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पशु परीक्षण का नैतिक परिप्रेक्ष्य

Lokesh Pal July 29, 2025 02:26 6 0

संदर्भ

तेलंगाना में हाल ही में हुए पालमूर बायोसाइंसेज प्राइवेट लिमिटेड मामले (2025) में पशु प्रयोग और परीक्षण के मुद्दों पर प्रकाश डाला गया है, जिसमें कथित क्रूरता और नियामक उल्लंघनों का खुलासा हुआ है।

संबंधित तथ्य 

  • पेटा इंडिया ने पालमूर बायोसाइंसेज प्राइवेट लिमिटेड के विरुद्ध एक याचिका दायर की है, जिसमें उसके संयंत्र, जो एक प्रीक्लिनिकल अनुबंध अनुसंधान संगठन और बीगल कुत्तों का प्रजनक केंद्र है, में पशुओं के प्रति क्रूरता और उपेक्षा के गंभीर आरोप लगाए गए हैं।
  • दिल्ली उच्च न्यायालय ने CCSEA की एक निरीक्षण रिपोर्ट के बाद, पशु क्रूरता और नियमों के उल्लंघन के आरोपों के आधार पर प्रयोगशाला को नए पशुओं की खरीद या रखने पर प्रतिबंध लगा दिया।

पशु परीक्षण क्या है? 

  • पशु परीक्षण से तात्पर्य जैविक प्रक्रियाओं का अध्ययन करने, उत्पादों का परीक्षण करने और दवाओं, रसायनों, सौंदर्य प्रसाधनों और टीकों जैसे पदार्थों की सुरक्षा और प्रभावकारिता का मूल्यांकन करने के लिए वैज्ञानिक प्रयोगों में जानवरों के उपयोग से है।
  • पशु परीक्षण का उद्देश्य
    • रोग तंत्र का अध्ययन करना और संभावित उपचारों का परीक्षण करना।
    • मानव परीक्षणों से पहले उत्पादों की सुरक्षा का मूल्यांकन करना।
    • मानव जैविक प्रक्रियाओं के लिए विश्वसनीय मॉडल प्रदान करना, जिन्हें अन्य माध्यमों से आसानी से नहीं किया जा सकता।
  • परीक्षण में प्रयुक्त सामान्य जानवर
    • कृंतक (चूहे): सबसे सामान्य प्रजातियाँ, जिनका उपयोग मनुष्यों से उनकी आनुवंशिक समानता के कारण किया जाता है।
    • बंदर और कुत्ते: मनुष्यों से उनकी जैविक समानता के कारण चिकित्सा और औषधि अनुसंधान में उपयोग किए जाते हैं।
    • खरगोश और गिनी पिग: सौंदर्य प्रसाधनों और रसायनों में सुरक्षा परीक्षण के लिए उपयोग किए जाते हैं।

पशु परीक्षण का ऐतिहासिक संदर्भ

  • आधुनिक युग: 19वीं शताब्दी में, वैज्ञानिक जिज्ञासा के उदय के साथ, चिकित्सकों ने रोगों, औषधियों और शारीरिक क्रियाओं को समझने के लिए अधिक व्यवस्थित प्रयोगों हेतु पशुओं का उपयोग करना शुरू किया।
  • मानव से पशु परीक्षण की ओर बदलाव: प्रारंभ में, पदार्थों की विषाक्तता और प्रभावों का आकलन करने के लिए प्रयोगों में मनुष्यों का उपयोग किया जाता था, जैसा कि वर्ष 1902-1904 में अमेरिकी सरकार द्वारा प्रायोजित बेंजोएट और फॉर्मेल्डिहाइड जैसे खाद्य परिरक्षकों पर किए गए अध्ययन में देखा गया था।
    • पशु परीक्षण की ओर रुख इसलिए किया गया क्योंकि मानव परीक्षण संबंधी विषय अप्रत्याशित सिद्ध हुए, वे हमेशा अपेक्षित ढंग से प्रतिक्रिया नहीं करते थे, जैसे कि अनुमानित समय पर मृत्यु न होना या अनपेक्षित रूप से स्वस्थ हो जाना।
      • इस अप्रत्याशितता ने नियंत्रित प्रयोगात्मक परिस्थितियों के निर्माण के लिए परीक्षण विषयों के रूप में पशुओं को अधिक विश्वसनीय बना दिया।
  • चिकित्सा अनुसंधान के लिए पशु परीक्षण का उदय
    • 20वीं सदी की शुरुआत: जैसे-जैसे चिकित्सा का विकास हुआ, नई दवाओं, टीकों और चिकित्सा प्रक्रियाओं की सुरक्षा और प्रभावकारिता का परीक्षण करने के लिए प्रयोगशालाओं में गिनी पिग, खरगोश और कुत्तों जैसे जानवरों का उपयोग तेजी से बढ़ने लगा।
    • 1940-50 का दशक: मधुमेह के लिए विशेष रूप से नैदानिक परीक्षणों के लिए बंदरों और कुत्तों का उपयोग करके इंसुलिन और पोलियो के टीके जैसी प्रमुख चिकित्सा उपलब्धियाँ पशु परीक्षणों के माध्यम से विकसित की गईं।

भारत में पशु प्रयोगों के लिए नीति और कानूनी सुधार

कानूनी ढाँचा

  • पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960 (PAC अधिनियम)
    • पशु क्रूरता निवारण अधिनियम (1960) अनुसंधान में पशुओं के कल्याण को अनिवार्य बनाता है, जिसमें मानवीय व्यवहार और अनावश्यक पीड़ा के निषेध के लिए विशिष्ट दिशा-निर्देश शामिल हैं।
    • अधिनियम का अध्याय IV पशु प्रयोगों की अनुमति देता है, लेकिन विकल्प उपलब्ध होने पर प्रयोगों से बचने की आवश्यकता पर बल देता है।
  • पशुओं पर प्रयोगों के नियंत्रण और पर्यवेक्षण के उद्देश्य से समिति (Committee for the Purpose of Control and Supervision of Experiments on Animals- CPCSEA): PCA अधिनियम के तहत स्थापित, CPCSEA पशु प्रयोगों की देख-रेख करता है तथा नैतिक मानकों का अनुपालन सुनिश्चित करता है।
    • यह संस्थागत पशु नैतिकता समितियों (Institutional Animal Ethics Committees- IAECs) को प्रयोगों को मंजूरी देने और 3R (प्रतिस्थापन, न्यूनीकरण, शोधन) तथा चौथे R (पुनर्वास) को लागू करने का अधिकार देता है।

हालिया नीति और कानूनी सुधार

  • सौंदर्य प्रसाधनों के लिए पशु परीक्षण पर प्रतिबंध
    • वर्ष 2014: भारत सौंदर्य प्रसाधनों के लिए पशु परीक्षण तथा पशुओं पर परीक्षण किए गए सौंदर्य प्रसाधनों के आयात पर प्रतिबंध लगाने वाला पहला एशियाई देश बना। यह प्रतिबंध औषधि एवं प्रसाधन सामग्री नियम, 2014’ के नियम 148C और 135B के अंतर्गत लागू किया गया।
      • वर्ष 2016 में यह प्रतिबंध साबुन और डिटर्जेंट उद्योगों तक भी विस्तारित कर दिया गया, जिससे अनावश्यक परीक्षणों में पशुओं के उपयोग में और अधिक कमी आई।
  • चिकित्सा शिक्षा में जीवित पशु प्रयोगों पर प्रतिबंध
    • वर्ष 2013: PCA अधिनियम में एक संशोधन ने चिकित्सा शिक्षा में जीवित पशु प्रयोगों पर प्रतिबंध लगा दिया और उनकी जगह सिमुलेशन और आभासी मॉडल अपनाएँ।
      • इस सुधार ने शैक्षिक परिवेश में अनावश्यक प्रयोगों को समाप्त करके पशुओं की पीड़ा और मनोवैज्ञानिक क्षति से जुड़ी नैतिक चिंताओं का समाधान किया।
  • भारतीय चिकित्सा परिषद (Medical Council of India- MCI) के निर्देश: भारत के मेडिकल कॉलेजों को अब पशु चिकित्सा सुविधाओं का रखरखाव करने की आवश्यकता नहीं है और वे कंप्यूटर-सहायता प्राप्त शिक्षा जैसी गैर-पशु प्रशिक्षण विधियों का उपयोग कर सकते हैं।
    • MCI की कार्यकारी समिति (2003) ने सिफारिश की थी कि चिकित्सा शिक्षा में जीवित पशुओं के उपयोग के स्थान पर परिष्कृत पशु रहित मॉडल अपनाए जाएँ।
  • विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (University Grants Commission- UGC, 2011) ने भारतीय संस्थानों को जीवन विज्ञान पाठ्यक्रमों में विच्छेदन और जीवित पशु प्रयोगों को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने का निर्देश दिया, और 2D/3D दृश्य मॉडल जैसे विकल्पों पर जोर दिया।
  • भारतीय फार्मेसी परिषद (Pharmacy Council of India- PCI) के दिशा-निर्देश: PCI के वर्ष 2003 के निर्देश में फार्मेसी स्कूलों में पशु परीक्षण के स्थान पर कंप्यूटर-सहायता प्राप्त शिक्षण (Computer-Aided Learning- CAL) सॉफ्टवेयर का उपयोग करने पर जोर दिया गया था।
  • नई औषधि एवं नैदानिक परीक्षण नियम, 2019 (संशोधित 2023)
    • प्रमुख प्रावधान
      • दवा परीक्षण में प्रतिस्थापन, न्यूनीकरण और परिशोधन (3R) को प्रोत्साहित करता है।
      • पशुओं के उपयोग के औचित्य और पशुओं के उपयोग के लिए सख्त कल्याणकारी दिशा-निर्देशों को अनिवार्य करता है।
      • वैश्विक मानकों (जैसे- अमेरिकी FDA आधुनिकीकरण अधिनियम 2.0, 2022; यूरोपीय संघ का 2021 का प्रस्ताव) के अनुरूप, प्रजातियों की असमानताओं और असफल भविष्यवाणियों को दूर करने के लिए मानव-प्रासंगिक विधियों को बढ़ावा देता है।
  • भारतीय पशु कल्याण बोर्ड (Animal Welfare Board of India- AWBI): PCA अधिनियम के तहत स्थापित AWBI नीतिगत सुधारों से संबंधित सलाह देता है, विकल्पों को बढ़ावा देकर जन जागरूकता को बढ़ावा देता है।
    • इसने CPCSEA दिशा-निर्देशों के कठोर क्रियान्वयन और पशुरहित प्रौद्योगिकियों के वित्त पोषण पर जोर दिया है।

पशु परीक्षण के पक्ष में तर्क

  • जीवन रक्षक उपचार: पशु परीक्षणों ने मनुष्यों और पशुओं के लिए जीवन रक्षक उपचारों के विकास में योगदान दिया है।
    • पशु अनुसंधान के बिना, मधुमेह के लिए इंसुलिन, पोलियो के टीके और तंत्रिका-अपक्षयी रोगों के उपचार जैसी सफलताएँ संभव नहीं होतीं।
  • कुछ मामलों में कोई व्यवहार्य विकल्प नहीं: विकल्पों के अस्तित्व के बावजूद, कुछ शोधों में अभी भी पशु मॉडल की आवश्यकता होती है क्योंकि जैविक प्रणालियों की जटिलता को वर्तमान तकनीक (जैसे- मस्तिष्क और अंगों के कार्य, आनुवंशिक उत्परिवर्तन) से दोहराया नहीं जा सकता।
    • कृंतकों जैसे पशुओं का छोटा जीवनचक्र शोधकर्ताओं को कम समय में कई पीढ़ियों का अध्ययन करने का अवसर प्रदान करता है।
  • मानव परीक्षण के लिए अनैतिक: कुछ प्रयोगात्मक प्रक्रियाएँ, जैसे टॉक्सिकोलॉजी और आनुवंशिक संशोधन, सुरक्षा संबंधी चिंताओं के कारण सीधे मानव विषयों पर करना अनैतिक है।
    • पशु मॉडल मानव संपर्क से पहले संभावित खतरों की पहचान करने में मदद करते हैं, जिससे नैदानिक परीक्षणों में मानव वॉलंटियर के लिए यह प्रक्रिया सुरक्षित हो जाती है।
  • नियामक आवश्यकताएँ: अमेरिकी खाद्य एवं औषधि प्रशासन (Food and Drug Administration- FDA) और यूरोपीय औषधि एजेंसी (European Medicines Agency- EMA) जैसी नियामक संस्थाएँ नई दवाओं की सुरक्षा और प्रभावकारिता सुनिश्चित करने के लिए दवाओं को मानव परीक्षणों में भेजने की अनुमति देने से पहले पशु परीक्षण डेटा की आवश्यकता होती है।
    • टीकों, उपचारों और रसायनों के अनुमोदन के लिए पशु परीक्षण एक नियामक आवश्यकता बनी हुई है।
  • जानवरों और मनुष्यों के बीच वैज्ञानिक समानता: कुछ प्रजातियाँ (जैसे चिम्पांजी और चूहे) आनुवंशिक रूप से मनुष्यों के समान होती हैं (उदाहरण के लिए, चिम्पांजी में मनुष्यों से 99% समानता), जो उन्हें मानव रोगों और उपचारों के अध्ययन के लिए उपयुक्त बनाती है।
  • समय दक्षता और लागत-प्रभावशीलता: पशु परीक्षण मानव नैदानिक परीक्षणों की तुलना में तीव्र परिणाम प्रदान करते हैं, जिससे बड़ी संख्या में दवा की त्वरित जाँच संभव हो पाती है।
    • जानवरों, विशेष रूप से कृंतकों का छोटा जीवनकाल, शोधकर्ताओं को कम समयावधि में पीढ़ियों तक दीर्घकालिक प्रभावों का निरीक्षण करने की अनुमति देता है।

पशु परीक्षण में नैतिक चिंताएँ

  • गंभीर शारीरिक और मानसिक पीड़ा: जानवरों को दर्दनाक प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ता है: जलन, झटके, जहर, नशीली दवाओं की लत, मस्तिष्क क्षति और अंततः मृत्यु।
    • यहाँ तक कि सामान्य उपचार (जैसे- रक्त संग्रह, अलगाव) भी गंभीर तनाव का कारण बनता हैनाड़ी, रक्तचाप और हार्मोन के स्तर में वृद्धि।
  • सहमति का अभाव और संवेदनशीलता की अनदेखी: जानवर संवेदनशील प्राणी हैं, जो दर्द, भय और संकट का अनुभव कर सकते हैं।
    • उन्हें बिना किसी सहमति के जबरन कैद किया जाता है और उन पर प्रयोग किए जाते हैं, जो स्वायत्तता और करुणा के बुनियादी नैतिक सिद्धांतों का उल्लंघन है।
  • अविश्वसनीय वैज्ञानिक परिणाम: जानवरों और मनुष्यों के बीच गहरे जैविक अंतर अनुमान को अमान्य बनाते हैं।
    • जानवरों पर सुरक्षित परीक्षण की गई कई दवाएँ मानव परीक्षणों में विफल हो जाती हैं (उदाहरण के लिए, FDA के अनुसार 92% विफलता दर), जिससे यह प्रथा अनैतिक और वैज्ञानिक रूप से त्रुटिपूर्ण दोनों हो जाती है।
  • अमानवीय प्रयोगशाला परिस्थितियाँ: जानवरों को पिंजरों में, प्रायः अकेले रखा जाता है, उन्हें सामाजिक संपर्क या घोंसला बनाने से वंचित रखा जाता है।
    • अध्ययनों से पता चलता है कि इस तरह के अभाव से प्रयोग शुरू होने से पहले ही मस्तिष्क क्षति, चिंता और रूढ़िबद्ध संबंधी व्यवहार उत्पन्न हो जाते हैं।
  • नैतिक विरोधाभास और प्रजातिवाद: जानवरों की कथित हीनता पर आधारित नैतिक औचित्य बहुत ही दोषपूर्ण है।
    • यदि किसी के पक्ष में तर्क करने में असमर्थ होना, उसे नुकसान पहुँचाने का औचित्य बनता है, तो यही तर्क शिशुओं या बौद्धिक रूप से अक्षम व्यक्तियों को नुकसान पहुँचाने को भी स्वीकार्य बना देगा, जिसे समाज स्पष्ट रूप से अस्वीकार करता है।

पशु प्रयोग के विकल्प

  • इन विट्रो विधियाँ (कोशिका-आधारित अनुसंधान): मानव कोशिका संवर्द्धन और ऊतकों का उपयोग मानव जैविक प्रतिक्रियाओं का अनुकरण करने के लिए किया जाता है, जिससे अधिक सटीक आँकड़े प्राप्त होते हैं।
  • ऑर्गन-ऑन-ए-चिप: जीवित मानव कोशिकाओं वाले माइक्रोफ्लुइडिक उपकरण अंगों (जैसे- यकृत, फेफड़े, हृदय) की संरचना और कार्य की नकल करते हैं।
    • ये मॉडल दवाओं के प्रभाव, विषाक्तता और रोग की प्रगति के परीक्षण के लिए मूल्यवान हैं।
  • ऊतक इंजीनियरिंग और पुनर्योजी चिकित्सा
    • प्रयोगशाला में विकसित शारीरिक अंग: कृत्रिम मांसपेशी, अग्न्याशय, मूत्राशय, उपास्थि, हृदय, रक्त वाहिकाएँ, त्वचा, अस्थि मज्जा, हड्डी, श्वासनली।
    • लाभ: नैतिक, पशुओं की पीड़ा कम करता है, ऊतक-अभियांत्रिकी क्षेत्र को आगे बढ़ाता है।
  • एक्स-कॉर्पस मॉडल: जैव-कृत्रिम मॉडल शरीर के बाहर जैविक प्रणालियों की प्रतिकृति बनाते हैं, जो प्रयोग और सुरक्षा परीक्षण के लिए उपयुक्त हैं।
  • सिलिको विधियाँ (कंप्यूटर मॉडलिंग): उन्नत कंप्यूटेशनल सिमुलेशन और एआई-आधारित मॉडल मानव जैविक प्रक्रियाओं की प्रतिकृति बनाते हैं और भविष्यवाणी करते हैं कि दवाएँ, रसायन या उपचार मानव शरीर को कैसे प्रभावित करेंगे।
    • ये मॉडल अधिक तीव्र, अधिक लागत प्रभावी हैं तथा इनमें प्रजाति-विशिष्ट विविधताएँ नहीं होतीं, जो पशु परीक्षण को कमजोर करती हैं।
  • मानव आधारित नैदानिक परीक्षण
    • सूक्ष्म खुराक: मनुष्यों को दवाओं की छोटी चिकित्सीय खुराक दी जाती है ताकि बिना किसी महत्त्वपूर्ण जोखिम के अवशोषण, चयापचय और सुरक्षा का अध्ययन किया जा सके।
    • मानव वॉलंटियर आधारित अध्ययन, पशु मॉडल की सीमाओं को पार करते हुए, मानव आबादी में दवा की सुरक्षा और प्रभावकारिता के लिए प्रत्यक्ष, प्रासंगिक डेटा प्रदान करते हैं।
  • ऑर्गन-ऑन-ए-चिप और 3D बायोप्रिंटिंग
    • ऑर्गन-ऑन-ए-चिप: मानव कोशिकाओं का उपयोग करके बनाए गए मानव अंगों के 3D मॉडल, दवाओं के प्रभावों और मॉडलिंग का वास्तविक समय परीक्षण संभव बनाते हैं।
    • 3D बायोप्रिंटिंग: जीवित ऊतकों और अंगों को परत-दर-परत बनाने के लिए मानव कोशिकाओं का उपयोग करता है, जिससे रासायनिक और दवा प्रतिक्रियाओं का अधिक यथार्थवादी परीक्षण संभव होता है।
  • व्यक्तिगत चिकित्सा
    • मानव-प्रेरित बहुशक्तिशाली स्टेम कोशिकाएँ (iPSCs): रोगी की अपनी कोशिकाओं से प्राप्त स्टेम कोशिकाओं का उपयोग रोगों के अध्ययन और औषधियों के प्रभावों के परीक्षण हेतु विशिष्ट मॉडल बनाने में किया जा सकता है, जिससे पशु मॉडल की आवश्यकता कम हो जाती है।

न्यायिक हस्तक्षेप और संवैधानिक प्रावधान

  • नारायण दत्त भट्ट बनाम भारत संघ (2018): उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने पशुओं को जीवित व्यक्तियों के समान अधिकारों वाली वैधानिक संस्था घोषित किया।
    • उनके सम्मान और अमानवीय व्यवहार से सुरक्षा के अधिकार पर बल दिया।
  • संवैधानिक प्रावधान: भारतीय संविधान में 42वें संशोधन (1976) द्वारा अनुच्छेद-48A (वन्यजीवों और पर्यावरण की रक्षा का राज्य का कर्तव्य) और अनुच्छेद-51A(g) (जीवों के प्रति दया का नागरिक कर्तव्य) को शामिल किया गया।

अंतरराष्ट्रीय मानक और विनियम

  • आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (Organization for Economic Cooperation and Development- OECD) ने परीक्षण के लिए वैकल्पिक तरीके विकसित किए हैं:
    • कोरोसाइटेक्स, एपिडर्म और एपिस्किन त्वचा की जलन और संक्षारकता परीक्षण के लिए स्वीकृत विकल्प हैं।
    • OECD TG 431 और TG 435, पशु परीक्षण की तुलना में इन विट्रो परीक्षण की प्रभावकारिता को प्रमाणित करते हैं।
  • यूरोपीय संघ (EU) विनियम: EU ने पशु परीक्षण को कम करने के लिए महत्त्वपूर्ण कदम उठाए हैं:
    • वर्ष 2013 से जानवरों पर कॉस्मेटिक परीक्षण पर प्रतिबंध लगा दिया गया है, जिसमें जानवरों पर परीक्षण किए गए उत्पादों के विपणन पर भी प्रतिबंध शामिल है।
    • पशु परीक्षण को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने और प्रयोगों की नैतिक समीक्षा अनिवार्य करने के लिए एक व्यापक निर्देश जारी किया गया है।
    • यूरोपीय संघ द्वारा विकल्पों पर ध्यान केंद्रित करने से सौंदर्य प्रसाधन और रसायन सहित सभी उद्योगों में पशु परीक्षण में कमी आई है।

पशु परीक्षण में चुनौतियाँ

  • असंगत नीति प्रवर्तन: मौजूदा कानूनों (जैसे, पशु क्रूरता निवारण अधिनियम) के बावजूद, संस्थानों द्वारा असंगत प्रवर्तन और स्व-नियमन का अर्थ है कि कुछ अनुसंधान केंद्रों में जानवरों के साथ अभी भी अमानवीय व्यवहार और अनावश्यक परीक्षण किए जाते हैं।
  • व्यापक विनियमों का अभाव: यद्यपि PCA अधिनियम और CPCSEA जैसी संस्थाओं के दिशा-निर्देश लागू हैं, प्रभावी निगरानी के अभाव के कारण प्रायः उल्लंघन होते हैं, जिनमें आवास की खराब स्थिति, कुपोषण और उचित पशु चिकित्सा देखभाल का अभाव शामिल है।
  • विकल्पों के बावजूद पुरातन शैक्षणिक प्रथाएँ: वैश्विक रुझानों और पशुरहित विकल्पों के लिए भारतीय नियामक अनुमतियों के बावजूद, भारतीय मेडिकल कॉलेज अभी भी कक्षा प्रयोगों में जीवित जानवरों का उपयोग करते हैं।
    • ऐसी प्रथाओं का जारी रहना आवश्यकता के बजाय संस्थागत जड़ता को दर्शाता है।
  • लागत और बुनियादी ढाँचा: ऑर्गन-ऑन-चिप और 3D बायोप्रिंटिंग जैसे विकल्पों के लिए उच्च प्रारंभिक निवेश की आवश्यकता होती है। भारत के जैव प्रौद्योगिकी क्षेत्र को सार्वजनिक-निजी वित्तपोषण (जैसे- ICMR, DBT के माध्यम से) की आवश्यकता है।
  • असंगत वैश्विक मानक: हालाँकि यूरोपीय संघ और अन्य क्षेत्रों ने पशु परीक्षण को चरणबद्ध तरीके से समाप्त कर दिया है, फिर भी भारत सहित कई विकासशील देशों को मानवीय और वैज्ञानिक रूप से ठोस विकल्प अपनाने में चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
  • अंतरराष्ट्रीय व्यापार: जो देश पशु-मुक्त परीक्षण पद्धतियों को अपनाने में विफल रहते हैं, उन्हें व्यापार बाधाओं का सामना करना पड़ता है और उन्हें वैश्विक बाजारों से बाहर रखा जा सकता है, विशेष रूप से सौंदर्य प्रसाधन, दवा और रसायन जैसे उद्योगों में।

पशु परीक्षण की वैज्ञानिक सीमाएँ

  • प्रजातियों में अंतर: मनुष्यों और जानवरों के बीच शारीरिक और जैव-रासायनिक अंतर, जानवरों के परीक्षण से प्राप्त आँकड़ों को मनुष्यों पर लागू करने की वैधता को कमजोर करते हैं।
    • उदाहरण: पेनिसिलिन गिनी पिग’ को मार देता है, लेकिन मनुष्यों के लिए हानिकारक नहीं है; एस्पिरिन चूहों में जन्म दोष पैदा करता है, लेकिन मनुष्यों में नहीं।
  • मानव प्रतिक्रियाओं का अप्रभावी पूर्वानुमान: पशु परीक्षण प्रायः मानव प्रतिक्रियाओं का सटीक पूर्वानुमान लगाने में विफल रहते हैं।
    • उदाहरण के लिए, जानवरों पर सुरक्षित पाई जाने वाली दवाएँ मनुष्यों पर हानिकारक प्रभाव डाल सकती हैं।
    • उदाहरण के लिए, जानवरों पर सफलतापूर्वक परीक्षण किए गए 80 से अधिक टीके मानव परीक्षणों में विफल रहे।
  • मानवीय परिस्थितियों का अनुकरण करने में असमर्थता: जानवरों को अप्राकृतिक परिस्थितियों (जैसे- कृत्रिम रूप से प्रेरित बीमारियाँ) का सामना करना पड़ता है, जो मानव-विशिष्ट परिस्थितियों को प्रतिबिंबित नहीं करतीं, जिससे मानव स्वास्थ्य संबंधी भविष्यवाणियों के लिए परिणाम अविश्वसनीय हो जाते हैं।
  • मानव प्रासंगिकता का अभाव: जानवर प्रायः बीमारियों और उपचारों के प्रति मनुष्यों जैसी प्रतिक्रिया नहीं दिखाते, जिसके परिणामस्वरूप संसाधनों की बर्बादी होती है और उन सफलताओं के अवसर कम हो जाते हैं, जिन्हें अधिक प्रासंगिक मॉडलों के साथ प्राप्त किया जा सकता था।

पशु परीक्षण के नैतिक, वैज्ञानिक और व्यावहारिक मुद्दों को संबोधित करने के संबंध में आगे की राह

  • मजबूत कानूनी सुधार और प्रवर्तन: जहाँ भी संभव हो, पशु क्रूरता निवारण अधिनियम (1960) में संशोधन करके पशुरहित विकल्पों के उपयोग को अनिवार्य बनाना।
    • मौजूदा नियमों का कठोरता से पालन और पशु कल्याण दिशा-निर्देशों का उल्लंघन करने वाली संस्थाओं के लिए अधिक जवाबदेही, नैतिक मानकों का अनुपालन सुनिश्चित करना।
  • पशु रहित विकल्पों के लिए धनराशि में वृद्धि करना: सरकारों और निजी क्षेत्रों को 3D अंग मॉडल, मानव-आधारित सिमुलेशन और कंप्यूटेशनल मॉडल जैसी वैकल्पिक परीक्षण विधियों के विकास और सत्यापन के लिए अधिक धनराशि आवंटित करनी चाहिए।
    • इस क्षेत्र में अनुसंधान अनुदानों के लिए समर्थन इन विकल्पों को अधिक सुलभ, विश्वसनीय और वहनीय बनाने में मदद करेगा।
  • मानकों का अंतरराष्ट्रीय सामंजस्य: देशों को सौंदर्य प्रसाधनों के लिए पशु परीक्षण पर यूरोपीय संघ के प्रतिबंध और FDA के आधुनिकीकरण प्रयासों जैसे अंतरराष्ट्रीय मानदंडों के साथ सामंजस्य स्थापित करना चाहिए ताकि एक वैश्विक मानक बनाया जा सके, जो विभिन्न उद्योगों में पशुओं के उपयोग को कम करे।
    • देश सर्वोत्तम प्रथाओं को साझा करने और परीक्षण में नैतिक, मानव-प्रासंगिक मॉडलों के उपयोग को बढ़ावा देने के लिए मिलकर कार्य कर सकते हैं।
  • मानव-केंद्रित मॉडलों का एकीकरण: रोग तंत्र, औषधि प्रभावकारिता और विषाक्तता का अधिक सटीकता से अध्ययन करने के लिए मानव-केंद्रित मॉडलों जैसे मानव-प्रेरित प्लुरिपोटेंट स्टेम सेल (iPSC), माइक्रोडोजिंग और ऑर्गन-ऑन-चिप्स को शामिल करना।
    • ये उन्नत प्रौद्योगिकियाँ नैदानिक परीक्षणों और पूर्व-नैदानिक अनुसंधान में पशुओं का स्थान ले सकती हैं।
  • जन जागरूकता अभियान: पशु परीक्षण के नैतिक निहितार्थों और वैज्ञानिक कमियों के बारे में जनता को सूचित करने के लिए जागरूकता अभियान संचालित करना।
    • उपभोक्ताओं को क्रूरता-मुक्त उत्पादों की माँग करने के लिए प्रोत्साहित करना, विशेष रूप से सौंदर्य प्रसाधन और दवाइयों जैसे क्षेत्रों में।
  • हितधारकों के बीच सहयोग: सरकारी निकायों, शिक्षाविदों, गैर-सरकारी संगठनों और उद्योगों को नैतिक विकल्पों के विकास को बढ़ावा देने तथा पशु कल्याण के लिए वैश्विक मानक स्थापित करने के लिए सहयोग करना चाहिए।
    • शैक्षणिक संस्थानों, तकनीकी कंपनियों और नियामक निकायों के बीच साझेदारी वैकल्पिक अनुसंधान विधियों के नवाचार तथा व्यापक रूप से अपनाने को बढ़ावा दे सकती है।

निष्कर्ष 

पशु परीक्षण से हटकर अधिक मानवीय और वैज्ञानिक रूप से विश्वसनीय विकल्पों की ओर अग्रसर होना आज की एक अनिवार्य आवश्यकता है। मजबूत कानूनी संरचनाओं, अंतरराष्ट्रीय सहयोग और बढ़ती जन-जागरूकता के साथ, वैज्ञानिक अनुसंधान का भविष्य पशु प्रयोगों के बिना भी संभव है, एक ऐसा भविष्य जो अधिक नैतिक, सटीक और वैज्ञानिक दृष्टि से अधिक उत्तरदायी हो।

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