थी और इसे सरकार द्वारा वर्ष 2018 में अधिसूचित किया गया था।
  • यह एक ब्याज-मुक्त धारक उपकरण (Interest-Free Bearer Instrument) है, जिसका उपयोग राजनीतिक दलों को गुप्त रूप से धन दान करने के लिए किया जाता है।
  • जनवरी 2018 में अधिसूचित होने के तुरंत बाद ही इस योजना को भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (M), कॉमन कॉज और एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) सहित कई पार्टियों द्वारा चुनौती दी गई थी।
  • पहली याचिका दायर होने के बाद से पिछले छह वर्षों में, भारत के छह मुख्य न्यायाधीशों ने पदभार सँभाला और उच्चतम न्यायालय ने वर्ष 2019 और 2021 में दो बार कानून पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था।

चुनावी बॉण्ड की कानूनी समयरेखा: उच्चतम न्यायालय की कार्यवाही और निर्णय

  • 12 अप्रैल, 2019: उच्चतम न्यायालय की तीन-न्यायाधीशों की पीठ ने एक अंतरिम आदेश जारी किया, जिसमें राजनीतिक दलों को चुनावी बॉण्ड के माध्यम से प्राप्त दान का विवरण भारत के निर्वाचन आयोग (ECI) को प्रदान करने का निर्देश दिया गया था।
  • मार्च 2021: उच्चतम न्यायालय ने बॉण्ड खरीदारों के लिए पूर्ण गोपनीयताके याचिकाकर्ता के दावे से असहमति व्यक्त करते हुए नए चुनावी बॉण्ड की बिक्री पर रोक लगाने की याचिका खारिज कर दी। उच्चतम न्यायालय ने उल्लेख किया है कि योजना के तहत संचालित गतिविधियाँ जाँच से परे नहीं हैं और सुरक्षा उपायों के लिए पिछले आदेशों को रेखांकित किया गया था।
  • नवंबर 2023: उच्चतम न्यायालय ने चुनावी बॉण्ड योजना की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं के जवाब में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया।

चुनावी बॉण्ड के बारे में

  • चुनावी बॉण्ड एक वचन पत्र या वाहक बॉण्ड की प्रकृति का उपकरण है, जिसे किसी भी व्यक्ति, कंपनी, फर्म या व्यक्तियों के संघ द्वारा खरीदा जा सकता है, बशर्ते वह व्यक्ति या निकाय भारत का नागरिक हो अथवा भारत में निगमित या स्थापित हो।
  • प्रस्ताव: इसे वित्त अधिनियम, 2017 के माध्यम से प्रस्तुत किया गया था, जिसने बदले में ऐसे बॉण्ड की शुरुआत को सक्षम करने के लिए तीन अन्य कानूनों – भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम, आयकर अधिनियम और जनप्रतिनिधित्व अधिनियम – में संशोधन किया था।
  • प्रमुख विशेषताएँ 
    • मूल्यवर्ग: बॉण्ड 1,000 रुपये, 10,000 रुपये, 1 लाख रुपये, 10 लाख रुपये और 1 करोड़ रुपये के गुणकों में विक्रय किए जाते हैं और भारतीय स्टेट बैंक बॉण्ड के विक्रय के लिए एकमात्र अधिकृत बैंक है।
    • गुप्त दाता: दाता के नाम को गुप्त रखा जाता हैं, केवल बैंक को ही इसकी जानकारी होती है।
    • दान प्रक्रिया: दानकर्ता बॉण्ड खरीद कर किसी राजनीतिक दल को दान कर सकते हैं, जो 15 दिनों के भीतर अपने सत्यापित खाते के माध्यम से बॉण्ड को भुना सकता है।
    • खरीदी सीमा : किसी व्यक्ति या कंपनी द्वारा खरीदे जा सकने वाले बॉण्ड की संख्या पर कोई सीमा नहीं है।
    • अप्रयुक्त धनराशि: यदि किसी दल ने 15 दिनों के भीतर कोई बॉण्ड भुनाया नहीं है, तो SBI इसे प्रधानमंत्री राहत कोष में जमा कर देता है।

भारत में राजनीतिक वित्त पोषण का कानूनी ढाँचा :

  • RPA के तहत पात्रता: जनप्रतिनिधित्व अधिनियम (Representation of the People’s Act-RPA) की धारा 29 B के अनुसार, राजनीतिक दलों को स्वैच्छिक अंशदान स्वीकार करने का अधिकार है। यह अंशदान सरकारी संस्थाओं को छोड़कर किसी भी व्यक्ति या कंपनी द्वारा हो सकता है।
  • वित्त विधेयक अधिनियम के तहत अनिवार्य घोषणा: वित्त विधेयक अधिनियम की धारा 29 C राजनीतिक दलों को 20,000 रुपये से अधिक के दान का खुलासा करने का अधिदेश देती है।

उच्चतम न्यायालय द्वारा मामले के मूल्यांकन के लिए अपनाए गए मापदंड:

  • क्या चुनावी बॉण्ड योजना संविधान के अनुच्छेद-19(1)(a) के तहत सूचना के मौलिक अधिकार का उल्लंघन कर सकती है?

  • क्या असीमित कॉरपोरेट फंडिंग स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों को प्रभावित करती है?

चुनावी बॉण्ड पर उच्चतम न्यायालय का निर्णय 

  • असंवैधानिकता: एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स और अन्य बनाम यूनियन ऑफ इंडिया कैबिनेट सेक्रेटरी तथा अन्य वाद में, SC ने सर्वसम्मति से माना कि चुनावी बॉण्डअसंवैधानिकहैं।
  • सूचना के अधिकार का उल्लंघन: उच्चतम न्यायालय ने माना कि चुनावी बॉण्ड योजना अपनी गोपनीय प्रकृति के कारण सूचना के अधिकार का उल्लंघन करती है और इस प्रकार संविधान के अनुच्छेद-19(1)(a) के तहत वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रहार करती है।
  • संशोधन रद्द: उच्चतम न्यायालय  ने योजना के साथ-साथ आयकर अधिनियम और लोकप्रतिनिधित्व अधिनियम में किए गए संशोधनों को भी रद्द कर दिया, जिन्होंने दान को गोपनीय बना दिया था।
    • उच्चतम न्यायालय ने कहा कि कंपनी अधिनियम में संशोधन जो व्यापक कॉरपोरेट राजनीतिक फंडिंग की अनुमति देता है, असंवैधानिक है।
  • भारतीय स्टेट बैंक के दिशा-निर्देश
    • जारी करने पर तत्काल रोक : SBI को चुनावी बॉण्ड जारी करने को तत्काल प्रभाव से रोकने का निर्देश दिया गया है।
    • निर्वाचन आयोग को सूचना : SBI को 12 अप्रैल, 2019 से चुनावी बॉण्ड के माध्यम से वित्तपोषित राजनीतिक दलों के बारे में भारत के निर्वाचन आयोग (ECI) को एक रिपोर्ट प्रस्तुत करनी आवश्यक है।
      • SBI को 6 मार्च, 2024 तक ECI को भुनाए गए चुनावी बॉण्ड की तारीखों और मूल्यों की रिपोर्ट देनी होगी।
    • सूचना का प्रकाशन: ECI को 13 मार्च तक SBI से प्राप्त जानकारी को अपनी वेबसाइट पर प्रकाशित करना होगा।
    • अदत्त  चुनावी बॉण्डों का निपटान: जिन राजनीतिक दलों के पास ऐसे चुनावी बॉण्ड हैं जो अभी भी 15 दिन की वैधता अवधि के भीतर हैं, लेकिन भुनाए नहीं गए हैं, उन्हें इन बॉण्डों को क्रेता या SBI को वापस करना होगा।
      • वैध बॉण्ड वापस मिलने पर, SBI क्रेता के खाते में राशि वापस कर देगा।

निर्णय के पीछे तर्क

  • पहुँच और प्रभाव: राजनीतिक योगदान विधायकों/सांसदों तक  दानकर्ताओं की पहुँच को बढ़ाता है, जो नीति निर्माण को प्रभावित करते हैं।
  • चुनाव संबंधी जोखिम:  किसी राजनीतिक दल को वित्तीय योगदान देने से धन और राजनीति के बीच साँठगाँठ के कारण बदले में एहसान करने (क्विड प्रो क्वो) की संभावना बढ़ सकती है।
  • सूचना के अधिकार और अनुच्छेद 19 (1)(a) का उल्लंघन: चुनावी बॉण्ड योजना मतदाताओं को यह सूचित करने से रोकती है कि किस व्यक्ति, कंपनी या संगठन ने किस पार्टी को और किस सीमा तक वित्तपोषित किया है।
    • सूचना का अधिकार केवल राज्य के मामलों तक ही सीमित नहीं है बल्कि इसमें सहभागी लोकतंत्र के लिए आवश्यक जानकारी भी शामिल है। राजनीतिक दल चुनावी प्रक्रिया में प्रासंगिक इकाइयाँ हैं, चुनावी विकल्पों के लिए उनकी फंडिंग की जानकारी आवश्यक है।
    • चुनावी बॉण्ड के तहत गोपनीयता का प्रावधान सूचना के अधिकार और संविधान के अनुच्छेद 19(1)(a) का उल्लंघन है।
  • आर्थिक असमानता संबंधी चिंताएँ: आर्थिक असमानताएँ राजनीतिक सहभागिता को प्रभावित करती हैं और चुनावी बॉण्ड दान में पारदर्शिता की कमी, नीति निर्माण को प्रभावित कर सकती है तथा क्विड प्रो क्वो (Quid Pro Quo) की व्यवस्था को बढ़ावा दे सकती है।
  • अपर्याप्त उपाय: SC ने कहा कि चुनावी बॉण्ड जिनका उद्देश्य काले धन को कम करना है, उनमें निहित पूर्ण छूट के कारण राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता सुनिश्चित करने में विफल रहते हैं।
  • निजता के अधिकारों पर सीमाएँ: राजनीतिक संबद्धता के लिए निजता का अधिकार उस अंशदान पर लागू नहीं होता, जो सार्वजनिक नीति को प्रभावित करने के लिए दान की जाती है और केवल एक निश्चित सीमा से कम राशि के दान पर ही लागू होता है।
  • कॉरपोरेट फंडिंग और राजनीतिक प्रभाव: राजनीति पर व्यवसायों के असंगत प्रभाव के कारण असीमित कॉरपोरेट फंडिंग की अनुमति देने वाले संशोधन को असंवैधानिक माना जाता है।
    • कंपनी अधिनियम से धारा 182 को हटाना, जो राजनीतिक अंशदान के उद्देश्य से घाटे में चल रही कंपनियों और लाभ कमाने वाली कंपनियों के बीच अंतर करती है, मनमाना है और अनुच्छेद-14 का उल्लंघन है।
  • आनुपातिकता का सिद्धांत:  यह योजना प्रतिबंधात्मक साधन परीक्षण में विफल रहती है, यह दर्शाता है कि वैकल्पिक तरीकों से सूचनात्मक अधिकारों का उल्लंघन किए बिना काले धन पर अंकुश लगाने के घोषित उद्देश्य को प्राप्त किया जा सकता है।

निष्कर्ष

  • पारदर्शिता और गोपनीयता के बीच संतुलन बनाने की आवश्यकता है। कई  देशों में बड़े अंशदान के लिए प्रकटीकरण को अनिवार्य करते हुए छोटे दानदाताओं के लिए गोपनीयता की अनुमति देकर इसे प्राप्त करने का प्रयास किया गया है।
    • उदाहरण के लिए, UK में, राजनीतिक दलों को एक ही स्रोत से एक वर्ष में £7,500 से अधिक के दान की सूचना देनी होती है। अमेरिका और जर्मनी में समान सीमाएँ क्रमशः $200 और €10,000 हैं।
    • यह दृष्टिकोण छोटे दानदाताओं को संभावित उत्पीड़न से बचाने और बड़े अंशदाता के साथ क्विड प्रो क्वो व्यवस्थाओं को लेकर चिंताओं का समाधान करने का लक्ष्य रखता है।
  • राजनीतिक वित्तपोषण का प्रभावी विनियमन और प्रभावी चुनावी सुधार, भ्रष्टाचार तथा  लोकतांत्रिक राजनीति की गुणवत्ता के क्षरण के दुश्चक्र को तोड़ने में सहायक हो सकते हैं।

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