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राज्यों एवं राज्य सार्वजनिक विश्वविद्यालयों के माध्यम से गुणवत्तापूर्ण उच्च शिक्षा का विस्तार

Lokesh Pal February 12, 2025 02:41 14 0

संदर्भ

हाल ही में नीति आयोग ने ‘राज्यों तथा राज्य सार्वजनिक विश्वविद्यालयों के माध्यम से गुणवत्तापूर्ण उच्च शिक्षा का विस्तार’ (Expanding Quality Higher Education through States and State Public Universities) शीर्षक से एक नीति संबंधी रिपोर्ट प्रकाशित की।

उच्च शिक्षा के बारे में

  • तृतीयक शिक्षा स्कूली शिक्षा के बाद का चरण है तथा इसे उच्च शिक्षा के रूप में जाना जाता है। 
  • उच्च शिक्षा (HE) का आशय इस प्रकार है, जो विश्वविद्यालय या कॉलेज में प्रदान की जाती है तथा इसमें स्कूली शिक्षा के वरिष्ठ माध्यमिक स्तर से परे अध्ययन कार्यक्रम शामिल होते हैं। 
  • उच्च शिक्षा या तृतीयक शिक्षा विश्वविद्यालयों में शिक्षा को संदर्भित करती है- सार्वजनिक तथा निजी दोनों, कॉलेज और पेशेवर और तकनीकी प्रशिक्षण संस्थान।

भारत में शिक्षा प्रणाली

  • भारत में औपचारिक शिक्षा तीन अलग-अलग चरणों या स्तरों पर दी जाती है, ये हैं: प्राथमिक, माध्यमिक और तृतीयक। 
  • प्राथमिक तथा माध्यमिक शिक्षा स्कूल में दी जाने वाली शिक्षा से संबंधित है और स्कूली शिक्षा के दायरे में आती है।

रिपोर्ट के मुख्य बिंदु

  • शिक्षा पर खर्च पर मुख्य बिंदु
    • राज्य सकल घरेलू उत्पाद के प्रतिशत के रूप में जम्मू और कश्मीर में शिक्षा पर सबसे अधिक व्यय 8.11% है, इसके बाद मणिपुर (7.25%), मेघालय (6.64%), त्रिपुरा (6.19%) हैं। 
    • राज्य सकल घरेलू उत्पाद के प्रतिशत के रूप में कम शिक्षा व्यय वाले राज्य: दिल्ली (1.67%), तेलंगाना (2%), कर्नाटक (2.01%)।
  • उच्च शिक्षा व्यय में रुझान
    • उच्च शिक्षा पर प्रति युवा व्यय में वृद्धि: ₹2,174 (वर्ष 2005-06) → ₹4,921 (वर्ष 2019-20)।
    • प्रति युवा व्यय में शीर्ष व्ययकर्ता: केरल, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना।
    • प्रति युवा व्यय में पिछड़ने वाले राज्य: राजस्थान, पंजाब, छत्तीसगढ़।
  • GSDP के प्रतिशत के रूप में उच्च शिक्षा पर खर्च
    • उच्चतम: बिहार – 1.56%
      • जम्मू और कश्मीर – 1.53%
      • मणिपुर – 1.45%
    • सबसे कम: तेलंगाना – 0.18%
      • गुजरात, राजस्थान – 0.23% प्रत्येक
  • विश्वविद्यालय घनत्व तथा अभिगम्यता
    • राष्ट्रीय औसत: प्रति लाख जनसंख्या पर 0.8 विश्वविद्यालय।
    • उच्चतम घनत्व: सिक्किम (10.3)
      • इसके बाद अरुणाचल प्रदेश, लद्दाख, हिमाचल प्रदेश, मेघालय, उत्तराखंड हैं।
    • न्यूनतम घनत्व: बिहार (0.2)
      • इसके बाद उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र (राष्ट्रीय औसत से नीचे) का स्थान है।
  • लैंगिक आधारित उच्च शिक्षा नामांकन रुझान
    • पुरुषों की तुलना में महिलाओं की नामांकन दर अधिक: केरल, छत्तीसगढ़, हिमाचल प्रदेश (महिला शिक्षा के लिए सफल मॉडल)।
    • संतुलित पुरुष-महिला नामांकन: चंडीगढ़, मिजोरम, अंडमान तथा निकोबार द्वीपसमूह।

भारत में प्रकार के अनुसार विश्वविद्यालयों की संख्या

  • केंद्रीय विश्वविद्यालय (Central University): केंद्र सरकार के अधिनियम द्वारा स्थापित या निगमित।
    • कुल: 53 केंद्रीय विश्वविद्यालय तथा दूरस्थ शिक्षा के लिए 1 केंद्रीय मुक्त विश्वविद्यालय।
  • राज्य सार्वजनिक विश्वविद्यालय (State Public University): प्रांतीय अधिनियम या राज्य अधिनियम द्वारा स्थापित या निगमित।
    • कुल: 423 राज्य सार्वजनिक विश्वविद्यालय तथा प्रौद्योगिकी आधारित दूरस्थ शिक्षा के लिए 16 राज्य मुक्त विश्वविद्यालय।
  • निजी विश्वविद्यालय: प्रायोजक निकाय (सोसायटी, सार्वजनिक ट्रस्ट, या कंपनी अधिनियम, 1956 की धारा 25 के तहत पंजीकृत कंपनी) द्वारा राज्य या केंद्रीय अधिनियम के माध्यम से स्थापित।
    • कुल: 391 निजी विश्वविद्यालय।
  • डीम्ड-टू-बी यूनिवर्सिटी (Deemed-to-be University): UGC अधिनियम, 1956 की धारा 3 के तहत केंद्र सरकार द्वारा घोषित उच्च प्रदर्शन करने वाला संस्थान।
    • उपप्रकार: सरकारी, सरकारी सहायता प्राप्त, निजी।
    • कुल: 124 डीम्ड विश्वविद्यालय।
  • राष्ट्रीय महत्त्व का संस्थान (Institution of National Importance- INI): संसद के अधिनियम द्वारा स्थापित तथा राष्ट्रीय महत्त्व का संस्थान घोषित (जैसे, IITs, NITs, IIMs)।
    • कुल: 153 राष्ट्रीय महत्त्व का संस्थान (INIs)
      • भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IITs): 23
      • भारतीय प्रबंधन संस्थान (IIMs): 21
  • राज्य विधानमंडल अधिनियम के तहत संस्था: राज्य विधानमंडल अधिनियम द्वारा स्थापित या निगमित।
    • कुल: 6 संस्थान।

मुख्य आँकड़े 

  • कुल छात्र नामांकन (वर्ष 2021-22): उच्च शिक्षा संस्थानों में लगभग 4.33 करोड़ छात्र।
  • उच्च शिक्षा में शिक्षकों की कुल संख्या (वर्ष 2021-22): सभी प्रकार के उच्च शिक्षा संस्थानों में 15.98 लाख शिक्षक।
  • उच्च शिक्षा में छात्र-शिक्षक अनुपात (Pupil-Teacher Ratio-PTR): प्रति शिक्षक लगभग 23 छात्र (वर्ष 2021-22)।

ऐतिहासिक आयोग तथा उनका प्रभाव: राधाकृष्णन आयोग (वर्ष 1948-49)

  • नेतृत्व: डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन
  • मुख्य सिफारिशें 
    • विश्वविद्यालयों को केवल संबद्ध निकाय बनने के बजाय शिक्षण संस्थान बनना चाहिए।
    • शैक्षणिक गतिविधियों के समन्वय और मानकों को बनाए रखने के लिए वर्ष 1956 में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) की स्थापना।
    • उच्च शिक्षा के लिए क्षेत्रीय भाषाओं पर जोर, अंग्रेजी को द्वितीयक माध्यम के रूप में।
    • अनुसंधान और व्यावसायिक शिक्षा को बढ़ावा देना।

कोठारी आयोग (वर्ष 1964- 1966)

  • नेतृत्व: डॉ. दौलत सिंह कोठारी
  • मुख्य सिफारिशें
    • शिक्षा पर व्यय सकल घरेलू उत्पाद का 6% प्राप्त होना (यह लक्ष्य अभी तक पूरा नहीं हुआ है) चाहिए।
    • विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी शिक्षा पर ध्यान केंद्रित करना।
    • शिक्षण तथा सीखने की प्रक्रियाओं में गुणात्मक सुधार।

राष्ट्रीय ज्ञान आयोग (वर्ष 2005)

  • उद्देश्य: भारत को ज्ञान अर्थव्यवस्था में बदलने के लिए नीतियों पर प्रधानमंत्री को सलाह देना।
  • मुख्य सिफारिशें
    • वर्ष 2015 तक 15% सकल नामांकन अनुपात (GER) प्राप्त करने के लिए 1,500 विश्वविद्यालयों की स्थापना।
    • उत्कृष्टता के केंद्र के रूप में 50 राष्ट्रीय विश्वविद्यालयों का निर्माण।
    • स्व-नियमन के साथ विश्वविद्यालय स्वायत्तता।
    • उच्च शिक्षा के लिए एक स्वतंत्र विनियामक प्राधिकरण की स्थापना।
    • उच्च शिक्षा में व्यावसायिक प्रशिक्षण का एकीकरण।
    • IIT और IIM जैसे संस्थानों का पूर्ण विश्वविद्यालयों में विस्तार।

भारतीय उच्च शिक्षा: प्राचीन काल से आधुनिक काल तक

  • प्राचीन भारतीय उच्च शिक्षा (10वीं शताब्दी से पूर्व)
    • दर्शन: शिक्षा का स्तर समग्र था, जिसमें केवल अकादमिक शिक्षा के बजाय ज्ञान (विद्या), नैतिकता तथा कौशल विकास पर ध्यान केंद्रित किया जाता था।
    • गुरुकुल प्रणाली
      • शिक्षक (गुरु): शिष्य परंपरा जिसमें ज्ञान के मौखिक संचरण पर जोर दिया जाता है।
      • प्रसिद्ध गुरुकुल: काशी, उज्जैन और पुष्पगिरी में स्थित हैं।
    • प्रारंभिक विश्वविद्यालय
    • तक्षशिला (6वीं शताब्दी ईसा पूर्व – 5वीं शताब्दी ई.): विश्व का पहला दर्ज विश्वविद्यालय।
      • उल्लेखनीय विद्वान: चाणक्य (अर्थशास्त्र), पाणिनि (संस्कृत व्याकरण), चरक (चिकित्सा)।
    • नालंदा विश्वविद्यालय (5वीं शताब्दी ई.पू. – 12वीं शताब्दी ई.पू.): 10,000 से अधिक छात्रों और 2,000 शिक्षकों वाला पहला आवासीय विश्वविद्यालय।
      • चीन, कोरिया, जापान, तिब्बत, मंगोलिया और फारस के विद्वानों को आकर्षित किया।
      • बख्तियार खिलजी (1193 ई.) द्वारा नष्ट कर दिया गया।
    • विक्रमशिला विश्वविद्यालय (8वीं-12वीं शताब्दी ई.): बौद्ध अध्ययन तथा तांत्रिक शिक्षा के लिए जाना जाता है।
      • इस अवधि के दौरान वल्लभी, उदंतपुरी तथा पुष्पगिरी विश्वविद्यालय भी संचालित किए गए।
    • प्राचीन उच्च शिक्षा की विशेषताएँ
      • व्यावहारिक ज्ञान के साथ बहुविषयक दृष्टिकोण।
      • अंतरराष्ट्रीय छात्रों के साथ वैश्विक ज्ञान केंद्र।
      • बड़ी पुस्तकालयों के साथ आवासीय प्रणाली (उदाहरण के लिए– नालंदा में धर्मगंजा नामक एक पुस्तकालय था)।
  • मध्यकालीन काल (10वीं-18वीं शताब्दी)
    • आक्रमणों तथा विनाश के कारण प्राचीन विश्वविद्यालयों का पतन।
    • अरबी, फारसी, कानून और धर्मशास्त्र पर ध्यान केंद्रित करने वाले मदरसों (इस्लामी शिक्षण केंद्र) का उदय।
    • मुगल काल में दिल्ली, आगरा और फतेहपुर सीकरी में शिक्षण केंद्रों की स्थापना हुई।
    • सम्राट अकबर के ‘दीन-ए-इलाही’ ने विभिन्न धर्मों के बीच ज्ञान के आदान-प्रदान को बढ़ावा दिया।
    • हिंदू मंदिरों और मठों ने अनौपचारिक शिक्षण परंपराओं को जारी रखा।
  • औपनिवेशिक काल (18वीं-20वीं शताब्दी)
    • स्वदेशी शिक्षण केंद्रों का विनाश तथा ब्रिटिश शिक्षा नीतियों को लागू करना।
    • माउंट स्टुअर्ट एलफिंस्टन्स मिनट्स (वर्ष 1823) तथा मैकाले मिनट्स (वर्ष 1835) ने पारंपरिक भारतीय ज्ञान पर अंग्रेजी शिक्षा को बढ़ावा दिया।
    • आधुनिक विश्वविद्यालयों की शुरुआत।
      • कलकत्ता विश्वविद्यालय, बॉम्बे विश्वविद्यालय तथा मद्रास विश्वविद्यालय (वर्ष 1857) लंदन विश्वविद्यालय मॉडल पर आधारित थे।
      • वैज्ञानिक अनुसंधान के बजाय प्रशासनिक तथा लिपिकीय शिक्षा पर ध्यान केंद्रित किया गया।
    • राष्ट्रवादी शिक्षा आंदोलनों का उदय
      • रबींद्रनाथ टैगोर का विश्वभारती विश्वविद्यालय (वर्ष 1921 में शांतिनिकेतन में)।
      • बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) (वर्ष 1916 में मदन मोहन मालवीय द्वारा स्थापित)।
      • अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (AMU) (वर्ष 1875 में सर सैयद अहमद खान द्वारा स्थापित)।
  • स्वतंत्रता के बाद का युग (वर्ष 1947- वर्ष 2000)
    • केंद्रीय तथा राज्य विश्वविद्यालयों के साथ उच्च शिक्षा के विस्तार पर ध्यान केंद्रित करना।
    • भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) और भारतीय प्रबंधन संस्थान (IIM) की स्थापना।
      • भारत के स्वतंत्रता-पश्चात औद्योगिकीकरण को गति देने के लिए विश्वस्तरीय इंजीनियर तैयार करने वाले संस्थानों के निर्माण के लिए सरकार समिति (वर्ष 1945) की सिफारिशों के बाद, वर्ष 1951 में खड़गपुर में पहला  IIT स्थापित किया गया।
      • 1950 के दशक के अंत में, भारत के योजना आयोग ने भारत में गुणवत्तापूर्ण प्रबंधन शिक्षा की आवश्यकता को पूरा करने के लिए प्रबंधन संस्थानों की स्थापना की सिफारिश की, जिसके बाद वर्ष 1961 में कलकत्ता में पहला IIM स्थापित किया गया।
    • उच्च शिक्षा को विनियमित करने के लिए विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) अधिनियम, 1956।
  • राष्ट्रीय शिक्षा नीतियाँ (NEP 1968, NEP 1986, NEP 1992) का उद्देश्य सार्वभौमिक पहुँच तथा अनुसंधान विकास था।
    • 1990 तथा 2000 के दशक में तेजी से निजीकरण हुआ।
  • समकालीन उच्च शिक्षा (वर्ष 2000-वर्तमान)
    • विश्व की दूसरी सबसे बड़ी उच्च शिक्षा प्रणाली (1,100+ विश्वविद्यालय, 50,000+ कॉलेज)।
    • राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020
      • बहुविषयक विश्वविद्यालय और समग्र शिक्षा।
      • वर्ष 2035 तक सकल नामांकन अनुपात (GER) का लक्ष्य 50%।
      • एकेडमिक बैंक ऑफ क्रेडिट (ABC), कई प्रवेश-निकास विकल्प।
    • डिजिटल लर्निंग (SWAYAM, NPTEL, e-पाठशाला) पर जोर देना।
    • अनुसंधान एवं विकास निवेश और वैश्विक सहयोग।

उच्च शिक्षा में नियामक निकाय

  • विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC): UGC अधिनियम, 1956 द्वारा स्थापित, विश्वविद्यालय शिक्षा के मानकों का समन्वय तथा रखरखाव करता है, विश्वविद्यालयों को अनुदान प्रदान करता है।
  • अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (AICTE): AICTE अधिनियम, 1987 के तहत स्थापित, गुणवत्तापूर्ण तकनीकी शिक्षा को बढ़ावा देता है और नियंत्रित करता है, तकनीकी संस्थानों के लिए मानदंड निर्धारित करता है।
  • राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (NMC): भारतीय चिकित्सा परिषद संशोधन अधिनियम, 2019 के माध्यम से भारतीय चिकित्सा परिषद (MCI) को प्रतिस्थापित किया, चिकित्सा शिक्षा और मानकों को नियंत्रित करता है।
  • भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR): कृषि अनुसंधान और शिक्षा विभाग के तहत एक स्वायत्त संगठन, वर्ष 1929 में स्थापित, कृषि शिक्षा और अनुसंधान की देखरेख करता है।
  • राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद (NCTE): राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद अधिनियम, 1993 द्वारा गठित, शिक्षक शिक्षा को नियंत्रित करता है, शिक्षक प्रशिक्षण संस्थानों के लिए मानदंड निर्धारित करता है।

भारत में उच्च शिक्षा में प्रमुख चुनौतियाँ

शिक्षा की गुणवत्ता

  • खराब अनुसंधान परिणाम: वैश्विक अनुसंधान प्रकाशनों तथा पेटेंटों में भारत का स्थान निम्न है।
    • अनुसंधान एवं विकास के लिए धन की कमी, विशेष रूप से राज्य सार्वजनिक विश्वविद्यालयों (SPU) में।
    • आलोचनात्मक सोच तथा नवाचार के बजाय रटने पर अधिक जोर दिया जाता है।
  • पुराना पाठ्यक्रम: शिक्षा तथा उद्योग की आवश्यकताओं के बीच बेमेल सामंजस्य बना हुआ है।
    • धीमी गति से पाठ्यक्रम अद्यतन 21वीं सदी के कौशल को संबोधित करने में विफल रहे हैं।
    • अधिक अंतःविषय सीखने तथा शोध-उन्मुख पाठ्यक्रमों की आवश्यकता है।
  • संकाय की कमी: कई विश्वविद्यालयों में शिक्षण के पद रिक्त हैं।
    • भर्ती नियमों को अंतिम रूप न दिए जाने से योग्य शिक्षकों की नियुक्ति में देरी होती है।
    • 40% से अधिक संकाय पद रिक्त हैं, और केवल 10% SPU में अच्छी तरह से सुसज्जित अनुसंधान सुविधाएँ हैं, जिससे सीखने के परिणामों पर काफी प्रभाव पड़ता है।
  • संकाय की भूमिका में विसंगति: संकाय को मुख्य रूप से अनुसंधान के बजाय शिक्षण के लिए भर्ती किया जाता है, जिसके कारण अनुसंधान क्षमता में कमी आती है।
  • अपर्याप्त बुनियादी ढाँचा: कई SPU में प्रयोगशालाओं, डिजिटल संसाधनों, पुस्तकालयों और अनुसंधान सुविधाओं का अभाव है।
    • ग्रामीण संस्थानों में सीमित डिजिटलीकरण, जिससे ई-लर्निंग प्रभावित हो रही है।

पहुँच एवं समानता

  • क्षेत्रीय असमानताएँ: उच्च शिक्षा शहरी क्षेत्रों में केंद्रित है, जिससे ग्रामीण छात्रों के पास कम विकल्प बचते हैं।
    • विश्वविद्यालय घनत्व भिन्न-भिन्न है: बिहार (0.2) बनाम सिक्किम (10.3) प्रति लाख जनसंख्या पर विश्वविद्यालय।
  • कम सकल नामांकन अनुपात (GER): भारत का GER (28.4%) विकसित देशों (50% से ऊपर) की तुलना में कम है।
    • NEP 2020 का लक्ष्य वर्ष 2035 तक 50% GER हासिल करना है, लेकिन इसमें तेजी से विस्तार की आवश्यकता है।
  • लैंगिक तथा सामाजिक अंतर: केरल, छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में महिला नामांकन अधिक है, लेकिन बिहार, राजस्थान में कम है।
    • हाशिए पर पड़े समूहों (SC, ST, OBC, आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग) को अभी भी उच्च शिक्षा में बाधाओं का सामना करना पड़ता है।
  • ड्रॉपआउट उच्च दरें: वित्तीय बाधाओं, नौकरी के अवसरों की कमी तथा सामाजिक कारकों के कारण ड्रॉपआउट की उच्च दर है।
    • आर्थिक रूप से वंचित छात्रों के लिए बेहतर छात्रवृत्ति और सहायता की आवश्यकता है।

वित्तपोषण तथा वित्तीय बाधाएँ 

  • कम सरकारी खर्च: भारत शिक्षा पर सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 4.5% खर्च (लक्ष्य: NEP 2020 के अनुसार 6%) करता है।
    • SPU के लिए राज्य द्वारा दिए जाने वाले वित्तपोषण में कमी; अधिकांश धन वेतन पर खर्च होता है, बुनियादी ढाँचे या अनुसंधान पर नहीं।
  • अनुसंधान में सीमित निजी निवेश: भारत में अनुसंधान एवं विकास पर व्यय सकल घरेलू उत्पाद का मात्र 0.7% (चीन: 2.4%, अमेरिका: 3%) है।
    • अनुप्रयुक्त अनुसंधान को वित्तपोषित करने के लिए उद्योग-अकादमिक साझेदारी की आवश्यकता।
  • शुल्क संरचना संबंधी मुद्दे: राज्य के सार्वजनिक विश्वविद्यालयों की फीस कम है, जिसके कारण वे सरकारी अनुदान पर निर्भर रहते हैं।
    • निजी विश्वविद्यालय अधिक शुल्क वसूलते हैं, जिससे निम्न आय वर्ग के लिए शिक्षा प्राप्त करना कठिन हो जाता है।

शासन तथा स्वायत्तता के मुद्दे

  • कठोर विनियामक ढाँचा: विश्वविद्यालयों को UGC, AICTE, राज्य सरकारों से अत्यधिक नियंत्रण का सामना करना पड़ता है।
    • नौकरशाही की अकुशलता के कारण नीति कार्यान्वयन में देरी हो रही है।
  • बार-बार नेतृत्व परिवर्तन: राजनीतिक हस्तक्षेप कुलपति की नियुक्तियों और निर्णय लेने को प्रभावित करता है।
    • विश्वविद्यालय प्रशासन में दीर्घकालिक दृष्टि का अभाव है।
  • संबद्धता मॉडल का बोझ: कई राज्य सार्वजनिक विश्वविद्यालयों में 300 से अधिक संबद्ध कॉलेज हैं, जिससे गुणवत्ता नियंत्रण मुश्किल हो जाती है।
    • संस्थानों के लिए अधिक स्वायत्तता की आवश्यकता है।

रोजगार योग्यता तथा कौशल का बेमेल होना

  • उद्योग जगत के साथ कम सहयोग: पुराने पाठ्यक्रम उद्योग जगत की जरूरतों के अनुरूप नहीं हैं।
    • इंटर्नशिप और व्यावहारिक प्रशिक्षण के अवसरों की कमी।
  • स्नातक स्तर पर उच्च बेरोजगारी: 50% से ज्यादा भारतीय स्नातक सॉफ्ट स्किल और व्यावहारिक अनुभव की कमी के कारण बेरोजगार हैं।
    • व्यावसायिक प्रशिक्षण और उद्यमिता कार्यक्रमों की जरूरत है।
  • सीमित डिजिटल और तकनीकी कौशल प्रशिक्षण: विश्वविद्यालयों में AI, डेटा साइंस और डिजिटल लर्निंग को अपनाने की धीमी गति होना।
    • STEM शिक्षा पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है।

अंतरराष्ट्रीयकरण तथा वैश्विक रैंकिंग मुद्दे

  • वैश्विक रैंकिंग में कुछ भारतीय विश्वविद्यालय
    • केवल कुछ संस्थान (IIT, IIS, एम्स) वैश्विक स्तर पर शीर्ष 500 में स्थान पाते हैं।
    • बेहतर संकाय भर्ती, अनुसंधान निधि और वैश्विक सहयोग की आवश्यकता है।
  • सीमित अंतरराष्ट्रीय छात्र नामांकन: चीन, अमेरिका और यू.के की तुलना में भारत कम विदेशी छात्रों को आकर्षित करता है।
    • भारत केवल 50,000 अंतरराष्ट्रीय छात्रों को आकर्षित करता है, जबकि चीन में 5,00,000 से अधिक विदेशी छात्र हैं और संयुक्त राज्य अमेरिका (US) में 10 लाख विदेशी छात्र अध्ययन कर रहे हैं।

उच्च शिक्षा में मुक्त एवं दूरस्थ शिक्षा (Open and Distance Learning-ODL) प्रणाली

  • उच्च शिक्षा में ODL प्रणाली एक शिक्षार्थी-केंद्रित दृष्टिकोण प्रदान करती है, जहाँ किसी भी समय और किसी भी स्थान पर शिक्षा प्राप्त की जा सकती है। 
  • यह विशिष्ट समय या स्थानों पर शारीरिक उपस्थिति को अनिवार्य नहीं करता है, बल्कि प्रवेश, अध्ययन की गति और स्थान के संदर्भ में लचीलापन प्रदान करता है।
  • भारत में ODL संस्थान
    • भारत में पहला मुक्त विश्वविद्यालय वर्ष 1982 में आंध्र प्रदेश मुक्त विश्वविद्यालय के रूप में स्थापित किया गया था, जिसे अब डॉ. बी.आर. अंबेडकर मुक्त विश्वविद्यालय के रूप में जाना जाता है।
    • केंद्र सरकार ने वर्ष 1985 में इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय (IGNOU) की स्थापना की।
    • वर्तमान में, एक केंद्रीय मुक्त विश्वविद्यालय (IGNOU) और 14 राज्य मुक्त विश्वविद्यालय हैं।

नीति आयोग द्वारा नीति अनुशंसा

भारत में उच्च शिक्षा को मजबूत करने की दिशा में आगे की राह

  • शिक्षा और अनुसंधान पर सार्वजनिक व्यय बढ़ाना: NEP 2020 के अनुसार, GDP का 6% शिक्षा के लिए आवंटित करना।
    • वर्तमान में, भारत लगभग 4.5% खर्च करता है, जो चीन (6.5%) और यू.एस.ए (7%) से बहुत कम है।
    • अनुसंधान एवं विकास संबंधी निवेश को GDP के 2% (वर्तमान में 0.7%) तक बढ़ाना, जो चीन (2.4%) और यू.एस.ए. (3%) जैसे वैश्विक नेताओं के साथ संरेखित है।
    • विश्वविद्यालय-उद्योग भागीदारी के लिए कर प्रोत्साहन एवं अनुदान की पेशकश करके अनुसंधान और नवाचार में निजी क्षेत्र के निवेश को प्रोत्साहित करना।
  • उद्योग की आवश्यकताओं एवं भविष्य के कौशल से मेल खाने के लिए पाठ्यक्रम में सुधार करना: STEM, मानविकी और व्यावसायिक कौशल को एकीकृत करते हुए NEP 2020 के अनुसार बहु-विषयक शिक्षा को लागू करना।
  • वैश्विक उद्योग की माँगों से मेल खाने के लिए AI, डेटा साइंस, साइबर सुरक्षा और ग्रीन टेक्नोलॉजी पर ध्यान केंद्रित करना।
  • संकाय भर्ती और शिक्षक प्रशिक्षण में सुधार करना: पारदर्शी और योग्यता-आधारित भर्ती के माध्यम से रिक्त संकाय पदों को जल्दी से भरना।
    • चीन की ‘हजार प्रतिभा योजना’ (Thousand Talents Plan) के समान वैश्विक प्रतिभाओं को आकर्षित करने के लिए प्रतिस्पर्द्धी वेतन प्रदान करना।
  • डिजिटल बुनियादी ढाँचे और ऑनलाइन शिक्षा को मजबूत करना: ग्रामीण विश्वविद्यालयों में इंटरनेट की सस्ती पहुँच और स्मार्ट कक्षाओं को सुनिश्चित करके डिजिटल विभाजन को कम करना।
    • छात्रों की सहभागिता और कौशल ट्रैकिंग को बेहतर बनाने के लिए AI-संचालित व्यक्तिगत शिक्षण उपकरणों का उपयोग करना।
  • विश्वविद्यालयों में अनुसंधान और नवाचार को बढ़ावा देना: AI, अंतरिक्ष, स्वास्थ्य सेवा और नवीकरणीय ऊर्जा के लिए विश्वविद्यालयों में विशेष अनुसंधान क्लस्टर स्थापित करना।
    • उच्च गुणवत्ता वाले अनुसंधान और पेटेंट पर ध्यान केंद्रित करने वाले विश्वविद्यालयों को वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान करना।
  • विकेंद्रीकृत शासन और विश्वविद्यालयों को अधिक स्वायत्तता देना: तेजी से निर्णय लेने को सुनिश्चित करने के लिए विश्वविद्यालय प्रशासन में नौकरशाही हस्तक्षेप को कम करना।
    • फीस, पाठ्यक्रम और साझेदारी निर्धारित करने में SPU को अधिक स्वायत्तता प्रदान करना।
    • शैक्षणिक गुणवत्ता में सुधार के लिए संबद्धता-आधारित प्रणालियों से स्वतंत्र डिग्री-प्रदान करने वाले संस्थानों में बदलाव करना।
  • वैश्विक रैंकिंग में सुधार करना और अंतरराष्ट्रीय छात्रों को आकर्षित करना: भारतीय विश्वविद्यालयों को THE, QS और ARWU जैसे वैश्विक रैंकिंग ढाँचों में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करना।
    • विदेशी विश्वविद्यालयों के भारतीय परिसरों की स्थापना करना ताकि अंतर-सांस्कृतिक शैक्षणिक आदान-प्रदान को बढ़ाया जा सके।
  • रोजगार और उद्यमिता को बढ़ावा देना: उद्योगों और स्टार्टअप के साथ साझेदारी में इंटर्नशिप और अप्रेंटिसशिप कार्यक्रमों का विस्तार करना।
    • छात्रों के नेतृत्व वाले स्टार्टअप का समर्थन करने के लिए विश्वविद्यालयों के भीतर उद्यमिता इनक्यूबेटरों को बढ़ावा देना।
  • उद्योग-अकादमिक सहयोग को मजबूत करना: इंजीनियरिंग, स्वास्थ्य सेवा, कृषि और उभरते क्षेत्रों में उद्योग-प्रायोजित अनुसंधान केंद्र स्थापित करना।
    • वास्तविक दुनिया की परियोजनाओं के लिए बहुराष्ट्रीय कंपनियों के साथ साझेदारी करने के लिए विश्वविद्यालयों को प्रोत्साहित करना।

निष्कर्ष 

उच्च शिक्षा में चुनौतियों से पार पाने के लिए भारत को वित्तपोषण, शासन, अनुसंधान, बुनियादी ढाँचे, रोजगार एवं अंतरराष्ट्रीयकरण में व्यापक सुधारों की आवश्यकता है। इन सुधारों के साथ, भारत अपने ‘विकसित भारत @2047’ विजन को प्राप्त कर सकता है और स्वयं को वैश्विक शिक्षा और नवाचार केंद्र के रूप में स्थापित कर सकता है।

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