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पत्रकारिता में नैतिकता

Lokesh Pal January 28, 2025 03:29 238 0

संदर्भ

हाल ही में छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र में स्वतंत्र पत्रकार मुकेश चंद्राकर की हुई हत्या ने भारत में जिला स्तर के पत्रकारों के समक्ष आने वाली चुनौतियों और जोखिमों की ओर ध्यान आकर्षित किया है।

मामले की पृष्ठभूमि

  • मुकेश चंद्राकर छत्तीसगढ़ राज्य के एक स्वतंत्र पत्रकार थे। 
  • वर्ष 2021 में, मुकेश उन सात पत्रकारों के समूह में शामिल थे, जिन्होंने कोबरा जेंडरमे को रिहा करने के लिए सुरक्षा बलों को माओवादियों के साथ वार्ता करने में मदद की थी।
  • कथित तौर पर एक सड़क विकास परियोजना में भ्रष्टाचार को उजागर करने के कारण उनकी हत्या कर दी गई थी।

भारत में पत्रकारों के समक्ष चुनौतियाँ

  • हिंसा और हत्या: शारीरिक हमले, मारपीट तथा हत्याएँ,
    • छत्तीसगढ़ में पत्रकार मुकेश चंद्राकर की हत्या ने खोजी रिपोर्टिंग से जुड़े जोखिमों को प्रदर्शित किया है।
  • कानूनी और प्रशासनिक दबाव: मुकदमे, आपराधिक मानहानि के मामले तथा राजद्रोह कानूनों (जैसे, UAPA) का दुरुपयोग पत्रकारों को डराता है।
    • भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने SLAPP (सार्वजनिक भागीदारी के खिलाफ रणनीतिक मुकदमे) मामलों में वृद्धि देखी है, जिसमें पत्रकारों को आलोचनात्मक रिपोर्टिंग को दबाने के लिए तेजी से निशाना बनाया जा रहा है।
  • आर्थिक खतरे: जिला स्तर के पत्रकार प्रायः बिना अनुबंध के काम करते हैं, और प्रति स्टोरी 200-500 रुपये तक कमाते हैं।
  • डिजिटल और तकनीकी खतरे: साइबर उत्पीड़न, डॉक्सिंग और संचार की निगरानी बढ़ रही है, खासकर उन पत्रकारों के लिए जो शक्तिशाली संस्थाओं की आलोचना करते हैं।
    • भारत में एमनेस्टी इंटरनेशनल की ‘ट्रोल पैट्रोल’ परियोजना (वर्ष 2024) से पता चला है कि भारत में अधिकांश महिला पत्रकारों को ऑनलाइन दुर्व्यवहार का सामना करना पड़ता है, प्रायः उन्हें उनके काम के लिए निशाना बनाया जाता है।
  • क्षेत्रीय विविधताएँ
    • संघर्ष क्षेत्रों (जैसे, कश्मीर) को कई समूहों से दबाव का सामना करना पड़ता है।
    • छत्तीसगढ़ जैसे संसाधन संपन्न राज्यों को खनन और भूमि संबंधी मुद्दों से जुड़े खतरों का सामना करना पड़ता है।
    • सीमावर्ती क्षेत्र प्रतिबंधित पहुँच और राष्ट्रीय सुरक्षा चिंताओं से जूझते हैं।

भारत में प्रेस का विनियमन

  • भारत में प्रेस विनियमन की नींव संविधान के अनुच्छेद-19(1)(a) से शुरू होती है, जो भाषण तथा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की गारंटी प्रदान करता है।
  • हालाँकि संविधान में प्रेस की स्वतंत्रता का स्पष्ट रूप से उल्लेख नहीं किया गया है, लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने लगातार माना है कि प्रेस की स्वतंत्रता अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार में निहित है।
  • हालाँकि, यह स्वतंत्रता निरपेक्ष नहीं है। अनुच्छेद-19(2) निम्नलिखित आधारों पर उचित प्रतिबंध लगाने की अनुमति देता है:
    • राज्य की सुरक्षा
    • विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध
    • सार्वजनिक व्यवस्था
    • शिष्टता या नैतिकता
    • न्यायालय की अवमानना
    • मानहानि
    • अपराध के लिए उकसाना
    • भारत की संप्रभुता और अखंडता

वैधानिक नियामक निकाय

  • भारतीय प्रेस परिषद (PCI) प्रिंट मीडिया के लिए प्राथमिक नियामक निकाय के रूप में कार्य करती है।
    • प्रेस काउंसिल अधिनियम, 1978 के तहत स्थापित, यह कई महत्त्वपूर्ण जिम्मेदारियों के साथ एक अर्द्ध-न्यायिक निकाय के रूप में कार्य करता है:
    • यह नैतिक पत्रकारिता सुनिश्चित करते हुए प्रेस की स्वतंत्रता के प्रहरी के रूप में कार्य करता है।
    • PCI समाचार-पत्रों, समाचार एजेंसियों और पत्रकारों के खिलाफ शिकायतों की जाँच करता है और अनैतिक प्रथाओं के लिए प्रकाशनों की निंदा कर सकता है।
  • समाचार प्रसारण मानक प्राधिकरण (News Broadcasting Standards Authority- NBSA) समाचार चैनलों की देखरेख करता है।
    • PCI के विपरीत, NBSA एक स्व-नियामक निकाय है, जिसे समाचार प्रसारकों ने स्वयं बनाया है।
    • यह प्रसारण उद्योग द्वारा सरकारी नियंत्रण के बजाय स्व-नियमन के माध्यम से मानकों को बनाए रखने के प्रयास को दर्शाता है।
    • NBSA ने टेलीविजन सामग्री को विनियमित करने के लिए एक आचार संहिता तैयार की है।
      • NBA के समाचार प्रसारण मानक प्राधिकरण (News Broadcasting Standards Authority- NBSA) को संहिता के उल्लंघन के लिए प्रसारणकर्ता को चेतावनी देने, फटकार लगाने, निंदा करने, असहमति व्यक्त करने तथा एक लाख रुपये तक का जुर्माना लगाने का अधिकार है।
  • अवैधानिक
    • ब्रॉडकास्ट एडिटर्स एसोसिएशन।
    • भारतीय विज्ञापन मानक परिषद ने भी विज्ञापनों की विषय-वस्तु पर दिशा-निर्देश तैयार किए हैं।
    • ये समूह समझौतों के जरिए शासन करते हैं और इनके पास कोई वैधानिक शक्तियाँ नहीं होतीं।

कानूनी ढाँचा

  • प्रेस तथा पुस्तक पंजीकरण अधिनियम, 1867 के तहत समाचार-पत्रों को भारत के समाचार-पत्रों के रजिस्ट्रार के पास पंजीकरण कराना अनिवार्य है।
  • कार्यरत पत्रकार अधिनियम, 1955 पत्रकारों के पेशेवर हितों की रक्षा करता है, काम करने की स्थिति और वेतन के लिए मानक निर्धारित करता है।
  • सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 डिजिटल समाचार प्लेटफॉर्म के लिए प्रासंगिक हो जाता है। जैसे-जैसे पत्रकारिता ऑनलाइन होती जा रही है, यह कानून डिजिटल सामग्री प्रकाशन के विभिन्न पहलुओं को नियंत्रित करता है।


स्टिंग ऑपरेशन

  • ‘स्टिंग ऑपरेशन’ मीडिया द्वारा समाज में व्याप्त कुरीतियों को उजागर करने के लिए किया गया एक खोजी कार्य है।

‘स्टिंग ऑपरेशन’ की वैधता

  • किसी भी न्यायालय ने स्टिंग ऑपरेशन के संबंध में कोई नियम नहीं बनाए हैं और न्यायिक अधिकारियों ने अलग-अलग प्रतिक्रिया दी है।
  • संतुलन पर, न्यायिक निर्देश बड़े पैमाने पर स्टिंग ऑपरेशन को वैध मानते हैं, जबकि कुछ चुनिंदा लोगों ने इसे गोपनीयता के अधिकार के उल्लंघन तथा अपराधों के लिए संभावित उकसावे हेतु सवाल उठाया है।
    • वर्ष 2007 में, दिल्ली उच्च न्यायालय ने व्यापक जनहित में संसद सदस्यों को रिश्वत लेते हुए दिखाने वाले स्टिंग ऑपरेशन की रिकॉर्डिंग की वैधता को स्वीकार किया था।
    • हालाँकि, जब वायरटैप की बात आई, तो सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि वायरटैप ‘किसी व्यक्ति की निजता का उल्लंघन है।’

पत्रकारिता में नैतिकता

  • पत्रकारिता में नैतिकता उन सिद्धांतों, मानकों और दिशा-निर्देशों को संदर्भित करती है, जिनका पालन पत्रकार समाचार एकत्र करने, रिपोर्ट करने तथा प्रस्तुत करने की प्रक्रिया में करते हैं।
  • ये नैतिकताएँ मीडिया की विश्वसनीयता सुनिश्चित करती हैं और पत्रकारों एवं उनके दर्शकों के बीच विश्वास निर्माण में मदद करती हैं।

पत्रकारिता नैतिकता के प्रमुख घटक

  • सत्य और सटीकता: पत्रकारों को सत्य की रिपोर्ट करनी चाहिए, सटीक, सत्यापित तथा अच्छी तरह से शोध की गई जानकारी प्रदान करनी चाहिए।
    • वर्ष 2024 में, हिंदुस्तान टाइम्स ने कई स्रोतों से डेटा की पुष्टि करने के बाद दिल्ली वायु प्रदूषण के स्तर पर एक रिपोर्ट को सही किया।
  • स्वतंत्रता और निष्पक्षता: पत्रकारों को स्वतंत्र और निष्पक्ष रहना चाहिए, हितों के टकराव से बचना चाहिए और संतुलित दृष्टिकोण प्रस्तुत करना चाहिए।
  • निष्पक्षता और संतुलन: पत्रकारों को कई दृष्टिकोण प्रस्तुत करने चाहिए और कहानी के सभी पक्षों को सुनने की अनुमति देनी चाहिए।
    • किसानों के विरोध प्रदर्शन के दौरान कई समाचार आउटलेट्स ने सरकार और प्रदर्शनकारी किसानों दोनों को कवरेज दी तथा घटनाओं का संतुलित दृष्टिकोण प्रस्तुत किया।
  • नुकसान को कम करना: पत्रकारों को संवेदनशीलता के साथ काम करना चाहिए तथा व्यक्तियों या समुदायों को नुकसान पहुँचाने से बचना चाहिए, खासकर जब वे कमजोर समूहों को कवर कर रहे हों।
  • स्रोतों की गोपनीयता: पत्रकारों को गोपनीय स्रोतों की पहचान की रक्षा करनी चाहिए तथा आवश्यकता पड़ने पर गोपनीयता बनाए रखनी चाहिए।
  • निष्पक्षता और तटस्थता: पत्रकारों को तटस्थ रहने का प्रयास करना चाहिए और व्यक्तिगत राय को अपनी रिपोर्टिंग को प्रभावित नहीं करने देना चाहिए।

हचिन्स आयोग (Hutchins Commission)

  • हचिन्स आयोग, जिसे औपचारिक रूप से प्रेस की स्वतंत्रता पर आयोग के रूप में जाना जाता है, की स्थापना वर्ष 1947 में संयुक्त राज्य अमेरिका में की गई थी।
  • उद्देश्य: इसका प्राथमिक लक्ष्य लोकतांत्रिक मूल्यों को बढ़ावा देने तथा सार्वजनिक हित की सेवा करने में प्रेस की भूमिका का आकलन और पुनर्परिभाषित करना था।

आयोग ने प्रेस का मार्गदर्शन करने के लिए पाँच प्रमुख सिद्धांतों की रूपरेखा तैयार की

  1. प्रेस को दैनिक घटनाओं का सत्यपूर्ण, व्यापक विवरण ऐसे संदर्भ में प्रस्तुत करना चाहिए, जो उन्हें अर्थपूर्ण बनाए। परिप्रेक्ष्य महत्त्वपूर्ण है, केवल वस्तुनिष्ठता नहीं।
  2. प्रेस को टिप्पणी तथा आलोचना के लिए एक मंच के रूप में काम करना चाहिए।
  3. प्रेस को समाज में घटक समूहों की एक प्रतिनिधि तस्वीर प्रस्तुत करनी चाहिए; अर्थात् कोई रूढ़िबद्धता नहीं।
  4. प्रेस को सांस्कृतिक विरासत को प्रसारित करना चाहिए, समाज के लिए लक्ष्यों तथा मूल्यों को प्रस्तुत और स्पष्ट करना चाहिए।
  5. प्रेस को गोपनीय जानकारी तक पूरी पहुँच प्रदान करनी चाहिए, अर्थात् जनता के जानने के अधिकार को प्रतिबिंबित करना चाहिए।

पत्रकारिता में गांधीवादी नैतिकता

  • सत्य और अहिंसा के प्रबल समर्थक महात्मा गांधी पत्रकारिता को सामाजिक सुधार तथा राष्ट्र निर्माण के लिए एक शक्तिशाली साधन मानते थे।
  • उन्होंने रेखांकित किया कि समाचार-पत्रों का मूल उद्देश्य जन सेवा है।
  • गांधी ने कहा कि ‘पत्रकारिता का वास्तविक कार्य जनता के मन को शिक्षित करना है, न कि उसे वांछित और अवांछित छापों से भरना’।
  • गांधीवादी नैतिकता पत्रकारिता को सत्य, जिम्मेदारी और सामाजिक कल्याण की ओर ले जा सकती है:
    • सत्य: तथ्यों को सही-सही रिपोर्ट करना, फर्जी खबरों से बचना और स्रोतों के बारे में पारदर्शी रहना।
    • अहिंसा: हानिकारक या भड़काऊ रिपोर्टिंग से बचना। गरिमा का सम्मान करना तथा शांति को बढ़ावा देना।
    • ईमानदारी: नैतिक रहना, विज्ञापनदाताओं या राजनेताओं के दबाव का विरोध करना तथा गलतियों को सुधारना।
    • स्थानीय फोकस (स्वदेशी): स्थानीय कहानियों को प्राथमिकता देना और सांस्कृतिक मूल्यों का सम्मान करना।
    • निर्भीकता: सत्ता के सामने सच बोलना, अन्याय को चुनौती देना और सेंसरशिप का विरोध करना।

पत्रकारिता में नैतिकता की आवश्यकता

  • सार्वजनिक विश्वास बनाए रखना: नैतिक पत्रकारिता सटीकता तथा निष्पक्षता सुनिश्चित करके सार्वजनिक विश्वास का निर्माण और संरक्षण करती है।
  • जवाबदेही और पारदर्शिता सुनिश्चित करना: नैतिक पत्रकारिता के लिए सोर्सिंग तथा  रिपोर्टिंग में पारदर्शिता की आवश्यकता होती है, जिससे जनता को समाचार के आधार को समझने और संस्थानों को जवाबदेह बनाने में मदद मिलती है।
  • सूचना के अधिकार की रक्षा करना: पत्रकारिता को सत्य, निष्पक्ष जानकारी प्रदान करनी चाहिए, जो एक सूचित जनता और कार्यशील लोकतंत्र के लिए महत्त्वपूर्ण है।
  • गलत सूचना और दुष्प्रचार को रोकना: नैतिक पत्रकारिता तथ्यों की पुष्टि करके तथा जिम्मेदारी से रिपोर्टिंग करके गलत सूचना के प्रसार का विरोध करती है, जिससे गलत सूचना का प्रभाव कम होता है।
  • सामाजिक उत्तरदायित्व का समर्थन करना: नैतिक पत्रकारिता सार्वजनिक कल्याण को प्राथमिकता देती है, महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर रिपोर्टिंग करती है तथा सकारात्मक सामाजिक परिवर्तन को बढ़ावा देती है।
  • स्वस्थ लोकतंत्र को बढ़ावा देना: सटीक जानकारी प्रदान करके, नैतिक पत्रकारिता नागरिकों को सूचित निर्णय लेने में सक्षम बनाती है, जो एक स्वस्थ लोकतंत्र के लिए आवश्यक है।

पत्रकारिता में नैतिक दुविधाएँ

  • पत्रकारिता में नैतिक दुविधाएँ तब उत्पन्न होती हैं, जब पत्रकारों को ऐसी परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है, जहाँ उन्हें परस्पर विरोधी मूल्यों, सिद्धांतों या हितों के बीच चयन करना होता है।
  • ये दुविधाएँ अक्सर ईमानदारी, सच्चाई तथा सार्वजनिक हित के प्रति उनकी प्रतिबद्धता की परीक्षा लेती हैं।

पत्रकारिता में प्रमुख नैतिक दुविधाएँ यहाँ दी गई हैं

  • सत्य बनाम व्यक्तिगत सुरक्षा: पत्रकारों को प्रायः भ्रष्टाचार, अपराध या सत्ता के दुरुपयोग को उजागर करते समय अपने जीवन को खतरे का सामना करना पड़ता है।
  • जनहित बनाम गोपनीयता: पत्रकार अक्सर गोपनीय स्रोतों से जानकारी प्राप्त करते हैं। ऐसे स्रोतों का खुलासा करना विश्वास का उल्लंघन हो सकता है, लेकिन जनहित की सेवा के लिए यह आवश्यक हो सकता है।
  • संपादकीय स्वतंत्रता बनाम वाणिज्यिक दबाव: मीडिया संगठन प्रायः शक्तिशाली निगमों या सरकारों से मिलने वाले विज्ञापन राजस्व पर अत्यधिक निर्भर करते हैं।
    • ‘प्यू रिसर्च सेंटर’ के एक सर्वेक्षण में पाया गया कि 60% पत्रकारों का मानना ​​है कि विज्ञापन का बढ़ता दबाव समाचार कवरेज पर नकारात्मक प्रभाव डाल रहा है।
  • सनसनीखेज बनाम जिम्मेदार रिपोर्टिंग: डिजिटल मीडिया के युग में, पत्रकार सनसनीखेज समाचारों को प्राथमिकता देने के लिए प्रायः सामाजिक सद्भाव की उपेक्षा करते हैं।
    • दिल्ली दंगे (वर्ष 2020): दंगों के दौरान सनसनीखेज तथा ध्रुवीकरणकारी मीडिया कवरेज ने सांप्रदायिक तनाव को और बढ़ा दिया, कई चैनलों पर पक्षपातपूर्ण रिपोर्टिंग का आरोप लगाया गया।
  • निजता का अधिकार बनाम जनता का जानने का अधिकार: पत्रकारों को व्यक्तियों के निजता के अधिकार और जनता के हित के मामलों के बारे में जानने के अधिकार के बीच संतुलन बनाना चाहिए।
    • आरुषि तलवार हत्याकांड (वर्ष 2008): मीडिया ने तलवार परिवार के निजी जीवन में अत्यधिक दखल दिया, व्यक्तिगत विवरणों पर अटकलें लगाईं तथा त्रासदी को सनसनीखेज बनाया, जिससे नैतिक सीमाओं पर सवाल उठे।
  • कमजोर समूहों पर रिपोर्टिंग: कमजोर समूहों (बच्चों, शरणार्थियों या हिंसा के शिकार) से जुड़ी कहानियों में संवेदनशीलता की आवश्यकता होती है, लेकिन अगर उन्हें सनसनीखेज तरीके से पेश किया जाए तो वे अधिक ध्यान आकर्षित कर सकती हैं।
    • मैनुअल स्कैवेंजर्स की कहानियाँ: कवरेज में अक्सर श्रमिकों के संघर्षों तथा प्रणालीगत मुद्दों को मानवीय बनाने के बजाय उनके अमानवीय दृश्यों पर ध्यान केंद्रित किया जाता है, जिससे उपेक्षा को बढ़ावा मिलता है।

प्रेस की स्वतंत्रता पर अंतरराष्ट्रीय प्रावधान

मानव अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा (Universal Declaration of Human Rights- UDHR), 1948 

  • UDHR अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार कानून का आधारभूत दस्तावेज है तथा यह प्रेस की स्वतंत्रता को सार्वभौमिक अधिकार के रूप में स्थापित करता है।

नागरिक और राजनीतिक अधिकारों पर अंतरराष्ट्रीय वाचा (International Covenant on Civil and Political Rights- ICCPR), 1966

  • अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार को दोहराता है, जिसमें किसी भी मीडिया के माध्यम से सूचना और विचारों को प्राप्त करने तथा प्रदान करने की स्वतंत्रता शामिल है।
  • ICCPR एक कानूनी रूप से बाध्यकारी संधि है तथा इसे अनुमोदित करने वाले राज्य इन अधिकारों को बनाए रखने के लिए बाध्य हैं।

यूनेस्को की विंडहोक घोषणा, 1991

  • नामीबिया में यूनेस्को सम्मेलन के दौरान अपनाया गया यह घोषणा-पत्र लोकतंत्र तथा विकास के लिए आवश्यक स्वतंत्र, बहुलवादी और स्वतंत्र प्रेस के महत्त्व पर जोर देता है।
  • ‘विंडहोक घोषणा-पत्र’ के कारण संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस (3 मई) की घोषणा की गई।

नैतिक दुविधाओं का समाधान

  • व्यावसायिक आचार संहिता: जैसे सत्यनिष्ठा, निष्पक्षता, सटीकता और जवाबदेही।
  • नैतिक तर्क: न्याय, अखंडता और सामाजिक जिम्मेदारी जैसे नैतिक सिद्धांतों के आधार पर परस्पर विरोधी मूल्यों को संतुलित करना।
  • कानूनी ढाँचा: जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए मीडिया कानूनों और दिशा-निर्देशों का अनुपालन करना।
  • पारदर्शिता: हितों के टकराव का खुलासा करना और दर्शकों के साथ खुलापन बनाए रखना।

भारत में मीडिया स्वतंत्रता पर प्रमुख रिपोर्टें

विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक

  • रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स (Reporters Without Borders- RSF) द्वारा प्रकाशित यह वार्षिक रिपोर्ट कई संकेतकों के आधार पर प्रेस स्वतंत्रता को मापती है। 
  • वर्ष 2024 की रिपोर्ट में भारत को 180 देशों में से 159वें स्थान पर रखा गया है। 
  • यह रैंकिंग मीडिया की स्वतंत्रता, मीडिया स्वामित्व के संकेंद्रण तथा पत्रकारों की सुरक्षा के बारे में चिंताओं को दर्शाती है।
  • रिपोर्ट में विशेष रूप से स्वतंत्र मीडिया पर बढ़ते दबाव तथा प्रेस की स्वतंत्रता को बाधित करने के लिए नियामक तंत्र के उपयोग पर ध्यान दिया गया है।

पत्रकारों की सुरक्षा समिति (Committee to Protect Journalists- CPJ) की रिपोर्ट

  • CPJ वैश्विक स्तर पर प्रेस की स्वतंत्रता पर हमलों का विस्तृत दस्तावेज तैयार करता है।
  • उनकी रिपोर्ट भारत में पत्रकारों को डराने-धमकाने, गिरफ्तार करने तथा हत्याओं के विशिष्ट मामलों को उजागर करती है।
  • संगठन ड्यूटी के दौरान मारे गए पत्रकारों का डेटाबेस रखता है तथा इन मामलों की जाँच की निगरानी करता है।
  • वे विशेष रूप से संघर्षरत क्षेत्रों में काम करने वाले या भ्रष्टाचार को कवर करने वाले स्थानीय पत्रकारों की भेद्यता पर जोर देते हैं।

आगे की राह

  • मीडिया शिक्षा तथा प्रशिक्षण को मजबूत बनाना: पत्रकारिता स्कूलों को सत्य, निष्पक्षता और जिम्मेदारी जैसे मूल मूल्यों को पढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
    • श्रमजीवी पत्रकारों के लिए नियमित प्रशिक्षण कार्यशालाएँ भी नैतिक दुविधाओं और उनसे निपटने के तरीकों के बारे में उनकी समझ को बेहतर बनाने में मदद कर सकती हैं।
  • जवाबदेही तथा पारदर्शिता को बढ़ावा देना: मीडिया घरानों को पक्षपातपूर्ण या अनैतिक रिपोर्टिंग के बारे में शिकायतों को दूर करने के लिए आंतरिक निगरानी या लोकपाल प्रणाली स्थापित करनी चाहिए।
  • सनसनीखेज और ‘क्लिकबेट’ पत्रकारिता को विनियमित करना: समाचार संगठनों को सनसनीखेज रिपोर्टिंग के बजाय तथ्यात्मक, अच्छी तरह से शोध की गई रिपोर्टिंग को प्राथमिकता देने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
    • सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती दिशा-निर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम, 2021 में यह अनिवार्य किया गया है कि डिजिटल समाचार प्रकाशक आचार संहिता का पालन करें।
  • मीडिया आचार संहिता का क्रियान्वयन तथा प्रवर्तन: प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया जैसी मीडिया संस्थाओं को नैतिक संहिताओं को संशोधित करना चाहिए तथा उन्हें सख्ती से लागू करना चाहिए।
    • अखिल भारतीय समाचार-पत्र संपादक सम्मेलन (AINEC) ने पत्रकारों के लिए एक आचार संहिता विकसित की है।
  • जनता के बीच मीडिया साक्षरता को बढ़ावा देना: मीडिया साक्षरता को बढ़ावा देने वाले शैक्षिक अभियान पाठकों को विश्वसनीय स्रोतों को पहचानने और विश्वसनीय पत्रकारिता तथा गलत सूचना के बीच अंतर करने में मदद कर सकते हैं।
  • तथ्य-जाँच संगठनों के साथ सहयोग करना: स्वतंत्र तथ्य-जाँच संगठनों के साथ साझेदारी समाचार रिपोर्टिंग की सटीकता को बढ़ा सकती है।
  • कॉरपोरेट और राजनीतिक प्रभाव को कम करना: पत्रकारों और मीडिया घरानों को निष्पक्ष रिपोर्टिंग सुनिश्चित करने के लिए कॉरपोरेट और राजनीतिक दबावों से मुक्त होना चाहिए।

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