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इंडस्ट्रियल अल्कोहल पर उत्पाद शुल्क

Lokesh Pal April 06, 2024 05:55 163 0

संदर्भ 

उच्चतम न्यायालय में 9 न्यायाधीशों की पीठ के अंतर्गत सुनवाई चल रही है कि राज्य सरकारों को इंडस्ट्रियल अल्कोहल पर उत्पाद शुल्क लगाने का अधिकार है अथवा नहीं

संबंधित तथ्य 

  • शराब पर उत्पाद शुल्क राज्यों के वित्त के लिए एक प्रमुख घटक है।
  • शराब की खपत से अपनी आय बढ़ाने के लिए आमतौर पर राज्य सरकारों द्वारा अतिरिक्त उत्पाद शुल्क लगाया जाता है।

इंडस्ट्रियल अल्कोहल (Industrial Alcohol)

  • इंडस्ट्रियल अल्कोहल को विकृत अल्कोहल (Denatured Alcohol) भी कहा जाता है।
    • औद्योगिक अल्कोहल को उपभोग के लिए अनुपयुक्त बनाने की प्रक्रिया को विकृतीकरण (Denaturation) कहा जाता है, जिसके लिए औद्योगिक अल्कोहल में मेथनॉल या ऐसे अन्य रसायन का मिश्रण किया जाता है।
    • विकृतीकरण की प्रक्रिया अल्कोहल को विषाक्त और अनुपयोगी बना देती है।
  • इसका प्राथमिक उपयोग पेय पदार्थ के बजाय औद्योगिक, वाणिज्यिक और वैज्ञानिक क्षेत्रों में होता है।
  • अनुप्रयोग
    • कच्चा माल: यह विभिन्न उद्योगों में आवश्यक सामग्री के रूप में कार्य करता है।
    • विलायक (Solvent): इसका उपयोग पेंट, वार्निश और कलई करने में किया जाता है।
    • ईंधन: इसका उपयोग जैव ईंधन के उत्पादन में किया जाता है, साथ ही प्रदूषण को कम करने के लिए इसे जैव ईंधन के साथ मिश्रित किया जाता है।
    • औषधि: कई औषधियों के निर्माण में इसकी आवश्यकता महत्त्वपूर्ण रूप से होती है।
    • रासायनिक प्रक्रियाएँ: अनेक रासायनिक प्रतिक्रियाओं में इसकी भूमिका महत्त्वपूर्ण है।

भारतीय संविधान में कानूनी प्रावधान 

  • राज्य सूची (प्रविष्टि 8/ Entry 8): यह सूची राज्य सरकारों को ‘नशीली शराब’ के उत्पादन, कब्जे, परिवहन, खरीद और बिक्री पर कानून बनाने की शक्ति प्रदान करती है।
  • संघ सूची (प्रविष्टि 52) और समवर्ती सूची (प्रविष्टि 33)
    • संघ सूची की प्रविष्टि 52 के अनुसार, उद्योगों पर नियंत्रण का अधिकार केंद्र सरकार को दिया गया है।
    • प्रविष्टि 33 (समवर्ती सूची) केंद्र और राज्य सरकारों दोनों को उद्योगों के विनियमन की अनुमति देती है:
      • संबंधित प्रविष्टियों में इन उद्योगों की घोषणा संसद द्वारा की जाती है।
  • समवर्ती सूची: समवर्ती सूची के विषयों को राज्य और केंद्र दोनों द्वारा विनियमित किया जा सकता है। हालाँकि केंद्र सरकार द्वारा निर्मित कानून को लागू करने के लिए राज्य सरकारों की बाध्यता होती है।
  • औद्योगिक अल्कोहल का विनियमन: औद्योगिक अल्कोहल से संबंधित सारे प्रावधान उद्योग विकास और विनियमन अधिनियम, 1951 (Industries Development and Regulation Act- IDRA) के अंतर्गत आते हैं।

भारतीय न्यायपालिका के पिछले निर्णय

सिंथेटिक्स एंड केमिकल्स लिमिटेड बनाम उत्तर प्रदेश सरकार (1989)

  • न्यायालय का निर्णय
    • वर्ष 1989 में सात न्यायाधीशों की संवैधानिक पीठ ने ‘सिंथेटिक्स एंड केमिकल्स लिमिटेड बनाम उत्तर प्रदेश सरकार’ वाद पर अपना फैसला सुनाया।
    • उच्चतम न्यायालय ने स्पष्ट निर्णय दिया था कि राज्य सूची की प्रविष्टि 8 के अंतर्गत राज्य सरकारों का अधिकार ‘नशीली शराब’ को विनियमित करने तक सीमित है।
  • राज्य सरकार की शक्तियों की व्याख्या
    • राज्य सरकारों की शक्ति मुख्य रूप से उपभोग योग्य अल्कोहल विनियमन से संबंधित है, यद्यपि ये सरकारें औद्योगिक अल्कोहल के मानवीय उपभोग संबंधी दुरुपयोग को रोकने में सक्षम हैं।
    • उच्चतम न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि औद्योगिक अल्कोहल पर करों और अन्य शुल्कों का उद्देश्य राजस्व की प्राप्ति है, फलस्वरूप इस अधिनियम के तहत इसके दुरुपयोग को विनियमित नहीं किया जा सकता है।
  • केंद्र सरकार का विशेषाधिकार: उच्चतम न्यायालय ने पुष्टि की है कि केवल केंद्र सरकार के पास इंडस्ट्रियल अल्कोहल पर कर या अन्य शुल्क लगाने का अधिकार है।
  • चौधरी टीका रामजी बनाम उत्तर प्रदेश (1956) का संदर्भ
    • उच्चतम न्यायालय ने ‘सिंथेटिक्स एंड केमिकल्स लिमिटेड बनाम उत्तर प्रदेश, 1989’  मामले में ‘चौधरी टीका रामजी बनाम उत्तर प्रदेश’ मामले में दिए गए अपने पूर्व निर्णय पर विचार नहीं किया।
    • चौधरी टीका रामजी बनाम उत्तर प्रदेश, 1956 मामले में, उच्चतम न्यायालय ने गन्ना आपूर्ति और खरीद को विनियमित करने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार के कानून को बरकरार रखा।
      • उद्योग विकास और विनियमन अधिनियम (Industries Development and Regulation Act- IDRA) की धारा 18-G के आधार पर उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा निर्मित कानून को चुनौती का सामना करना पड़ा, किंतु चीनी उद्योग के विनियमन पर केंद्र सरकार को विशेष अधिकार प्राप्त है।
      • इस अधिनियम की धारा 18-G के अंतर्गत चीनी उद्योग के सभी पहलुओं को शामिल नहीं किया गया है, परिणामस्वरूप राज्य सरकारों को समवर्ती सूची की प्रविष्टि 33 के तहत कानून बनाने की अनुमति मिलती है।

इंडस्ट्रियल अल्कोहल विनियमन पर कानूनी लड़ाई

  • उत्तर प्रदेश सरकार की अधिसूचना, 1999
    • वर्ष 1999 में उत्तर प्रदेश सरकार ने एक अधिसूचना लागू की।
    • इस अधिसूचना में ‘उत्तर प्रदेश उत्पाद शुल्क अधिनियम, 1910’ के तहत लाइसेंस धारकों के लिए बिक्री हेतु 15% शुल्क का निर्धारण किया गया।
      • इस शुल्क को पेय शराबों तथा ईंधन में विलायक के रूप में इस्तेमाल की जाने वाली शराबों पर लागू किया गया था।
      • इसके अतिरिक्त, इसमें ऐसी प्रक्रियाओं को भी शामिल किया गया था, जहाँ अंतिम उत्पाद में अल्कोहल की मात्रा उपलब्ध होती थी।
  • चुनौती और उच्च न्यायालय का फैसला (फरवरी 2004)
    • एक मोटर तेल और डीजल वितरक ने इस शुल्क संबंधी अधिसूचना का विरोध किया।
    • तर्क दिया गया कि IDRA की धारा 18-G में उल्लिखित प्रावधानों के अनुसार, इंडस्ट्रियल अल्कोहल पर केवल केंद्र सरकार का अधिकार होता है।
  • फरवरी 2004 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने इस अधिसूचना को अमान्य घोषित कर दिया।
    • इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि राज्य सरकार के पास विकृत शराबों के विनियमन का अधिकार नहीं है, किंतु पीने योग्य शराब पर उनका नियंत्रण है।
    • बाद में, उच्च न्यायालय ने राज्य सरकारों को 10% प्रति वर्ष ब्याज के साथ एकत्रित शुल्क को वापस करने का आदेश दिया।
  • अगस्त 2004 में उच्चतम न्यायालय का हस्तक्षेप: इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ उच्चतम न्यायालय में अपील की गई, परिणामस्वरूप अगस्त 2004 में उच्च न्यायालय के फैसले पर रोक लगा दी गई।
  • बड़ी संवैधानिक पीठ (2007) और अंतिम निर्णय (2010) 
    • उच्चतम न्यायालय ने चौधरी टीका रामजी मामले की अनदेखी को ध्यान में रखते हुए, वर्ष 2007 में मामले को एक बड़ी पीठ को सौंप दिया।
    • अंततः वर्ष 2010 में इंडस्ट्रियल अल्कोहल के संबंध में, ‘धारा 18-G के अंतर्गत केंद्र के अधिकार’ बनाम ‘समवर्ती सूची की प्रविष्टि 33 के तहत राज्यों की शक्तियों’ का निर्धारण करने के लिए नौ न्यायाधीशों की संवैधानिक पीठ बनाई गई।

उत्तर प्रदेश राज्य की ओर से पेश की गईं दलीलें 

  • ‘नशीली शराब’ की व्याख्या
    • राज्य सूची के अनुसार, नशीली शराब का अर्थ अल्कोहल युक्त कोई भी तरल पदार्थ है।
    • शराब, आत्मा और नशा जैसे शब्दों का इस्तेमाल वर्ष 1947 में संविधान निर्माण के  पहले निर्मित शराब कानूनों में किया जाता था।
  • केंद्र का अधिकार और उत्पाद
    • प्रविष्टि 52 के अनुसार, केंद्र सरकार के नियंत्रण के अंतर्गत इंडस्ट्रियल अल्कोहल जैसे उत्पाद शामिल नहीं हैं।
    • औद्योगिक अल्कोहल विनियमन को नियंत्रित करने के लिए, केंद्र सरकार को IDRA की धारा 18-G के तहत आदेश जारी करना चाहिए, क्योंकि ऐसे आदेशों के अभाव में पूरा नियंत्रण राज्य सरकारों के पास चला जाता है।
  • राज्य सरकारों की शक्तियों का संरक्षण
    • उत्तर प्रदेश सरकार ने पिछले मामले में न्यायालय की राय का हवाला देते हुए राज्यों के अधिकार को कमजोर करने के खिलाफ चेतावनी दी है।
    • इस बात पर विशेष जोर दिया गया है कि राज्यों के अधिकारों को केंद्र से कम महत्त्वपूर्ण नहीं समझा जाना चाहिए तथा उनकी शक्तियों को संरक्षित किया जाना चाहिए।

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