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ऊर्जा संप्रभुता

Lokesh Pal September 01, 2025 02:42 12 0

संदर्भ

जून 2025 में, इजरायल-ईरान के मध्य बढ़ते तनाव से संघर्ष की संभावना बढ़ गई, जिससे महत्त्वपूर्ण तेल आयात को खतरा उत्पन्न हो गया और ब्रेंट क्रूड की कीमतों में तेजी आई, जिससे वैश्विक ऊर्जा सुरक्षा की अत्यधिक संवेदनशीलता और सुभेद्यता रेखांकित हुई है।

ऊर्जा संप्रभुता (Energy Sovereignty) के बारे में

  • ऊर्जा संप्रभुता से तात्पर्य किसी राष्ट्र की अपनी ऊर्जा संसाधनों, आपूर्ति शृंखलाओं और बुनियादी ढाँचे को सुरक्षित रखने, प्रबंधित करने और नियंत्रित करने की क्षमता से है, ताकि वह बाह्य आघात, दबाव या निर्भरता से मुक्त रह सके।

वैश्विक घटनाएँ, जिन्होंने ऊर्जा संबंधी विचार को पुनः परिभाषित किया

  • वर्ष 1973 में तेल प्रतिबंध: अरब तेल उत्पादकों ने पश्चिम को आपूर्ति में कटौती की, जिससे कीमतें चार गुनी हो गईं और रणनीतिक पेट्रोलियम भंडार और विविधीकरण नीतियों को बढ़ावा मिला।
  • वर्ष 2011 की फुकुशिमा आपदा: जापान के परमाणु संकट ने परमाणु ऊर्जा में वैश्विक विश्वास को कम कर दिया, जिससे देश कोयले और गैस जैसे पारंपरिक ऊर्जा स्रोत पर पुनः निर्भर हो गए।
  • वर्ष 2021 का टेक्सॉस फ्रीज: चरम मौसमी घटनाओं के कारण पाइपलाइन और पवन टर्बाइन हिमाच्छादित हो गए, जिससे लचीले और विविध ऊर्जा बुनियादी ढाँचे की आवश्यकता सामने आई।
  • वर्ष 2022 का रूस-यूक्रेन संघर्ष: यूक्रेन, जो अपनी 40% गैस आपूर्ति के लिए रूस पर निर्भर था, जब रूस ने ऊर्जा का शस्त्रीकरण किया तो उसे ऊर्जा की अत्यधिक कमी का सामना करना पड़ा।
  • वर्ष 2025 का इबेरियन ब्लैकआउट: पर्याप्त बैकअप के बिना नवीकरणीय ऊर्जा पर अत्यधिक निर्भरता के कारण स्पेन और पुर्तगाल की विद्युत ग्रिड प्रणाली ध्वस्त हो गई।

भारत का वर्तमान ऊर्जा परिदृश्य और चुनौतियाँ

  • आयात पर निर्भरता: वित्त वर्ष 2023-24 में, भारत का व्यापारिक आयात 677 अरब अमेरिकी डॉलर रहा, जिसमें अकेले तेल और गैस का हिस्सा 170 अरब अमेरिकी डॉलर (कुल आयात का लगभग 25%) था।
    • भारत अपने कच्चे तेल का 85% से अधिक और प्राकृतिक गैस का 50% से अधिक आयात करता है।
    • इससे व्यापार घाटा, रुपये पर दबाव और व्यापक आर्थिक कमी उत्पन्न होती है।
  • रूसी तेल कारक: वर्ष 2022 से, रूस भारत का सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता बन गया है और वर्ष  2024-25 में आयात में 35-40% की हिस्सेदारी रखता है, जो पहले केवल 2% थी।
    • यद्यपि रियायती बैरलों ने आयात बिल को कम कर दिया है, फिर भी एक साझेदार पर अत्यधिक निर्भरता जोखिमपूर्ण है।
  • भू-राजनीतिक फ्लैशपॉइंट: मध्य पूर्व में तनाव (जैसे- जून 2025 में इजरायल-ईरान गतिरोध) दर्शाता है कि कैसे 20 मिलियन बैरल/दिन का वैश्विक प्रवाह बाधित हो सकता है, जिससे ब्रेंट क्रूड कुछ ही दिनों में 103 अमेरिकी डॉलर प्रति बैरल से ऊपर पहुँच सकता है।
  • वैश्विक वास्तविकता: पर्यावरण संबंधी समस्याओं के बावजूद, जीवाश्म ईंधन, वैश्विक प्राथमिक ऊर्जा माँग के 80% से अधिक को पूरा करते हैं और 90% परिवहन को ईंधन प्रदान करते हैं। सौर और पवन ऊर्जा अभी भी कुल ऊर्जा मिश्रण का 10% से भी कम हिस्सा हैं।

भारत के लिए ऊर्जा संप्रभुता क्यों महत्त्वपूर्ण है?

  • रणनीतिक स्वायत्तता: स्रोतों में विविधता लाने से ऊर्जा के शस्त्रीकरण की संभावना कम हो जाती है।
  • आर्थिक लचीलापन: विदेशी मुद्रा के बहिर्वाह में कमी आती है और रुपये में स्थिरता आती है।
  • जलवायु प्रतिबद्धताएँ: आर्थिक विकास सुनिश्चित करते हुए वर्ष 2070 तक भारत के नेट जीरो कार्बन उत्सर्जन के लक्ष्य के अनुरूप है।
  • भू-राजनीतिक स्थिति: अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन, ब्रिक्स और G20 जैसे मंचों पर स्वच्छ ऊर्जा के क्षेत्र में अग्रणी के रूप में भारत की स्थिति में सुधार होता है।

भारत की ऊर्जा संप्रभुता सिद्धांत के पाँच स्तंभ

  • कोयला गैसीकरण और स्वदेशी क्षमता: भारत में 150 अरब टन कोयला भंडार है, जो अधिक राख के कारण लंबे समय से उपेक्षित था।
    • गैसीकरण और कार्बन कैप्चर की नई तकनीकें कोयले को सिंथेटिक गैस, हाइड्रोजन और उर्वरकों में परिवर्तित कर सकती हैं।
    • घरेलू संसाधनों का उपयोग कच्चे तेल के आयात के दबाव को कम करता है।
  • जैव ईंधन
    • ग्रामीण सशक्तीकरण और सुरक्षा: एथेनॉल मिश्रण कार्यक्रम ने पहले ही किसानों को ₹92,000 करोड़ हस्तांतरित कर दिए हैं और आयात बिल कम कर दिए हैं।
    • E20 लक्ष्य ग्रामीण आय और विदेशी मुद्रा बचत को और बढ़ावा देगा।
    • SATAT योजना संपीडित बायोगैस (CBG) को बढ़ावा देती है, जिससे स्वच्छ ईंधन और जैव-खाद प्राप्त होती है, जो उत्तर भारत में क्षरित मृदा को पुनर्स्थापित करता है।
  • परमाणु ऊर्जा – शून्य-कार्बन बेसलोड: भारत की परमाणु क्षमता 8.8 गीगावाट पर स्थिर बनी हुई है।
    • थोरियम संबंधी रोडमैप, यूरेनियम साझेदारी और छोटे मॉड्यूलर रिएक्टरों का विस्तार, नवीकरणीय ऊर्जा के साथ-साथ ग्रिड स्थिरता के लिए महत्त्वपूर्ण है।
  • हरित हाइड्रोजन: वर्ष 2030 तक वार्षिक रूप से 5 मिलियन मीट्रिक टन के लक्ष्य के लिए घरेलू इलेक्ट्रोलाइजर निर्माण और भंडारण क्षमता की आवश्यकता है।
    • संप्रभु हाइड्रोजन रणनीति यह सुनिश्चित करती है कि भारत भविष्य के ईंधन की मूल्य शृंखला को नियंत्रित करेगा।
  • पंप्ड हाइड्रो स्टोरेज
    • जड़त्वीय आधार: प्रमाणित, सतत्, तथा नवीकरणीय-भारी ग्रिडों के संतुलन के लिए आवश्यक।
    • भारत की स्थलाकृति बड़े पैमाने पर हाइड्रो स्टोरेज प्रणालियों का समर्थन कर सकती है ताकि सौर और पवन ऊर्जा क्षेत्र में अनुपस्थित ग्रिड स्थिरता प्रदान की जा सके।

भारत की नीतिगत पहल

  • राष्ट्रीय हाइड्रोजन मिशन (National Hydrogen Mission) (वर्ष 2021): हरित हाइड्रोजन उत्पादन, भंडारण और उपयोग पर ध्यान केंद्रित करते हुए एक स्वच्छ हाइड्रोजन अर्थव्यवस्था का निर्माण सुनिश्चित करना।
    • इस्पात, सीमेंट और भारी वाहन परिवहन जैसे जटिल क्षेत्रों को लक्ष्य बनाया गया है, साथ ही भारत को हाइड्रोजन केंद्र के रूप में स्थापित किया गया है।
  • घरेलू सौर कार्यक्रम: पीएम-कुसुम योजना कृषि के लिए सौर पंपों और विकेंद्रीकृत नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा देती है।
    • रूफटॉप सौर कार्यक्रम 40 गीगावाट क्षमता का लक्ष्य रखता है, जिससे शहरी नवीकरणीय ऊर्जा अपनाने को बढ़ावा मिलेगा।
    • ये सभी मिलकर भारत के घरेलू सौर पारिस्थितिकी तंत्र को मजबूत करते हैं और आयात पर निर्भरता कम करते हैं।
  • जैव ईंधन नीतियाँ: एथेनॉल मिश्रण रोडमैप: वर्ष 2025-26 तक 20% एथेनॉल मिश्रण (E20) का लक्ष्य, कच्चे तेल के आयात में कटौती और किसानों की आय में वृद्धि करेगा।
  • सस्टेनेबल अल्टरनेटिव टूवर्ड्स अफोर्डेबल ट्रांसपोर्टेशन (SATAT) योजना: संपीडित बायोगैस (CBG) उत्पादन का विस्तार, ग्रामीण आय और मृदा स्वास्थ्य की प्राप्ति हेतु स्वच्छ ईंधन और जैव-खाद का उत्पादन।
  • ऊर्जा दक्षता मिशन: प्रदर्शन, उपलब्धि और व्यापार (Perform, Achieve, and Trade- PAT) योजना उद्योगों को ऊर्जा दक्षता बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित करती है।
    • ऊर्जा की तीव्रता कम करती है और अधिशेष बचत के व्यापार की अनुमति देती है।
  • तेल आयात में विविधीकरण: पश्चिम एशिया पर निर्भरता लगभग 60% से घटकर 45% से कम (वर्ष 2025 तक)।
    • लचीलेपन के लिए रूस, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका से ऊर्जा स्रोतों का विस्तार।
  • नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा: स्थापित नवीकरणीय क्षमता 180 गीगावाट (वर्ष 2025) को पार कर गई है।
    • वर्ष 2030 तक 500 गीगावाट ऊर्जा उत्पादन का लक्ष्य भारत को वैश्विक ऊर्जा परिवर्तन में एक मजबूत भूमिका निभाने की दिशा में अग्रसर करता है।

भारत द्वारा नेतृत्व/समर्थित वैश्विक पहल

  • अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA): वर्ष 2015 में फ्राँस के साथ सह-स्थापित, वर्तमान में 120 से अधिक देश इसमें शामिल हुए।
    • संपूर्ण विश्व में किफायती, सुलभ और सतत् सौर ऊर्जा को बढ़ावा देता है।
  • आपदा रोधी अवसंरचना गठबंधन (CDRI, 2019): इसका मुख्यालय भारत में है, यह संवेदनशील देशों में जलवायु-रोधी अवसंरचना का निर्माण करता है।
    • अनुकूलन और आपदा तैयारी का समर्थन करता है।
  • मिशन लाइफ (Mission LiFE) (पर्यावरण के लिए जीवनशैली, 2021): COP-26 में प्रारंभ किया गया, सतत् उपभोग और जलवायु-अनुकूल व्यवहार का आग्रह करता है।
    • जलवायु कूटनीति में भारत की ‘सॉफ्ट पॉवर’ को बढ़ाता है।
  • वैश्विक जैव ईंधन गठबंधन (Global Biofuels Alliance) (वर्ष 2023): संयुक्त राज्य अमेरिका, ब्राजील और यूरोपीय संघ सहित 20 से अधिक सदस्यों वाला गठबंधन, जिसका भारत द्वारा नेतृत्व किया जा रहा है।
    • जैव ईंधन अपनाने का विस्तार करता है, गतिशीलता में जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता को कम करता है।
  • महत्त्वपूर्ण खनिज साझेदारियाँ: लीथियम, कोबाल्ट और दुर्लभ मृदा खनिजों को सुरक्षित करने के लिए क्वाड, ऑस्ट्रेलिया और अफ्रीका के साथ साझेदारियाँ।
    • EV, बैटरियों और नवीकरणीय प्रौद्योगिकियों के लिए लचीली आपूर्ति शृंखलाएँ निर्मित करना।
  • अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा मंच (International Energy Forum- IEF): भारत विश्व के सबसे बड़े ऊर्जा संवाद मंच में एक प्रमुख भागीदार है।
    • उत्पादकों और उपभोक्ताओं के बीच सेतु का कार्य करता है, वैश्विक ऊर्जा सुरक्षा संबंधी मुद्दों को आकार देता है।

आगे की राह

  • ऊर्जा क्षेत्र में विविधता लाना: रूसी तेल के अलावा, भारत को लैटिन अमेरिका, अफ्रीका और अमेरिकी LNG आपूर्तिकर्ताओं के साथ संबंधों का विस्तार करना होगा।
  • क्रिटिकल मिनरल में निवेश करना: स्वच्छ तकनीक आपूर्ति शृंखलाओं के लिए ऑस्ट्रेलिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका से लीथियम, कोबाल्ट और दुर्लभ मृदा तत्त्व प्राप्त करना।
  • लचीला बुनियादी ढाँचा: स्मार्ट तकनीकों, माइक्रोग्रिड और साइबर-सुरक्षित प्रणालियों के साथ ग्रिड को मजबूत बनाना।
  • हरित परिवर्तन के लिए वित्तपोषण: हरित बॉण्ड जैसे नवोन्मेषी उपकरण विकसित करना और जलवायु वित्त के लिए जापान-यूरोपीय संघ साझेदारी का लाभ उठाना।
  • समुदाय-केंद्रित मॉडल: विकेंद्रीकृत नवीकरणीय परियोजनाओं और स्थानीय सहकारी समितियों के माध्यम से ऊर्जा लोकतंत्र को प्रोत्साहित करना।

निष्कर्ष

21वीं सदी को तेल नहीं, बल्कि ऊर्जा संप्रभुता आकार देगी। भारत के लिए, पाँच संप्रभु स्तंभों के साथ विविधीकरण का सम्मिश्रण रणनीतिक स्वायत्तता, आर्थिक लचीलापन और जलवायु उत्तरदायित्व सुनिश्चित करता है, जो कमजोर पहलुओं को दीर्घकालिक सामर्थ्य में बदल देता है।

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