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भारत में MSMEs की प्रतिस्पर्द्धात्मकता बढ़ाना

Lokesh Pal May 05, 2025 02:48 8 0

संदर्भ 

हाल ही में नीति आयोग (NITI Aayog) ने प्रतिस्पर्द्धात्मकता संस्थान (Institute for Competitiveness-IFC) के साथ मिलकर ‘भारत में MSMEs प्रतिस्पर्द्धात्मकता बढ़ाना’ शीर्षक से रिपोर्ट जारी की।

सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों (MSMEs) के बारे में

  • सूक्ष्म, लघु और मध्यम आकार के उद्यमों (MSMEs) को सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम विकास (MSMED) अधिनियम, 2006 के तहत परिभाषित किया गया है तथा उन्हें संयंत्र एवं मशीनरी या उपकरण में उनके निवेश व वार्षिक कारोबार के आधार पर वर्गीकृत किया गया है।
  • केंद्रीय बजट 2025 में घोषित संशोधित MSME परिभाषा के अनुसार
    • सूक्ष्म उद्यम: किसी उद्यम को सूक्ष्म उद्यम के रूप में वर्गीकृत किया जाएगा, यदि संयंत्र और मशीनरी या उपकरण में निवेश ₹2.5 करोड़ से अधिक न हो तथा कारोबार ₹10 करोड़ से अधिक न हो।
    • लघु उद्यम: निवेश ₹25 करोड़ से अधिक न हो और कारोबार ₹100 करोड़ से अधिक न हो।
    • मध्यम उद्यम: निवेश ₹125 करोड़ से अधिक न हो और कारोबार ₹500 करोड़ से अधिक न हो।
  • भारत में MSMEs के संचालन का पैमाना: भारत में 63 मिलियन MSMEs संचालित हैं, जिनमें से 99% को सूक्ष्म उद्यमों के रूप में वर्गीकृत किया गया है।

सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम (MSMEs) और सतत् विकास लक्ष्य (SDG)

  • SDG 1: गरीबी उन्मूलन: MSMEs रोजगार के अवसर उत्पन्न करते हैं, विशेष तौर पर ग्रामीण एवं वंचित क्षेत्रों में, जिससे गरीबी कम करने में मदद मिलती है।
  • SDG 8: सभ्य कार्य और आर्थिक विकास: MSMEs उद्यमशीलता को बढ़ावा देने, समावेशी विकास को बढ़ावा देने और स्थायी रोजगार सृजित करने के लिए महत्त्वपूर्ण हैं।
  • SDG 9: उद्योग, नवाचार और बुनियादी ढाँचा: MSMEs नवाचार को बढ़ावा देते हैं और स्थानीय बुनियादी ढाँचे के विकास में योगदान देते हैं, जिससे औद्योगिक क्षमता मजबूत होती है।
  • SDG 12: जिम्मेदार उपभोग और उत्पादन: स्थायी प्रथाओं को अपनाकर, MSMEs अपने पर्यावरणीय प्रभाव को कम कर सकते हैं और संसाधनों के कुशल उपयोग को बढ़ावा दे सकते हैं।
  • SDG 13: जलवायु कार्रवाई: MSMEs हरित प्रौद्योगिकियों को लागू कर सकते हैं, अपशिष्ट को कम कर सकते हैं और जलवायु परिवर्तन को कम करने वाली प्रथाओं को अपना सकते हैं।

भारत के लिए MSME का महत्त्व

  • सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (MSME) भारत की अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं। वे भारत के सकल घरेलू उत्पाद का 30%, विनिर्माण उत्पादन का 45%, निर्यात का 40% हिस्सा हैं और 110 मिलियन से अधिक लोगों को रोजगार देते हैं।
  • भारत की वृद्धि में MSME की वर्तमान हिस्सेदारी
    • वर्ष 2022-23 में भारत के सकल मूल्य वर्द्धित (GVA) में MSME की हिस्सेदारी 30.1% है।
    • वर्ष 2023-24 में भारत के कुल निर्यात में MSME से संबंधित उत्पादों की हिस्सेदारी 45.73% थी।
    • वर्ष 2021-22 में भारत के कुल विनिर्माण उत्पादन में MSME विनिर्माण उत्पादन की हिस्सेदारी 36.2% थी।
  • रोजगार सृजन
    • वर्तमान में, भारत में 5.93 करोड़ से अधिक पंजीकृत MSMEs 25 करोड़ से अधिक लोगों को रोजगार देते हैं।
    • MSMEs भारत के लगभग 40% कार्यबल को रोजगार देते हैं, जो कृषि के बाद दूसरे स्थान पर है।
    • महिलाओं के स्वामित्व वाले उद्यम MSMEs का लगभग 20% हिस्सा हैं, जो लैंगिक समावेशिता को उजागर करता है।
  • क्षेत्रीय वितरण
    • एमएसएमई की मौजूदगी वाले शीर्ष राज्य: उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, महाराष्ट्र।
    • बुनियादी ढाँचे की चुनौतियों के कारण पूर्वोत्तर और पहाड़ी क्षेत्रों में कम पहुँच है।

MSMEs में डिजिटल परिवर्तन

  • परिचय: MSMEs में डिजिटल परिवर्तन से तात्पर्य प्रक्रियाओं, उत्पादों, ग्राहक अनुभवों और व्यवसाय मॉडल में सुधार के लिए स्वचालन, क्लाउड कंप्यूटिंग, डेटा एनालिटिक्स तथा ई-कॉमर्स जैसी डिजिटल प्रौद्योगिकियों को अपनाने से है।
    • उदहारण: नए उत्पाद विकास और डिजाइन के लिए 3D प्रिंटर का उपयोग प्रतिस्पर्द्धाओं एवं सर्वेक्षणों द्वारा ग्राहकों की डिजाइन प्राथमिकताओं का पता लगाया जा सकता है। उत्पाद जीवन चक्र प्रबंधन (Product Lifecycle Management-PLM) कार्यक्रम, कंप्यूटर एडेड डिजाइन (Computer Aided Design-CAD)।
    • माँग पूर्वानुमान के लिए: बिग डेटा और उन्नत डेटा विश्लेषण का उपयोग किया जा सकता है।

भारत में MSMEs के समक्ष चुनौतियाँ

  • औपचारिकीकरण: MSMEs के लिए औपचारिकीकरण एक चुनौती बनी हुई है।
    • भारत में 6.34 करोड़ से अधिक MSMEs होने के बावजूद, उच्च अनुपालन लागत, विनियामक जटिलता और छूट के नुकसान के कारण कई अपंजीकृत बने हुए हैं।
  • ‘मिसिंग मिडिल’ समस्या: ‘मिसिंग मिडिल’ समस्या विशेष रूप से भारत जैसे विकासशील देशों में सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (MSME) क्षेत्र में मध्यम आकार के उद्यमों की कमी को संदर्भित करती है। उद्यम पंजीकरण पोर्टल के अनुसार, नवंबर 2023 तक, पंजीकृत 3,06,24,320 MSMEs में से 3,05,60,814 वर्गीकृत हैं, जिनमें से लगभग 97.92% सूक्ष्म, 1.89% लघु और 0.01% मध्यम उद्यम हैं।

सूक्ष्म एवं लघु उद्यमों के लिए क्रेडिट गारंटी फंड ट्रस्ट (Credit Guarantee Fund Trust for Micro and Small Enterprises-CGTMSE) के बारे में

  • MSME मंत्रालय ने सूक्ष्म एवं लघु उद्यमों (MSEs) को ऋण देने के लिए सदस्य ऋण संस्थानों (MLIs) को जमानत-मुक्त ऋण गारंटी प्रदान करने के लिए यह योजना शुरू की थी।
  • इसका उद्देश्य इस क्षेत्र में ऋण पहुँच को बढ़ाना और वितरण को आसान बनाना है।

  • औपचारिक ऋण तक सीमित पहुँच: वित्त वर्ष 2021 तक MSMEs ऋण की केवल 19% माँग औपचारिक रूप से पूरी की गई, जबकि अनुमानित ₹80 लाख करोड़ की माँग पूरी नहीं हुई।
    • माइक्रो और लघु उद्यमों के लिए क्रेडिट गारंटी फंड ट्रस्ट (CGTMSE) का विस्तार हुआ है, लेकिन अभी भी MSMEs को प्रभावी ढंग से समर्थन देने में सीमाओं का सामना करना पड़ रहा है।
  • कौशल अंतर: कार्यबल के एक महत्त्वपूर्ण हिस्से के लिए औपचारिक व्यावसायिक या तकनीकी प्रशिक्षण की कमी MSMEs के लिए एक महत्त्वपूर्ण बाधा है, जो नवाचार करने, उत्पादन मानकों को बढ़ाने और अपने संचालन को बढ़ाने की उनकी क्षमता में बाधा डालती है।
    • ग्लोबल इनोवेशन इंडेक्स (WIPO, 2023) वर्ष 2022 में ज्ञान-गहन भर्ती में 3.9 प्रतिशत अंकों की गिरावट को दर्शाता है, जो कौशल अंतर को दर्शाता है।
  • नवाचार और अनुसंधान एवं विकास में निवेश की कमी: कई MSMEs अनुसंधान और विकास, गुणवत्ता सुधार या नवाचार में पर्याप्त निवेश नहीं करते हैं, जिससे वे राष्ट्रीय और वैश्विक दोनों बाजारों में कम प्रतिस्पर्द्धी बन जाते हैं।
    • वर्ष 2023 ग्लोबल इनोवेशन इंडेक्स (WIPO) में 132 अर्थव्यवस्थाओं में भारत 40वें स्थान पर है।
  • उत्पाद विविधीकरण: उत्पाद विविधीकरण की कमी MSMEs विकास के लिए एक प्रमुख बाधा है क्योंकि कई फर्मों में बाजार के रुझान, तकनीकी विशेषज्ञता के बारे में जागरूकता की कमी है और उन्हें उच्च निवेश लागत का सामना करना पड़ता है।
  • कर अनुपालन: एक उद्यम सर्वेक्षण अध्ययन (विश्व बैंक, 2022) के अनुसार, कर दरें और अनुपालन लघु, मध्यम और बड़े उद्यमों के लिए शीर्ष तीन व्यावसायिक वातावरण बाधाओं में से एक थे।
  • बुनियादी ढाँचा: यह MSMEs द्वारा सामना की जाने वाली प्रमुख गैर-वित्तीय बाधाओं में से एक है।
    • MSMEs को पर्याप्त परिवहन सुविधाओं की कमी, परिवहन की उच्च लागत, विश्वसनीय बिजली आपूर्ति तक कम/कोई पहुँच नहीं, उचित भंडारण सुविधाओं की कमी, अपर्याप्त विपणन सुविधाओं, धन की कमी आदि के कारण बाधाओं का सामना करना पड़ता है।

क्लस्टरों (Clusters) के बारे में

  • सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय (MSME) क्लस्टर को उद्यमों के एक समूह के रूप में परिभाषित करता है, जो या तो एक समीपवर्ती क्षेत्र में स्थित होते हैं या भौगोलिक क्षेत्र से परे एक मूल्य शृंखला का निर्माण करते हैं, जो समान या पूरक उत्पाद/सेवाएँ बनाते हैं।
    • ये उद्यम साझा चुनौतियों का समाधान करने के लिए साझा बुनियादी ढाँचे के माध्यम से जुड़े हुए हैं।
  • भारत की क्लस्टर नीति: मंत्रालय ने MSMEs के विकास के लिए एक प्रमुख रणनीति के रूप में क्लस्टर विकास दृष्टिकोण को अपनाया है।
  • क्लस्टर दृष्टिकोण पर आधारित: भारत की क्लस्टर नीति, जो वर्ष 1987 में शुरू हुई, सामूहिक दक्षता और लचीली विशेषज्ञता के विचार पर आधारित है।
    • हालाँकि, यह दृष्टिकोण संयुक्त राज्य अमेरिका और यूरोपीय संघ से अलग है, जो नीतिगत निर्णयों को सूचित करने और सीमा पार सहयोग को बढ़ावा देने के लिए एक परिष्कृत उपकरण के रूप में क्लस्टर मैपिंग का उपयोग करते हैं।
  • भारत में क्लस्टर के उदाहरण
    • तिरुपुर (तमिलनाडु): निटवियर और हौजरी उद्योग के लिए जाना जाता है।
    • सूरत (गुजरात): अहीरे की पॉलिशिंग और कपड़ा उद्योग के लिए प्रसिद्ध है।
    • भिवंडी (महाराष्ट्र): देश में विद्युत करघे के लिए एक प्रमुख केंद्र है।
    • मुरादाबाद (उत्तर प्रदेश): पीतल के बर्तन और धातु हस्तशिल्प के लिए प्रसिद्ध है।
  • नीति आयोग द्वारा क्लस्टर-विशिष्ट अनुशंसाएँ
    • कपड़ा विनिर्माण और परिधान: अपस्ट्रीम गतिविधियों जैसे परिधान डिजाइन और विशेष कपड़ा उत्पादन पर ध्यान केंद्रित करना।
    • डिजाइन स्कूलों के साथ सहयोग करना, उपकरणों का आधुनिकीकरण करना और डिजिटल आपूर्ति शृंखलाओं को बढ़ाना।
    • मुख्य क्षेत्र: सूरत, लुधियाना, तिरुपुर दक्षता बढ़ा सकते हैं, पैमाने की अर्थव्यवस्थाओं को बढ़ावा दे सकते हैं।
    • खाद्य प्रसंस्करण: किसानों को प्रसंस्करणकर्ताओं से जोड़कर क्षेत्रीय विखंडन को संबोधित करना।
      • सेंसर-आधारित ट्रैकिंग, कार्गो बीमा और राज्य-स्तरीय ब्रांडिंग को लागू करना।
      • पूर्वोत्तर और पूर्व में खाद्य प्रसंस्करण क्लस्टरों को मजबूत करना।
    • रासायनिक क्लस्टर: कुशल श्रम की कमी और जटिल विनियमों से निपटना।
    • ऑटोमोटिव क्लस्टर: प्रोत्साहन के साथ अनुसंधान और विकास (R&D) में निवेश को बढ़ावा देना।
      • बाजार संबंधों और सहकारी ढाँचे के माध्यम से MSME सौदेबाजी की शक्ति को मजबूत करना।
      • गुड़गाँव, रेवाड़ी और पुणे जैसे क्षेत्रों में नवाचार पर ध्यान देना।

भारत में MSME विकास के लिए सरकारी पहल

  • उद्यम पोर्टल: उद्यम पंजीकरण पोर्टल (URP) ऑनलाइन MSME पंजीकरण की सुविधा प्रदान करता है और 40 अद्वितीय पंजीकरण संख्या (URN) एवं उद्यम सहायता प्रमाणपत्र (UAC) प्रदान करता है।
    • प्राथमिक क्षेत्र ऋण तक पहुँचने के लिए MSME के लिए URN महत्त्वपूर्ण है।
    • सरलीकृत MSME पंजीकरण से 10 मिलियन से अधिक उद्यमों को लाभ हुआ।
  • सूक्ष्म उद्यमों के लिए नई अनुकूलित क्रेडिट कार्ड योजना: अनुकूलित क्रेडिट कार्ड योजना उद्यम पोर्टल पर पंजीकृत सूक्ष्म उद्यमों को ₹5 लाख का ऋण प्रदान करेगी।
    • पहले वर्ष में 10 लाख कार्ड जारी किए जाने के साथ, इस योजना का उद्देश्य सूक्ष्म उद्यमों के लिए वित्त तक पहुँच में सुधार करना, विकास को बढ़ावा देना और परिचालन दक्षता बढ़ाना है।
  • GST सहाय (GST SAHAY): यह एक डिजिटल ऋण प्रदानकर्ता प्लेटफॉर्म है, जिसका उद्देश्य MSMEs को ऋण तक आसान और त्वरित पहुँच प्रदान करना है। यह MSMEs द्वारा उत्पन्न GST चालान का उपयोग उनकी ऋण योग्यता का आकलन करने के लिए संपार्श्विक के रूप में करता है।
    • प्रौद्योगिकी का उपयोग और जीएसटीएन (वस्तु एवं सेवा कर नेटवर्क) के साथ एकीकरण से ऋण प्रसंस्करण और संवितरण में तेजी आती है।
  • उद्यम सहायता पोर्टल (UAP): इस पोर्टल का उद्देश्य अनौपचारिक सूक्ष्म उद्यमों (IMEs) को शामिल करना है, ताकि उन्हें प्राथमिकता क्षेत्र ऋण के लाभों तक पहुँच मिल सके।
  • ‘जीरो डिफेक्ट जीरो इफेक्ट’ (ZED) प्रमाणन: इस प्रमाणन का उद्देश्य MSMEs को न्यूनतम पर्यावरणीय प्रभाव (उत्पादों में जीरो डिफेक्ट, पर्यावरण पर जीरो इफेक्ट) के साथ गुणवत्तापूर्ण विनिर्माण अपनाने के लिए प्रोत्साहित करना है।
    • ZED प्रमाणन के तीन स्तर हैं:
      • कांस्य: बुनियादी गुणवत्ता और पर्यावरण मानकों को पूरा करने के लिए 50% सब्सिडी (₹50,000 तक)।
      • रजत: उन्नत प्रक्रिया सुधारों के लिए 60% सब्सिडी (₹3 लाख तक)।
      • स्वर्ण: विश्व स्तरीय मानकों और स्थिरता को प्राप्त करने के लिए 70% सब्सिडी (₹5 लाख तक)।

आगे की राह

  • बेहतर ऋण पहुँच के लिए CGTMSE को मजबूत बनाना: नियामक निगरानी बढ़ाने और जोखिम प्रीमियम को कम करने के लिए सूक्ष्म तथा लघु उद्यमों के लिए ऋण गारंटी निधि ट्रस्ट (Credit Guarantee Fund Trust for Micro and Small Enterprises-CGTMSE) में सुधार की आवश्यकता है, जिससे MSMEs के लिए वित्तपोषण अधिक सुलभ हो सके।
  • गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी (NBFC) संचालन को बढ़ाना: NBFC का वित्तपोषण बढ़ाने और उनके प्रशासन में सुधार करने से MSME क्षेत्र के बड़े हिस्से की सेवा करने की उनकी क्षमता का विस्तार होगा।
  • सब्सिडी योजनाओं के लिए पात्रता को आसान बनाना: राज्य स्तरीय सब्सिडी योजनाओं के लिए पात्रता बाधाओं को कम करने से MSME को अपने पूरे जीवन चक्र में आवश्यक वित्तीय सहायता प्राप्त करने में मदद मिलेगी, जिससे यह सुनिश्चित होगा कि उनके पास विस्तार और नवाचार के लिए संसाधन हैं।
  • उद्योग-विशिष्ट, अद्यतन प्रशिक्षण कार्यक्रम: कौशल अंतराल को पाटने के लिए, प्रशिक्षण कार्यक्रमों को वर्तमान उद्योग की आवश्यकताओं के साथ संरेखित किया जाना चाहिए, जिसमें व्यावहारिक कौशल और अंतिम-मील कनेक्टिविटी पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए।
    • कौशल जनगणना के लिए आंध्र प्रदेश सरकार द्वारा हाल ही में प्रस्तावित प्रस्ताव का उद्देश्य लक्षित कौशल विकास पहलों के लिए कार्यबल के कौशल समूह को बेहतर ढंग से समझना है।
      • उदाहरण: सरकार और निजी क्षेत्र के बीच भागीदारी को प्रोत्साहित करना ताकि सब्सिडीयुक्त प्रशिक्षण दिया जा सके।
  • MSMEs के लिए डिजिटल अपनाने को प्रोत्साहित करना: सह-कार्यशील स्थान, औद्योगिक पार्क और इनक्यूबेटर स्थापित करने से MSMEs को भारी निवेश के बिना प्रौद्योगिकी तक सस्ती पहुँच मिलेगी।
    • उदाहरण: डिजिटल सक्षम योजना ने 5.6 लाख MSMEs को डिजिटल उपकरणों में प्रशिक्षित किया (2022-24)।
  • निर्यात संवर्द्धन और गुणवत्ता प्रमाणन में निवेश: MSMEs को निर्यात प्रोत्साहन, गुणवत्ता प्रमाणन और बाजार अनुसंधान तक पहुँच प्रदान करने से उत्पाद की गुणवत्ता और प्रतिस्पर्द्धात्मकता में सुधार होगा।
  • पूर्वोत्तर और पूर्वी क्षेत्रों पर ध्यान: डिजिटल विपणन सहायता, लॉजिस्टिक्स भागीदारी और प्रत्यक्ष बाजार लिंकेज प्लेटफॉर्म के माध्यम से पूर्वोत्तर तथा पूर्वी क्षेत्रों में MSMEs विकास को बढ़ाने पर विशेष जोर दिया।

निष्कर्ष 

लक्षित हस्तक्षेपों पर ध्यान केंद्रित करके, मजबूत संस्थागत सहयोग का निर्माण करके और वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता को बढ़ाकर भारत के MSME सतत् आर्थिक विकास के प्रमुख कारक बन सकते हैं।

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