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कृषि में महिलाओं को सशक्त बनाना

Lokesh Pal June 11, 2025 03:34 72 0

संदर्भ 

संयुक्त राष्ट्र महासभा ने वर्ष 2026 को अंतरराष्ट्रीय महिला किसान वर्ष (International Year of the Woman Farmer) घोषित किया है।

  • यह पहल कृषि और खाद्य सुरक्षा में महिलाओं की आवश्यक भूमिका को मान्यता देती है, साथ ही भूमि स्वामित्व, बाजार पहुँच, ऋण और प्रौद्योगिकी में लैंगिक असमानताओं को भी दूर करती है।

मुख्य बिंदु: कृषि में महिलाओं की भूमिका

  • महिलाएँ वैश्विक खाद्य आपूर्ति में लगभग 50% का योगदान देती हैं।
  • विकासशील देशों में महिलाएँ 60-80% खाद्य उत्पादन करती हैं।
  • दक्षिण एशिया में, महिलाएँ कृषि श्रमिकों का 39% हिस्सा हैं।
  • भारत में, आर्थिक रूप से सक्रिय महिलाओं में से लगभग 80% कृषि कार्य में संलग्न हैं, लेकिन केवल 8.3% के पास कृषि भूमि है और 14% के पास भूमि स्वामित्व है (नवीनतम राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के अनुसार)।
  • PLFS 2023-24 के अनुसार, तीन-चौथाई (76.95%) से अधिक ग्रामीण महिलाएँ अब कृषि कार्य में संलग्न हैं, जो कृषक और मजदूर के रूप में उनकी भूमिका में उल्लेखनीय वृद्धि को दर्शाता है।

महिला किसानों के समक्ष चुनौतियाँ

  • कार्य का दोहरा बोझ: महिलाएँ प्रायः कृषि कार्य के साथ-साथ अवैतनिक घरेलू जिम्मेदारियाँ भी निभाती हैं।
    • इससे उनका समय, उत्पादकता और निर्णय लेने की प्रक्रिया में उनकी भागीदारी सीमित हो जाती है।
  • भूमि स्वामित्व कम होना: ऋण, प्रौद्योगिकी और सरकारी योजनाओं तक पहुँच को सीमित करता है।
  • कृषि-सलाह तक सीमित पहुँच: डिजिटल डिवाइड (मोबाइल/इंटरनेट उपयोग) के कारण कृषि संबंधी सलाह तक सीमित पहुँच है।
    • 15 वर्ष से अधिक आयु की 51% ग्रामीण महिलाओं के पास मोबाइल फोन नहीं है (NSO)।
  • जलवायु संवेदनशीलता: महिलाओं के घरेलू और कृषि संबंधी बोझ में वृद्धि करता है।
    • उदाहरण के लिए: विदर्भ, महाराष्ट्र में आत्महत्या करने वाले किसानों की विधवाएँ ऋण चुकौती और कानूनी भूमि स्वामित्व के मुद्दों से जूझ रही हैं।
  • अपर्याप्त वित्तपोषण: माइक्रोफाइनेंस सहायता करता है, लेकिन प्रायः पूंजी निवेश के लिए अपर्याप्त होता है।

महिला किसानों के लिए सरकारी हस्तक्षेप

  1. महिला किसान सशक्तीकरण परियोजना (Mahila Kisan Sashaktikaran Pariyojana)
    • इसका उद्देश्य महिला किसानों के लिए कौशल निर्माण और संसाधनों तक पहुँच उपलब्ध कराना है।
  2. कृषि मशीनीकरण पर उप-मिशन (Sub-Mission on Agricultural Mechanisation)
    • मशीनरी पर 50-80% सब्सिडी प्रदान करता है।
  3. राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन (National Food Security Mission-NFSM)
    • कुछ राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों में महिलाओं के लिए 30% धनराशि निर्धारित की गई।

केस स्टडी: ENACT प्रोजेक्ट (असम)

  • ENACT प्रोजेक्ट मुख्य रूप से महिला किसानों को सूचना प्रौद्योगिकी के माध्यम से विशेषज्ञों से जोड़ती है, तथा उन्हें उनके फोन के माध्यम से साप्ताहिक रूप से कृषि एवं जलवायु संबंधी सलाह उपलब्ध कराती है।
    • ENACT: प्रकृति-आधारित समाधान और लैंगिक परिवर्तनकारी दृष्टिकोण के माध्यम से जलवायु अनुकूलन को बढ़ाना। 
  • विश्व खाद्य कार्यक्रम असम सरकार द्वारा संचालित, नॉर्वे द्वारा वित्तपोषित किया गया है।
  • फोकस
    • जलवायु-अनुकूल किस्मों (जैसे- बाढ़-प्रतिरोधी चावल) को बढ़ावा देना।
    • मोबाइल फोन के माध्यम से साप्ताहिक जलवायु सलाह।
    • महिलाओं द्वारा संचालित स्मार्ट बीज उत्पादन प्रणाली।
    • जलवायु अनुकूलन सूचना केंद्रों का उपयोग।
    • राज्य विभागों और कृषि विश्वविद्यालयों के साथ संस्थागत सहयोग।

अन्य उल्लेखनीय उदाहरण: बिहार में जीविका कार्यक्रम।

आगे की राह: नीतिगत सिफारिशें

  • लैंगिक-संवेदनशील नीतिगत डिजाइन
    • महिलाओं की विशिष्ट चुनौतियों के लिए लक्षित हस्तक्षेप के लिए विस्तृत, लैंगिक आधारित  डेटा एकत्र करना।
      • उदाहरण के लिए: प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना ने महिला किसानों के लिए सिंचाई योजनाओं तक पहुँच के लिए विशेष प्रावधान प्रस्तुत किए हैं।
  • संसाधनों तक पहुँच
    • भूमि, ऋण, डिजिटल तकनीक, मौसम संबंधी जानकारी सेवाओं आदि तक पहुँच में सुधार लाना।
    • संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO) के अनुसार, कृषि संसाधनों, कौशल विकास और अवसरों तक पुरुषों और महिलाओं की समान पहुँच सुनिश्चित करके विकासशील देशों में कृषि उत्पादन को 2.5 से 4% तक बढ़ाया जा सकता है।
  • महिलाओं के नेतृत्व वाली कृषि-मूल्य शृंखलाएँ
    • महिला स्वयं सहायता समूहों, सामूहिक कार्रवाई और मूल्य-श्रृंखला भागीदारी को समर्थन प्रदान करना।
  • क्षमता निर्माण एवं व्यवहार परिवर्तन
    • योजना, प्रौद्योगिकी प्रसार, निर्णय लेने में भागीदारी सुनिश्चित करना।
  • महिला किसानों के प्रति सामाजिक धारणा में परिवर्तन: कृषि में महिलाओं को समान योगदानकर्ता के रूप में मान्यता देने से लैंगिक पूर्वाग्रहों को चुनौती मिल सकती है और उनकी सामाजिक स्थिति में सुधार हो सकता है।
    • उदाहरण के लिए: महाराष्ट्र में “किसान सखी” पहल महिलाओं के नेतृत्व वाले किसान समूहों को बढ़ावा देती है, जिससे उन्हें बाजार में पहचान और नेतृत्व की भूमिका मिलती है।

निष्कर्ष 

वर्ष 2026 को अंतरराष्ट्रीय महिला कृषक वर्ष घोषित किया जाना, लचीले कृषि विकास और लैंगिक समानता को आगे बढ़ाने के लिए एक ऐतिहासिक अवसर प्रस्तुत करता है।

  • महिला किसानों को मान्यता देकर, उन्हें सशक्त बनाकर और उनमें निवेश करके हम खाद्य सुरक्षा को मजबूत कर सकते हैं, समावेशी आर्थिक विकास को बढ़ावा दे सकते हैं तथा सतत, जलवायु-अनुकूल कृषि प्रणालियों को बढ़ावा दे सकते हैं।

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