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भारत से अगरवुड का निर्यात

Lokesh Pal July 29, 2024 02:04 100 0

संदर्भ

भारत ने वन्यजीव और वनस्पति की लुप्तप्राय प्रजातियों के अंतरराष्ट्रीय व्यापार पर कन्वेंशन (CITES) के महत्त्वपूर्ण व्यापार की समीक्षा (RST) में एक्विलरिया मैलाकेंसिस (अगरवुड) को शामिल करने से सफलतापूर्वक रोक दिया है।

संबंधित तथ्य

  • CITES ने अप्रैल 2024 से भारत से अत्यधिक मूल्यवान और सुगंधित रालयुक्त लकड़ी और एक्विलरिया मैलाकेंसिस (अगरवुड) के तेल का नया निर्यात कोटा भी अधिसूचित किया।
    • निर्यात प्रतिबंध के बावजूद, भारत में अगरवुड और उसके डेरिवेटिव का अवैध व्यापार जारी रहा है, जिसमें वर्ष 2017 और 2021 के बीच भारत के छह राज्यों में कथित तौर पर 1.25 टन से अधिक चिप्स और 6 लीटर तेल/डेरिवेटिव जब्त किए गए हैं।
    • चूँकि अगरवुड की खेती भारत के विभिन्न भागों में, विशेषकर पूर्वोत्तर में की जाती है, इसलिए इस विकास से असम, मणिपुर, नागालैंड और त्रिपुरा के कुछ जिलों के लाखों किसानों को लाभ मिलेगा।

अगरवुड

  • वैज्ञानिक नाम:  एक्विलरिया मैलाकेंसिस (Aquilaria malaccensis)
  • परिचय:
    • अगरवुड, जिसे ऊद, एलोवुड या गहरू के नाम से भी जाना जाता है, एक बहुत ही मूल्यवान और सुगंधित रालयुक्त लकड़ी है, जो एक्विलरिया वृक्षों की हृद-काष्ठ में बनती है। 
    • यह एक सदाबहार पेड़ है, जो 40 मीटर तक बढ़ सकता है।
  • राल का उत्पादन
    • राल का उत्पादन तब होता है, जब एक्विलरिया के पेड़ एक प्रकार के फफूँद (फ्यूजेरियम सोलानी) से संक्रमित होते हैं । 
    • पेड़ संक्रमण (तनाव-प्रतिक्रिया) के प्रति प्रतिक्रिया करते हुए एक गहरे सुगंधित राल का उत्पादन करता है , जो लकड़ी को उसकी विशिष्ट खुशबू प्रदान करता है।
  • भौगोलिक वितरण 
    • यह दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशिया के देशों, विशेषकर भारत (पूर्वोत्तर भारतीय राज्य), बांग्लादेश, भूटान, इंडोनेशिया, मलेशिया, म्याँमार, फिलीपींस और थाईलैंड का मूल वृक्ष है।
  • आर्थिक मूल्य
    • अगरवुड दुनिया के सबसे महंगे प्राकृतिक कच्चे माल में से एक है। उच्च श्रेणी के रेजिन के लिए इसका मूल्य $1,00,000 प्रति किलोग्राम तक हो सकता है।
    • अगरवुड का तेल या ऊद को भाप आसवन के माध्यम से निकाला जाता है। इस तेल को इत्र उद्योग में बहुत महत्त्व दिया जाता है और इसे ‘तरल सोना‘ कहा जाता है।
  • उपयोग 
    • अगरवुड का उपयोग उच्च-स्तरीय इत्र, अगरबत्ती, पारंपरिक चिकित्सा और धार्मिक और सांस्कृतिक अनुष्ठानों संबंधी उत्पादों हेतु किया जाता है। 
    • मध्य पूर्वी और पूर्वी एशियाई संस्कृतियों में इसका बहुत महत्त्व है।
  • संरक्षण स्थिति
    • CITES (वन्यजीव और वनस्पतियों की लुप्तप्राय प्रजातियों में अंतरराष्ट्रीय व्यापार पर अभिसमय): परिशिष्ट II 
      • वर्ष 1994 में CoP9 में भारत के प्रस्ताव के आधार पर वर्ष 1995 में पहली बार एक्विलरिया मैलाकेंसिस  को CITES के परिशिष्ट II में सूचीबद्ध किया गया था।
    • IUCN स्थिति : ‘गंभीर रूप से संकटग्रस्त’ 
    • अंधाधुंध कटाई और व्यावसायिक दोहन के कारण पिछले 150 वर्षों में इसकी आबादी में 80% से अधिक की गिरावट आई है।

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