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रिश्वतखोरी पर नैतिक दृष्टिकोण

Lokesh Pal January 04, 2025 03:16 88 0

संदर्भ

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय एक ऐसा मामले में, जो वर्ष 2018 से पहले दर्ज भ्रष्टाचार के मामलों को महत्त्वपूर्ण रूप से प्रभावित कर सकता है, यह निर्धारित करने वाला है कि क्या रिश्वत की पेशकश करना भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम (PCA), 1988 के अंतर्गत दंडनीय है, भले ही सार्वजनिक अधिकारी इस पेशकश को अस्वीकार कर दे।

  • हालाँकि PCA में वर्ष 2018 के संशोधन ने स्पष्ट रूप से रिश्वत की पेशकश को अपराध बना दिया है, लेकिन अलग-अलग उच्च न्यायालयों ने वर्ष 2018 से पहले के मामलों में अलग-अलग दृष्टिकोण प्रस्तुत किए हैं।

मामले के बारे में

  • मुद्दा: इस मामले में मुद्दा यह है कि वर्ष 2018 के संशोधनों से पहले और बाद में, क्या रिश्वत देना (भले ही इसे अस्वीकार कर दिया गया हो) PCA 1988 के अंतर्गत दंडनीय है।
    • यह मामला एक व्यक्ति से जुड़ा है, जिसने वर्ष 2016 में ओडिशा में एक पुलिस अधिकारी को 2 लाख रुपये की रिश्वत की पेशकश की थी और बाद में उस पर PCA की धारा 12 के तहत आरोप लगाया गया था।
  • मुख्य कानूनी तर्क: क्या वर्ष 2018 के संशोधन से पहले रिश्वत देने का कार्य मात्र PCA के तहत ‘दुष्प्रेरण’ का मामला बनता है।

रिश्वतखोरी के बारे में

  • रिश्वतखोरी किसी सार्वजनिक अधिकारी या किसी सार्वजनिक अथवा कानूनी कर्तव्य के प्रभारी द्वारा किसी अन्य व्यक्ति के कार्यों को प्रभावित करने के लिए किसी मूल्यवान वस्तु को देने, पेश करने, प्राप्त करने या माँगने का कार्य है।
  • भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988, विशेष रूप से रिश्वतखोरी एवं भ्रष्टाचार को संबोधित करता है, जिसमें वर्ष 2018 में महत्त्वपूर्ण संशोधनों के साथ रिश्वत देने को एक अलग अपराध के रूप में शामिल किया गया है।
    • वर्ष 2018 से पूर्व PCA : रिश्वत देना तब तक स्पष्ट रूप से दंडनीय नहीं था, जब तक कि यह PCA की धारा 7 या धारा 11 के तहत दुष्प्रेरण का कारण न बने।
    • वर्ष 2018 के बाद PCA संशोधन: रिश्वत देना एक अलग और दंडनीय अपराध बन गया, भले ही रिश्वत स्वीकार न की गई हो।

रिश्वतखोरी से संबंधित PCA के प्रमुख कानूनी प्रावधान

  • धारा 7: सरकारी अधिकारियों को उनके आधिकारिक कर्तव्यों के पालन या पालन से विरत रहने के बदले में कानूनी पारिश्रमिक के अलावा अन्य रिश्वत स्वीकार करने के लिए दंडित करती है।
    • सरकारी अधिकारियों द्वारा रिश्वत की माँग और प्राप्ति पर ध्यान केंद्रित करती है।
  • धारा 11: बिना पर्याप्त विचार-विमर्श के अपने सार्वजनिक कार्यों से संबंधित मूल्यवान वस्तुओं को स्वीकार करने वाले अधिकारियों को दंडित करती है।
  • धारा 12: धारा 7 और धारा 11 के तहत अपराधों के लिए उकसाने के लिए दंडित करती है।
    • रिश्वत देने के सफल एवं असफल दोनों प्रयासों को कवर करती है।
  • वर्ष 2018 का संशोधन
    • रिश्वत देने के कृत्य को विशेष रूप से अपराध घोषित करने वाले प्रावधान पेश किए गए, भले ही वह स्वीकार न किया गया हो।
    • ‘लोक सेवक को रिश्वत देने’ का नया अपराध बनाया गया, जिससे पिछली कानूनी खामियों को दूर किया गया।

रिश्वतखोरी पर न्यायिक विचार

  • किशोर खाचंद वाधवानी बनाम महाराष्ट्र राज्य (2019): बॉम्बे हाईकोर्ट ने माना कि वर्ष 2018 से पहले रिश्वत देना अपराध नहीं माना जाता था।
    • न्यायालय ने कहा कि वर्ष 2018 के संशोधन में स्पष्ट रूप से ‘लोक सेवक को रिश्वत देने से संबंधित अपराध’ को शामिल किया गया है।
    • इसके अतिरिक्त, न्यायालय ने कहा कि धारा 7 के तहत अपराध के लिए लोक सेवक से ‘माँग’ की आवश्यकता होती है।
  • घनश्याम अग्रवाल बनाम राज्य (2020): मद्रास उच्च न्यायालय ने तर्क दिया कि अकेले रिश्वत देना पहले से ही भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 165A के तहत दंडनीय था, जिसे PCA द्वारा प्रतिस्थापित किया गया था।
    • न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला कि रिश्वत देने का मात्र कार्य एक वास्तविक अपराध है और वर्ष 2018 के संशोधन ने केवल इस स्थिति को स्पष्ट किया है।

रिश्वत क्यों दी जाती है?

  • बुनियादी सेवाओं तक पहुँचना: लोगों को संस्थागत अक्षमताओं या जानबूझकर की गई देरी का सामना करना पड़ता है, जिससे उन्हें स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा या कल्याणकारी लाभ जैसी आवश्यक सेवाओं तक पहुँचने के लिए रिश्वत देने के लिए मजबूर होना पड़ता है।
    • ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल द्वारा वर्ष 2020 में किए गए एक सर्वेक्षण से पता चला है कि 39% भारतीयों ने स्वास्थ्य सेवा और शिक्षा सहित सार्वजनिक सेवाओं तक पहुँचने के लिए रिश्वत देने की सूचना दी है।

  • प्रक्रियाओं में तेजी लाने के लिए: नौकरशाही की अक्षमता एवं लालफीताशाही नागरिकों को लाइसेंस, पंजीकरण या अनुमोदन जारी करने जैसी सेवाओं में लंबे समय तक देरी से बचने के लिए अधिकारियों को रिश्वत देने के लिए मजबूर करती है।
    • लोकलसर्किल्स द्वारा वर्ष 2024 में किए गए सर्वेक्षण से पता चला है कि लगभग 66% लोगों ने प्रक्रियाओं को सुविधाजनक बनाने और देरी से बचने के लिए पिछले वर्ष सरकारी अधिकारियों को रिश्वत देने की बात स्वीकार की है।
  • उत्पीड़न से बचने के लिए: व्यक्ति अक्सर कानूनी या प्रशासनिक कार्रवाई की धमकी के तहत अधिकारियों द्वारा उत्पीड़न या अनुचित बाधाओं से बचने के लिए रिश्वत देते हैं।
    • ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल सर्वे (2020) से पता चला है कि 42% भारतीयों ने जुर्माना या गिरफ्तारी से बचने के लिए पुलिस अधिकारियों को रिश्वत दी।
  • अनुचित लाभ प्राप्त करने के लिए: व्यक्ति और व्यवसाय अनुबंध, अनुकूल निर्णय या अनुमोदन जैसे अनुचित लाभ प्राप्त करने के लिए रिश्वत का उपयोग करते हैं।
    • अक्टूबर 2024 में, CBI ने कर चोरी के मामले को निपटाने एवं एक व्यवसायी की गिरफ्तारी को रोकने के लिए कथित तौर पर ₹50 लाख की रिश्वत माँगने के आरोप में मुंबई में पाँच CGST अधिकारियों को गिरफ्तार किया।
  • विनियमनों को दरकिनार करने के लिए: रिश्वत का उपयोग कानूनी या नियामक बाधाओं को दरकिनार करने के लिए किया जाता है, अक्सर अवैध या अनैतिक लाभ प्राप्त करने के लिए।
  • रोजगार सुरक्षित करने के लिए: प्रतिेस्पर्द्धी नौकरी बाजारों में, व्यक्तियों को रोजगार या पदोन्नति प्राप्त करने के लिए रिश्वत देने के लिए मजबूर किया जाता है।
    • व्यापम घोटाला (2013) मध्य प्रदेश में सरकारी नौकरियों और मेडिकल कॉलेज में प्रवेश के लिए रिश्वतखोरी से जुड़ा था।
  • आजीविका की रक्षा के लिए: छोटे व्यवसाय के मालिक और किसान स्थानीय अधिकारियों या नौकरशाही बाधाओं के कारण होने वाले व्यवधानों से बचने के लिए रिश्वत देते हैं, ताकि उनके कार्य की निरंतरता बनी रहे।
    • किसानों ने सब्सिडी या ऋण प्राप्त करने के लिए रिश्वत देने की सूचना दी है, क्योंकि उन्हें डर था कि अगर वे विरोध करेंगे तो उन्हें सहायता नहीं मिलेगी।

‘भ्रष्टाचार कभी न खत्म होने वाले लालच से उत्पन्न होता है। भ्रष्टाचार मुक्त नैतिक समाज के लिए लड़ाई इस लालच के खिलाफ लड़ी जानी चाहिए और इसकी जगह ‘मैं क्या दे सकता हूँ’ की भावना को लाना होगा।’ – डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम

रिश्वतखोरी के नैतिक निहितार्थ

  • ईमानदारी और विश्वास को कमजोर करती है: रिश्वतखोरी सार्वजनिक अधिकारियों और संस्थानों में ईमानदारी जैसे नैतिक मूल्य को कमजोर करती है, जिससे नागरिकों के बीच विश्वास कम होता है। यह नैतिक शासन से समझौता करता है और सार्वजनिक प्रशासन की निष्पक्षता के बारे में संदेह उत्पन्न करता है।
    • कर्नाटक में वर्ष 2019 के PDS घोटाले ने अधिकारियों को गरीबों के लिए दिए जाने वाले खाद्यान्न की काला बाजारी का भंडाफोड़ किया, जिससे सार्वजनिक कल्याण योजनाओं में विश्वास कम हुआ।
  • भ्रष्टाचार को बढ़ावा देता है: रिश्वतखोरी अनैतिक प्रथाओं को सामान्य बनाकर और जवाबदेही को कम करके प्रणालीगत भ्रष्टाचार को बढ़ावा देती है।
    • भारत में राष्ट्रमंडल खेल घोटाला (2010) में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार हुआ था, जिसमें अधिकारियों और ठेकेदारों को रिश्वत देकर बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं की लागत बढ़ा दी गई थी।
  • असमानता और अनुचित व्यवहार: रिश्वतखोरी एक असमान स्थिति निर्मित करती है, जहाँ रिश्वत देने में असमर्थ या अनिच्छुक लोग नुकसान में रहते हैं।
    • वर्ष 2018 के वैश्विक भ्रष्टाचार बैरोमीटर ने खुलासा किया कि रिश्वत की माँगों के कारण 56% भारतीय सेवाओं तक पहुँच से वंचित रहे हैं।
  • गुण-तत्त्व का क्षरण: रिश्वत से प्रभावित निर्णय गुण-तत्त्व के सिद्धांतों को कमजोर करते हैं, जिससे संस्थानों में अक्षमता और योग्यता की कमी होती है।
    • SSC पेपर लीक जैसे भर्ती घोटाले।
  • विकास में बाधा: रिश्वतखोरी, विकास परियोजनाओं और कल्याणकारी योजनाओं से सार्वजनिक धन को निजी व्यक्तियों की ओर स्थानांतरित करती है।
    • विश्व बैंक का अनुमान है कि भ्रष्टाचार के कारण विकासशील देशों को सालाना 1.26 ट्रिलियन डॉलर का नुकसान होता है, जिससे महत्त्वपूर्ण परियोजनाओं के लिए संसाधन कम हो जाते हैं।
  • विश्वसनीयता का हानि: रिश्वतखोरी सार्वजनिक संस्थानों की विश्वसनीयता और प्रतिष्ठा को नुकसान पहुँचाती है, जिससे नागरिकों का शासन में भरोसा कमजोर होता है।
    • नवंबर 2024 में, अमेरिकी अभियोजकों ने गौतम अडानी और उनके सहयोगियों पर 265 मिलियन डॉलर के रिश्वत मामले में आरोप लगाया, जिससे अडानी समूह की पारदर्शिता और कॉरपोरेट प्रशासन पर चिंताएँ बढ़ गईं।
  • नैतिक पतन: रिश्वत अनैतिक व्यवहार को सामान्य बनाती है, जिससे समाज में नैतिक पतन होता है और जवाबदेही एवं ईमानदारी के व्यक्तिगत और संगठनात्मक मूल्य कमजोर होते हैं।
    • भारत में स्कूल में दाखिले के लिए रिश्वत को सामान्य बनाना भविष्य की पीढ़ियों में अनैतिक व्यवहार को बढ़ावा देता है।
  • कमजोर समूहों को नुकसान: रिश्वत असमान रूप से हाशिए पर पड़े और कमजोर समूहों को प्रभावित करती है, जिससे बुनियादी सेवाओं और अवसरों तक उनकी पहुँच सीमित हो जाती है।
    • ग्रामीण परिवार अक्सर मनरेगा जैसी सरकारी योजनाओं का लाभ उठाने के लिए रिश्वत देते हैं, जिससे गरीबों को सशक्त बनाने का उद्देश्य विफल हो जाता है।

रिश्वतखोरी में नैतिक दुविधाएँ

  • रिश्वतखोरी में नैतिक दुविधा तब उत्पन्न होती है, जब व्यक्ति को, प्रायः प्रणालीगत दबावों या व्यक्तिगत परिस्थितियों के कारण, परस्पर विरोधी नैतिक सिद्धांतों के बीच चयन करने के लिए मजबूर किया जाता है।
  • ईमानदारी बनाम अस्तित्व: एक गरीब व्यक्ति को यह तय करना होगा कि स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा या खाद्य राशन जैसी आवश्यक सेवाओं तक पहुँचने के लिए रिश्वत देनी है या नहीं।
    • एक किसान को अपनी आजीविका खोने से बचने के लिए फसल ऋण प्राप्त करने के लिए रिश्वत देने में नैतिक संघर्ष का सामना करना पड़ सकता है।
  • नैतिकता को बनाए रखना बनाम कॅरियर में उन्नति: कर्मचारियों को पदोन्नति, अनुबंध या नौकरी की सुरक्षा प्राप्त करने के लिए रिश्वत देने या स्वीकार करने के दबाव का सामना करना पड़ सकता है।
    • व्यापम घोटाले (2013) में, व्यक्तियों को सरकारी नौकरी हासिल करने के लिए रिश्वत देने पर नैतिक संघर्ष का सामना करना पड़ा।
  • संगठन के प्रति वफादारी बनाम लोक कल्याण: सार्वजनिक अधिकारियों को निजी संस्थाओं के पक्ष में रिश्वत लेने के लिए कहा जा सकता है, जिससे उनके संगठन को लाभ होता है, लेकिन सार्वजनिक हितों को हानि होती है।
    • एक सिविल सेवक राजनीतिक या संगठनात्मक दबाव के कारण घटिया अनुबंधों को मंजूरी देता है।
  • कानून का उल्लंघन बनाम तत्काल समस्याओं का समाधान: व्यक्ति परमिट या लाइसेंस प्राप्त करने जैसी विलंबित कानूनी प्रक्रियाओं में तेजी लाने हेतु रिश्वत देने के लिए मजबूर हो सकते हैं।
    • एक छोटा व्यवसायी अपनी आजीविका के लिए मंजूरी में तेजी लाने के लिए रिश्वत दे सकता है।
  • मुखबिरी बनाम प्रतिशोध: रिश्वतखोरी के गवाहों को अक्सर भ्रष्टाचार को उजागर करने और व्यक्तिगत या पेशेवर प्रतिशोध के डर के बीच नैतिक संघर्ष का सामना करना पड़ता है।
    • कोई कर्मचारी नौकरी छूटने या उत्पीड़न के डर से, रिश्वत माँगने वाले वरिष्ठ की रिपोर्ट करने में संकोच कर सकता है।
  • रिश्तों की रक्षा करना बनाम भ्रष्टाचार की रिपोर्ट करना: व्यक्ति व्यक्तिगत या पेशेवर रिश्तों को नुकसान पहुँचाने से बचने के लिए दोस्तों, सहकर्मियों या परिवार के सदस्यों द्वारा रिश्वतखोरी की रिपोर्ट करने से बच सकते हैं।
    • कोई ठेकेदार व्यावसायिक संबंध बनाए रखने के लिए अपने साथ कार्य करने वाले भ्रष्ट अधिकारी की रिपोर्ट करने से बच सकता है।

भ्रष्टाचार या रिश्वतखोरी पर विभिन्न दार्शनिक दृष्टिकोण

  • उपयोगितावादी दृष्टिकोण: कार्यों का मूल्यांकन उनके परिणामों के आधार पर किया जाता है। यदि रिश्वत के परिणामस्वरूप सबसे अधिक लोगों को सबसे अधिक खुशी मिलती है, तो इसे उचित माना जा सकता है।
    • उदाहरण: जीवन रक्षक चिकित्सा उपचार में तेजी लाने के लिए रिश्वत देना उपयोगितावादी सिद्धांतों के अनुरूप हो सकता है, लेकिन यह प्रणालीगत समानता को कमजोर करता है।
  • नैतिक दृष्टिकोण: कार्य स्वाभाविक रूप से सही या गलत होते हैं, चाहे उनके परिणाम कुछ भी हों। रिश्वत आंतरिक रूप से अनैतिक है क्योंकि यह ईमानदारी और निष्पक्षता के नैतिक कर्तव्यों का उल्लंघन करती है।
    • उदाहरण: गंभीर व्यक्तिगत कठिनाइयों के बावजूद रिश्वत लेने से इनकार करने वाला एक सरकारी अधिकारी नैतिक कर्तव्य के पालन का उदाहरण है।
  • सद्गुण नैतिकता: व्यक्ति के चरित्र और गुणों पर ध्यान केंद्रित करता है। रिश्वत को व्यक्तिगत ईमानदारी और सामाजिक नैतिक ताने-बाने को भ्रष्ट करने वाला माना जाता है।
    • उदाहरण: रिश्वतखोरी को अस्वीकार करने वाला व्यक्ति ईमानदारी, निष्ठा और न्याय जैसे गुणों को दर्शाता है।
  • सामाजिक अनुबंध सिद्धांत (Social Contract Theory): समाज, कानून और निष्पक्षता को बनाए रखने के लिए निहित समझौतों पर काम करता है। रिश्वत इस सामाजिक अनुबंध का उल्लंघन करती है, संस्थागत विश्वास को कमजोर करती है।
    • उदाहरण: बुनियादी सेवाओं तक पहुँचने के लिए रिश्वत देने वाले नागरिक सामाजिक अनुबंधों के क्षरण को दर्शाते हैं।
  • कांट का नैतिकता सिद्धांत: कार्रवाई सार्वभौमिक रूप से लागू होनी चाहिए। रिश्वत को अराजकता की ओर ले जाए बिना सार्वभौमिक नहीं बनाया जा सकता है, जो इसे नैतिक रूप से अस्वीकार्य बनाता है।
    • उदाहरण: कांट की नैतिकता रिश्वतखोरी की निंदा करती है।
  • गांधीवादी दृष्टिकोण: व्यक्तिगत और सार्वजनिक जीवन में नैतिक शुद्धता, सत्य और अहिंसा की वकालत करता है। रिश्वत स्वाभाविक रूप से अनैतिक है क्योंकि यह सत्यनिष्ठा के सिद्धांत का उल्लंघन करती है।
    • उदाहरण: गांधी का आत्म-अनुशासन और अखंडता पर जोर रिश्वतखोरी के कारण होने वाले नैतिक पतन को उजागर करता है।

रिश्वतखोरी रोकने के लिए सुझाव

  • व्हिसलब्लोअर सुरक्षा को मजबूत करना: रिश्वतखोरी की रिपोर्ट करने वाले व्यक्तियों को प्रतिशोध से बचाने के लिए मजबूत कानून और तंत्र लागू करना।
    • गोपनीय रिपोर्टिंग चैनल स्थापित करना और व्हिसलब्लोअर के लिए कानूनी सुरक्षा प्रदान करना।
  • प्रक्रियाओं में पारदर्शिता को बढ़ावा देना: रिश्वतखोरी के अवसरों को कम करने के लिए नौकरशाही प्रक्रियाओं को सरल बनाएँ और विवेकाधीन शक्तियों को कम करना।
    • जवाबदेही और पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए संपत्ति पंजीकरण या कल्याणकारी योजनाओं जैसी सार्वजनिक सेवाओं को डिजिटल करना।
  • नैतिक नेतृत्व को प्रोत्साहित करना: संगठनों और संस्थानों में ईमानदारी दिखाने वाले और भ्रष्ट आचरण को हतोत्साहित करने वाले कर्मियों को बढ़ावा देना।
    • लोक प्रशासन और कॉरपोरेट प्रशासन कार्यक्रमों में नैतिक नेतृत्व प्रशिक्षण को शामिल करना।
  • कानूनी और संस्थागत ढाँचे को मजबूत करना: रिश्वतखोरी को रोकने के लिए कड़े भ्रष्टाचार विरोधी कानून लागू करें और अपराधियों को समय पर दंड सुनिश्चित करना।
    • भ्रष्टाचार के मामलों को तेजी से निपटाएँ और दंड आरोपित किया जाए, जिसमें अवैध लाभ की जब्ती शामिल है।

भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी पर संयुक्त राष्ट्र की पहल:

  • अंतरराष्ट्रीय वाणिज्यिक लेन-देन में भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र घोषणा (1996) सार्वजनिक और निजी दोनों क्षेत्रों में ईमानदारी को प्रोत्साहित करती है।
  • सार्वजनिक अधिकारियों के लिए अंतरराष्ट्रीय आचार संहिता (1996) निष्ठा, निष्पक्षता, निष्पक्षता और पारदर्शिता पर मार्गदर्शक सिद्धांत प्रदान करती है।
  • भ्रष्टाचार के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन (2003) वैश्विक स्तर पर संपत्ति की वसूली और भ्रष्टाचार से निपटने के लिए एक कानूनी साधन प्रदान करता है।

एशिया प्रशांत के लिए ADB-OECD भ्रष्टाचार विरोधी कार्य योजना

  • भारत द्वारा हस्ताक्षरित यह योजना भ्रष्टाचार नियंत्रण में क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ावा देती है।

वैश्विक नेटवर्किंग

  • भ्रष्टाचार विरोधी प्रयासों के लिए सरकारों, निजी क्षेत्रों और नागरिक समाजों के बीच साझेदारी को प्रोत्साहित करता है।

  • अंतरराष्ट्रीय सहयोग बढ़ाना: व्यापक पैमाने पर भ्रष्टाचार से निपटने के लिए वैश्विक ढाँचों और साझेदारियों का लाभ उठाना।
  • नैतिकता शिक्षा को शामिल करना: ईमानदारी और जवाबदेही की संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए स्कूलों, कॉलेजों और कार्यस्थलों में नैतिकता प्रशिक्षण प्रारंभ करना।
    • व्यक्तियों को निर्णय लेने के कौशल से लैस करने के लिए वास्तविक दुनिया के परिदृश्य और नैतिक दुविधा कार्यशालाएँ शामिल करना।
  • सामाजिक उत्तरदायित्व को प्रोत्साहित करना: समुदायों को सार्वजनिक परियोजनाओं की निगरानी करने और सामाजिक ऑडिट के माध्यम से विसंगतियों की रिपोर्ट करने के लिए सशक्त बनाना।
    • शासन में सार्वजनिक भागीदारी के लिए सूचना के अधिकार (RTI) जैसे प्लेटफॉर्म का उपयोग करना।
  • ‘जीरो टाॅलरेंस’ की संस्कृति को बढ़ावा देना: शासन और कॉरपोरेट क्षेत्रों में नैतिक व्यवहार को सार्वजनिक रूप से मान्यता दें और प्रोत्साहित करना।
    • भ्रष्ट प्रथाओं को अस्वीकार करने वाले नैतिक लोक सेवकों और कॉरपोरेट कर्मियों के लिए पुरस्कृत करना।

निष्कर्ष 

रिश्वतखोरी विश्वास, योग्यता और नैतिक शासन को कमजोर करती है, असमानता और भ्रष्टाचार को बढ़ावा देती है। सर्वोच्च न्यायालय का लंबित निर्णय कि क्या रिश्वत देने से इनकार करने पर भी रिश्वत देना वर्ष 2018 से पहले के PCA के तहत अपराध माना जाएगा, भ्रष्टाचार कानूनों में अस्पष्टता को स्पष्ट करेगा, भारत में रिश्वतखोरी के विरुद्ध कानूनी ढाँचे एवं प्रवर्तन को मजबूत करेगा।

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