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उभरती विश्व व्यवस्था

Lokesh Pal June 02, 2025 03:13 64 0

संदर्भ

विदेश मंत्री (External Affairs Minister- EAM) ने 20वें BIMSTEC मंत्रिस्तरीय सम्मेलन को संबोधित करते हुए एक नई विश्व व्यवस्था के उद्भव पर प्रकाश डाला, जो एक क्षेत्रीय एजेंडा द्वारा संचालित है।

बहुक्षेत्रीय तकनीकी एवं आर्थिक सहयोग के लिए बंगाल की खाड़ी पहल (BIMSTEC) के बारे में

  • यह एक क्षेत्रीय संगठन है, जो बंगाल की खाड़ी के आस-पास के देशों के बीच सहयोग को बढ़ावा देता है
  • स्थापना: बिम्सटेक की स्थापना वर्ष 1997 में बैंकॉक घोषणा-पत्र पर हस्ताक्षर के साथ हुई थी।
  • सदस्य: इसमें दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशिया के सात सदस्य देश शामिल हैं, अर्थात्,
    • बांग्लादेश, भूटान, भारत, म्याँमार, नेपाल, श्रीलंका और थाईलैंड।
  • सचिवालय: BIMSTEC सचिवालय की स्थापना ढाका, बांग्लादेश में की गई।
  • बहुक्षेत्रीय सहयोग: व्यापार, प्रौद्योगिकी, ऊर्जा, परिवहन, पर्यटन, मत्स्य पालन, कृषि आदि।

उभरती विश्व व्यवस्था के बारे में

  • “उभरती विश्व व्यवस्था” एक जटिल और गतिशील वैश्विक प्रणाली द्वारा चिह्नित अवधि को संदर्भित करती है, जिसमें वैश्विक राजनीतिक विचार और शक्ति संतुलन से संबंधित कई उभरते परिवर्तन शामिल हैं।
  • विशेषताएँ
    • बहुध्रुवीयता: उभरती हुई विश्व व्यवस्था एक बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था है, जिसमें कई शक्ति केंद्र अपनी स्वायत्तता और प्रभाव का दावा करते हैं।
      • उदाहरण: क्षेत्रीय शक्तियों का उदय और ब्रिक्स, अफ्रीकी संघ, आसियान आदि जैसे ब्लॉकों का गठन।

विश्व व्यवस्था के बारे में

  • यह शक्ति और अधिकार आधारित व्यवस्था को संदर्भित करती है, जो वैश्विक रूप से सामान्य समस्याएँ, जैसे- पर्यावरण, व्यापार, सुरक्षा और मानवाधिकारों के प्रबंधन तथा वैश्विक स्तर पर कूटनीति एवं विश्व राजनीति के संचालन के लिए रूपरेखा प्रदान करता है।
  • इसमें मानदंड, नियम, संस्थाएँ और शक्ति की गतिशीलता शामिल है, जो वैश्विक मंच पर देशों और अन्य संस्थाओं के व्यवहार और अंतःक्रियाओं को आकार देती है।
  • आधुनिक इतिहास में विश्व व्यवस्था के उदाहरण
    • वेस्टफेलियन विश्व व्यवस्था; अंतर विश्वयुद्ध वैश्विक व्यवस्था; WW-2 के बाद की विश्व व्यवस्था; शीतयुद्ध के बाद की विश्व व्यवस्था।

    • बहुसंकट: जलवायु परिवर्तन, महामारी, आतंकवाद, युद्ध और संघर्ष तथा आर्थिक संकट जैसी साझा वैश्विक चुनौतियाँ राष्ट्रों के बीच अधिक सहयोग और सहभागिता की आवश्यकता वाली निर्णायक विशेषताएँ होंगी।
    • आत्मनिर्भरता: प्रत्येक देश और क्षेत्र को भोजन, ईंधन, उर्वरक, प्रौद्योगिकी, टीके या त्वरित आपदा प्रतिक्रिया आदि के लिए स्वयं पर निर्भर रहने की आवश्यकता होगी।
      • उदाहरण: भारत ने अमेरिका और यूरोपीय संघ के प्रतिबंधों के बावजूद रूस से सस्ती दर पर कच्चा तेल प्राप्त किया।
    • विभूमंडलीकरण: विभूमंडलीकरण की ओर ले जाने वाली शक्तियाँ पश्चिमी दुनिया द्वारा अपनाई गई अधिक राष्ट्रवादी और अंतर्मुखी नीतियों में स्वयं को प्रकट करते हुए मजबूत होती जा रही हैं।
      • उदाहरण: अमेरिकी राष्ट्रपति ने भारत सहित कई देशों पर टैरिफ व्यापार युद्ध की घोषणा की (26 प्रतिशत टैरिफ का सामना करना पड़ रहा है)।
    • मिनीलेटरलिज्म का उदय (Rise of Minilateralism): यह एक कूटनीतिक दृष्टिकोण है, जिसमें देशों का एक छोटा समूह विशिष्ट मुद्दों या चुनौतियों पर सहयोग करता है, साझा हितों और लक्ष्यों पर ध्यान केंद्रित करता है, जिससे तेजी से निर्णय लेने एवं अधिक कुशल परिणाम प्राप्त करने की अनुमति प्राप्त होती है।
      • उदाहरण: भारत क्वाड में पश्चिमी शक्तियों के साथ और शंघाई सहयोग संगठन (Shanghai Cooperation Organisation- SCO) में प्रतिद्वंद्वी एशियाई शक्तियों के साथ सहयोग कर रहा है।
    • क्षेत्रीय भू-राजनीति पर ध्यान केंद्रित करना: उभरती हुई विश्व व्यवस्था क्षेत्रीय भू-राजनीति के विकास पर जोर देती है, जिससे क्षेत्रीय लाभ सुरक्षित होते हैं।
      • उदाहरण: क्षेत्रीय सहयोग और कनेक्टिविटी को बढ़ाने में अफ्रीकी संघ और आसियान की सफलता समग्र विकास को सक्षम बनाती है।
    • ‘साइबरस्पेस संप्रभुता (Cyberspace Sovereignty)’ का विस्तार: इंटरनेट और साइबरस्पेस, जो कभी अमेरिकी नेतृत्व वाले नियमों द्वारा नियंत्रित था, अब अधिक विकेंद्रीकृत हो रहा है, क्योंकि चीन जैसे देश साइबरस्पेस संप्रभुता पर अपना दावा कर रहे हैं।

उभरती विश्व व्यवस्था में भारत की भूमिका

  • दक्षिण का स्वीकार्य नेता भारत, 21वीं सदी की उभरती विश्व व्यवस्था में, जिसे एशियाई युग कहा जाता है, एक बड़ी वैश्विक भूमिका निभाने के लिए उस भूमिका से आगे बढ़ रहा है।
  • वैश्विक मंच पर भारत के उदय को आकार देने वाली विशेषताएँ
    • लोकतंत्र: भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है, जो प्रकृति में गैर-पश्चिमी है और मुक्त बाजार पर आधारित है।
    • आर्थिक उन्नति: भारत अब GDP के मामले में दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, जिसने अंतरराष्ट्रीय मंच पर अपनी अभिव्यक्ति को महत्त्वपूर्ण आर्थिक शक्ति प्रदान की है।
    • युवा जनसांख्यिकी: भारत अपनी बड़ी युवा कामकाजी आयु वाली आबादी के साथ अपने जनसांख्यिकीय लाभांश का लाभ उठाता है।
    • भौगोलिक स्थिति: भारत अटलांटिक को प्रशांत से जोड़ने वाले वैश्विक वाणिज्य के केंद्र में स्थित है।
  • भारत के लिए अवसर
    • वैश्विक दक्षिण का नेतृत्व: भारत को अपने समावेशी, सहभागी और समानता आधारित नेतृत्व के साथ वैश्विक दक्षिण के नेतृत्वकर्ता के रूप में माना जा रहा है। 
      • उदाहरण: भारत ने वैश्विक दक्षिण के लिए अपने नए दृष्टिकोण की घोषणा की है, जिसका नाम ‘महासागर’ है, जो वैश्विक दक्षिण तक विस्तृत एक सुरक्षित, संरक्षित और स्थिर समुद्री क्षेत्र के निर्माण पर केंद्रित है।
    • जुड़ाव: भारत ने हमेशा अन्य शक्तियों के साथ अपने जुड़ाव में रणनीतिक स्वायत्तता बनाए रखी है।
      • उदाहरण: विदेश मंत्री ने भारत की नीति को “अमेरिका को शामिल करना, चीन को प्रबंधित करना, यूरोप को बढ़ावा देना, रूस को आश्वस्त करना, जापान के साथ सामरिक संबंध स्थापित करना, पड़ोसियों को शामिल करना, पड़ोस का विस्तार करना और समर्थन के पारंपरिक क्षेत्रों का विस्तार करना” के रूप में स्पष्ट किया।
    • डिजिटल नेतृत्व: UPI; कोविन; आधार पारिस्थितिकी तंत्र आदि जैसे अपने डिजिटल शासन प्लेटफॉर्मों के साथ भारत वैश्विक दक्षिण को डिजिटल नेतृत्व प्रदान कर सकता है।
      • उदाहरण: NPCI ने UPI ग्लोबल एक्सेप्टेंस नामक एक सुविधा शुरू की है, जो उपयोगकर्ताओं को चुनिंदा अंतरराष्ट्रीय व्यापारिक स्थानों पर क्यूआर कोड-आधारित भुगतान करने की अनुमति देती है।
    • शांति स्थापना: भारत को बड़े पैमाने पर संघर्ष के दौरान शांति स्थापना की भूमिका निभाने का अवसर प्रदान किया जाएगा।
      • उदाहरण: भारत ने रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान युद्धग्रस्त क्षेत्र से अपने नागरिकों को निकालने के लिए समन्वय किया।
    • प्रथम प्रतिक्रियाकर्ता और सुरक्षा नेतृत्व: भारत को समुद्री डकैती, तस्करी, दुर्घटनाओं आदि के विरुद्ध पूरे हिंद महासागर और इंडो पैसिफिक क्षेत्र में सुरक्षा नेतृत्व प्रदान करने के रूप में देखा जाता है।
    • क्षेत्रीय एकीकरण: भारत व्यापार, यात्रा और कनेक्टिविटी के माध्यम से दक्षिण एशिया, इंडो पैसिफिक परिदृश्य को एकीकृत करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
      • उदाहरण: त्रिपक्षीय राजमार्ग (भारत, म्याँमार और थाईलैंड) भारत के पूर्वोत्तर को प्रशांत महासागर से जोड़ेगा।
  • भारत के लिए चुनौतियाँ
    • विवैश्वीकरण: पश्चिमी दुनिया के साथ बढ़ते व्यापार तनाव और विश्व व्यापार संगठन तथा संयुक्त राष्ट्र जैसी वैश्विक संस्थाओं के कमजोर होने से भारत के विकास एवं राष्ट्रीय हित बाधित हो रहे हैं।
    • वैश्विक शक्तियों को संतुलित करना: भारत को अमेरिका और चीन, रूस जैसी प्रतिस्पर्द्धी वैश्विक शक्तियों के साथ अपने जटिल संबंधों को संतुलित करने की आवश्यकता है, साथ ही अपने स्वयं के रणनीतिक हितों को भी प्राथमिकता देनी होगी।
      • उदाहरण: रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान रूस के साथ जुड़ाव के कारण भारत पर प्रतिबंध लगा दिया गया था।
    • अस्थिर पड़ोस: भारत को राजनीतिक रूप से अस्थिर, आर्थिक रूप से ऋणग्रस्त, संघर्ष प्रवण पड़ोस से निपटना पड़ता है।
      • उदाहरण: बांग्लादेश में शेख हसीना सरकार के हटने से दोनों देश के साथ संबंधों में खटास आई है।
    • जलवायु न्याय नेतृत्व: जलवायु परिवर्तन से निपटने के साथ-साथ अपनी आर्थिक वृद्धि सुनिश्चित करने की भारत की क्षमता पर गंभीर प्रभाव पड़ेगा, क्योंकि विकसित देश जलवायु वित्त दायित्वों को पूरा करने के अनिच्छुक हैं।
    • चीनी प्रतिस्पर्द्धा: इस नई विश्व व्यवस्था में भारत आर्थिक और तकनीकी रूप से सशक्त चीन के साथ सीधे प्रतिस्पर्द्धा में है।
      • उदाहरण: चीन की ऋण जाल नीति भारत के पड़ोसी देशों को भी अपनी गिरफ्त में ले रही है।
    • आर्थिक अनिश्चितताएँ: संकटों और आर्थिक अस्थिरता के कारण वैश्विक व्यापार में व्यवधान भारत के निर्यात और आर्थिक वृद्धि को प्रभावित कर सकता है।

विश्व व्यवस्था को आकार देने में बहुपक्षीय संस्थाओं की भूमिका

  • संरक्षणवाद को रोकना: बहुपक्षीय संस्थाएँ अंतरराष्ट्रीय मानदंड, कानून और प्रक्रियाएँ स्थापित करती हैं तथा उन्हें लागू करती हैं, जिससे अराजकता एवं संरक्षणवाद कम होता है।
  • विवाद समाधान तंत्र: बहुपक्षीय संस्थाएँ विवाद समाधान के लिए तंत्र प्रदान करती हैं और व्यापार एवं सुरक्षा नियमों का अनुपालन सुनिश्चित करती हैं, जिससे अधिक पूर्वानुमानित और शांतिपूर्ण अंतरराष्ट्रीय वातावरण के निर्माण में योगदान मिलता है।
    • उदाहरण: WTO विवाद समाधान तंत्र।
  • वार्ता को सुविधाजनक बनाना: अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) और विश्व बैंक जैसी ये संस्थाएँ पारस्परिक रूप से लाभकारी समाधान खोजने के लिए ऋण वार्ता में मध्यस्थ के रूप में कार्य करती हैं।
  • मानक और दिशा-निर्देश निर्धारित करना: बहुपक्षीय संस्थाएँ अंतरराष्ट्रीय वार्ता के सभी पहलुओं जैसे- व्यापार कानून, सांस्कृतिक कानून, जलवायु नीति, मानवाधिकार आदि के लिए दिशा-निर्देश और मानक निर्धारित करती हैं।
    • उदाहरण: व्यापार और विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (United Nations Conference on Trade and Development – UNCTAD) द्वारा विकसित उत्तरदायी संप्रभु ऋण और उधार के सिद्धांत।
  • मानवीय सहायता: बहुपक्षीय मानवीय अभियान प्राकृतिक आपदाओं और मानव निर्मित आपात स्थितियों के पीड़ितों की सहायता करते हैं।

निष्कर्ष

भारत की वर्तमान आर्थिक प्रगति और भविष्य के रणनीतिक सुधारों के साथ-साथ इसकी उभरती जनसांख्यिकी तथा मजबूत लोकतंत्र अपने सहयोगी दृष्टिकोण के माध्यम से भारत को नई विश्व व्यवस्था को आकार देने में मदद करेंगे।

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