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हिमाचल प्रदेश में पर्यावरण विनाश

Lokesh Pal August 05, 2025 02:59 16 0

संदर्भ

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने हिमाचल प्रदेश में पारिस्थितिकी संकट पर गंभीर चिंता व्यक्त की और चेतावनी दी कि अनियंत्रित क्षरण से राज्य को अपूरणीय क्षति हो सकती है।

मामले की पृष्ठभूमि

  • याचिका: एक होटल समूह ने हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय के उस आदेश को चुनौती दी, जिसमें राज्य के नगर एवं ग्राम नियोजन विभाग द्वारा ग्रीन जोन में निर्माण पर प्रतिबंध लगा दिया गया था।
    • ग्रीन जोन’ वह क्षेत्र है, जिसे नगर एवं ग्राम नियोजन (TCP) विभाग द्वारा आधिकारिक रूप से नामित किया जाता है, जहाँ किसी भी प्रकार की नई निर्माण गतिविधि की अनुमति नहीं होती, विशेष रूप से वाणिज्यिक या आवासीय भवनों की।
  • सर्वोच्च न्यायालय का रुख: सर्वोच्च न्यायालय ने उच्च न्यायालय के निर्णय को बरकरार रखते हुए उसमें हस्तक्षेप करने से इनकार किया और इसके बजाय मामले को जनहित याचिका के रूप में स्वीकार करते हुए राज्य सरकार से चार सप्ताह के भीतर जवाब प्रस्तुत करने का निर्देश दिया।

प्रमुख पर्यावरणीय चिंताओं पर प्रकाश डाला गया

  • जलविद्युत परियोजनाएँ: जल की कमी का कारण, भूस्खलन को बढ़ावा देना, न्यूनतम जल प्रवाह बनाए न रखना।
    • सतलुज नदी के एक छोटी नदी में परिवर्तित हो जाने पर भी प्रकाश डाला गया।
  • अनियमित पर्यटन: पर्यटन अवधि में पहाड़ी शहरों को अपशिष्ट निपटान और संसाधनों के अभाव का सामना करना पड़ता हैं।
  • अनियमित विकास: राष्ट्रीय राजमार्ग, सुरंगें, रोपवे और शहरी विस्तार जैसी परियोजनाओं पर पर्यावरणीय सुरक्षा उपायों की अनदेखी करने का आरोप लगाया जाता है।
  • अनियमित निर्माण: पहाड़ी ढलानों को बिना पर्याप्त स्थिरीकरण उपायों के, अवैज्ञानिक तरीके से, तेजी से काटा जा रहा है और प्राकृतिक जलमार्गों को बाधित या मोड़ा जा रहा है।

सतलुज नदी

  • उद्गम: तिब्बत में मानसरोवर के पास राकस झील से, जहाँ इसे लांगचेन खंबाब (Langchen Khambab) कहा जाता है।
  • भारत में प्रवेश: हिमाचल प्रदेश में शिपकी ला दर्रे से भारत में प्रवेश करती है।
  • भारतीय राज्य: हिमाचल प्रदेश और पंजाब से होकर पश्चिम और दक्षिण-पश्चिम में प्रवाहित होती हुई, नागल के पास से गुजरती है।
  • व्यास नदी से संगम: व्यास नदी में मिलती है और दोनों मिलकर भारत-पाकिस्तान सीमा का 105 किलोमीटर लंबा हिस्सा बनाती हैं।
  • चिनाब नदी से संगम: 350 किलोमीटर की दूरी तय करने के बाद चिनाब नदी में मिल जाती है।
  • पंजनद का निर्माण और सिंधु नदी में विलय: सतलुज और चिनाब मिलकर पंजनद का निर्माण करती हैं, जो अंततः सिंधु नदी में मिल जाती है।

संवैधानिक और कानूनी संदर्भ

  • अनुच्छेद-21 – जीवन का अधिकार: सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणी इस विचार को पुष्ट करती है कि स्वच्छ और सुरक्षित पर्यावरण जीवन के अधिकार का अभिन्न अंग है। पर्यावरणीय क्षरण मानव जीवन, स्वास्थ्य और आजीविका के लिए प्रत्यक्ष खतरा है।
  • राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांत: यह टिप्पणी अनुच्छेद-48A के अनुरूप है, जो राज्य को पर्यावरण की रक्षा और सुधार तथा वनों और वन्यजीवों की सुरक्षा का दायित्व सौंपता है।
  • सार्वजनिक न्यास सिद्धांत: पर्यावरण को सभी के लाभ के लिए राज्य द्वारा न्यास में रखा जाता है। न्यायालय ने अप्रत्यक्ष रूप से इस सिद्धांत का हवाला देते हुए सरकार की निष्क्रियता और प्राकृतिक संसाधनों के अत्यधिक दोहन की आलोचना की। इसने राज्य और केंद्र दोनों को बताया कि राजस्व सृजन, पारिस्थितिकी उत्तरदायित्व से ऊपर नहीं हो सकता।

आगे की राह और नीतिगत निहितार्थ

  • विकास प्राथमिकताओं पर पुनर्विचार: राजस्व-आधारित मॉडल से पारिस्थितिकी रूप से संवेदनशील मॉडल की ओर बदलाव, जिसमें परियोजना अनुमोदन केवल आर्थिक लाभ पर नहीं, बल्कि पर्यावरणीय स्थिरता पर आधारित हों।
    • हिमालयी राज्यों को जलवायु-सचेत विकास योजनाएँ विकसित करने के लिए संसाधनों और विशेषज्ञता को एकत्रित करना चाहिए।
  • पर्यावरण प्रभाव आकलन (EIA) तंत्र को मजबूत बनाना: भू-वैज्ञानिकों, पर्यावरण विशेषज्ञों और स्थानीय समुदायों को शामिल करके पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (EIA) को और अधिक कठोर, पारदर्शी और समावेशी बनाना।
  • सतत् पर्यटन को बढ़ावा देना: पर्यटकों के आगमन को नियंत्रित करना, पर्यावरण-अनुकूल प्रथाओं को प्रोत्साहित करना और अपशिष्ट प्रबंधन एवं स्वच्छता संबंधी बुनियादी ढाँचे में निवेश करना।
  • अंतर-राज्यीय समन्वय बढ़ाना: सभी हिमालयी राज्यों में सतत् विकास, आपदा तैयारी और संसाधन संरक्षण के लिए एक एकीकृत हिमालयी नीति लागू करना।
  • न्यायिक निगरानी: इस मुद्दे को जनहित याचिका (PIL) के रूप में देखने का सर्वोच्च न्यायालय का कदम निरंतर निगरानी की उसकी मंशा को दर्शाता है और इससे भविष्य में सरकारों के लिए बाध्यकारी दिशा-निर्देश निर्धारित किए जा सकते हैं।

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