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गरीबी रेखा का अनुमान

Lokesh Pal October 03, 2025 03:30 38 0

संदर्भ

RBI डेवलपमेंट रिसर्च ग्रुप ने हाल ही में 20 प्रमुख राज्यों के लिए वर्ष 2022-23 के घरेलू उपभोग व्यय सर्वेक्षण (Household Consumption Expenditure Survey [HCES]) के आँकड़ों के आधार पर, रंगराजन समिति द्वारा निर्धारित गरीबी रेखा को अद्यतित किया है।

  • इसके अनुसार, पिछले एक दशक में गरीबी कम करने के मामले में ओडिशा और बिहार राज्य ने सबसे अधिक सुधार किया है।

गरीबी रेखा क्या है?

  • गरीबी रेखा एक ऐसा मापदंड है, जिसका प्रयोग यह तय करने के लिए किया जाता है कि किसी व्यक्ति को भोजन, कपड़े, आवास, स्वास्थ्य और शिक्षा जैसी बुनियादी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए कितनी न्यूनतम आय या व्यय की आवश्यकता होती है।
    • इस मापदंड से नीचे रहने वाले व्यक्तियों को ‘गरीब’ माना जाता है।

गरीबी रेखा के प्रकार

  • पूर्ण गरीबी रेखा: आवश्यक वस्तुओं और सेवाओं की एक निश्चित सूची की लागत के आधार पर।
  • सापेक्ष गरीबी रेखा: यह समाज की औसत आय या खपत के आधार पर गरीबी को परिभाषित करती है।
    • एक संदर्भ में पर्याप्त मानी जाने वाली आय का स्तर (उदाहरण के लिए, वर्ष 1975 में भारत में प्रति माह 1,000 रुपये) वर्तमान अर्थव्यवस्था या किसी दूसरे देश में कोई अर्थ नहीं रहता।

भारत में गरीबी रेखा का अनुमान

  • अलघ समिति (वर्ष 1979): पोषण संबंधी आवश्यकताओं  के आधार पर गरीबी रेखा का निर्धारण किया (ग्रामीण क्षेत्र के लिए 2400 किलोकैलोरी/दिन, शहरी क्षेत्र के लिए 2100 किलोकैलोरी/दिन)।
  • लकड़वाला समिति (वर्ष 1993): ग्रामीण क्षेत्र के लिए कृषि श्रमिकों के लिए उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI-AL) और शहरी क्षेत्रों में औद्योगिक श्रमिकों के लिए उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI-IW) का उपयोग करके गरीबी रेखा को अद्यतित करने की सिफारिश की।
  • तेंदुलकर समिति (वर्ष 2009)
    • कैलोरी आधारित प्रणाली को बदलकर गरीबी रेखा ‘बास्केट’ (खाद्य, स्वास्थ्य, शिक्षा और आवश्यक वस्तुएँ) की सिफारिश की।
    • ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के लिए एक समान गरीबी रेखा ‘बास्केट’ की सिफारिश की।
    • वर्ष 2011-12 के लिए अनुमानित गरीबी रेखा
      • ग्रामीण: ₹816/माह (~₹27.2/दिन)
      • शहरी: ₹1,000/माह (~₹33.3/दिन)
    • गरीबी दर: कुल 21.9% (ग्रामीण क्षेत्र में 25.7%, शहरी क्षेत्र में 13.7%), लगभग 26.93 करोड़ व्यक्ति।
  • रंगराजन समिति (वर्ष 2014): संशोधित उपभोग बास्केट के साथ गरीबी रेखा मापन के  मानदंडों में सुधार का प्रस्ताव दिया, परंतु इसे आधिकारिक तौर पर नहीं अपनाया गया।
  • नीति आयोग का बहुआयामी गरीबी सूचकांक (MPI): स्वास्थ्य, शिक्षा, जीवन स्तर (12 संकेतक) के आधार पर गरीबी का मापन करता है।

रंगराजन गरीबी रेखा (Rangarajan Poverty Line)

  • स्थापना: गरीबी मापने की पद्धति की समीक्षा के लिए वर्ष 2012 में योजना आयोग द्वारा सी. रंगराजन की अध्यक्षता में स्थापित।
  • रिपोर्ट (वर्ष 2014): ग्रामीण क्षेत्रों के लिए प्रति व्यक्ति मासिक व्यय ₹972 और शहरी क्षेत्रों के लिए ₹1,407 अनुमानित।
  • विवाद: पिछली तेंदुलकर समिति की तुलना में इसने गरीबी का अधिक अनुमान लगाया।

अपडेट करने की विधि

  • CPI संशोधन से बचाव: CPI का प्रयोग इसलिए नहीं किया गया क्योंकि उसका व्यय बास्केट, रंगराजन समिति द्वारा निर्धारित गरीबी रेखा ‘बास्केट’ (PLB) से पृथक है।
  • नया इंडेक्स बनाना: RBI के शोधकर्ताओं ने गरीबी रेखा ‘बास्केट’ (PLB) के समान अधिभार (ग्रामीण क्षेत्रों के लिए 57% खाद्य पदार्थ और शहरी क्षेत्रों के लिए 47%) का प्रयोग करके एक नया मूल्य सूचकांक निर्धारित किया।
  • इसका प्रयोग कैसे किया गया: इस नए सूचकांक से गणना की गई महँगाई दर का प्रयोग वर्ष 2012 की राज्य-वार गरीबी रेखा को अपडेट करने के लिए किया गया, जिसकी तुलना बाद में HCES वर्ष 2022-23 के घरेलू व्यय डेटा से तुलना की गई।
  • मुख्य सीमा: चूँकि समय के साथ खपत के पैटर्न बदल गए हैं, इसलिए पॉवर्टी लाइन बास्केट (PLB) को भी संशोधित करने की आवश्यकता हो सकती है, ठीक वैसे ही जैसे CPI बास्केट को समय-समय पर अपडेट किया जाता है।

अपडेटेड अध्ययन के मुख्य बिंदु

  • ओडिशा: ग्रामीण गरीबी 47.8% (वर्ष 2011-12) से घटकर 8.6% (वर्ष 2022-23) हो गई, जो भारत में सबसे बड़ी गिरावट है।
  • बिहार: शहरी गरीबी 50.8% (वर्ष 2011-12) से घटकर 9.1% (वर्ष 2022-23) हो गई, जो बिहार के उल्लेखनीय प्रगति है।
  • गरीबी रेखा में कम गिरावट वाले राज्य: केरल (ग्रामीण गरीबी 5.9 प्रतिशत अंक कम हुई) और हिमाचल प्रदेश (शहरी गरीबी 6.8 प्रतिशत अंक कम हुई) में सबसे कम गिरावट दर्ज की गई, हालाँकि इन राज्यों में पहले से ही गरीबी दर कम थी।
  • ग्रामीण गरीबी (वर्ष 2022-23): सबसे कम हिमाचल प्रदेश में (0.4%) और सबसे अधिक छत्तीसगढ़ में (25.1%)।
  • शहरी गरीबी (वर्ष 2022-23): सबसे कम तमिलनाडु में (1.9%) और सबसे अधिक छत्तीसगढ़ में (13.3%)।

भारतीय गरीबी पर विचार

  • SBI रिसर्च (वर्ष 2024): वर्ष 2023-24 HCES के आँकड़ों के आधार पर, गरीबी दर ग्रामीण क्षेत्रों में 4.86% और शहरी क्षेत्रों में 4.09% आँकी गई।
  • IMF  बनाम विश्व बैंक (वर्ष 2022)
    • वर्ल्ड बैंक: वर्ष 2019 में गरीबी दर 10.2% होने का अनुमान है।
    • IMF: वर्ष 2019 में गरीबी दर केवल 0.8% होने का अनुमान और इसमें सुधार का कारण खाद्य सब्सिडी स्थानांतरण बताया।

गरीबी रेखा का महत्त्व

  • गरीबी का मापन: गरीबी रेखा से यह पता चलता है कि अर्थव्यवस्था में कौन गरीब है। यह किसी देश में किसी निश्चित समय पर गरीबी की मात्रा और गंभीरता का आकलन करने में मदद करती है।
  • नीति निर्धारण और लक्ष्य निर्धारण: सरकारें कल्याणकारी योजनाओं और सब्सिडी को डिजाइन करने के लिए गरीबी रेखा का प्रयोग करती हैं। यह खाद्य सुरक्षा, स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा और आवास जैसे लाभों को सबसे कमजोर वर्ग  तक पहुँचाने में मदद करती है।
  • नीति की प्रभावशीलता का मूल्यांकन: कई वर्षों के गरीबी अनुमानों की तुलना करके, नीति निर्माता यह मूल्यांकन कर सकते हैं कि सरकारी हस्तक्षेप, कल्याणकारी योजनाएँ और आर्थिक सुधार गरीबी कम करने में कितने प्रभावी हैं।
  • संसाधनों का आवंटन: गरीबी रेखा दुर्लभ सरकारी संसाधनों के आवंटन का मार्गदर्शन करती है। यह सरकारों को ग्रामीण विकास, रोजगार कार्यक्रम और सामाजिक सुरक्षा जैसे क्षेत्रों पर खर्च को प्राथमिकता देने में मदद करती है।
  • अंतरराष्ट्रीय तुलना: विश्व बैंक जैसे अंतरराष्ट्रीय संगठन वैश्विक गरीबी रेखा निर्धारित करते हैं (उदाहरण के लिए, PPP के अनुसार प्रति व्यक्ति प्रतिदिन $2.15 या $3.00)। इससे देशों के बीच तुलना की जा सकती है और भारत अन्य विकासशील अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में अपनी प्रगति का आकलन कर सकता है।

निष्कर्ष

अतः गरीबी रेखा एक स्थिर मापदंड नहीं हैं, बल्कि ये समय के साथ विकसित होने वाले नीतिगत उपकरण हैं। गरीबी मापन की विधि को 21वीं सदी के भारत में प्रासंगिक बनाए रखने के लिए, इसका नियमित पुनरीक्षण, बहुआयामी गरीबी मापन के साथ इसका समन्वय और SDG के साथ इसका सामंजस्य आवश्यक है।

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