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सीरिया में असद शासन का अंत और भारत-सीरिया संबंध

Lokesh Pal December 10, 2024 03:06 59 0

संदर्भ

हाल ही में सीरियाई विद्रोहियों ने राष्ट्रपति बशर अल-असद के 24 वर्ष पुराने शासन सत्ता को समाप्त कर दिया, जिसके कारण उन्हें रूस में शरण लेनी पड़ी।

सीरियाई गृहयुद्ध की पृष्ठभूमि

  • वर्ष 1971: असद परिवार वर्ष 1971 से सीरिया पर शासन कर रहा है, जिसमें हाफिज अल-असद ने तानाशाही शासन स्थापित किया था।

  • वर्ष 2000: बशर अल-असद अपने पिता के उत्तराधिकारी बने और अपनी उदार छवि एवं नीतियों के कारण उन्हें शुरू में एक सुधारवादी नेता के रूप में देखा गया।
  • वर्ष 2011: वर्ष 2011 में अरब स्प्रिंग के रूप में आर्थिक असमानता, बेरोजगारी एवं अल्पसंख्यक अलावी (Alawite) समुदाय के हाथों में सत्ता एवं संसाधनों के संकेंद्रण का हवाला देते हुए बशर अल-असद के शासन के विरुद्ध व्यापक विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया था।
    • इस सशस्त्र विद्रोह को पश्चिमी एवं अरब देशों तथा तुर्किए से समर्थन प्राप्त था।
  • वर्ष 2012: अल-कायदा के सीरियाई सहयोगी, नुसरा फ्रंट (Nusra Front) ने दमिश्क में पहली हिंसक घटना को अंजाम दिया।
    • इस वर्ष राजनीतिक परिवर्तन पर वैश्विक शक्तियों के बीच जिनेवा वार्ता विभिन्न मतभेदों के कारण विफल हो गई।
  • वर्ष 2013: लेबनान के हिजबुल्लाह समूह ने कुसायर (Qusayr) पर पुनः अधिकार करने में असद सरकार की सहायता की, जो ईरान समर्थित विद्रोही समूहों की बढ़ती भूमिका को दर्शाता है।
    • पूर्वी घौटा (Ghouta) में रासायनिक हमले में नागरिक मारे गए, लेकिन अमेरिका ने सैन्य हस्तक्षेप नहीं किया।
  • वर्ष 2014: इस्लामिक स्टेट (IS) ने रक्का एवं सीरिया व इराक के विशाल भू-भाग पर नियंत्रण कर लिया है।
    • अमेरिका ने इस्लामिक स्टेट के विरुद्ध हवाई हमले शुरू कर दिए, जिससे कुर्द बलों को समर्थन मिला, लेकिन तुर्किए के साथ उसके संबंध खराब हो गए।
  • वर्ष 2015: रूस इस संघर्ष में शामिल हो गया और हवाई सहायता प्रदान करने लगा, जिससे यह संघर्ष असद के पक्ष में झुक गया।
  • वर्ष 2016: तुर्किए ने कुर्द विद्रोहियों की बढ़त को रोकने के लिए आक्रमण शुरू कर दिया, जिससे तुर्किए नियंत्रण का एक क्षेत्र बन गया।
    • नुसरा फ्रंट ने स्वयं को अल-कायदा से अलग करते हुए अपना नाम बदलकर हयात तहरीर अल-शाम (Hayat Tahrir al-Sham-HTS) कर लिया है।
  • वर्ष 2017: इजरायल ने सीरिया में हिजबुल्लाह एवं ईरानी सेना को निशाना बनाकर हवाई हमले करने की बात स्वीकार की है।
  • वर्ष 2020: युद्ध विराम से अधिकांश सीमावर्ती क्षेत्र अवरुद्ध हो गए तथा असद का अधिकांश क्षेत्र एवं प्रमुख शहरों पर नियंत्रण हो गया।
  • वर्ष 2023: 7 अक्तूबर को इजरायल पर हमास के हमले से हिजबुल्लाह कमजोर हुआ, जिससे असद सरकार के समर्थन आधार कमजोर हो गया।
  • वर्ष 2024: विद्रोहियों ने अलेप्पो पर निर्णायक हमला किया और दमिश्क सहित प्रमुख शहरों पर शीघ्र ही नियंत्रण कर लिया।
    • असद का शासन समाप्त हो गया क्योंकि उसकी सेना सहयोगियों से समर्थन की कमी के कारण प्रतिरोध करने में विफल रही।

संघर्ष में प्रमुख हितधारक

  • आतंरिक समूह
    • हयात तहरीर अल-शाम (Hayat Tahrir al-Sham)
      • माना जाता है कि हयात तहरीर अल-शाम (HTS) आतंकवादी समूह अलकायदा की एक शाखा है।
    • सीरियाई डेमोक्रेटिक फोर्सेस (SDF)
      • SDF अमेरिका समर्थित नृजातीय मिलिशिया एवं विद्रोही समूहों का कुर्द नेतृत्व वाला गठबंधन है।
    • तुर्किए समर्थित सीरियाई राष्ट्रीय सेना (SNA)
      • सीरियाई राष्ट्रीय सेना (SNA) एक तुर्किए समर्थित सेना है।
  • बाह्य हितधारक
    • असद समर्थक
      • रूस: वर्ष 2015 से हवाई एवं रणनीतिक सहायता प्रदान की।
      • ईरान एवं हिजबुल्लाह: सीरिया, ईरान की ‘प्रतिरोध की धुरी’ का हिस्सा है, जिसमें हिजबुल्लाह, इजरायल का विरोध करने और क्षेत्र में अमेरिकी प्रभाव को कम करने में मुख्य भूमिका निभा रहा है।

प्रतिरोध की धुरी (Axis of Resistance) के बारे में

  • प्रतिरोध की धुरी ईरान, सीरिया और हिजबुल्लाह, हमास, फिलिस्तीनी इस्लामिक जिहाद (PIJ), हूती जैसे विभिन्न संबद्ध समूहों को शामिल करने वाले एक अनौपचारिक सैन्य गठबंधन को संदर्भित करती है।
  • फोकस: यह गठबंधन नाटो, इजरायल और सऊदी अरब के विरोध के लिए जाना जाता है। यह आतंकवाद के विरुद्ध युद्ध से संबंधित संघर्षों में शामिल है।
  • प्रमुख विशेषता: इस गठबंधन को इसके साझा पश्चिमी और इजरायल विरोधी रुख और इसके व्यापक क्षेत्रीय लक्ष्यों द्वारा परिभाषित किया जाता है।

    • असद विरोधी
      • संयुक्त राज्य अमेरिका: ISIS और असद शासन का मुकाबला करने के लिए कुर्द नेतृत्व वाली सेनाओं एवं उदारवादी विद्रोहियों का समर्थन किया।
      • तुर्किए: अपनी सीमा के पास कुर्द स्वायत्तता का मुकाबला करने के लिए विद्रोही समूहों का समर्थन किया।
      • इजरायल: सीरिया में ईरानी और हिजबुल्लाह ठिकानों को निशाना बनाया।

असद शासन के पतन का कारण

  • लंबे समय तक चले गृहयुद्ध और वैधता की हानि: वर्ष 2011 से चल रहे गृहयुद्ध ने असद की घरेलू वैधता को समाप्त कर दिया है।
    • सत्तावादी शासन, भ्रष्टाचार और मानवाधिकार हनन के प्रति व्यापक असंतोष ने विद्रोह को बढ़ावा दिया और सीरियाई जनता के बीच उनके समर्थन को कमजोर कर दिया।
  • विद्रोही ताकतों का बढ़ता प्रभाव: विद्रोही ताकतों, विशेष तौर पर हयात तहरीर अल-शाम (HTS) के पुनः उभरने से, तुर्किए जैसे क्षेत्रीय हितधारकों के समर्थन से, सैन्य बढ़त में तेजी आई।
  • अंतरराष्ट्रीय दबाव एवं अलगाव: असद के शासन को कथित युद्ध अपराधों एवं अत्याचारों के कारण लगातार अंतरराष्ट्रीय निंदा, प्रतिबंधों एवं अलगाव का सामना करना पड़ा।
    • सीमित कूटनीतिक तरीकों ने असद शासन की स्थिति को और कमजोर कर दिया।
  • भू-राजनीतिक गतिशीलता में बदलाव
    • रूस: यूक्रेन के साथ संघर्ष के कारण सीरिया में सेना की उपस्थिति कम हुई।
    • ईरान: जनरल कासिम सुलेमानी की मौत और सीरिया में इजरायल के हवाई हमलों द्वारा इसके ठिकानों को निशाना बनाने के कारण इसका सैन्य प्रभाव कम हुआ।
    • हिजबुल्लाह: इजरायल के साथ प्रत्यक्ष रूप से संघर्ष में शामिल होने के कारण, महत्त्वपूर्ण समर्थन देने में असमर्थ रहा।
    • तुर्किए: कथित तौर पर आक्रामक रूप से HTS और SNA विद्रोहियों का समर्थन कर रहा है।

अरब स्प्रिंग के बारे में

  • यह विद्रोह, बगावत, विरोध और अशांति का आंदोलन है, जो वर्ष 2011 के प्रारंभ में मध्य पूर्व एवं उत्तरी अफ्रीका के अरब देशों में फैल गई।
  • ट्यूनीशिया (2010-2011): भ्रष्टाचार और बेरोजगारी के विरुद्ध विरोध प्रदर्शनों के कारण राष्ट्रपति बेन अली को पद से हटा दिया गया, जिससे अरब स्प्रिंग की शुरुआत हुई।
  • मिस्र (2011): तहरीर चौक पर बड़े पैमाने पर प्रदर्शनों ने होस्नी मुबारक के 30 वर्ष के शासन को समाप्त कर दिया, जिसके बाद राजनीतिक उथल-पुथल और सैन्य प्रभुत्व का दौर शुरू हो गया।
  • लीबिया (2011): विरोध प्रदर्शनों ने गृहयुद्ध का रूप ले लिया, जिसके परिणामस्वरूप मुअम्मर गद्दाफी के तानाशाही शासन का पतन एवं मृत्यु हो गई, जिससे यह देश लंबे समय तक अस्थिरता में रहा।
  • यमन (2011): विरोध प्रदर्शनों ने राष्ट्रपति अली अब्दुल्ला सालेह को इस्तीफा देने के लिए मजबूर किया, जिसके कारण सत्ता परिवर्तन हुआ और बाहरी हस्तक्षेप से गृहयुद्ध जारी रहा।
  • बहरीन (2011): सुन्नी राजशाही के विरुद्ध शिया-बहुल विरोध प्रदर्शनों को GCC बलों की सहायता से दबा दिया गया, जिससे शिकायतों का समाधान नहीं हो सका।
  • मोरक्को (2011): शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शनों के कारण राजा मोहम्मद VI ने बड़ी अशांति या विद्रोह से बचने के लिए संवैधानिक सुधार प्रस्तुत किए।
  • जॉर्डन (2011): विरोध प्रदर्शनों ने राजा अब्दुल्ला द्वितीय को सापेक्ष स्थिरता बनाए रखते हुए सीमित राजनीतिक एवं आर्थिक सुधारों को लागू करने के लिए प्रेरित किया।

भारत-सीरिया द्विपक्षीय संबंध

ऐतिहासिक एवं सभ्यतागत संबंध

  • भारत और सीरिया के बीच ऐतिहासिक और सभ्यतागत संबंधों में निहित मैत्रीपूर्ण संबंधों का एक लंबा इतिहास रहा है।
  • दोनों देशों की धर्मनिरपेक्षता, राष्ट्रवाद और विकास संबंधी विचारधाराएँ समान हैं।
  • अरब मुद्दों, विशेष रूप से फिलिस्तीनी मुद्दे एवं सीरिया को गोलान हाइट्स की वापसी के लिए भारत के निरंतर समर्थन की सीरियाई लोगों द्वारा सराहना की जाती रही है।
  • महात्मा गांधी, रबींद्रनाथ टैगोर और जवाहरलाल नेहरू जैसे भारतीय नेताओं को सीरियाई जनमानस द्वारा अत्यंत सम्मान दिया जाता रहा है।

‘इंडिया फॉर ह्यूमैनिटी’ पहल के बारे में

  • ‘इंडिया फॉर ह्यूमैनिटी’ पहल को भारत सरकार के विदेश मंत्रालय (MEA) द्वारा वर्ष 2018 में शुरू किया गया था।
  • यह पहल महात्मा गांधी की मानवता के प्रति सेवा का सम्मान करने के लिए शुरू की गई थी और यह उनकी 150वीं जयंती का हिस्सा थी।
  • इस पहल में गैर-सरकारी संगठन भगवान महावीर विकलांग सहायता समिति (BMVSS), जिसे ‘जयपुर फुट’ (Jaipur Foot) के नाम से भी जाना जाता है, के सहयोग से विभिन्न देशों में कृत्रिम अंग फिटमेंट शिविरों की एक शृंखला शामिल है।

सीरियाई संकट पर भारत का रुख

  • भारत ने सीरियाई नेतृत्व वाली राजनीतिक प्रक्रिया के माध्यम से गैर-सैन्य साधनों के माध्यम से सीरियाई संघर्ष को हल करने की अपनी सैद्धांतिक स्थिति को बनाए रखा है।
  • भारत ने सीरिया की संप्रभुता, स्वतंत्रता, एकता और क्षेत्रीय अखंडता को बनाए रखते हुए UNSC संकल्प 2254 का पालन करने पर लगातार जोर दिया है।
  • भारत ने सीरिया में सभी हितधारकों के बीच विश्वास को बढ़ावा देने के लिए संयुक्त राष्ट्र के विशेष दूत के ‘चरण-दर-चरण’ दृष्टिकोण का समर्थन किया है।
  • 29 नवंबर, 2024 को, भारत ने द्विपक्षीय सहयोग पर जोर देते हुए सीरिया के साथ विदेश कार्यालय परामर्श का छठा दौर आयोजित किया।
  • असद शासन के पतन के बाद, भारतीय विदेश मंत्रालय (MEA) ने एक ट्रेवल एडवाइजरी जारी की, जिसमें भारतीय नागरिकों से सीरिया छोड़ने का आग्रह किया गया।

द्विपक्षीय दौरे

  • वर्ष 2003: प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने सीरिया का दौरा किया; विभिन्न क्षेत्रों में समझौतों पर हस्ताक्षर किए गए; भारत ने 1 मिलियन अमेरिकी डॉलर का अनुदान और 25 मिलियन अमेरिकी डॉलर का ऋण देने की पेशकश की।
  • वर्ष 2008: राष्ट्रपति बशर अल-असद ने भारत का दौरा किया; समझौतों में एक IT केंद्र और सीरियाई फॉस्फेट पर व्यवहार्यता अध्ययन शामिल था।
  • वर्ष 2010: राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने सीरिया का दौरा किया; 100 मिलियन अमेरिकी डॉलर के ऋण सहायता की घोषणा की गई तथा गैर-सरकारी संगठनों को योगदान दिया गया।
  • वर्ष 2012: प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने गुटनिरपेक्ष शिखर सम्मेलन में सीरिया के प्रधानमंत्री वाल अल हल्की से मुलाकात की और संघर्ष के राजनीतिक समाधान पर जोर दिया।
  • वर्ष 2016: सीरिया के उप-प्रधानमंत्री और विदेश मंत्रालय ने आतंकवाद निरोध और सहयोग पर चर्चा करने के लिए भारत का दौरा किया।
  • वर्ष 2022: सीरिया के विदेश मंत्री ने भारत का दौरा किया; विकासात्मक सहायता, क्षमता निर्माण और आर्थिक सहयोग पर चर्चा हुई।
  • वर्ष 2023: विदेश राज्य मंत्री ने सीरिया का दौरा किया, जो वर्ष 2016 के बाद से उनकी पहली मंत्रिस्तरीय यात्रा थी; उन्होंने शिक्षा, स्वास्थ्य और क्षमता निर्माण में संबंधों को मजबूत करने पर जोर दिया।

सहयोग के क्षेत्र

  • मानवीय सहायता और विकास सहयोग
    • सीरिया पर ब्रुसेल्स सम्मेलन में, भारत ने वर्ष 2013 में 2.5 मिलियन अमेरिकी डॉलर, वर्ष 2014 में 2.5 मिलियन अमेरिकी डॉलर, वर्ष 2015 में 2 मिलियन अमेरिकी डॉलर विकास सहायता के लिए देने का वादा किया।
    • वर्ष 2021 में, भारत ने खाद्य संकट के दौरान सीरिया को 2,000 मीट्रिक टन चावल की खाद्य सहायता प्रदान की।
    • ‘इंडिया फॉर ह्यूमैनिटी’ पहल के अंतर्गत, वर्ष 2019-2022 में कृत्रिम अंग फिटमेंट शिविरों से सैकड़ों सीरियाई लोगों को लाभ हुआ।
  • क्षमता निर्माण पहल
    • भारत ने ‘भारत में अध्ययन’ कार्यक्रम के तहत ग्रेजुएट, पोस्ट ग्रेजुएट और पीएचडी कार्यक्रमों के लिए 1,500 सीरियाई छात्रों को छात्रवृत्ति प्रदान की।
    • ITEC (भारतीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग कार्यक्रम) के अंतर्गत सालाना 90 प्रशिक्षण स्लॉट प्रदान किए जाते हैं और सीरियाई अधिकारियों के लिए अरबी में विशेष प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए गए।
  • आर्थिक और वाणिज्यिक संबंध
    • भारत ने वर्ष 2009 में तिशरीन थर्मल पॉवर प्लांट के लिए 240 मिलियन अमेरिकी डॉलर का ऋण दिया था, जिसे BHEL द्वारा निष्पादित किया गया था।
    • वर्ष 2023-24 में द्विपक्षीय व्यापार 81.53 मिलियन अमेरिकी डॉलर (भारत से 63 मिलियन निर्यात और 18 मिलियन आयात) था, जिसमें प्रमुख भारतीय निर्यात में अनाज एवं फार्मास्यूटिकल्स तथा आयात में बादाम एवं जैतून का तेल शामिल थे।
  • सांस्कृतिक आदान-प्रदान और लोगों के बीच संबंध
    • सांस्कृतिक संबंधों में ‘पंचतंत्र’ का अरबी ‘कलिला वा डिमना’ (Kalila wa Dimna) में रूपांतरण और भारतीय नेताओं एवं फिल्मों का प्रभाव शामिल है।
    • वर्ष 1975 से प्रभावी सांस्कृतिक आदान-प्रदान कार्यक्रम द्विपक्षीय सहयोग के लिए एक रूपरेखा प्रदान करता है।
    • गृहयुद्ध के कारण सीरिया में भारतीय प्रवासियों की संख्या में उल्लेखनीय कमी आई है, जहाँ लगभग 92 भारतीय रहते हैं, जिनमें से अधिकांश कुशल श्रमिक और संयुक्त राष्ट्र के कर्मचारी हैं।

सीरिया में असद शासन के पतन का भारत पर प्रमुख प्रभाव

  • उग्रवाद और आतंकवाद का उदय: असद शासन के पतन से राजनीतिक शून्यता उत्पन्न हो गई है, जिसका लाभ हयात तहरीर अल-शाम (HTS) जैसे उग्रवादी समूहों एवं ISIS के बचे हुए लोगों द्वारा उठाया जा सकता है।
    • कट्टरपंथी विचारधाराओं के इस पुनरुत्थान से भर्ती और कट्टरपंथीकरण के प्रयासों में वृद्धि हो सकती है, जिसमें भारतीय मुस्लिम युवाओं को निशाना बनाना भी शामिल है।
  • ऊर्जा और प्रवासी सुरक्षा के लिए खतरा: पश्चिम एशिया भारत के ऊर्जा आयात के लिए महत्त्वपूर्ण है और लाखों भारतीय प्रवासियों का गंतव्य स्थान है।
    • सीरिया में अस्थिरता क्षेत्रीय सुरक्षा को खतरे में डाल सकती है, जिससे ऊर्जा आपूर्ति शृंखला और भारतीय प्रवासियों की सुरक्षा प्रभावित हो सकती है।
  • पश्चिम एशिया में भू-राजनीतिक संकट: असद शासन के पतन से ईरान के नेतृत्व वाला ‘शिया क्रिसेंट’ कमजोर हो गया है, जिससे क्षेत्र में शक्ति संतुलन बिगड़ गया है।
    • इससे तुर्किए और पाकिस्तान जैसी प्रतिद्वंद्वी शक्तियों की गतिविधियाँ बढ़ सकती हैं, जिससे पश्चिम एशिया में भारत के हितों को नुकसान पहुँच सकता है।
  • आतंकवाद विरोधी प्रयासों के लिए चुनौतियाँ: सीरिया गैर-राज्य अभिकर्त्ता (Non-state Actors) और अंतरराष्ट्रीय आपराधिक नेटवर्कों के लिए एक आश्रय स्थल बन रहा है, जिससे भारत के लिए जोखिम बढ़ गया है।
    • ये तत्त्व भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा को कमजोर करने के लिए पाकिस्तानी खुफिया एजेंसियों सहित विरोधियों के साथ सहयोग कर सकते हैं।
  • रणनीतिक परियोजनाओं में व्यवधान: सीरिया में अस्थिरता भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारे (IMEEC) जैसी पहलों में भारत की भागीदारी को खतरे में डालती है।
  • सीमित कूटनीतिक विकल्प: सीरिया के नेतृत्व वाले राजनीतिक समाधान के लिए भारत के पारंपरिक समर्थन को चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।

असद के पतन के क्षेत्रीय प्रभाव

  • ‘शिया क्रिसेंट’ का विखंडन: असद शासन के पतन से ईरान के नेतृत्व वाले ‘शिया क्रिसेंट’ में व्यवधान उत्पन्न हुआ, जो लेबनान, सीरिया और इराक तक फैला हुआ है।
    • इससे क्षेत्र में ईरान का प्रभाव कम हो रहा है, हिजबुल्लाह जैसे छद्म समूहों को समर्थन देने की उसकी क्षमता कम हो रही है तथा हथियारों एवं संसाधनों की आपूर्ति के लिए उसके मार्ग पर खतरा उत्पन्न हो रहा है।
  • चरमपंथी समूहों का मजबूत होना: हयात तहरीर अल-शाम (HTS) जैसे चरमपंथी समूह और ISIS से अलग हुए छोटे समूह राजनीतिक शून्यता का लाभ उठा सकते हैं, जिससे राजनीतिक अस्थिरता बढ़ सकती है।
    • कट्टरपंथी इस्लामी शासन या उग्रवादी गढ़ों का उदय पड़ोसी देशों तक फैल सकता है।
  • तुर्किए के प्रभाव में वृद्धि: तुर्किए, जिसने सीरियाई विपक्षी ताकतों का समर्थन किया है, उत्तरी सीरिया में अधिक नियंत्रण स्थापित कर सकता है।
    • इसमें कुर्द समूहों के विरुद्ध अपनी लड़ाई को मजबूत करना और तेल समृद्ध क्षेत्रों पर अपना प्रभाव बनाए रखना शामिल है। हालाँकि, इसे प्रतिस्पर्द्धी गुटों और क्षेत्रीय प्रतिद्वंद्वियों से भी चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।
  • इजरायली सुरक्षा दुविधा: असद शासन के पतन से इजरायल के निकट ईरान की पकड़ कमजोर हुई है, वहीं इससे नए खतरे भी सामने आए हैं।
    • इजरायल की सीमाओं के निकट आतंकी ताकतों के बढ़ने से सुरक्षा चुनौतियाँ बढ़ सकती हैं, जिससे तेल अवीव को क्षेत्र में अपने सैन्य अभियान बढ़ाने के लिए बाध्य होना पड़ सकता है।
  • लेबनान पर प्रभाव: सीरियाई सैन्य सहायता के नुकसान के कारण ईरान के एक प्रमुख प्रतिनिधि हिजबुल्लाह के कमजोर होने से लेबनान में अस्थिरता आ सकती है।
    • इससे मौजूदा राजनीतिक एवं आर्थिक संकट और बढ़ सकता है, जिससे क्षेत्रीय स्तर पर भी इसका असर पड़ सकता है।
  • सऊदी अरब और GCC के लिए जटिलताएँ: सऊदी अरब और खाड़ी सहयोग परिषद (GCC) के देश ईरानी प्रभाव को कम करने के अवसर देख सकते हैं, लेकिन कट्टरपंथी समूहों को सशक्त बनाने से भी सावधान रहेंगे।
    • क्षेत्रीय स्थिरता का प्रबंधन करते हुए इन गतिशीलताओं में संतुलन बनाए रखना चुनौतीपूर्ण होगा।
  • बाहरी शक्तियों के बीच प्रतिद्वंद्विता में वृद्धि: असद शासन के पतन के बाद, रूस, अमेरिका और यूरोपीय शक्तियों जैसे बाहरी हितधारक सीरिया के भविष्य को आकार देने में प्रभाव के लिए प्रतिस्पर्द्धा करेंगे।

भारत के लिए सीरिया का महत्त्व

  • ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संबंध: भारत और सीरिया के बीच प्राचीन ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संबंध हैं, जो सिल्क रोड युग से चले आ रहे हैं। यह साझा विरासत समझ और सहयोग को बढ़ावा देती है।
  • रणनीतिक महत्त्व: सीरिया की रणनीतिक स्थिति भारत को व्यापक मध्य पूर्व, यूरोप और अफ्रीका से जोड़ती है, जो भारत की वैश्विक आकांक्षाओं के अनुरूप है।
    • इसकी स्थिरता और सुरक्षा का क्षेत्रीय शक्ति संतुलन पर प्रभाव पड़ता है, जो अप्रत्यक्ष रूप से मध्य पूर्व में भारत के हितों को प्रभावित करता है।
  • क्षेत्रीय सुरक्षा: भारत की आतंकवाद विरोधी रणनीतियों और पश्चिम एशिया में क्षेत्रीय स्थिरता प्रयासों के लिए सीरिया महत्त्वपूर्ण है।
  • प्रतिसंतुलन प्रभाव: कश्मीर जैसे मुद्दों पर भारत के लिए सीरिया का समर्थन इस्लामी दुनिया में पाकिस्तान के प्रभाव को संतुलित करने में सहायता करता है।
  • आर्थिक अवसर: यद्यपि जारी संघर्ष के कारण सीमित संभावनाएँ हैं, फिर भी स्थिरता लौटने पर सीरिया में आर्थिक अवसर मौजूद हैं, विशेष रूप से पुनर्निर्माण एवं विकास परियोजनाओं में।
  • ऊर्जा सुरक्षा: एक प्रमुख ऊर्जा आपूर्तिकर्ता नहीं होने के बावजूद, सीरिया का स्थान संभावित रूप से भारत के ऊर्जा स्रोतों में विविधता लाने और पारंपरिक आपूर्तिकर्ताओं पर निर्भरता कम करने में भूमिका निभा सकता है।
  • वैश्विक मंच भागीदारी: भारत और सीरिया दोनों गुटनिरपेक्ष आंदोलन (NAM) के सदस्य हैं। इस मंच के भीतर सहयोग वैश्विक मुद्दों पर संयुक्त प्रयासों और आपसी समर्थन के लिए एक मंच की अनुमति देता है।

आगे की राह

  • कूटनीतिक जुड़ाव को मजबूत करना: भारत को सीरिया में अपने हितों की रक्षा के लिए नए सीरियाई नेतृत्व और अन्य क्षेत्रीय शक्तियों के साथ जुड़ना चाहिए।
  • मानवीय सहायता का विस्तार करना: सीरियाई लोगों की सहायता के लिए मानवीय सहायता एवं क्षमता निर्माण कार्यक्रम संचालित करना जारी रखना।
  • सुरक्षा और आतंकवादरोधी निगरानी करना: सीरिया में आतंकवाद के खतरों को संबोधित करने और उनका मुकाबला करने तथा भारत में उनके प्रभाव को रोकने के लिए क्षेत्रीय और वैश्विक भागीदारों के साथ सहयोग बढ़ाना।
  • आर्थिक कूटनीति का लाभ उठाना: सीरिया में पुनर्निर्माण प्रक्रिया को प्रभावित करने और द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करने के लिए ऋण जैसे आर्थिक साधनों का उपयोग करना।
  • एक संतुलित विदेश नीति बनाए रखना: क्षेत्र में बदलती शक्ति गतिशीलता के बीच भारत के हितों की रक्षा के लिए सभी प्रासंगिक क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय हितधारकों के साथ जुड़ना।

निष्कर्ष 

सीरिया में बशर अल-असद की सरकार का पतन इस क्षेत्र में एक महत्त्वपूर्ण भू-राजनीतिक बदलाव को दर्शाता है, जिससे भारत के लिए अस्थिरता एवं संभावित सुरक्षा चुनौतियाँ बढ़ रही हैं। पश्चिम एशिया में विकसित हो रही शक्ति गतिशीलता के बीच अपने हितों की रक्षा के लिए भारत से एक सूक्ष्म और सक्रिय विदेश नीति संबंधी दृष्टिकोण की आवश्यकता है।

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