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सरकारी स्कूलों में नामांकन

Lokesh Pal June 02, 2025 03:22 27 0

संदर्भ 

केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय (Ministry of Education-MoE) ने राज्यों से सरकारी स्कूलों में नामांकन में कमी में वृद्धि के लिए ‘उपचारात्मक कदम’ उठाने को कहा है।

  • वर्ष 2025-26 के लिए समग्र शिक्षा योजना के अंतर्गत वार्षिक कार्य योजना और बजट पर विचार करने के लिए प्रत्येक राज्य के साथ परियोजना अनुमोदन बोर्ड (Project Approval Board- PAB) की बैठकों में छात्रों के नामांकन पर चर्चा की गई।

स्कूल नामांकन प्रवृत्ति के बारे में

  • नामांकन: UDISE+ 2023-24 रिपोर्ट के अनुसार,
    • कुल: शैक्षणिक वर्ष 2023-24 में कुल 24.8 करोड़ छात्र नामांकित हुए।
    • सरकारी और सरकारी सहायता प्राप्त स्कूल: कुल स्कूल नामांकन में इनका योगदान 65% से अधिक रहा और इनमें क्रमशः 19.89 मिलियन (13.8%) और 4.95 मिलियन (16.41%) की उल्लेखनीय गिरावट दर्ज की गई।
    • निजी स्कूल: UDISE+ 2023-24 रिपोर्ट से पता चलता है कि निजी स्कूलों में नामांकन 36 प्रतिशत (लगभग 9 करोड़ से थोड़ा अधिक) है और उनके कुल नामांकन में 1.61 मिलियन या 2.03% की वृद्धि हुई है।
  • राज्यवार प्रवृत्ति: 30 राज्यों में से 11 में सरकारी स्कूलों की अधिक संख्या के बावजूद निजी स्कूलों में नामांकन में वृद्धि या उच्चतर वृद्धि देखी गई।
    • ये राज्य हैं, आंध्र प्रदेश, उत्तराखंड, तेलंगाना, तमिलनाडु, केरल, महाराष्ट्र, मिजोरम, नागालैंड, त्रिपुरा, अरुणाचल प्रदेश और मेघालय।
  • केंद्रशासित प्रदेश: अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह, दिल्ली, लद्दाख, पुडुचेरी तथा दादरा और नगर हवेली एवं दमन और दीव में सरकारी स्कूलों की तुलना में निजी स्कूलों में नामांकन अधिक है, जो चिंता का विषय है।
  • कारण
    • डेटा संग्रह अभ्यास: महाराष्ट्र और केरल जैसे राज्यों द्वारा नामांकन में कमी का श्रेय डेटा संग्रह अभ्यास में सुधार को दिया जाता है, जिसमें आधार संख्या को नामांकन के साथ जोड़कर कई नामांकनों को समाप्त किया जाता है।
    • जनसांख्यिकीय परिवर्तन: भारत की स्कूल जाने वाली आबादी (6-17 वर्ष) में पिछले दशक में 17.30 मिलियन (5.78%) की गिरावट देखी गई है।
      • प्राथमिक और माध्यमिक स्तर पर नामांकन से संबंधित जनसंख्या में गिरावट क्रमशः 18.7 मिलियन (9.12%) और 2.17 मिलियन (4.35%) कम हुई है।
    • स्कूलों में गिरावट: देश में स्कूलों की संख्या में भी 79,109 की गिरावट आई है, जो वर्ष 2017-18 में 1.55 मिलियन से घटकर वर्ष 2023-14 में 1.47 मिलियन हो गई है, अर्थात् 5.1% की गिरावट।
    • कोविड-19 महामारी के बाद पलायन: कोविड-19 महामारी के बाद छात्रों की सरकारी स्कूलों से निजी स्कूलों की ओर पलायन की प्रवृत्ति देखी गई है।
  • सरकारी स्कूलों में नामांकन में गिरावट के निहितार्थ
    • सामाजिक असमानता में वृद्धि: नामांकन में कमी से हाशिए पर स्थित समुदायों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, जिससे शैक्षिक अंतराल बढ़ सकता है।
    • उच्च शिक्षा पर प्रभाव: प्राथमिक और माध्यमिक स्तर पर नामांकन में कमी, स्वाभाविक रूप से उच्च शिक्षा को प्रभावित करेगी, क्योंकि कम युवा उच्च शिक्षा प्राप्त करेंगे।
    • शिक्षा तक पहुँच: नामांकन में कमी से वंचित बच्चों के लिए शिक्षा तक पहुँच सीमित हो जाएगी और मौजूदा असमानताएँ बढ़ जाएँगी।
    • जनसांख्यिकीय आपदा: अशिक्षित जनसंख्या भारत के लिए जनसांख्यिकीय आपदा सिद्ध होगी क्योंकि यह प्रौद्योगिकी और नवाचार आधारित विकास को सीमित कर देगी।
  • नामांकन बढ़ाने के लिए सरकारी पहल
    • शिक्षा का अधिकार अधिनियम (RTE) अधिनियम: RTE के तहत 6-14 वर्ष की आयु के बच्चों के लिए निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा अनिवार्य है।
    • लड़कियों की शिक्षा: प्राथमिक स्तर पर लड़कियों की शिक्षा के लिए राष्ट्रीय कार्यक्रम (National Programme for Education of Girls at Elementary Level- NPEGEL) और बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ कार्यक्रम भी नामांकन बढ़ाने में योगदान देते हैं।
    • मध्याह्न भोजन योजना: इसे पोषण की कमी की दोहरी समस्या को दूर करने और छात्रों को स्कूल की ओर आकर्षित करने के लिए शुरू किया गया था।

समग्र शिक्षा योजना

  • अंब्रेला योजना: इसे वर्ष 2018 में सर्व शिक्षा अभियान (Sarva Shiksha Abhiyan- SSA), राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान (Rashtriya Madhyamik Shiksha Abhiyan- RMSA) और शिक्षक शिक्षा (Teacher Education-TE) जैसी पिछली योजनाओं को शामिल करते हुए लॉन्च किया गया था।
  • यह भारत में एक एकीकृत शिक्षा कार्यक्रम है, जो प्री-स्कूल से लेकर कक्षा 12 तक स्कूली शिक्षा के सभी स्तरों को शामिल करता है और राष्ट्रीय शिक्षा नीति (National Education Policy- NEP) 2020 की सिफारिशों के अनुरूप है।
  • उद्देश्य: सभी बच्चों को समावेशी और समान गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करना।
  • वित्त पोषण: इस योजना को केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा 60:40 के अनुपात में वित्तपोषित किया जाता है।

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